बंधन--भाग(२) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बंधन--भाग(२)

दूसरे दिन अमृत राय जी अपनी बेटी मीरा के साथ चले गए___
फिर एक दिन गिरिधर के यहां आटा खत्म हो गया, संकोचवश उसने ठाकुर साहब से कुछ नहीं कहा, सोचा कि शाम को खेतों से लौटते समय खरीद लाएगा ,उस दिन वो भोजन नहीं बना पाया और भूखे पेट ही कड़ी धूप में काम करता रहा,शाम होने को आई एकाएक उसका सर घूमने लगा और वो गिर पड़ा, वहां मौजूद सब लोगों ने उसे उठाकर पानी पिलाया, ये खबर ठाकुर साहब तक भी पहुंच गई, ठाकुर साहब दौड़े-दौड़े आए।‌‌
ठाकुर साहब बोले,चलो जल्दी से डॉक्टर के पास ले चलो,
गिरिधर बोला, ठाकुर साहब मैं बिल्कुल ठीक हूं।।
नहीं कैसे ठीक हो, चक्कर खाकर गिर पड़े और कहते हो कि ठीक हो, ठाकुर साहब ने कहा।।
ऐसी कोई बात नहीं है ठाकुर साहब,आप कुछ ज्यादा ही फ़िक्र कर रहे हैं, गिरिधर बोला।।
तुम उठो जी!!बहस मत करो और फ़ौरन डाक्टर के पास चलो, ठाकुर साहब गुस्से से बोले।।
इतना सुनकर गिरिधर सकपका गया उसने फ़ौरन कहा कि आज खाना नहीं बना तो ना खाने से चक्कर आ गया।।
अब ठाकुर साहब गुस्से से लाल हो उठे, हां... हां..सारा परोपकार करने का ठेका तो तुमने ले रखा!!महाशय भूखे पेट काम कर रहे हैं और एहसान चुकाने की कोशिश की जा रही हैं।
गिरिधर बोला, ठाकुर साहब ऐसा कुछ नहीं है!!
तो फिर क्या है, ठाकुर साहब बोले।।
वो क्या है कि आटा खत्म हो गया था तो खाना नहीं बना पाया।।
क्यो जी!! इतने अनाज के भंडार लगे हैं तो किसलिए है, कहीं से भी ले लेते, ठाकुर साहब बोले।।
लेकिन बिना आपकी इजाजत के कैसे ले सकता हूं, चोरी तो चोरी होती है,चाहे थोड़ी सी ही क्यो ना हो।।
गिरिधर की ऐसी बातों से ठाकुर साहब बहुत प्रभावित हुए और बोले, ठीक है लेकिन कल से कालिंदी जैसे मेरा खाना, खेतों पर लाती है, तुम्हारे लिए भी ले आया करेंगी, मैं बोल दूंगा लेकिन भूखा रहने की जरूरत नहीं है और चलो अभी मेरे साथ।।
ठाकुर साहब और गिरिधर हवेली पहुंचे, देखा तो सामने के बाड़े में कालिंदी गाय का दूध दूह रही थी, ठाकुर साहब ने आवाज दी,
कालिंदी यहां आ तो बेटी।।
जी बाबूजी कहिए,क्या बात है? कालिंदी ने कहा।।
ठाकुर साहब बोले, बेटी लोटे में गरम दूध और मेवे वाले लड्डू जो तूने बनाए थे,जल्दी से ले आ।।
जी बाबूजी, इतना कहकर कालिंदी रसोई में चली गई, कुछ देर में दूध और लड्डू लेकर आ गई।।
ठाकुर साहब बोले,दे दो इन महाशय को,आज खाना नहीं खाया और चक्कर खाकर गिर पड़े, मैं तो डर गया था कि पता नहीं अचानक क्या हुआ, बड़ी मुश्किल से बताया कि आटा खत्म हो गया था तो खाना नहीं बना पाया।।
ये सारा दूध और ये लड्डू खत्म करके आराम करो और रात को खाना खाने आ जाना, मैं अभी मुंशी जी से बोल कर आटे का इंतजाम करवाता हूं और ठाकुर साहब इतना कहकर बाहर चले गए।।
गिरिधर , कालिंदी से बोला,ये लड्डू और दूध बहुत ज्यादा है इन्हे कम कर लीजिए, मुझसे इतना नहीं खाया जाएगा।।
कालिंदी बोली, कोई बात नहीं,आप जितना खाना चाहे खा लें!
गिरिधर ने थोड़ा दूध पिया और दो-तीन लड्डू खाकर बोला अब मैं चलता हूं!!
कालिंदी बोली, ठीक है!!
अब कालिंदी दोपहर का खाना गिरिधर के लिए भी ले जाने लगी, ठाकुर साहब और गिरिधर साथ में खाना खाते।।
धीरे धीरे गिरिधर को सारे गांव वालों ने अपना बना लिया,बस सब की मदद में लगा रहता, गिरिधर को भी ये सब करके बहुत खुशी मिलती।।
इसी बीच ठाकुर साहब की बड़ी बहन लीलावती उनके पास रहने के लिए आई साथ में उनका बेटा शम्भूनाथ भी आया।।
लीला को कतई पसंद ना आया कि प्रताप ऐसे गांव वालों के साथ घुल-मिल कर रहे__
लीलावती बोली,प्रताप इन गांव वालों को इतना मुंह क्यो लगाता है,तू ठाकुर है,सब तेरा दिया खाते हैं तेरी ज़मीन में काम करते हैं और तू है कि रूतबे के साथ नहीं रहता और तेरी बेटी सुबह शाम गांव की औरतों को दूध बांटती रहती,अनाज दालें देती रहती है, कपड़े लत्ते बांटती रहती है, गांव वालों को दबाकर रखाकर, नहीं तो एक दिन तेरे सर पर चढ़ने लगेंगे।
ऐसी कोई बात नहीं है, जीजी,दान करने से बढ़ता है और फिर ये सब तो इन्हीं लोगों की मेहनत का नतीजा है कि मेरा घर धन-धान्य से भरा रहता है, इन्हीं लोगों के दुआं है जो घर में कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं होती, ठाकुर साहब बोले।।
लीलावती बोली, मुझे क्या करना है, मैं तो बस तुझे सावधान कर रही थी, जैसी तेरी मरजी।।
और उधर शम्भूनाथ ने भी सबसे उधार लेकर अय्याशी शुरू कर दी, कभी शहर जाता सिनेमा देखने और अब तो मामा का मनमाना पैसाा तो नाच देखने का भी शौक पाल लिया,आए दिन जुआं-शराब में डूबा रहता।
ऐसे ही चल रहा था लेकिन मुंशी जी के कानों में इस बात की भनक पड़ गई और उन्होंने गिरिधर से सब कहा।।
गिरिधर बोला लेकिन मुंशी जी ये बात तो ठाकुर साहब तक पहुंचनी चाहिए,हम लोगों ने उनका नमक खाया और अगर कोई उनका नुकसान करना चाहता है तो ये बात तो हमें बतानी होगी।।
मुंशी जी बोले लेकिन मुझमें हिम्मत नहीं है, गिरिधर बेटा तुम ही बोलो तब मैं तुम्हारी बात का समर्थन कर दूंगा।।
गिरिधर बोला ठीक है तब ,मैं मौका देखते ही बात करता हूं।।
फिर एक दिन सारी बातें गिरिधर ने ठाकुर साहब को हवेली जाकर बता दी।
अब ठाकुर साहब ने इस विषय पर लीलावती से बात की!!
लीलावती बोली,प्रताप तुम दो कौड़ी के मजदूर की बातों पर भरोसा कर रहे हो,इतने में मुंशी जी ने आकर कहा,ये सब सच है मालिक, कुछ लोग अपनी उधारी मांगने गद्दी पर आए थे, मैंने पूछा तो कहने लगे कि शम्भूनाथ ने पैसे लेने के लिए यही पता दिया था।
ठाकुर साहब बहुत नाराज़ हुए__
उन्होंने लीलावती से कहा, देखा जीजी अपने बेटे को,एक नम्बर का नाकारा है और अय्याशी तो देखो,एक वो है गिरिधर अनाथ बेचारा,मजाल है जो कभी एक मुट्ठी अनाज को भी हाथ लगाया हो, इतना ईमानदार और मेहनती, बेटा हो तो ऐसा!!
लीलावती चिढ़कर बोला, इतना ही अच्छा है तो अपना दामाद क्यो नही बना लेते।।
ठाकुर साहब बोले, जीजी!! तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर,ये बात मेरे दिमाग में पहले क्यो नही आई, ऐसा दामाद तो मैं दिया ढूंढने जाऊं तब भी ना ढूंढ पाता।
मुंशी जी बोले!! कैसी बातें कर रहे हैं ? सरकार, कालिंदी बिटिया का ब्याह वो भी गिरिधर से, कुछ तो सोचिए,लोग क्या कहेंगे।।
ठाकुर साहब बोले, कोई कुछ नहीं कहेगा,बस कालिंदी और गिरिधर से पूछूंगा अगर दोनों तैयार हो गये तो ब्याह पक्का।।
फ़ौरन, ठाकुर साहब ने कालिंदी से पूछा!!
कालिंदी ने शरमाकर जवाब दिया कि बाबूजी जी जो आपकी पसंद वहीं मेरी भी पसंद।।
ठाकुर साहब बहुत खुश हुए और तुंरत ही गिरिधर से पूछने निकल पड़े, खलिहान वाली कोठरी में__
ठाकुर साहब ने गिरिधर से कहा कि तुमसे बात करनी है__
गिरिधर बोला, कहिए!!
तुम्हें कालिंदी पसंद है, ठाकुर साहब ने पूछा।।
उसे भला कौन नहीं पसंद करेगा, गिरिधर बोला।।
अच्छा सीधे सीधे पूछता हूं,क्या तुम कालिंदी से शादी करोगे?
ठाकुर साहब ने पूछा!!
गिरिधर बोला, लेकिन मैं ही क्यो?
पहले तुम मेरी बात का जवाब दो, हां या ना..
गिरिधर ने कहा कि कुछ समय दे दीजिए सोचने का...
ठाकुर साहब बोले,अगर हां हैं तो सुबह हवेली पर नाश्ता करने आ जाना...
और अगर ना तो...

क्रमशः____
सरोज वर्मा____