अरमान दुल्हन के - 3 एमके कागदाना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अरमान दुल्हन के - 3

अरमान दुल्हन के भाग-3

"ए छोरियो थम्मै इस बहू नै भूखी मारोगी के, टैम देख्या सै ग्यारा (ग्यारह)बज्जण नै होरे सैं।बेरा ना रोटी इसनै कोडबै (कब )की खा राख्खी सैं?जिम्माओ(खाना खिलाओ) इसनै।"बूआ नै भतीजियों को डांटते हुए कहा।
"ए बूआ तैं खुवा दे हाम्म के ठाली (फ्री) बैठी सां" एक सुंदर सी लड़की ने नाक सुकोड़ते हुए बोली और मुंह पिचकाकर बाहर चली गई।
दुल्हन का किसी के साथ कोई परिचय नहीं हुआ था।सरजू के जरिए बूआ का पता चल चुका था कि ये इकलौती बूआ हैं और सब पर रौब भी जमा रही हैं।हां बाकी सबके वार्तालाप से पता चल रहा था कि जो बूआ बूआ पुकार रही हैं ये सभी ननदें है ।
"चल भाभी पहल्यां(पहले) नहा ले फेर खाणा खा लिये।"एक और सुंदर सी लड़की ने दुल्हन को पुकारा।
दुल्हन सोचने लगी इतनी सुंदर सुंदर लड़कियां हैं यहां एक से बढ़कर एक सौंदर्य से भरपूर। कहीं मैं परीलोक में तो नहीं आ गई।?कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही? अनगिनत सवाल दिमाग में उथल पुथल मचा रहे थे। बचपने में दुल्हन ने अपने आपको चुटकी काट ली और धीरे से उसकी चीख निकल गई।
"के होग्या(क्या हुआ) भाभी ?"उस लड़की ने पूछा।
कुछ नहीं, दुल्हन को अपनी बचकानी हरकत पर हंसी आ गई । उसने अपने ब्रीफकेस से कपड़े निकाले और उस लड़की के पीछे- पीछे चलने लगी।
उस लड़की ने चलते चलते ही अपना परिचय दिया।
"भाभी मैं आपकी सबसे छोटी ननद।मेरा नाम तो आपको पता ही होगा? ओफ्फो!मैं बी कितणी पागल सूं! हम तो पहले मिले ही नहीं । वैसे भाई तो आपको मीनू नाम से बुलाते हैं ।हम आपको किस नाम से बुलाएं।"
"कविता नाम है मेरा "दुल्हन ने अपना नाम बताया।
"चलो मैं आपको सबके बारे मे बताती हूँ।सबतैं बडी बेबे सुशी(सुशीला ) सै जिसनै ग्रीन सूट डाल राख्या था,दुसरे नम्बर पर बेबे ममता सुणे हाथ्यां आळी (सुंदर हाथों वाली) ।"और खिलखिलाकर हंस पड़ी। "और सबसे छोटी मैं रज्जो। सबतैं बडा भाई सै पापा के जाने के बाद उन्होंने ही पूरे घर को संभाला है ।" पापा को याद कर भावुक होकर रज्जो रो पड़ती है।
दुल्हन भी रज्जो के साथ भावुक होकर रोने लगती है। दोनों काफी देर तक रोती रहती हैं ।दोनों एक दूसरे को चुप करवाती हैं। उस दिन से ही दुल्हन रज्जो के साथ आत्मीय रिश्ते में जुड़ जाती है।
दोनों साथ में खाना खाती हैं ,बातें करती हैं । रात्रि का निशिथ पहर (रात्रि 10 से 1 बजे के बीच का समय) बीत चूका है। "
भाभी बहुत रात हो गई है।आप सो जाओ।सवेर नै फेर कांकर डोरड़ा (एक रस्म)खातर(के लिए) तोळ करैंगे।"
रज्जो कविता को उसके रूम तक छोड़ आती है। कविता कमरे में सरसरी नजर डालती है।उसने सोचा था जैसे फिल्मों में सेज सजाई जाती है वैसी उसकी भी सेज सजी होगी।कमरे सरजू इंतजार कर रहा होगा।मगर ये क्या कमरा तो अकेला जम्हाई ले रहा था। कमरे में सूनी सेज मानों उसे चिड़ा रही हो।
नींद आंखों से कोसों दूर थी।सबकुछ बड़ा अजीब लग रहा था।वह न सो पा रही थी ना रो पा रही थी।अजीब सी कशमकश ने घेर रखा था। सासु मां तो कहीं दिखी भी न थी। दिमाग में अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे।कहीं मैं धन कम लेकर आई हूँ इसलिए तो सासु मां नाराज नहीं। क्या पता इसी वजह से मुझे गाड़ी से उतारने ना आई हों।
नहीं... नहीं ऐसा नहीं हो सकता।उनकी भी तो तीन- तीन बेटियां हैं।कोई और वजह हो सकती है। कैसे पता लगाऊं?
तभी कुछ आहट होती है और सरजू कमरे में प्रवेश करता है।


क्या कविता की सास सच में नाराज है या कविता का वहम मात्र है। कविता का ससुराल में अनमने स्वागत का क्या कारण हो सकता है? जानने के लिए जुड़े रहिये हमसे ।
क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा