बस नमक ज़्यादा हो गया
- प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 4
सादगी से शादी करने के उसके लाख आग्रह के बावजूद उसके मां-बाप बड़े धूमधाम से शादी कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए थे। एक शानदार गेस्ट हाउस में शानदार सजावट, बारातियों के स्वागत की तैयारियां की थीं, और उसको यह सब बेवजह का तमाशा लग रहा था। होने वाले हस्बैंड से उसकी एंगेजमेंट के बाद से ही बात होती रहती थी। वह भी उसी के मूड का था। लेकिन उसका मानना था कि पेरेंट्स को उनके मन की करने देना चाहिए। हमें बीच में रुकावट नहीं बनना चाहिए। उसी ने उसको भी समझाया था कि अपने विचार, अपनी इच्छा किसी पर हमें थोपनी नहीं चाहिए। जब बारात आई तो ऑरिषा ने देखा कि आजकल के तमाम दूल्हों की तरह वह कुछ खास सजा-धजा नहीं है। उससे ज़्यादा तो कई बाराती ही सजे हुए हैं।
एक चीज ने उसे बहुत परेशान कर दिया कि बाराती तय संख्या से करीब डेढ़ गुना ज़्यादा आए हुए हैं। वह डरने लगी कि कहीं खाना-पीना कम ना पड़ जाए। सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त ना हो जाए। जयमाल के बाद से ही उसके कानों में तनाव भरी कुछ बातें पड़ने लगी थीं। मंडप में शादी की तैयारियां चल रही थीं कि बवाल एकदम बढ़ गया। तोड़फोड़, मारपीट जमकर हो गई। कई लोग हॉस्पिटल पहुंच गए। शादी रुक गई। दूल्हे के नाराज फादर, रिश्तेदार सबने कह दिया कि अब यह शादी नहीं होगी। बारात वापस जाने लगी तो उसके पापा और रिश्तेदारों ने लड़के के फादर, कई रिश्तेदारों को बंधक बना लिया कि नुकसान की भरपाई करने के बाद ही जाने दिया जाएगा अन्यथा नहीं।
वह और दूल्हा दोनों ही हर संभव कोशिश करते रहे। सारे संकोच को दरकिनार कर मोबाइल से ही अपने अपनों को समझाते रहे। लेकिन दोनों किसी को यह समझाने में सफल नहीं हो पाए कि जो हो गया उसे भूल कर अब शादी होने दी जाए। बाकी रही बात नुकसान के भरपाई की, तो वह भी बैठकर समझ ली जाएगी। मगर जड़वादियों की तरह दोनों ही पक्ष जड़ बने रहे, अड़े रहे, और सवेरा हो गया मगर मामला जहां का तहां बना रहा। इसी बीच किसी के फ़ोन करने पर पुलिस आ गई। इस समय तक यह फाइनल हो गया था कि यह शादी तो अब किसी भी सूरत में नहीं होगी। बस क्षतिपूर्ति का मामला सेटल होना है। ऑरिषा को पुलिस आने की सूचना मिली तो वह समझ गई कि वही सुर्ती ही आया होगा। इस शादी के टूटने पर अब वह ऑफ़िस में उसे और परेशान करेगा।
वह जिस कमरे में थी वहां सामान वगैरह, कुछ रिश्तेदार महिलाएं और अम्मा थीं। कई रिश्तेदारों का बराबर आना जाना लगा हुआ था। सब तनाव और तैश में थे। और वह स्वयं बहुत दुखी और गुस्से में थी, सोच रही थी कि अब हर जगह उसकी बेइज़्ज़ती होगी। उसके सारे सपने टूट गए। अपने होने वाले पति के साथ ना जाने कितनी बार फ़ोन पर, कई बार मिलने पर कितनी-कितनी, कैसी-कैसी क्या सारी ही तरह की बातें तो दोनों के बीच होती रही थीं। कब से तो पति-पत्नी जैसे ही दोनों विहैव कर रहे थे। कितने खूबसूरत सपने दोनों ने बुने थे। अब उसे जीवन में ऐसा भला इंसान कहां मिलेगा। उनका भी तो कितना मन टूट रहा होगा। कैसे भूल पाएंगे दोनों एक दूसरे को। कम से कम मेरे दिल से तो अब वह कभी नहीं निकलेंगे। चाहे आगे कभी किसी से भी शादी हो जाए।
अवसर मिला तो इन उजड्डों को मैं छोडूंगी नहीं। मूर्खों ने हम दोनों के सुनहरे सपनों पर पानी नहीं नमक फेरा है। जो हमें नमक की हांडी की तरह ही गलाता रहेगा। काश जाने से पहले यह किसी तरह मिल लेते तो आखि़री बार ही सही मेरी तरफ से जो गलतियां हुईं कम से कम उनके लिए सॉरी तो बोल दूं। बहुत व्याकुल व्यग्र होकर उसने फ़ोन उठाया कि नहीं मिल पा रहे हैं तो कोई बात नहीं। एक बार फ़ोन ही कर लेती हूं। उसने मोबाइल उठाया ही था कि तभी उन्हीं का फ़ोन आ गया और उसने घनघोर घटाओं में कौंधी बिजली की तेज़ी से कॉल रिसीव कर ली।
हेलो बोलते ही उधर से बड़े स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कहा, ‘ऑरिषा मैं अपनी तुम्हारी शादी की आधी रस्में हो जाने के बाद मूर्खों की मूर्खता के चलते शादी को खत्म करने के पक्ष में नहीं हूं। इसलिए मैं इन दोनों लोगों से अपने रिश्ते अभी के अभी खत्म करता हूं और तुम जहां हो, जिस हाल में हो तुरंत वैसी ही हालत में बाहर गेट पर आ जाओ। मैं कार के पास खड़ा हूं। हम आज ही किसी मंदिर में अपनी शादी पूरी कर लेंगे। आज ही अपने पहले से तय शेड्यूल के हिसाब से चल देंगे। तुम मेरी बातों से एग्री हो तो तुरंत आ जाओ, यदि नहीं तो कोई बात नहीं। मुझे बता दो, मैं चलूं तुम्हें भी छोड़कर।’
ऑरिषा उनकी इन बातों को सुनकर ना सन्न हुई और ना ही घबराई। उसने छूटते ही कहा, ‘फ़ोन डिसकनेक्ट नहीं करना, मैं तुरन्त आ रही हूं। मुझे आपके पास पहुंचने में जितना टाइम लगेगा बस उतना ही वेट करिए।’ वह अपनी बात पूरी होने से पहले ही बाहर के लिए चल चुकी थी। अपने सुर्ख लाल डिजाइनर जोड़े में ही। मगर उसने डिजाइनर चप्पलें नहीं पहनीं। क्योंकि जिस हाल में थी वह उसी हाल में चल दी। सामने रखी चप्पल पहनने का भी उसके पास समय नहीं था।
परिवार की महिलाएं, जब-तक कुछ समझें, उसे रोकें तब-तक वह उनके पास बाएं तरफ उनकी बाहों में बाहें डाले खड़ी हो गई। कार का दरवाजा खुला हुआ था। वह अंदर बैठने ही वाली थी कि उसकी साथी ने उसे देखकर ýकने का इशारा किया। उसके पीछे-पीछे लहगर इंस्पेक्टर भी चला आ रहा था। उसने आते ही व्यंग्य भरे लहजे में पूछा, ‘मामला क्या है?’ तो ऑरिषा ने बहुत निश्चिंतता के साथ कहा, ‘कुछ नहीं सर। खाने में बस नमक ज़्यादा हो गया और इसी बात पर इतना बवाल हुआ।’
उसने लहगर इंस्पेक्टर से दो टूक साफ-साफ शब्दों में कहा, ‘सर मैं अपने पति के साथ शादी की बची हुई रस्में पूरी करने मंदिर जा रही हूं। हम दोनों का अब इन दोनों पक्षों से कोई लेना-देना नहीं है। और यहां जो कुछ है उसे आप संभालिए। आप मेरी शादी में आए मगर इस तरह इसके लिए भी मैं आपको धन्यवाद देती हूं। आपसे अपना गिफ्ट मैं हनीमून से लौटकर ले लूंगी और आपको पार्टी भी दूंगी। मुझे जल्दी से जाने की परमिशन दीजिए, आशीर्वाद के साथ। देखिए सब इकट्ठा हो रहे हैं, अब मैं यहां एक मिनट भी रुकना नहीं चाहती। प्लीज सर प्लीज मुझे परमिशन दीजिए।’ ‘ठीक है जाइए आप दोनों। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। जाओ चुनौटी। इन सब से अभी बोहनी करता हूं। दुगनी करूंगा। सालों ने नींद हराम की है।’ कहकर वह ठहाका लगाकर हंस पड़ा। अब तक कई लोग आ चुके थे। समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ऑरिषा ने किसी से आंख तक नहीं मिलाई। पति के साथ गाड़ी में बैठकर तेज़ रफ्तार से निकल गई और लहगर इंस्पेक्टर बोहनी करने में जुट गया था।
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