Screening 2
(पाकिस्तान का हैदराबाद शहर)
(एक शख्स घरके आंगन में लगे जुले पे बैठा हुआ दूसरे शख्स को बात कर रहा है)
पहला शख्स :- क्या सभी डिलीवरी हो गयी? नाज़िर को हमारा पैगाम बात दिया गया है ?
दूसरा शख्स :- जी जनाब पैगाम दे दिया गया है और अगले सात दिनों में सभी डिलीवरी मुकम्मल हो जाएगी, आपके बताये गए रास्तो की वजह से सभी काम सही तौर से चल रहे है ।
(तभी घरका दरवाज़ा खुलता है और हमीद अपने साथी फरहान के साथ घर मे दाखिल होता है, हमीद को देखते पहला शख्स जुले से खड़ा हो जाता है और हमीद ओर फरहान को गले से लगता है)
हमीद - कैसे हो बेहरम खान ? सब काम मुकम्मल हो गए ?
बहराम खान - जी बिल्कुल अरे आपका पैगाम आते ही मुहिम शुरू हो गयी थी, अब तक तो हिंदुस्तान तक पहोच गया होगा आपका पैगाम ओर अगले सात दिनों में पूरे हिंदुस्तान में तैयारी मुक़म्मल हो जाएगी ।
हमीद - बहोत खूब, अब देखते है हिदुस्तान को हमसे कोन बचाता है ।
(बुलेट भगाता एक शख्स दिल्ही हाई कमांड सेंटर पहोचता है , जैसे ही गेट के सामने अपनी बाइक रोकता है , सिक्युरिटी सावधान स्थिति में उसे सेल्यूट करती है, ओर पीछे रॉड की तरफ देखती है)
बुलेट पे बैठा शख्स - अरे भाई क्या पीछे क्या देख रहे हो, रजिस्टर लाओ, ओर मशीन दो चेक करो,
सिक्युरिटी - लेकिन सर आपकी गाड़ी, आप ऐसे मतलब ?
बुलेट पे बैठा शख्स - अरे हा वो आज छूट्टी थी तो बाजार निकला था, तभी सर का फोन आया तो सीधा ऐसे ही आ गया, अच्छा तुम ये सब छोड़ो दो रजिस्टर दो साहाब इंतेज़ार कर रहे है हमारा,
(वो शख्स रजिस्टार पे साइन करके बुलेट पार्किंग में लगाके बिल्डिंग के अंदर घुसता है)
मिस्टर चिनॉय - अरे कुमार साहब आप, आईये आईये वेलकम, प्लीज़ इस तरफ, सर केबिन में आपका इंतेज़ार कर रहे है, मुजे नही पता था आप इतनी जल्दी आ जाओगे,
आप यहां बैठिये में सर को बताके आता हूं ।
कुमार - थैंक यू मिस्टर चिनॉय; एक ग्लास पानी पिला दीजियेगा ।
(मिस्टर चिनॉय सर्वेन्ट को इशारा करता है और खुद केबिन का दरवाजा खोलके अंदर चला जाता है )
(मिस्टर चिनॉय केबिन से बाहर आते है और कुमार को जाने के लिए कहते है, कुमार केबिन के अंदर जाता है जहाँ उसके सर यानी , [RAW] के चीफ डायरेक्टर मिस्टर खैरनार बैठे है)
कुमार - में आई कमिंग सर ?
खैरनार - ओ कुमार आओ आओ , बेठो,
(ऑफिस की घंटी बजती है और सर्वेन्ट केबिन में आता है, दो चाय का आर्डर मिलता है और बात शुरू होती है कुमार और चीफ के बीच)
खैरनार - देखो कुमार , तुम्हे यू छूट्टी के बीच हम बुलाना तो नही चाहते थे लेकिन बात ही कुछ ऐसी है और तुम तो जानते हो हमारी नोकरी के बारेमे,
कुमार - अरे सर हम कहा कभी आपको मना किया है , देश की सेवा के लिए ही तो ये जॉइन किया था, अब ये छुट्टी तो बस एक दिन है ,हमे इससे कोई दिक्कत नही है बताईये सर, इस बार क्या मिशन है ?
(मीटिंग में बताई गई सारि जानकारी कुमार के साथ साँजा होती है और एक फाइल बना के कुमार को दी जाती है)
खैरनार - देखो कुमार तुमहारे पास दो दिन का वक़्त है अपनी टीम तैयार करो और मुजे रिपोर्ट करो,
कुमार - जी बहोत अच्छा सर तो में चलु सर ,
खैरनार - ओर हा ,एक ओर बात मिस फारूकी ने उसकी एजेंसी मेसे ये एक नाम दिया है तुम्हे अपनी टीम में इसको भी रखना है , ये पिछले तीन महीनों से इस काम मे है और उनका कहना है ये तुम्हारे काम आ सकता है ।
(कुमार बाहर आता है और बाजार है सब्जियां और फल लेकर घर पहोचता है)
(घर दिल्ली के वेसे तो बड़े रिहाइशी इलाके में है लेकिन दो मंजिला इमारत है जो आम लोगो को नज़र आती है लेकिन एक मंज़िल ओर है जिसे हम तेख़ाना कहते है वो कुमार की ऐसी पर्सनल जगा है जिसके बारे में आजतक उसके किसी घर के सदशयो को पता नही होता, घर के काम निपटाके कुमार ओफीस के लिए निकलते है और दो गली घुमके अपने ही घर के तेख़ाना में घुसते है)
(वहां एक टेबल है एक ऐ.सी है कुछ लेपटॉप ओर टीवी का सेट लगा हुआ है और सामने की दीवार पे एक बोर्ड लगा हुआ है जिसमे कई सारी तस्वीरे टंगी हुई है)
(जिसमे एक तस्वीर में आज सुबह की मिस फारूकी ओर दूसरे ऑफिसर के कार्यालय पहोचते हुए की तस्वीर है जिसके बारे में खैरनार ने भी उसको बताया था, लेकिन वहां एक तस्वीर हमिद की भी लगी हुई थी)
(नीचे की तरफ दुनिया के नक्शे का एक टुकड़ा लगा हुआ था जिसमे मस्कट हैदराबाद ओर कच्छ का भाग आपस मे किसी डोरी से मार्क करके रख्खे हुए थे)
हमीद - फरहान क्या सोचा है हम कब निकल रहे है, जनरल का फोन भी आ गया है ,
फरहान - हमीद ये मीटिंग तो खत्म करलो , यू बीच से जाना क्या ठीक रहेगा ?
हमीद - देखो फरहान ये सब बोलने की बाते हमे समज में नही आती इसलिए तो तुम्हे साथ मे रख्खा है , जो है वो खत्म करो और चलो ,
फरहान - लेकिन हमीद ये पचास करोड़ मांग रहे है ।
हमीद - ठीक है हो जाएगा कहदो ओर मीटिंग खत्म करो जल्दी ।
फरहान - लेकिन हमीद जरा सोचो पचास करोड़ ,
हमीद - फरहान तुम दिमाग इन सब चीज़ों में मत चलाओ हो जाएगा मुझपे छोड़ दो तुम बस ये खत्म करो ओर जनरल के यहां पोहचो हम जा रहे है ।
(पाकिस्तान का शहर कराची)
जनरल - देखो हामिद ये जो तुमने प्लान बताया ना तुम्हे लगता है ये कामियाब होगा, वहां की इटेलीजन्स एजेंसिया कुछ नही
करेगी ?
हमीद - जनरल साहब पहली बात हामिद नही हमीद,
ओर दूसरी बात आप बेफिक्र रहिये ये प्लान कामियाब ही नही उससे भी उपर जाएगा, मेरे चाचा ने जो काम अमेरिका के साथ मिलकर किया था, अब इसके बाद सब मुजे उससे भी उपर देखेंगे ।
जनरल - देखो हमीद किसीको ये जरासी भनक नही लगनी चाहिए कि इस काम मे पाकिस्तान की सरकार इसमें तुम्हारा साथ दे रही है वरना अंजाम तुम जानते हो ।
हमीद - अरे आप क्यों फिक्र करते हो , आप बस वज़ीर-ए-आज़म को देखलो बाकी सब हमपे छोड़ दो, बस एक छोटा सा काम आप करदो हमारा ।
जनरल - क्या ?
हमीद - आने वाले पाँच छे दिन हिंदुस्तान की आर्मी को ज़रा उलजाके रख्खो जैसे पेहले किया है ,और थोड़े से पेसो का इंतज़ाम करदो, ज़्यादा नही बस पचास करोड़ ।
जनरल - देखो आर्मी को तो हम संभाल लेंगे और पैसे तुम्हे अगले चौबीस घंटों में कराची बंदरगाह पे मिल जाएंगे , लेकिन मिशन फेल नही होना चाहिए हमारा ।
हमीद - इंशाअल्लहा कामयाबी हमारी होगी, चलता हूं जनरल साहब ।
【आगे की कहानी अगले द्रष्टांत मे】