सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 2 Aastha Rawat द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 2

उसने अंदर प्रवेश किया
अंदर हालदार बाबू और वह गली वाले महाशय बैठे थे। उन महाशय ने अरूप को आश्चर्य से देखा
तभी हालदार बाबू बोले "आओ अरुप आओ बैठो"

जी ।

इनसे मिलो यह है सत्यजीत सेन बाबू
हालदार बाबू ने उन श्रीमान का परिचय देते हुए कहां


सत्यजीत बाबू ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया अरुप ने भी हाथ जोड़कर उनका अभिवादन स्वीकार किया
हालदार बाबू ने सत्यजीत बाबू को अरुप का परिचय देते हुए बोले "यह है अरूप घोष हमारे नीचे वाले मकान में रहते हैं हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं

अरुप यह सत्यजीत बाबू तुम्हारे कमरे के बगल वाले कमरे में रहने आए हैं जरा इनका सामान जमाने में मदद कर देना "।
अरुुप -जरूर
धन्यवाद मैं अभी अपना सामान मंगवा देता हूं सत्यजीत बाबू ने उत्सुकता से कहा।
हांांां मंगवा दीजिए हालदार बाबू ने आज्ञा प्रदान करते हुए बोले
तब तक दमयंती जी चाय बिस्किट लेकर आ गई ।
ओर चाय परोसकर बोली
सत्यजीत बाबू और अरुप बाबू घर में सामान जमाने में समय लगेगा रसोई नहीं बना पाएंगे इसीलिए रात का भोजन आप हम लोगों के साथ ही कीजिएगा।
"अरे वाह यह तो बहुत अच्छा विचार है भोजन भी हो जाएगा और अच्छे से जान पहचान भी। आप दोनों जरूर आइएगा "हालदार बाबू ने प्रसन्नता के साथ कहा

"जी जरूर आएंगे "
चलिए चलते है शाम को मिलेंगे नमस्कार।
शाम को जरूर आइएगा अरूप
जी जरूर

अरुप ने जाने की आज्ञा ली और घर आ गए । कुछ देर बाद सत्यजीत बाबू भी आ गए। उनका कमरा अरुप के कमरे के साथ लगा हुआ था बालकनी भी एक थी । जब अरुप बालकनी में गये तो उन्होने देखा गली में उनके मकान के आगे एक माल ढोने वाली गाड़ी खड़ी थी।
उन्होने बाबू ने कहा सत्यजीत बाबू आपका सामान आ गया सत्यजीत बाबू ने जल्दी से बालकनी में आकर देखा और फिर दोनों ने कुछ कुली बुलवाकर सामान कमरे में रखवाया।
सामान ज्यादा नहीं था। पर किताबें बहुत थी।
अरुप -"पुस्तक प्रेमी लगते हैं " वरना इतनी पुस्तके ? सत्यजीत - हां कभी कबार पढ़ लिया करता हूं । शौक तो बहुत है।
पूरा सामान तो जमा लिया था बस कुछ सजावटी वस्तुएं बची थी। रात के भोजन का भी समय हो गया था इसीलिए हालदार बाबू उन्हे अपने साथ ले गए
भोजन की पूरी तैयारी थी। खाना बहुत स्वादिष्ट था । भोजन करने के बाद हालदार बाबू पान लेकर आए उन्होंने दोनो को दिए।


ये लीजिए स्पेशल पान । लीजिए

सत्यजीत - खाना खाने के बाद पान हो जाए तो मज़ा ही कुछ और है ।
हां
चलिए बैठक कक्ष में बैठते हैं।
जी चलिए हालदार बाबू
आसन ग्रहण कीजिए।

खाना बहुत अच्छा था हालदार बाबू
धन्यवाद अरूप ,सत्यजीत
वैसे आप क्या काम करते हैं? सत्याजीत

सत्यजीत बाबू के मुंह पर हमेशा एक मधुर मुस्कान होती है। वे बड़े प्रेम और शालीनता के साथ प्रश्न के उत्तर में बोले अभी तो कुछ नहीं है पर आशा है कि जल्द कोई उपयुक्त काम मिलेगा
माता-पिता भी अब नहीं है अकेला बेटा हूं।
गांव में एक घर है जो मेरे नाम पर ही है और मैंने किराए पर चढ़ाया है किराया ही आमदनी है

हालदार बाबू - पर कुछ काम तो जानते ही होंगे ।

पढ़ाई तो बहुत की है पर किसी के अधीन काम करना अच्छा नही लगता पर ढूँढ खोज मे रुचि बहुत ज्यादा है

ढूँढ -खोज किस प्रकार की ढूँढ खोज ? क्या आप मेरी एक हफ्ते पहले खोई हुई धड़ी ढूंढ देंगे । हालदार बाबू ने यह बात व्यंग्यात्मक तरीके से कहीं
जिसे सुनकर

सभी हंसने लगे ।
सत्याजीत -कोशिश करने मे क्या हर्ज है।

आधी रात तक महफिल चली फिर वह दोनों हालदार बाबू से आज्ञा लेकर कमरे में आ गए ।
अरुप बाबू को सत्यजीत बाबू बहुतअच्छे व्यक्ति लगे सुंदर, समझदार , बुद्धिमान, मिलनसार और व्यवहार कुशल


उनको यहां आए एक महीना हो गया इस 1 महीने में उन दोनों में बहुत अच्छी मित्रता हो गई थी । इस बीच अधिकतर समय वो अरुप बाबू के कमरे में ही बिताते सत्या जीत को पढ़ने का शौक था और अरुप लिखता था
भोजन भी अधिकतर एक साथ होता था 1 महीने का किराया अदा करने के बाद वे दोनो एक ही कमरे में रहने लगे क्योंकि घर दो कमरों एक बैठक कक्ष का समावेश था। अकेले व्यक्ति के लिए अनुपयोगी था।
इसीलिए उन दोनों ने फैसला किया कि किराया बांट लेंगे
जब कभी अ रुप के पास पैसे नहीं होते थे तो सत्यजीत पूरा किराया खुद ही अदा कर देते थे ।
आधुनिक युग में ऐसा देखने को नहीं मिलता
एक सुबह दोनों बैठक में बैठे चाय पी रहे थे अरूप अखबार भी पढ़ रहा था।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई सत्यजीत ने दरवाजा खोला दरवाजे पर हालदार बाबू थे बड़े परेशान लग रहे थे । वो अंदर आकर खडे हो गये ।

"क्या हुआ हालदार बाबू " ? अरूप ने उनकी मुख पर छाई परेशानी को देखकर उन से पूछा

"अरे आपको पता है पास वाली कोठी के सुर्दशन बाबू का खून हो गया "। अभी कुछ देर पहले पुलिस को देखा तभी मुझे कुछ गडबड लगी और में गली में चला गया सुदर्शन बाबू के घर के बाहर भीड़ थी पूछा तो पता चला कि ये सब हो गया।

अरुप ने आश्चर्य से पूछा खून कैसे हुआ ? किसने किया ?
-यह पता नहीं सुनने में आया है की रात को किसी ने चाकू मारकर खून कर दिया नौकर को तो सुबह ही पता चला। और पुलिस भी आई है।

सत्यजीत ने अचानक से कहा चलो अरूप एक बार हो आते हैं ।
सुदर्शन बाबू से कोई जान पहचान नहीं थी 75-80 की आयु के व्यक्ति थे । अकेले ही रहते थे इसीलिए अरुप को सत्यजीत का उनके लिए इतना संवेदनशील होना अस्वाभाविक लगा।
इसीलिए उसने सत्यजीत से कहा पर क्यों पुलिस वाले आए हैं । हमारा वहा क्या काम ?
सत्यजीत ने अरुप को कहा - डरो मत एक बार देखा है पड़ोसी थे । एक बार जाने मे क्या बुराई है।
फिर अरुप मान गया कोठी ज्यादा दूर न थी केवल चार पांच घर के बाद थी । बड़ा सा मकान था गेट पर पुलिस थी उन्होंने उन्हे अंदर आने से रोक दिया पर तभी अंदर से इस्पेक्टर साहब बाहर आए ।
सर कुछ बात करनी है सत्यजीत ने इस्पेक्टर साहब से कहा । इस्पेक्टर साहब बोले क्या इस केस से जुड़ी हुई कोई बात है ।
सत्यजीत - जी बस कुछ मिनट
फिर इंस्पेक्टर सत्य जीत के साथ धर के बगीचे में चले गये ।
सत्य जीत - सर में इस केस की तहकीकात करना चाहता हूँ ।
इंस्पेक्टर आश्चर्य से बोले क्या आप सीआईडी से हैं या फिर जासूस
सत्यजीत -सर ना ही मैं सीआईडी से हूं । नाही जासूस मैं तो केवल सत्यन्वेशक . सत्य को खोजना चाहता हूं
इंस्पेक्टर -देखें महाशय दो - चार बांग्ला जासूसी उपन्यास पढ़ने से कोई सत्यान्वेषी नहीं बन जाता
और हम आप पर क्यों विश्वास करें।
सत्यजीत -सर मैं आपके काम के आड़े नहीं आऊंगा बसअपने कुछ प्रश्न करूंगा ।
इंस्पेक्टर -क्या आपने आज तक कोई के सुलझाया भी है ?
सत्यजीत -नहीं पर मुझे पूरा विश्वास है मैं ये केस जरूर सॉल्व कर दूंगा ।
इंस्पेक्टर अच्छा तो ठीक है आप छानबीन शुरू कीजिए पर आप के कारण घर वालों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होनी चाहिए।
सत्यजीत -कोई परेशानी नहीं होगी । में आस्वासन देता हूँ ।
इंस्पेक्टर - सत्यजीत से हाथ मिलाकर कहा -ऑल द बेस्ट
सत्यजीत -थैंक यू सर
दोनों वापस आ गए सत्यजीत अरुप के पास आकर बोले चलिए अंदर लाश का मुआयना कर लेते हैं।
अरुप नेआश्चर्यचकित होकर पूछा पुलिस ने हमें अंदर क्यों आने दिया ?
और तुम्हारी उस इस्पेक्टर के साथ क्या चर्चा चल रही थी ?
सत्यजीत मुस्कुराते हुए बोले बहुत लंबी कहानी है तुम्हें घर पर सुनाऊंगा ।

घर बहुत बड़ा था एक बड़ा सा बैठक और 13 कमरे थे ।
मुख्य द्वार के बिल्कुल सामने सुदर्शन बाबू का कमरा था हम दोनों वहां गए लाश बिस्तर पर ही पड़ी थी बहुत बुरी हालत में थी। सीने पर खंजर का निशान था।

बेचारे कितने भले मानुष थे । अरूप के मुंह से यकायक लाश को देखते ही निकाल पड़ा।

इंस्पेक्टर ने अपने सहकर्मियों को इशारा किया और उन्होंने मार्ग से हटकर हमें लाश के करीब जाने दिया
सत्यजीत लाश को बहुत गौर से देख रहे थे उन्होंने पास जाकर देखा तो लाश की नाक पर काले काले दाग थे उन्होंने इस्पेक्टर को बुलवाने को कहा 2 मिनट में इंस्पेक्टर आ गए।
सत्यजीत बोले -इनकी नाक पर यह दाग देखिए ऐसा लगता है क्लोरोफॉर्म का यूज़ हुआ है।

इंस्पेक्टर ने पास से देखा हां दाग तो है । अभी पोस्टमार्टम वाले आते ही होगे सब कुछ पता चल जाएगा
सत्याजित -हां
अरुप को तो समझ नही आ रहा था कि ये चल क्या रहा
है।
सत्याजित ने कमरे से बाहर निकलते हुए बेचारे वैसे परिवार वाले कहां हैं।
अभी उन्हे खबर की है आते ही होंगे
पर मेरा एक निवेदन है आप अभी उनसे प्रश्न ना करे ।
सत्यजीत-जी में समझ सकता हूं ।
- सर इनके परिवार मे कौन-कौन है और वह कहां रहते हैं ? वो मुझे बता दिजिए में कल से तहकीकात शुरू करूंगा।

इंस्पेक्टर - जी परिवार में एक बेटा है -हरिनाथ
और एक बेटी करुणा
बेटे का परिवार में कुछ दूरी पर रहता है उनकी अपने पिता सुदर्शन जी के साथकुछ अच्छी नहीं बनती थी।
इसीलिए वो कई समय पहले घर छोड़ कर चले गया थे।
वो अपने घर में अपनी पत्नी सुमित्रा और बेटा सुधांशु जो 28 साल का है। के साथ रहते है।

और बेटी करुणा भी ज्यादा दूर नहीं रहती उनके पति एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं। मध्यमवर्गीय परिवार है।एक बेटा है देवाशीश 29 का है पर कोई काम धंधा नहीं करता और एक बेटी है देविना उसका तो विवाह होने वाला है। और इस घर में तो एक नौकर है रामहरि ओर एक लड़की उनके साथ पहले रहती थी अभी फिलहाल वो दिल्ली में एक अध्यापिका का काम कर थी है। इंद्राणी नाम है।
परिवार वालो से पता चला है कि पिछले तरफ के कमरे में बहुत पहले एक किरायेदार दंपति और उनकी बेटी रहते थे। जब सुदर्शन बाबू का बेटा घर छोड़ क्ला गया अन पति पत्नी ने सुदर्शन बाबू का बहुत ध्यान रखा।
वे सज्जन व्यापार में सुदर्शन बाबू का हाथ बंटाते ओर उनकी पत्नी घर में उनका ध्यान रखती वो दोनो उनकी पिता सामान उनकी सेवा करते और सुदर्शन बाबू ने भी उन्हें कभी पराया नहीं माना उन्हे अपने बच्चों सामान प्रेम करते। एक दिन दुर्भाग्यवश सड़क दुर्घटना से उनकी मृत्यु हो गई। तब इंद्राणी 8-9 वर्ष की थी। तब से वो सुदर्शन बाबू ने उसे अपने साथ ही रख लिया । उन्होंने उसे पढ़ाया लिखाया
और अभी वो पच्चीस छब्बीस साल की होगी पिछले तीन सालों से दिल्ली में रहती है
सुना है वहां अध्यापिका है
कल था आ रही है। फिर सत्यजीत ने एस्पेक्टर से
हरीनाथ ओर करुणा का पता लिया।
और वह दोनों घर लौट आए अरूप के मन में तो बहुत से प्ररश्ननो के उत्तर जानने की उत्कंठा थी ।
यकायक उसने पूछ लिया सत्यजीत अब बताओ कि इंस्पेक्टर के साथ तुम्हारी क्या - बातचीत हुई जो वह तुम पर इतना मेहरबान हो गया ।
सत्यजीत होठों पर एकअद्वितीय मुस्कान लिए हुए बोले बताता हूं पहले आराम से बैठ जाओ
तब उन्होंने मुझे सारी बाते बताई ।
अरूप तो ये सुनकर हक्का बक्का रह गया।
अरूप -तुम तहकीकात करोगे पर अगर कुछ ग़लत हो तो इंस्पेक्टर हमें ही अंदर कर देगा।
सत्यजीत -अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं ।
अरूप -पूरा विश्वास है पर क्या तुमने ऐसा काम पहले किया भी है।
सत्यजीत -मामले में तो नहीं पर पहले ऐसा काम मैं कर चुका हूं।
अरुप -तुम्हारा काम तुम जानो ।
सत्यजीत -तो क्या तुम नहीं चलोगे ?
अरुप -चलूंगा तो जरूर
सत्यजित -क्या तुम केस से संबंधित महत्वपूर्ण बातें नोट कर सकते हो ।
-अरे वाह नेकी और पूछ पूछ मैं जरूर नोट कर लूंगा ।
वैसे सत्यजीत मेरे दिमाग में एक बात आई है
सत्यजीत -बोलो
अरुप -अगर मानो यह केस सुलझ जाए और इसकी कहानी रोमांचक हुई तो मैं इसे तुम्हारी जीवनी के रूप में लिखना चाहूंगा ।
सत्यजीत -जोर-जोर से हंसते हुए बोलेअरे अभी तो काम शुरू भी नहीं हुआ है और तुमने जीवनी तक की बात सोच ली। पर अगर यह काम सफल हुआ तो तुम अवश्य जीवनी लिखना।
पर अभी खाना खा लेते हैं ।सत्यजीत ने .मजाक करते हुए कहा ।
अरुप हंसते हुए बोले चलो चलो ।
रात्रि का भोजन होने के बाद दोनों अपने कमरे में जाकर सो गए अरूप को तो पूरा विश्वास था कि सत्यजीत केस जरूर सुलझा लेगा ।