मानसिक रोग - 7 Priya Saini द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मानसिक रोग - 7

पिछले भाग में आपने जाना एक दिन ऑफिस से जाते वक्त आनन्द श्लोका को शादी के लिए पूछ ही लेता है। अभी श्लोका ने आनन्द को जाना ही कितना था, पूरी ज़िन्दगी की बात थी। श्लोका सोचने के लिए वक़्त लेकर घर को निकल गई। घर जाकर श्लोका ने माँ को फोन किया और आनन्द के बारे में बताया। माँ ने सुझाव दिया कुछ समय लेकर देखो अगर तुम्हें ठीक लगता है तो आगे बढ़ना इस रिश्ते में नहीं तो आनन्द को साफ शब्दों में मना कर देना। जो भी हो हम तुम्हारे साथ हैं, तुम जो भी फ़ैसला लोगी हम साथ देंगे। हमें बस तुम्हारी खुशियां ही चाहिए।
माँ से ये सब सुनकर श्लोका निश्चिन्त हो गई। ऑफिस में काम करते वक़्त श्लोका एक नजर आनन्द पर रखने लगी। वह उसको जानने की कोशिश कर रही थी। बात को तीन चार दिन ही हुए थे कि आनन्द जवाब लेने आ पहुँचा। श्लोका का व्यवहार था वह झूठे वादे नहीं करना चाहती थी, अगर एक बार हाँ कर दी तो उम्र भर वह साथ निभायेगी इसीलिए वह किसी भी फैसले में जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी।
जब आनन्द ने पूछा तो श्लोका ने साफ शब्दों में कहा, "अभी हाँ करना किसी भी प्रकार की जल्दबाजी होगी, तुम भी थोड़ा समय लेकर और सोच लो। बात पूरी ज़िन्दगी की है।" इस पर आनन्द का जवाब था, "मैनें तुम्हें जितना जानना था जान लिया है, हाँ अगर तुम और समय लेना चाहती हो तो मैं तुम्हारे निर्णय की इज्जत करता हूँ। जब तक तुम्हें संतोष न हो तुम हाँ न करना, कोई जल्दबाजी नहीं है। तुम अपना पूरा समय लो। मैं इंतजार करूँगा।"
ये शब्द श्लोका के दिल को छू गए थे किन्तु अभी वह और जानना चाहती थी ताकि आगे जाकर पछतावा न हो। दोनों की दोस्ती तो बरकरार ही थी। कुछ और महीने बीत गये श्लोका आनन्द के करीब जाने लगी। अब श्लोका भी आनन्द को पसंद करने लगी थी। आनन्द का श्लोका को प्यार से देखना और उसके साथ बिताए लम्हें श्लोका को आनन्द के करीब ले गए। फिर क्या था श्लोका अब आनन्द से शादी करने को तैयार थी। श्लोका आनन्द को ये बताना चाहती थी किन्तु इस लम्हें को यादगार बनाना भी चाहती थी। उसने उस वक़्त तो कुछ नहीं कहा, अगले दिन ऑफिस जाते वक्त लाल गुलाब का गुलदस्ता लेकर श्लोका ऑफिस पहुँची। ऑफिस में अभी सबको बताना ठीक न था, न ही ऑफिस में ऐसा कुछ करने की इजाजत थी। श्लोका ने फ़ोन करके आनन्द को ऑफिस के बाहर बुलाया और गुलदस्ता देते हुए बोली, "विल यु मेरी मी?"
आनन्द भौचक्का देखता ही रहा। उसके लिए सब सपने जैसा था। उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था। श्लोका ने गुलदस्ता हिलाते हुए कहा, कहाँ खो गए, नहीं सुना मैनें जो कहा?", आनन्द तो बोलने की हालत में ही न था, "नहीं, नहीं, हाँ मतलब हाँ सुन रहा हूँ। तुम सच कह रही हो? ये कोई मजाक तो नहीं है ना? प्लीज सच बताओ ।" कुछ ऐसे ही शब्द थे आनन्द के।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िये मानसिक रोग का अगला भाग।