मानसिक रोग - 6 Priya Saini द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मानसिक रोग - 6

अब तक आप श्लोका के बचपन से लेकर उसके मैनेजर बनने तक का सफ़र जान चुके है। अब हो रही है श्लोका की ज़िन्दगी की नई शुरआत। आइए पढ़ते हैं आगे की कहानी।
श्लोका निश्चित कर चुकी थी वह किसी अनजान शख़्स के नाम अपनी पूरी ज़िंदगी नहीं करेगी किन्तु इस पर माता-पिता का सहयोग न था। श्लोका अपने माता-पिता से बहुत प्रेम करती थी। वह उनका दिल नहीं दुखाना चाहती थी परंतु वह अपनी ज़िंदगी के फैसले भी खुद करना चाहती थी।

कितनी अजीब बात है ना हमारे माता-पिता हमको इस काबिल बनाते हैं कि हम ज़िन्दगी के फैसले ले सके, पर जब हम अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद लेना चाहते हैं तो उनको ही समस्या होती है। वह भरोसा ही नहीं कर पाते कि उनके बच्चे सही निर्णय ले पाएंगे। शायद उनके लिए हम कभी बड़े ही नहीं होते।
बढ़ती उम्र के साथ माता पिता की चिंता भी बढ़ने लगी थी। साथ ही परिवार, रिश्तेदार और पड़ोसियों के ताने भी शुरू हो गए। "ज़्यादा पढ़ाने लिखाने से यही होता है।", "21 की उम्र होते ही शादी कर दी होती तो आज ये देखना न पड़ता।", "बाहर की हवा लग गई है, लड़की बिगड़ गई है।", "लड़की में कोई कमी तो नहीं।" न जाने ऐसे कितने ही तानों से श्लोका और उसके माता पिता को सुनने पड़ते।
श्लोका फिर भी अपने निर्णय पर डटी रही। समाज के आगे झुकना जो स्वीकार न था। वह जान गई थी समाज कुछ और नहीं उन्हीं लोगों से मिलकर बनता है और उन्हीं को मिलकर इसे बेहतर बनाना है, इसके लिए किसी को तो शुरुआत करनी पड़ेगी ही।
इसी बीच श्लोका का ट्रांसफर अपने शहर से मिलो दूर मेट्रो सिटी में हो जाता है। 15 दिन में श्लोका को वहाँ अपनी हाजरी लगानी थी। वहाँ श्लोका को कंपनी की तरफ से एक किराये का घर और एक गाड़ी उपहार स्वरूप दी गई। पिता के साथ जाकर श्लोका अपना जरूरत का सामान वहाँ जमा आई। जब पिता ने वह घर देखा और गाड़ी देखी तो उनको अपनी बेटी पर बहुत गर्व हुआ। अगले दिन श्लोका को काम पर जाना था। साथ ही पिता भी एक बार कंपनी देखना चाहते थे। सुबह दोनों नास्ता करके कंपनी के लिए निकले।
कंपनी पहुँचकर दोनों अंदर गए। वहाँ सबने श्लोका और उनके पिता का बहुत इज्जत के साथ स्वागत सत्कार किया। यह देख कर श्लोका के पिता की आँखों में ख़ुशी के आँशु आ गए। उन्हें प्रतीत हुआ उनकी बेटी सही थी। सबसे विदा लेकर वह अपने शहर वापस आ गए। वापस आकर सारी व्यथा अपनी पत्नी को सुनाई वह भी खुशी से फूली न समा रहीं थी। दोनों श्लोका की तरक्की और ख़ुशी से बेहद खुश हो रहे थे।

अब उनको अपनी बेटी पर पूरा यकीन हो चुका था, वह जो भी करेगी सोच समझ कर करेगी और अच्छा ही करेगी। पर क्या वाकई में ऐसा था? वो तो आने वाला वक़्त बतायेगा।
श्लोका को मेट्रो सिटी में काम करते 3 माह बीत चुके थे। अब तक तो नए दोस्त भी बन गये थे। साथ में काम करने वालों से श्लोका की अच्छी बनती थी। श्लोका का चंचल व्यवहार सबको बेहद पसंद आता। श्लोका के साथ में काम करने वाला आनन्द श्लोका को पसंद करने लगा था। दोनों दोस्त तो थे ही, एक दिन ऑफिस से जाते वक्त आनन्द ने श्लोका को शादी के लिए पूछ ही लिया।
आगे की कहानी जानने के लिये पढ़िये अगला भाग।