मिराज Dewashish Upadhyay द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मिराज

देवाशीष उपाध्याय

मोहब्बत भी एक अजीब नशा होता है। जिसे लग जाये उसका तो भगवान ही मालिक है।

इश्क के फरेब में, लोगों को बर्बाद होते देखा है।

मोहब्बत की चाहत में, जिन्दगियाॅं तबाह होते देखा है।

बात उन दिनों की है, जब मेरा एडमिशन एक नये स्कूल में कक्षा नौ में हुआ था। पापा का ट्रांसफर होने के कारण शहर बदला, स्कूल बदला, मोहल्ला बदला, यहाॅं तक कि दोस्त भी बदल गये। कुछ दिन पढ़ाई होने के बाद स्कूल लगभग डेढ़ महीने के लिए बंद हो गया। छुट्टियों में मैं मम्मी के साथ नानी के घर चला गया। छुट्टियों अभी पूरी खत्म भी नहीं हुई थी कि, दादी की तबियत खराब होने के कारण पापा ने मम्मी को कानपुर बुला लिया। मम्मी ने सामान पैक किया और वापस कानपुर पहुॅंच गयी। कानपुर मेरे लिए बिल्कुल नया था। न तो यहाॅं कोई मेरा दोस्त था न ही परिचित।

वैसे भी हम उम्र के ऐसे पड़ाव से गुजर रहे थे। जब जिन्दगी में दोस्तों की अहमित कुछ ज्यादा ही होती है। बाल्यावस्था से किशोरावस्था में इन्ट्री, जिन्दगी का सबसे तनाव और दबाब वाला समय होता है। जब यौवन रुपी कीड़ा आपके अंदर कुलबुलाने लगता है। जवानी रुपी ज्वार-भाटा पूरे उफान पर होता है। ऐसे समय में दोस्तों से दिल की बातें शेयर कर तसल्ली मिल जाती है। हिन्दी फिल्मों के अंतरंग दृश्य मन की बेचैनी और व्याकुलता को बढ़ा देते है। हर पल दिमाग में अजीब प्रकार की सिहरन महसूस होती है। हसीन ख्वाहिशें दिल में अंगड़ाई लेने लगती हैं। कल्पनाओं और ख्वाबों को हकीकत में बदलने की बेचैनी बढ़ने लगती है। मन ही मन फिल्मी सीन को वास्तविकता के धरातल पर उतारने की तमन्ना होने लगती हैं।

शारीरिक संरचना में होने वाले तीव्र पारिवर्तन जिन्दगी में जोश और उमंग का संचार करते हैं। जैसे कली, पुष्प मे तब्बदील होने को उतावली हो। इसी बीच जिन्दगी का पहला प्यार आपके इर्द-गिर्द किसी खुबसूरत लड़की से हो जाता है लेकिन यह प्यार कुछ भाग्यशाली लोगों को ही नसीब होता है। बाकी तो बस ख्यालों की दुनिया में प्यार का ताना-बाना बुनकर संतोष कर लेते हैं। कानपुर पहुॅंचने पर पता चला कि, मेरे पड़ोस में एक बहुत ही मासूम सी लड़की पम्मी रहती है। उसे देखते ही मुझे पहली नजर में प्यार हो गया था। मेरे दिमाग के भीतर प्यार का ख्याली पुलाव धीमी आंच में पकने लगा।

मेरे दिलों-दिमाग पर पम्मी के हुस्न का नशा जादू सा छाने लगा था। मैं पम्मी को छुप-छुपकर ताड़ने लगा। जब कभी हम दोनों की नजरें एक-दूसरे से टकराती तो ऐसा लगता मानो जैसे आसमान में बिजली कड़क रही हो। बिजली की तेज रोशनी में मेरी आॅंखें चैंधिया जाती थी। सामाजिक मर्यादा और पारिवारिक दबाव के चक्कर में मैं अपने प्यार का इजहार करने की बजाय, पम्मी को बहन मानने का दिखावा करने लगा। लेकिन दिल के अंदर कुछ और ही चल रहा था। एक दिन दिल के हाथों मजबूर होकर अपने जज्बातों को कोरे कागज के कैनवास पर उतारने की जुर्रत कर बैठा और पम्मी के नाम प्रेम पत्र लिख डाला।

मम्मी-पापा के डर से मैंने प्रेम पत्र को तीन-चार दिन तक अपनी किताबों के बीच छुपाकर निहारता रहा। आखिरकार एक दिन हिम्मत कर मैंने निर्णय लिया कि, चाहे जो भी हो जाये यह पत्र पम्मी को दे दूंगा। दूसरे दिन सुबह जब पम्मी छत पर कपड़े डालने आयी तो प्रेम पत्र उसकी छत पर फेंककर मैं अपने घर भाग आया। मेरी उम्मीद के विपरीत पम्मी ने मेरा प्रेम पत्र अपनी मम्मी को दे दिया। फिर क्या सुधा आंटी ने पूरे मोहल्ले में तूफान खड़ा कर दिया। मेरा प्रेम पत्र लेकर मेरे घर आ धमकी। मम्मी-पापा के सामने मेरी करतूत का खुलासा ऐसे किया जैसे कोई पाकिस्तानी घुसपैठिये ने इंण्डिया की सीमा में दाखिल होने की जुर्रत कर दिया हो। पापा ने मेरी इस हरकत के लिए सबके सामने मेरी जमकर कुटाई कर दी। जब सुधा आंटी को लगा कि, मेरी जरूरत से ज्यादा धुनाई हो गयी है। तब उन्होंने ही बीच-बचाव करके मामले को शांत करवाया।

पापा का रौद्र रूप को देखकर मुझे ऐसा लगा कि, ऐसा गुनाह करने वाला दुनिया का मैं शायद पहला लड़का हूॅं। और पापा मुझ मासूम को पीटकर ऐसा दिखवा कर रहे हैं कि, जैसे उन्होंने चाइन से जंग जीत ली हो। एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि, कहीं पापा सुधा आंटी पर इंम्प्रेशन जमाने के लिए तो मुझे नहीं पीट रहे हैं। हालांकि सुधा आंटी को देखकर नहीं लग रहा था कि, इतना जुल्म ढ़ाहने के बाद भी वह पापा पर इंम्प्रेश हुई हो। मेरे दिल में पम्मी और सुधा आंटी के प्रति नफरत के भाव अलबत्ता जन्म ले लिये थे। क्योंकि पम्मी दीदी की मेहरबानी से मेरी मोहब्बत परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ दी थी। साथ ही घर और मोहल्ले में बदनामी अगल से हुई। सुधा आंटी ने मेरी इस हरकत का दुष्प्रचार पूरे मोहल्ले में कर दिया था। जिससे मोहल्ले की हर खुबसूरत लड़की मुझे अंतकवादी की तरह शक की निगाह से देखने लगी थी। पापा की पीटायी के कारण मैं पूरे दिन दर्द से कराहता रहा। शाम को मम्मी को मुझ पर तरस आया तो उन्होंने तेल से मालिश की, तब जाकर कुछ आराम मिला।

मंडे से स्कूल खुल रहे थे लेकिन अभी मैं और आराम करना चाहता था। लम्बी छुट्टियों में मस्ती करने के बाद स्कूल जाने का मेरा मन बिल्कुल भी नहीं हो रहा था। लेकिन जिन्दगी में सब कुछ आपकी मर्जी के हिसाब से नहीं होता है। अधिकांश डिसीजन आप पर दूसरों द्वारा थोप दिये जाते हैं। मम्मी ने मुझे सुबह जल्दी जगा दिया और मुझसे बैग तैयार करने को कहकर खुद किचेन में टिफिन बनाने चली गयी। मैं बिस्तर पर अंगडाई ले ही रहा था कि, पापा की कर्कश आवाज सुनाई दी। मैं देर किये फुर्ती से उठा और फ्रेश होने के लिए बाथरूम की ओर भागा। बाथरूम से बाहर आया तो देखा मम्मी मेरे बैग में किताबें और टिफिन रखकर सब कुछ रेडी कर दिया था। मैं मन मसोस कर स्कूल के लिए निकल पड़ा। पहली क्लास में मैथ के टीचर विनोद सर ने होमवर्क के बारे में पूछा तो, मैं इधर-उधर बंगले झांकने लगा। क्योंकि छुट्टियों में मस्ती करने के चक्कर में मैं होमवर्क पूरा करना ही भूल गया था। उन्होंने मेरी अच्छी-खासी धुनाई कर दी। विनोद सर के बाद अगली पीरियड साइंस की थी। संयोग से उसी दिन साइंस की एक नई मैडम ज्वाइन की थी।

साइंस वाली मैडम बहुत ही खूबसूरत, कमसीन और हसीन थी। उनको देखकर मैं पिछले पीरियड के मार की दर्द को भूल गया। किताब में नजरें गड़ाकर कनखियों से मैम के नूरानी चेहरे का दीदार करने लगा। क्लास में बैठे ही बैठे मुझे, मैम से एक तरफा प्यार हो गया। मेरा शरीर तो क्लास में था लेकिन दिल और दिमाग मैम के साथ हसीन ख्वाबों की दुनिया में चला गया था। मेरे जैसे न जाने कितने कमीने लड़के मैम का लेक्चर सुनने की बजाय, अलग-अलग एंगल से उनकी खूबसूरती का दीदार कर रहे थे और ख्यालों ही ख्यालों में फिल्मी दुनिया की तरह उनके साथ हसीन वादियों में विचरण कर रहे थे। जैसे बालीवुड की पिक्चरों में हीरो ख्वाबों में हीरोइन के साथ गाना गाते हुए डांस करता है। उसी तरह हम भी मैम के साथ हिमालय की खूबसूरत वादियों में सैर कर रहे थे। मैं ख्वाबों में इस कदर खो गया कि, न जाने कब मेरे मुंह से गीत के बोल निकल पडे.......

मेरी जिंदगी में आकर, यूॅंही ना तड़पाया करो।

मैं आशिक हूॅं तेरा, यूॅंही ना सताया करो।

गीत के बोल सुनकर पूरी क्लास मुझ पर हॅंस पड़ी। मैम ने मुझे डांटते हुए पूछा, ‘यह क्या बदतमीजी है?’ मैं हड़बड़ा कर उठा और मैम से सॉरी बोला। मैम ने मुझे डांटकर क्लास से बाहर निकाल दिया। मेरा प्यार का बुखार लगभग उतर चुका था। मैं बुझा हुआ सा चेहरा लेकर क्लास से बाहर निकला। मेरी समझ में आ चुका था कि प्यार, मोहब्बत मिराज (मृगतृष्णा) है। जो दिखता है वह होता नहीं, और जो होता है वह दिखता नहीं। इसके चक्कर में पड़ने पर जिन्दगी बर्बाद होने की संभावना ज्यादा है। वैसे भी जालिम दुनिया मासूम आशिकों के पीछे पड़ी रहती है

सफर-ए-मोहब्बत में, दुश्मन है जमाना।

अपने हैं पराये, परायों का क्या फ़साना।

देवाशीष उपाध्याय!