पहली हवाई यात्रा - 2 Lalit Rathod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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पहली हवाई यात्रा - 2

मुम्बई टू रायपुर- भाग दो

खिड़की वाली जगह पाकर जितनी खुशी हुई थी, उतनी दो घंटे में मुंम्बई पहुंचने पर भी नही हुई...मन कह रहा था थोड़ी देर ऊपर से ही मुंबई शहर घुमा देता तो क्या हो जाता खैर.. दो दिनों तक मुंबई शहर का आनंद लिया, अंतिम दिन रायपुर के लिए शाम 5 बजे प्लाईट थी. आयोजक द्वारा हमारी सहायता में लगाईं गई खूबसूरत कन्या ने कहा, आप खाना खाकर तीन बजे एयरपोर्ट को रवाना होंगे, मुंबई की ट्रैफिक का कोई भरोसा नहीं अापको सही समय पर फ्लाइट तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है। मैं भी बिना देर किए आन द स्पॉट एयरपोर्ट पहुंचा अौर पहला कार्य खिड़की वाली जगह का मुआयना करने से शुरु किया। पता था आयोजक ने खिड़की वाली जगह बुक करवाई हाेगी अौर मेरा अनुमान सही निकला। फिर खिड़की वाली जगह पर बैठकर जन्नत मिलने जैसे फीलिंग आ रही थी. फ्लाइट को उड़ने में 15 मिनट शेष थे, मेरे सीट वाली लाईन पर एक परिवार भी रायपुर आ रहा था, जिनका बेटा मेरे ठीक बगल में था...उसकी नजरें खिड़की पर थी, 10 मिनट तक इस तरह देखता रहा मानों मैने ही उसकी खिड़की वाली जगह हथिया ली हो...मैंने पूछा बैठना है? यह सुन खुशी से उसकी आंखें ऐसी चमकीं बाजू में बैठे माता-पिता तक इसका प्रभाव देखने को मिला। उन्होंने कहा क्या आप एक और सीट पीछे आ सकते हैं? मैं भी सहमत होकर बाजू वाली सीट पर अा गया। तभी रनवे पर हवाई जहाज दौड़ने लगा। उनके हावभाव से प्रतीत हो रहा था उनकी भी पहली हवाई यात्रा हैं.जहाज के आसमान में पहुचंते ही तीनों के बीच खिड़की को लेकर आपसी झगड़े होने लगे..अंत में निर्णय हुअा बारी-बारी से हम खिड़की का लुत्फ लेंगे। तीनों ने दो घंटे के सफर में जमकर हवाई यात्रा अांनद लिया। उन्हें देख लग रहा था, वह घर जाकर अपनों को घंटो तक हवाई यात्रा के किस्से सुनाएंगे। खिड़की वाली जगह पाकर उनकी खुशी देखकर मुझे लग रहा था, वह आज मुझे ढेर सारा धन्यवाद देकर जाएंगे। पर यह मेरा भ्रम था रायपुर पहुंचते ही तुम कौन, मैं कौन जैसी स्थिति निर्मित हो गई। तीनों आपस में एक दूसरे को अपना अनुभव बताते हुए बाहर निकल रहे थे, उन्होंने मुझे धन्यवाद कहना उचित ना समझा।तभी मैंने खुद से प्रश्न किया, जब मैं रायपुर सें मुंबई पहली बार हवाई जहाज में बैठा था, उस समय मुझे भी खिड़की वाली सीट की चाहत थी अगर वह नही मिलती तो मुझे कैसा लगता..मुंबई से रायपुर लौटते समय वह मेरी दूसरी हवाई यात्रा हो गई, मैने पहली बार हवाई यात्रा कर रहें बच्चे की चाहत को देखते हुए अपनी सीट उसे दे दी। बच्चे के चेहरे पर जो खुशी के भाव देखे वो मुझे जीवन भर याद रहेंगे, क्योंकि कहा गया है जितनी खुशी कुछ पाने में नही मिलती उससे ज्यादा आत्मसंतुष्टि देने में मिलती है।.
पहली हवाई यात्रा का अनुभव हमेशा याद रहे. इसलिए यहां लिखा है. जीवन में ढ़ेर सारे बदलाव के बाद यही वह जगह होगी जहां हम अपनी यात्राओं की स्मृती से नए में पुराने जीवन का रंग भर पाएंगे.