फोन की घंटी - दो रोटी Saroj Prajapati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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फोन की घंटी - दो रोटी

सोनम सुबह जैसे ही काम मिलता कर बैठी , उसकी बेस्ट फ्रेंड नीतू का फोन आ गया।
हाल चाल पूछने के बाद उसकी सहेली ने कहा
" आज मैंने तुझे एक खुशखबरी सुनाने और इनवाइट करने के लिए फोन किया है!"
"हां हां बता क्या खुशखबरी है और किस चीज का इनविटेशन!"
"मैंने 3BHK फ्लैट लिया है।"
सोनम ने जब उससे एड्रेस व लोकेलिटी का नाम सुना तो चौंकते हुए बोली "यार इतनी हाई सोसाइटी में और वह भी 3 बीएचके तेरी लॉटरी लगी है क्या!"
"नहीं भई, सब सासु मां की कृपा है। तुझे तो पता है मेरे हस्बैंड दो ही भाई है। ससुर जी के जाने के बाद वह अक्सर बीमार रहती है इसलिए उन्होंने अपने जीते जी ही दोनों भाइयों के नाम जो भी कुछ था, आधा-आधा कर दिया।"

"वाह यार, तेरी सास तो बड़ी मालदार, दिलदार व सीधी सादी निकली। नहीं तो जीते जी कहां कोई बेटा बहू को पैसों को हाथ लगाने देता है। वैसे वह तो तेरे जेठ के यहां रहती है ना!"
"हां, सीधी साधी तो है, मेरी सास। यह बात तो तेरी मैं मानती हूं और मैंने तो उन्हें कई बार कहा भी कि हमारे साथ चल कर रहे| हमें भी सेवा पानी करने का मौका दे। लेकिन वह आती ही नहीं है। मेरे ससुर के साथ वर्षों उस घर में रही है ना इसलिए उनका उस घर से विशेष लगाव है| अब जबरदस्ती तो हम कर नहीं सकते। अच्छा अब मैं फोन रखती हूं पर तू आना जरूर।"

उसकी बात सुन सोनम बोली "नीतू उस दिन तो मैं नहीं आ सकती। मेरी ननद के यहां भी फंक्शन है। हां जैसा ही मौका मिलेगा आऊंगी जरूर।"

"अच्छा ठीक है, आना जरूर। मैं तेरा इंतजार करूंगी।"

2 महीने बाद सोनम जब उसके घर पहुंची। तो नीतू गुस्से से बोली "2 महीने बाद तुझे समय मिला है, मेरे यहां आने का!"
"अरे यार, बस पूछ मत! ऐसा फंस गई थी कि तुझे क्या बताऊं। छोड़ , मैं अपनी बातों से तुझे बोर नहीं करना चाहती। पहले तू मुझे अपना घर दिखा। घर देखकर वह बोली वाह यार तू तो जन्नत में रह रही है।।"
चाय पीते हुए सोनम ने पूछा "और सुना, सब कैसे हैं! तेरी सास के क्या हाल है। तबीयत ठीक है उनकी!"
"उनकी तबीयत को क्या हुआ! तबीयत तो उन्होंने मेरी खराब की हुई है!"
"क्या मतलब! मैं समझी नहीं!"
"अरे, वह मेरे साथ ही रह रही है!"

"तो क्या हुआ! कुछ दिन तू भी कर दे, उनकी सेवा पानी। तू भी तो चाहती थी कि कुछ दिन तेरे पास रहें।"
"वह कुछ दिनों के लिए नहीं, परमानेंट ही यहां रहने आ गई है।"
"क्यों तेरे जेठ कहां गए!"
"पैसे मिलते ही वह तो ट्रांसफर का बहाना कर दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए और इन्हें हमारे हवाले छोड़ गए। पहले तो कहती थी कि उस घर को मैं कभी नहीं छोडूंगी। लेकिन जैसे ही मेरे पति ने इनको साथ चलने के लिए कहा तो तुरंत आ गई।"
"कोई बात नहीं नीतू। तू इतनी परेशान मत हो। तुम्हारे यहां रहते हुए, यह वहां अकेली रहती तो सही लगता क्या! वैसे भी तुम ही तो कहती हो ना कि तेरी सास बहुत सीधी है। बिचारी बीमार रहती हैं। दो रोटी खानी है बस उन्होंने।" सोनम ने समझाते हुए कहा।
"दो रोटी का ही तो सारा झंझट है। पता है ना हम नौकरी पेशा लोगों का सुबह शाम का एक एक मिनट कीमती होता है। दो रोटी बनाने में समय नहीं लगता क्या! पहले जो 10 मिनट अपने नाश्ते के लिए निकालती थी। वह अब इनकी रोटी बनाने और चाय पानी देने में निकल जाते हैं| पहले तो कभी थके हारे हो या खाना बनाने का मूड ना हो तो बाहर से खाना मंगा लेते थे। लेकिन जब से ये आई है, बीमारी के कारण इनके लिए तो दो रोटी बनानी ही है। मुझे नहीं पता था, इन पैसों के बदले में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मेरे गले पड़ जाएगी।"
"बहुत टोका टाकी करती है क्या आंटी जी। थोड़ी बहुत भी तेरी हेल्प नहीं करती क्या!"

" अरे, वह क्या टोका टाकी करेंगी। उन्होंने शुरू से ही कुछ नहीं कहा और हेल्प भी करा ही देती हैं।"
"फिर क्यों इतनी दुखी हो रही है तू पगली!"
"अरे यार, इतने सालों से अकेले रहते आए हैं। अब उनके आने से प्राइवेसी खत्म हो गई है| घुटन सी महसूस होती है लेकिन कर कुछ नहीं सकते ना। जेठ जी तो छोड़ कर भाग गए। हम कहां चले जाएं। मुझे तो झेलना ही है।।" नीतू लंबी सांस भरते हुए बोली।
सोनम उसकी बात सुन चुप हो गई क्योंकि उसने देख लिया था कि इसे समझाने का कोई फायदा नहीं।
उधर दूसरे कमरे में बैठी उसकी सास ने जब यह बातें सुनी तो उसकी आंखों से रिश्तो के भरम का पर्दा उठ गया। कितना नाज था उसे अपने बेटों और बहुओं पर। उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी की। बच्चों का भविष्य संवारा और आज उनकी दो रोटियां कितनी भारी पड़ रही है सबको। सोच उसकी आंखों में आंसू आ गए।
सरोज ✍️