अणु और मनु - भाग-11 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अणु और मनु - भाग-11

गौरव, रीना के इशारा करने पर सोसाइटी के गेट के पास ही सड़क के किनारे कार रोक देता है | कार को रुकते देख रीना बोली “मैंने कार रोकने के लिए नहीं कहा था | मैंने इस सोसाइटी के अंदर चलने का इशारा किया था | मेरा घर सोसाइटी के पीछे की तरफ़ है इसलिए आप कृपा कर गाड़ी अंदर ले चलें” | गौरव मुस्कुराते हुए गाड़ी फिर से स्टार्ट कर सोसाइटी के अंदर की ओर मोड़ देता है | थोड़ा आगे आने पर रीना इशारे से दायें मुड़ने को कहती है |

“बस वो आगे काली गाड़ी के पीछे ही गाड़ी लगा दो” | गाड़ी रुकते ही रीना दरवाज़ा खोल कर बाहर निकलते हुए बोली “गौरव अन्दर आओ न, चाय पी कर चले जाना”|

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “नहीं फिर कभी आऊंगा” |

रीना इठलाते हुए बोली “शर्माओ नहीं, घर पर कोई नहीं है| सब वृंदावन गए हैं | कल दोपहर तक ही वापिस आएंगे” |

“तुम नहीं गई” |

“बस वैसे ही | मुझे यह फ़िजूल की ढकोसले बाजी पसंद नहीं है” |

गौरव कुछ सोच कर गाड़ी से निकलते हुए बोला “चलिए ठीक है आज आपकी बात मान ही लेते हैं”, फिर अचानक रुक कर बोला “सोच लो हम दोनों अकेले हैं | कुछ गलत हुआ तो मुझे मत बोलना इसलिए मैं पहले से ही तुम्हें अगाह कर रहा हूँ” |

रीना मुस्कुराते हुए बोली “अच्छा अब नाटक मत करो”, कह कर रीना सीड़ियाँ चढ़ने लगती है | गौरव कार बंद कर रीना के पीछे-पीछे चल देता है | रीना दूसरी मंजिल पर पहुँच कर सामने बने एक दरवाजे के पास पहुँच कर अपने पर्स में से चाबी निकल कर दरवाज़ा खोलती है और पीछे आते गौरव को इशारे से अंदर आने को कहती है | गौरव के अंदर आने पर वह दरवाज़ा बंद कर बोली “आप बैठिये मैं अभी आई” |

अन्दर आकर गौरव बैठक में रखे सोफ़े पर बैठ जाता है | रीना गौरव को सोफ़े पर बैठता देख दाईं ओर एक बड़ी सी गली में आमने-सामने बने कमरों में से एक का दरवाज़ा खोल कर अंदर चली जाती है | रीना के जाने के बाद गौरव उस बड़ी-सी बैठक में अपनी नजर चारों तरफ़ दौड़ता है | बैठक की हर चीज बहुत सलीके से रखी हुई थी | सोफे के पास ही पीछे की तरफ कुछ दूरी पर बहुत ही सुंदर डाइनिंग टेबल रखी थी जिसके साथ शायद रसोई थी और रसोई के सामने की तरफ बाथरूम था | अचानक उसकी नजर सामने की दीवार पर पड़ती है | जिस पर कि एक बड़ी सी फ़ोटो लगी थी | वह फोटो असल में एक कोलार्ज थी जिसमें की रीना और शायद उसकी बहन की बचपन से जवानी तक की कई फोटो थीं | वह उन फोटो को पास से देखने के लिए उस ओर खिंचा चला जाता है | दोनों बहनें बचपन में जितनी मासूम थीं उससे भी ज्यादा वह आज की फोटो में लग रही थीं | गौरव को ऐसा लगता है जैसे उसके सामने उन दोनों के बचपन से जवानी तक की कोई फिल्म चल रही हो | अचानक रीना की आवाज सुन कर उसका ध्यान टूटता है | वह गौरव के पीछे ही साइड टेबल पर नमकीन और कोला के गिलास रखते हुए भर्राई अवाज में बोली “यही मेरी बड़ी बहन थी | उसने यह कोलार्ज मेरे पिछले जन्मदिन पर मुझे तौहफे में दिया था | उस समय कौन जानता था कि यह उसका आखिरी गिफ्ट होगा”, कह कर रीना सिसक पड़ती है |

गौरव मुड़ कर रीना के कंधे पर हाथ रखते हुए मुस्कुरा कर बोला “यार वैसे मोहित कभी-कभी सही बात कहता है” | रीना अपने आँसू पोंछते हुए बोली “क...क्या...बोलता है मोहित” |

गौरव हँसते हुए रीना का हाथ पकड़ कर बोला “कुछ नहीं यार बस वैसे ही मुँह से निकल गया” |

रीना अपने चेहरे पर नकली मुस्कुराहट लाते हुए बोली “तुमने और ऐसे ही बोल दिया | हो ही नहीं सकता | बोलो न क्या बोला मोहित | मेरे बारे में कुछ कहा था क्या”?

गौरव सकपकाते हुए बोला “डांटोगी तो नहीं” |

रीना हैरानी से अजीब-सा मुँह बनाते हुए बोली “तुम्हें पहले तो कभी इस तरह की एक्टिंग करते नहीं देखा | आज क्या बात है गौरव साहिब” ?

“मैंने जो बोला पहले उसका जवाब दो फिर.....” |

रीना होंठ दबाते हुए मुस्कुरा कर बोली “हाँ बाबा कुछ नहीं कहूँगी”, कह कर वह खुल कर हँस पड़ती है |

गौरव मुस्कुराते हुए धीरे से बोला “तुम्हें याद है एक बार सिम्मी को रोते हुए देख कर वह बोला था कि तुम रोते हुए बहुत अच्छी लगती हो | बस यही मैं तुम्हारे लिए कुछ अलग तरीके से कहना चाहता हूँ कि तुम... तुम.... रोते-रोते जब थोड़ा-सा मुस्कुरा देती तो... तो.... तुम बहुत ही सेक्सी लगती है और कुछ ऐसी लगती हो जिसे मैं शब्दों में नहीं पिरो सकता | लेकिन जो भी दिखती हो वो बस.....”, कहते हुए अचानक गौरव और रीना की नजरें मिल जाती हैं | वह देखता है कि वह लगभग उसी अंदाज में गौरव को देख रही थी | यह देख कर गौरव अपने हाथ फैला देता है और रीना बिना सोचे समझे गौरव की बाहों में समा जाती है | गौरव की आँखें नम हो जाती है और रीना की आँखों से अविरल आँसू बहने लगते हैं |

गौरव सोच रहा था कि उसे आज क्या हो गया है | उसने आज तक कभी ऐसा महसूस नहीं किया था | यह अकेलेपन का जादू था या फिर रीना का लेकिन जो कुछ भी था वह अलग था | बिलकुल अलग था | दिल कर रहा था कि ये पल कभी खत्म न हों | रीना सोच रही थी कि गौरव ऐसा रूप रोज क्यों नहीं दिखाता | वह कितना अच्छा लगता है ऐसे देखते और बोलते हुए | काश! ये पल कभी खत्म न हों | काश ! गौरव हमेशा ही ऐसे रोमांटिक मूड में रहे |

गौरव अपनी उत्तेजना को काबू पाते हुए बोला “रीना तुम लोगों ने इस कोलार्ज को आजतक कितनी बार देखा होगा” |

रीना गौरव की बाँहों से अलग होते हुए बोली “क्या कहा तुमने” |

गौरव ने एक बार फिर अपनी बात दोहराई तो रीना ने ऐसे मुँह बनाया कि जैसे उसे विश्वास ही नहीं हो रहा हो कि कोई रोमांटिक मूड की ऐसे भी ऐसी-की-तैसी कर सकता है | फिर अगले ही पल अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए वह बोली “बहुत बार | अब गिन कर तो नहीं बता सकती लेकिन ये कह सकती हूँ कि शायद पचास बार | क्यों क्या हुआ” ?

गौरव यह सोच कर मुस्कुरा दिया कि चलो वह उसका मूड बदलने में कामयाब तो हुआ | इसी बहाने वह अलग हो कर तो खड़ी हुई वर्ना कुछ और पल बीतते तो शायद वह अपनी सोच और शरीर पर काबू न कर पाता | वह उसी तरह मुस्कुराते हुए बोला “इस कोलार्ज को तुम लोगों ने देखा तो सही लेकिन कभी दिल की नजर से नहीं देखा | अगर उस नजर से देखा होता तो तुम लोगों को भी वह दिखता जो मुझे एक बार में ही दिख रहा है” |

गौरव की बात सुन कर रीना न चाहते हुए भी पास आकर कोलार्ज को ध्यान से देखने के बाद गौरव को प्रश्नभरी निगाहों से देखती है | गौरव मुस्कुराते हुए रीना के चेहरे को दोनों हथेलियों में लेते हुए बोला “आओ अब इस कोलार्ज को मेरी निगाहों से देखो | मैं यह तो नहीं जानता कि यह पहली और आखिरी फोटो तुम्हारी बहन ने बनवाई थी या फिर यह इस कोलार्ज बनाने वाले ने अपनी मर्जी से बनाई थी लेकिन जो भी हो इसमें एक संदेश है जिसे तुम लोग समझ नहीं पाए”, कह कर गौरव चुप कर जाता है |

रीना गौरव का हाथ अपने चेहरे से हटाते हुए उन दोनों फोटो को ध्यान से देखने लगती है लेकिन जब उसे कुछ भी समझ नहीं आता है तो वह फिर से मुड़ कर गौरव को प्रश्नभरी निगाहों से देखती है | गौरव उसकी परिस्थिति को समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ उस सोफे पर आकर बैठ जाता है | रीना सोफे पर बैठते हुए बोली “ऐसा क्या देखा तुमने इस कोलार्ज में जो हम सब नहीं देख पाए”|

गौरव मुस्कुराते हुए रीना के दोनों हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला “पहली फोटो जोकि तुम दोनों के बचपन की है और आखिरी फोटो जवानी की है | ये दोनों ही फोटो धुंधली और निगेटिव हैं | इन दोनों ही फोटो में तुम दोनों होते हुए भी नहीं हो | तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि यह दोनों फोटो तुम्हारी न हो कर तुम्हारी आत्माओं की हैं” |

रीना हैरान होते हुए बोली “हाँ अगर किसी को सिर्फ यह दोनों फोटो ही दिखाएँ तो वह यह कह सकता है कि शायद यह फोटो दो आत्माओं की हैं क्योंकि हम दोनों के चेहरे पूरी तरह से साफ़ नहीं हैं और साथ ही दोनों फोटो धुंधले और निगेटिव हैं” |

गौरव का बोलते हुए स्वर थोड़ा ऊँचा हो जाता है “हाँ यही तो मैं कहना चाहता हूँ | यह दोनों फोटो एक संदेश देती हैं कि तुम दोनों बहने पिछले जन्म में भी साथ थीं और अगले जन्म में भी साथ होंगी | यह दोनों फोटो यह संदेश भी देती हैं कि वह आज न होकर भी हमेशा तुम्हारे आस-पास और साथ ही है” |

यह सुन कर रीना अपने आस-पास देखने लगती है | भावुकता वश रीना की आँखों से आँसू फिर से गिरने लगते हैं | गौरव रीना के गालों से आँसू पोंछते हुए बोला “पगली यह रोने की नहीं ख़ुश होने की बात है कि तुम दोनों पहले भी साथ थीं आज भी हो और आगे भी साथ रहोगी” | यह सुन कर रीना गौरव से लिपट कर सिसक-सिसक कर रोने लगती है |

उन दोनों का ध्यान तब टूटता है जब रीना के फ़ोन की घंटी बज उठती है | फ़ोन की घंटी सुन रीना झटके से अलग होते हुए भाग कर डाइनिंग टेबल पर रखे अपने फ़ोन को उठा कर बोली “माँ का फ़ोन है”, कह कर रीना माँ से बात करते हुए रसोई की ओर चली जाती है|

रीना को रसोई की तरफ़ जाते देख गौरव अपनी उत्तेजना को एक बार फिर से काबू करते हुए जल्दी से अपने चेहरे पर आए पसीने को पोंछता है और साइड टेबल पर रखे कोला के गिलास को उठा कर एक झटके में खाली कर देता है | गौरव खाली गिलास को सोफे के सामने रखी सेंट्रल टेबल पर रखने के बाद अपनी आँख बंद कर वहीं सोफे पर पसर जाता है |

गौरव की आँख खुलती है तो वह सोफ़े पर ठीक से बैठते हुए देखता है कि रीना उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठी उसे ही देख रही थी | वह अपनी आँखें पोंछते हुए बोला “क्या हुआ तुम ऐसे क्यों देख रही हो” |

वह मुस्कुराते हुए बोली “महाशय क्या आप यहाँ सोने आए थे”|

“अच्छा ! कितनी देर से सो रहा हूँ” |

“पता नहीं | मैं जब माँ से बात करके वापिस आई तो आप यहाँ आँख बंद कर लेटे हुए थे” |

“मुझे उठाया क्यों नहीं”, कह कर गौरव ने प्रश्नभरी निगाहों से रीना को देखा लेकिन वह जवाब देने की बजाय मंद-मंद मुस्कुराती हुई कभी उसे तो कभी नजरें झुका कर जमीन को देखने लगती है | रीना को अपने दाएं पैर के अंगूठे को जमीन पर गोल-गोल घुमाते देख गौरव के पूरे शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है | उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे समय में उसे क्या करना चाहिए | दोनों काफ़ी देर इसी तरह बैठे रहते हैं | किसी ने भी कोई पहल नहीं की | बैठक का माहौल गर्म होता जा रहा था | तभी गौरव के फ़ोन की घंटी बज उठती है | गौरव को फ़ोन पर बात करते देख रीना रसोई में चाय बनाने के लिए चली जाती है | फ़ोन पर बात करने के बाद गौरव इधर-उधर देखता है लेकिन उसे रीना कहीं दिखाई नहीं देती है | तभी उसे रसोई से आवाज आती है तो वह रसोई की ओर जाने की सोचता ही है कि रीना को चाय और नाश्ते की ट्रे लाते देख वहीं सोफ़े पर बैठ जाता है | रीना का अभी कुछ देर पहले खिला चेहरा फिर से बुझा हुआ देख गौरव बोला “क्या हुआ तुम रसोई में तो ठीक-ठाक गई थीं और वापिस फिर मुरझाई हुई आ रही हो | सब ठीक तो है”, कह कर गौरव ने रीना की ओर देखा लेकिन रीना बात को अनसुना करते हुए चाय की ट्रे सेंट्रल टेबल पर रख कर एक चाय का कप उठा कर गौरव को देती है और एक कप खुद लेकर सोफे पर बैठ जाती है |

रीना और गौरव दोनों चुपचाप चाय पीते रहते हैं | बैठक का माहौल फिर से बोझिल होते देख गौरव चाय का खाली कप टेबल पर रखते हुए बोला “रीना इस समय शाम के सात बज रहे हैं और तुम्हारे घर वाले सुबह आएंगे | मैं तुम्हें यहाँ ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकता” |

रीना यह सुन हैरानी से गौरव की ओर देखती है | गौरव अपनी जगह से उठ कर रीना के पास आकर उसका हाथ पकड़ कर उठाते हुए बोला “चलो उठो | तुम मेरे साथ मेरे घर चलो | रात का खाना कर मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा और अगर चाहो तो रात को मेरे घर पर भी रह सकती हो | वहाँ तुम्हें अच्छा लगेगा और इसी बहाने तुम मेरे पूरे परिवार से भी मिल लोगी” |

रीना उठते हुए बोली “लेकिन क्या तुम्हारे अम्मी-अप्पा को यह सब अच्छा लगेगा” |

गौरव हँसते हुए बोला “वो तो तुम्हें सब से मिल कर ही पता लगेगा | अब चलो | रास्ते में तुम मुझे अपनी बहन के बारे में भी बताना” |

रीना कुछ सोच कर मुस्कुराते हुए बोली “ठीक है | मैं कपड़े बदल कर आती हूँ | जब तक तुम गाड़ी निकालो”, कह कर रीना अपने कमरे की ओर चल देती है | गौरव उसे जाते देख मुस्कुराते हुए कुछ देर सोफ़े पर बैठने के बाद घर से बाहर निकलते हुए रीना को आवाज देकर कर कहता है कि वह नीचे जा रहा है जल्दी से आ जाओ |

*

“मेरी बहन ‘प्रीति’ और मैं बचपन से ही साथ-साथ सोते थे | हम दोनों रात को जब तक दिन भर की आप-बीती एक दूसरे को सुना नहीं लेते थे हमें नींद नहीं आती थी | हम एक दूसरे को एक अच्छे दोस्त की तरह सलाह दिया करते थे | हम बहनें बड़े होते-होते तक बहनें न हो कर दोस्त बन गई थीं | हम एक दूसरे से एक दिन भी अलग नहीं रह पाते थे | प्रीति के ऑफिस में ही अंजु नाम का एक लड़का काम करता था | वह दोनों आपस में बातचीत करते-करते कब दोस्त बन गए उन दोनों को पता ही नहीं लगा | प्रीति कभी-कभी मुझे उसके बारे में बताया करती थी |

एक बार उसने बातों ही बातों में मुझे इशारा भर दिया था कि शायद उसे अंजू से प्यार हो गया है | उस दिन से मैं हमेशा उसे चिढ़ाया करती थी कि क्या वह मुझसे भी ज्यादा उसे चाहने लगी है तो वह यह कह कर बात टाल दिया करती थी कि जब तू बड़ी हो जाएगी तो एक दिन खुद ही समझ जाएगी |

मेरा बारहवीं का रिजेल्ट आ चुका था और मैं कॉलेज में जाने के सपने संजोने लगी थी | मैं रोज रात को उससे पूछा करती थी कि कॉलेज कैसा होता है और कैसी मस्ती होती है | वह अनमने भाव से थोड़ा बहुत बता कर मुझे चुप करा दिया करती थी कि जब जाएगी तो तुझे खुद ही समझ आ जाएगा |

एक रात जब वह चुपचाप मेरे साथ लेटी हुई थी तो मैंने ही उससे पूछा कि क्या बात है आज तू चुप क्यों है तो वह आँखों में आँसू लिए मेरी ओर मुड़ी और बोली “यार तू सही कहती थी मुझे पता नहीं क्या हो गया है मैं अंजू के बिना रह नहीं पाती हूँ | वह तीन दिन के लिए छुट्टी लेकर आज अपने घर गया है तो मेरा दिल ही डूबा जा रहा है | मैं उसके बिना ये तीन दिन कैसे गुजारुंगी समझ नहीं आ रहा है”|

मैंने उसे मजाकिया अंदाज में कहा “दीदी खाली प्यार ही हुआ या उससे भी आगे कुछ हो गया है” |

वह उसी गम्भीर स्वर में बोली “अच्छा ज्यादा बकवास नहीं कर चुपचाप सो जा” | इसके बाद मैंने उसे काफी टटोलने की कोशिश की लेकिन वह चुपचाप लेटी रही | मैं कुछ देर उससे इधर-उधर की बातें करते-करते कब सो गई मुझे पता ही नहीं लगा |

इसी तरह दिन बीतने लगे | मैंने महसूस किया कि दीदी दिन प्रतिदिन बदलती जा रही थी | वह अब पहले जैसी नहीं रह गई थी | वह मुझ से बात करने की बजाय अकेले चुपचाप लेटे रहना ज्यादा पसंद करती थी | मैं उसे जबरदस्ती अपनी बातें बताया करती थी लेकिन अब वह अपने बारे में कुछ ख़ास बात नहीं करती थी |

एक रात अचानक मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि दीदी खिड़की के पास खड़ी है | मैंने खिड़की से आते हुयी रोशिनी में ही अपने तकिये के नीचे से मोबाइल निकाल कर समय देखा तो उस समय तीन बज रहे थे | मैं धीरे से बोली “क्या हुआ दीदी तुम इस समय खिड़की के पास क्या कर रही हो” | वह मेरी आवाज सुन कर पलटते हुए धीरे से बोली “कुछ नहीं बस मुझे नींद नहीं आ रही थी तो यहाँ आ कर खड़ी हो गई”, कह कर वह मेरे पास आकर बिस्तर पर बैठ गई |

“क्या हुआ नींद क्यों नहीं आ रही है” |

“यार आज मैंने मम्मी-पापा को मेरी शादी के लिए बात करते सुना था | वह किसी लड़के के बारे में बात कर रहे थे”|

मैंने हँसते हुए बोला “तो अच्छी ही बात है | मेरी दीदी की शादी हो जाएगी | बहुत मजा आएगा” |

वह मुझे धीरे से डांटते हुए बोली “बकवास न कर | मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूँ | मैं......मैं अगर कभी किसी से शादी करुँगी तो अंजू से ही करुँगी” |

यह सुन कर मैं फिर से हँसते हुए बोली “तो मुश्किल कहाँ है | तू बोल दे कि तूने एक लड़का पसंद कर रखा है और तू उसी से शादी करना चाहती है | मुझे तो नहीं लगता किसी को कोई मुश्किल होगी | मम्मी-पापा हमें बहुत चाहते हैं वह जरूर मान जाएंगे | तू बात नहीं कर सकती तो मैं बात करती.......”|

वह बीच में ही बात काटते हुए बोली “तू बकवास मत कर और तुझे मेरी कसम है तू किसी को कुछ नहीं बोलेगी | तू मेरे सिर पर हाथ रख कर कसम खा”, कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख दिया | मुझे न चाहते हुए भी “हाँ” बोलना ही पड़ा |

दिन-प्रतिदिन प्रीति में बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी | मेरे लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह मुझे कोई भी बात नहीं बताती थी | एक दिन शाम को मैं अपने कमरे में बैठी थी तो अचानक मुझे बैठक से चीखने-चिल्लाने की आवाज आई | मैं भाग कर गई तो देखा कि पिता जी प्रीति को मारने को उतारू थे और रोते हुए माँ ने उनका हाथ पकड़ रखा था | प्रीति बेशर्म की तरह अकड़ कर खड़ी थी और जोर-जोर से रोते हुए बोल रही थी “आप मार ही सकते हैं तो मारो और मारो मैंने जो बोलना था और जो करना है वह मैं करके ही रहूंगी” | मुझे आता देख वह भाग कर कमरे में चली गई और माँ-पिता जी वहीं सोफे पर धप से बैठ गए | मुझे समझ तो आ गया था कि आज प्रीति ने अपने प्यार के बारे में बता दिया है | मैं मौके की नजाकत को देखते हुए कुछ नहीं बोली और कमरे में वापिस आ गई | प्रीती बेड पर लेटी रो रही थी |

मेरा कॉलेज में पहला दिन था | मैं कॉलेज से जब घर आई तो मेरे काफी देर बेल बजाने के बाद माँ ने आँसू पोंछते हुए दरवाज़ा खोला | मैं धड़कते दिल से अंदर आई तो देखा कि सोफे पर प्रीति अधमरी-सी लेटी हुई थी | मैंने प्रश्नभरी निगाहों से माँ को देखा तो वह गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गईं | मैंने जब प्रीति को हाथ लगाया तो वह मेरा हाथ झटक कर खड़ी हुई और लगभग भागते हुए कमरे में जा कर बेड पर औंधे मुंह गिर गई | मैं चुपचाप उसके पास बेड पर बैठी रही लेकिन न वह बोली और न मेरी हिम्मत हुई उससे कुछ भी पूछने की |

काफी देर इन्तजार करने के बाद मैंने प्रीति के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला “क्या हुआ दीदी तुम इतनी जल्दी ऑफिस से कैसे आ गईं” | प्रीति ने कोई जवाब नहीं दिया | मैं वहीं बैठी उसके बोलने का इन्तजार करती रही | जब उसने कुछ नहीं बोला तो मैं उठ कर माँ के कमरे में आई तो देखा कि माँ भी हिचकी ले-लेकर रो रही थी |

काफी कोशिश करने के बाद माँ जो कुछ बोली मेरे तो होश ही उड़ गए | अपने कानों पर विशवास ही नहीं हो रहा था | मैं हैरान थी कि घर में रहते हुए भी मुझे किसी बात की भनक तक नहीं लगी | यही सोचते हुए मैं जब अपने कमरे में गई तो प्रीति वहाँ नहीं थी | मैंने उसे हर जगह ढूंढा लेकिन वह नहीं मिली तो मैं भागी-भागी माँ के पास गई तो वह भी परेशान हो गईं | हम कमरे से बाहर आए तो मैंने देखा कि बाहर का दरवाज़ा खुला हुआ था | हम दोनों ने अपनी सोसाइटी में सब जगह प्रीति को ढूंढ़ा लेकिन वह कहीं नहीं मिली | मैंने वापिस घर आ कर पिता जी को फ़ोन पर सब बताया | वह भी सुन कर परेशान हो गए थे |

रात को खबर आई कि द्वारका सेक्टर १० के मेट्रो स्टेशन पर वह सामने से आती मेट्रो के आगे कूद गई और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी ”, कह कर रीना चुप कर जाती है | कुछ देर बाद रीना अपनी सिसकियों पर काबू पाते हुए बोली “वह मेरी आखिरी मुलाकात थी | मुझे अफ़सोस है कि उसने मुझे मौका ही नहीं दिया” |

गौरव कुछ बोल पाता इससे पहले ही गौरव की गाड़ी के साथ ही अक्षित की गाड़ी आ कर खड़ी होती है और अक्षित गौरव और रीना को गाड़ी में बैठा देख कर बोला “क्या बात है आप दोनों यहीं बैठे रहेंगे या अन्दर भी आएंगे” | अक्षित की आवाज सुन कर गौरव झिझकते हुए बोला “अभी आ रहे हैं | आप चलिए” | रीना को आँसू पोंछते देख अक्षित घर की ओर बढ़ जाता है | अक्षित के जाने के बाद रीना अपने पर काबू पाते हुए भर्राई आवाज में बोली “हम यहाँ कब पहुंचे” |

गौरव बुझी आवाज में धीरे से बोला “दस मिन्ट से हम घर के बाहर ही खड़े हैं” |

“मुझे पहले क्यों नहीं बताया”, रीना गौरव को देखते हुए बोली | गौरव उसकी बात को सुना-अनसुना करते हुए बोला “आओ चलें”|

“मैं ऐसा चेहरा लेकर अंदर जाते हुए अच्छी लगूंगी”|

“कोई बात नहीं | अपना चेहरा पोंछ कर अपने बाल ठीक कर लो | तुम ठीक लग रही हो”, कह कर गौरव गाड़ी से उतर कर घर की ओर बढ़ जाता है | रीना गाड़ी के साइड मिरर में देख कर अपना चेहरा और बाल ठीक करती है और धीमी चाल से गौरव के पीछे चल देती है |

✽✽✽