बंधन जन्मोंका - 2 Dr. Damyanti H. Bhatt द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बंधन जन्मोंका - 2

बंधन जन्मोंका ( प्रकरण- 2 )

(प्रकरण-2).

ये सब काली हील पर रीसोटपे जाने के लिए अर्ली मोर्नींग निकले। प्लान केमुताबिक अनिल,समीर और सागर एवं सब लडकियाँ दो जीपमें बैठकर सुबह 8- बजे काली हील पर पहूँचे। सोनाको यह हिल बहुत पसंद थी ,उसने सहेलियों से कहा, मैं झीलसे पानी लेने जा रही हूँ ,आप लोग भोजन बनाने की तैयारी किजीए । सोना पहले भी कईबार यहाँ आ चूकी थी । सब लडकियाँ वृक्ष के नीचे सारा सामान रखकर तैयारीमें लग गई ।

अचानक सोनाकी चीख सूनाई दी। बचाओ,,,बचाओ,,, सब चौक गए। लडकियाँ भयभीत हो गई।.........झील थोडी दूर थी।.......हुआ यू कि सोनाको घूमना पसंद था। इसलिए वह अकेली निकली ,,,,झील पर पहोंची तो दंग रह गई।गहरी नील रंग के पानीकी झील,उसमें हंस तैर रहे थे,झीलकी चोतरफ वनराई,लताएँ ऐसे खडी थी मानो झीलको आश्र्लेषमें लेनेके लिए तत्पर हो।चारों ओरसे फूलोंकी महकसे सारा सौंदर्य खील उठा था।पवन अपनी चरम सीमा पर वृक्षो और लताओंको बारबार स्पर्श करके डोल रहा था।हवाओं के झोंकोसे फूलों डालीके साथ ऐसे झूम रहे थे, मानो वो भी हवा का साथ दे रहे हैं। दों वृक्षों ऐसे खड़े थे, की कुदरती तौर पर कोई झुला बना हो और वो झीलकी उपर से गुजर रहा हो।झूलोंकी डालियाँ रंगबेरंगी फूलों से सजी थी। मोर,पपीहाकी पुकार,कोयलकी कूक से सारा उपवन नंदनवन लग रहा था। सोनाको लगता था कि वह कोई अप्सरा हो,और स्वर्ग में आ गई हो।वह तो खुशीसे पागल हो उठी। एक छलांग लगाई सीधे झुले पर जा बैठी, झूला झीलके उपरसे होकर डोलने लगा। उसे तो कोई होंश ही न रहा,वह तो जैसे अपने सपनोंकी दुनियामें खो गई थी। जोरशोरसे झूलने लगी और गाने लगी,,,,,

बगियामें छाई बहार पूरवैया,,,,

फूलोंने ली अंगडाई पूरवैया,,,,

गुलाब,चंपोने चमेली पूरवैया,,,,

मैं झूमु,नाचु,गाउँ,सहेली पूरवैया,,,,

झूलोंके संग,फूलोंके संग,,,,,,

चले मनकी तरंग पूरवैया,,,,,,

एक धडाक,,,,,,जोरसे आवाज आई,,,झूला तूटा,,,,सोना झीलमें,,,,,झीलमें मगर,,,,थोडे दूर,,,,सोनाने देखा,,,, अब बचनेकी कोई उम्मीद नहीं,,,,फिरभी,,,,सोनाने तैरना शुरू किया,,,,,जोरसे पानीकी आवाज़ आई,,,मगरने छलांग लगाई,,,,,सोनाने बूम लगाई,,,बचाओ,,,,बचाओ,,,,,,,

किनारे बड़े वृक्षकी सबसे उपरकी डाली पर छूपा बैठा हुआ अनिल कबका ये तमाशा देख रहा था। और सोनाके साथ बदला लेनेकी तलाशमें था। क्योंकी सोनाने एकबार उसका अपमान किया था। अनिलके प्यारको ठुकराया था,,,,एक दिन मौका देखकर हिंमत करके अनिलने कहा था कि सोना,,,,,,मैं तुझे जी जानसे चाहता हूँ,,,,, तब सोनाने कहा,,,,,,हं....हं.....मुँह देखा हैं आईनेमें..........बंदर भी अच्छा लगे हैं,,,,,,,तेरे आगे,,,,,,बस तबसे अनिलने ठान ली थी कि एकबार इस जंगली बिल्ली का शिकार करना हैं। अनिल सोच रहा था कि ये अच्छा मौका हैं,,,,बदला लेनेका,,,,वह कूदनेके लिए तैयार ही था,,,,कि सामने किनारेसे समीरने छलांग लगाई,,,,,,एक हाथसे उसने सोनाको सहारा दिया,,,दूसरे हाथसे अपनी कटारसे मगर पर वार किया,,,,लेकीन मगरने भी ठान ली थी ,,,,हाथ आया हुआ शिकार जाना नहीं चाहीए,,,,,थोडी देर युध्ध हुआ,,,,मगरको तीन चार घाँव लगे,,,वह थोडा कमजोर हुआ,,,समीरमे सोनाको किनारे की ओर धकेला,,,वह भी किनारे की ओर आनेकी कोशिष कर रहा था कि अचानक,,,एक धारदार चप्पु उसके पेटमें घूस आया,,,वह तडपने लगा,,,उसको जोरदार धक्का लगा और वह गहरे पाऩीमें चला गया,,,,इतनेमें सोना किनारे पर आई,,,अनिल उसके साथ था,,,,मानो अनिलने उसे बचाया हो,,,,वह सदमेंमें थी कि बचाते समय तो उसने समीरको देखा था,,,फिर,,,अनिल कहाँसे आ गया,,,,,और वह अनिलकी बांहोमें कैसे आ गई,,,,वह बेहोश हो गई,,,,,,,,बस यहीं तो चाहता था अनिल,,,,वह उसे लेकर पहाडी के पीछे चला गया,,,,,वहाँ पर एक गूफा जैसा था,,,,,वहाँ पर उसने सोनाको सूलाया,,,,और इस मौके का पूरा फायदा उठाने के लिए , वह सोना पर तूट पडा,,,,इसी वक्त ,,,सहसा,,,सोनाको होंश आ गया,,,वह सारी बात समझ गई,,,,उसने पूरी ताकतसे अनिलका सामना किया,,,,और पुकारने लगी,,,,बचाओ,,,बचाओ,,,,,

इतनेमें सूरज और सलमान भी वहाँ गये थे। सबने आवाज़ की दिशामें दौड लगाई,,,उधर मगर के साथ समीर पानीमें जीवन मौतका खेल खेल रहा था,,,,इधर सोना अनिलके साथ लड रही थी,,,,सोनाने कहा, नीच,,,कमीना,,,तो तू था,,,इसके पीछे,,,मैं तुझे बक्षनेवाली नहीं हूँ,,,,थोडी देर ये सब चलता रहा,,,सोनाने डट़कर मुकाबला किया,,,इतनेमें सब लोग वहाँ आ गए,,,सूरजने अनिलकी खूब पिटाई की,,,साला,,,कमीना,,,ये हैं ,,,तेरी दोस्ती,,,,मुझे क्या मालूम कि मैं आस्तीनका साप पाल रहा हूँ,,,, सोना सूरजको चिपककर फूटफूटकर रोने लगी,,,सूरज और अन्य दोस्तोने उसे एक शिला पर बैठाया और शांतकिया,,,पानी पीलाया,,,इतनेमें मगरको मारकर समीर भी वहाँ आ गया। सोनाने समीर को वहुत धन्यवाद दिया, कहा, आज समीर न होता तो मैं तो कबका मगरका भोजन बन चूकी होती,,, समीरने मुझे नया जीवन दिया हैं,,,समीर,,,तू मेरा भाई हैं,,,आजसे ,,तूने मेरी रक्षा की हैं,,,मगरसे,,,और,,, नालायक अनिलसे भी,,,, सबने देखा तो वहाँ अनिल मौजूद नहीं था , वह तो कबका पलायन हो चूका था,,,,समीरने कहा, हम दोस्त हैं, तो सोरी , थेंकयु की कोई जगह नहीं हैं, हमारी दोस्ती में। अबतो हमारा रिस्ता भाई- बहनका बन गया, अब तो मेरी जिम्मेदारी ओर बढ गई।

सूरजने कहा, चलो अब मौज-मस्ती करे।सब लोग काली मंदिर वापस आए। भोजन,खेलकूद,अंन्ताक्षरी, शामतक बहुत एन्जोय किया।सूरज सोनाको अपनी कारमें घर छोडने गया था, सोनाने सभी दोस्तोके सामने अपने प्यारका एकरार कर लिया था। सूरजकी जीत हुई थी, सूरजने अपने दोस्तों को कहा था कि शर्तवाली बात सोनाको न बताये,,,वरना वह दुःखी होंगी। बस तबसे लेकर आजतक सोना और सूरज परछाई की तरह एकसाथ घूमे थे। ये सब सूरजकी मनःस्थितिमें ऐसे चल रहा था, मानो यह घटना आजकी ही हो।