अक्षित पुलिस स्टेशन से काफी पहले ही सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे अपनी गाड़ी खड़ी कर सोमेश के फ़ोन का इन्तजार करने लगता है | अभी चार-पाँच मिन्ट ही हुए थे कि अक्षित के फ़ोन की घंटी बज उठती है | अक्षित फ़ोन उठा कर “हेलो”, बोलता है | दूसरी तरफ से सोमेश बोला “दोस्त मुझे आने में दस मिन्ट और लगेंगे | मैं यहाँ ट्रैफिक में फंसा हुआ हूँ” | अक्षित यह कह कर फ़ोन रख देता है कि कोई बात नहीं भाई | मैं यहाँ आराम से गाड़ी में बैठा हूँ | अब जो समय लगना है वह तो लगेगा ही और इस देरी में तुम कर भी क्या सकते हो |
अक्षित फोन रख कर गाड़ी की सीट पर आराम से पसर जाता है | जैसे ही अक्षित सीट पर आराम करने के इरादे से दोनों हाथ सिर के नीचे रख आँखें बंद करता है तो उसे पुरानी यादें घेर लेती हैं | ‘सोमेश आज से लगभग आठ साल पहले तब मिला था जब मैं एक कम्पनी में भाषण देने गया था | वहाँ से हम दोनों की दोस्ती ऐसी शुरू हुई कि आज तक चल रही है (दोस्ती की कहानी ‘आओ चलें परिवर्तन की ओर’ में पढ़ी जा सकती है)| पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों को सम्भालना बिना सोमेश और भाभी के सम्भव ही न था | उन दोनों के जोर देने पर ही तो मैं अपने बच्चों को छोड़ दिल्ली से बाहर जा कर नौकरी कर पाया | अगर मैं दिल्ली से बाहर नहीं जाता तो न तरक्की मिलती और न सोनिया | यह सिर्फ और सिर्फ सोमेश की दोस्ती के कारण ही सम्भव हो पाया था | वह न होता तो शायद मेरी और सोनिया की शादी भी न हो पाती | जिन्दगी का इतना कुछ सिर्फ सोमेश के कारण ही हो पाया | उसी के कारण मैं अध्यात्म के क्षेत्र में इतनी तरक्की कर......”, अक्षित को अचानक अपनी गाड़ी के शीशे पर थप-थप की आवाज सुनाई देती है और वह आवाज उसे उसकी यादों से निकाल कर वापिस वर्तमान में ले आती है | वह आँखें खोल कर बाहर की ओर देखता है तो सामने सोमेश को देख जल्दी से शीशा नीचे करता है |
“भाई अब तू बूढ़ा हो गया है | दस मिन्ट में ही इतनी गहरी नींद में सो गया” |
अक्षित हँसते हुए बोला “पहली बात कि मैं सो नहीं रहा था | दूसरी बात कि बुजुर्गों को नींद जल्दी नहीं आती है | तीसरी बात कि मैं अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था और अब असली बात कि बूढ़ा होगा तू, तेरे दुश्मन | साले तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे बूढ़ा बोलने की | मैं अभी भी...”
सोमेश हँसते हुए अक्षित की बात बीच में ही काटते हुए बोला “कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा | ऐसे होते हैं अध्यात्मिक लोग” |
अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “भाई मैं लोगों को व्यवहारिक अध्यात्म सिखाता और उस की ही शिक्षा देता हूँ | मैं न कोई गुरु हूँ , न कोई साधू और न ही ब्रह्मचारी | मैं एक आम शादीशुदा व्यवहारिक इंसान हूँ | मैं यह काम पैसा कमाने के लिए नहीं करता हूँ और इसीलिए अंधविश्वास नहीं फैलाता हूँ | मैं लोगों की सिर्फ सोच बदलने की कोशिश कर.....” |
“अच्छा जी मुझ पर ही भाषण पेलना शुरू कर दिया” |
“क्यों नहीं करूँगा | साले तूने कहा कैसे कि मैं गाली नहीं दे सकता | तूने कहा कैसे कि मैं किसी को देख नहीं सकता | मैं किसी की सुन्दरता को निहार नहीं सकता | मेरे लिए सेक्स क्या अभिशाप है | क्यों है बे | मैंने कभी किसी को नहीं कहा कि मैं आप सब से सुपर हूँ | मैं ब्रह्मचारी हूँ | मेरे बच्चे नहीं हैं | मैं अपनी पत्नी को माँ समझता हूँ | मैंने हमेशा कहा कि ईश्वर और उसकी भक्ति आत्मा और परमात्मा का मिलन है उसमे शरीर तो आता ही नहीं है | हमारा मिलन और भक्ति उस निराकार से है | साकार का तो कोई महत्व ही नहीं है | मैं हमेशा हर किसी को कहता हूँ कि मैं एक आम इंसान हूँ | मैं आम इंसान की तरह हर कार्य करता हूँ | बस सोच एक आम इंसान की तरह नहीं है | मैं अध्यात्म को व्यवहारिक रूप देकर उसे अपनी दैनिक दिनचर्या में प्रयोग करता हूँ और वही सबको सिखाता हूँ”, कहते हुए अक्षित सोमेश को देखता है | सोमेश अंगड़ाई लेते हुए एक लम्बी उबासी ले रहा था | अक्षित को अपनी ओर देखते हुए सोमेश बोला “हम क्या आज पहली बार मिले हैं जो इतनी बकवास मुझे पेल रहा है | सुबह से कोई मिला नहीं है क्या ? इसीलिए कहता हूँ कि हफ्ते में एक बार मिल लिया कर सारा गुबार निकल जाया करेगा | लेकिन साहिब के पास टाइम कहाँ ? चल ठीक है हो गया पेट खाली” |
“हाँ यार काफी आराम लग रहा है | भाई एक तू ही तो है जिससे मैं ऐसी बातें कर लेता हूँ | खैर अब बोल क्या करना है” |
“मैंने तुझे रात को बताया तो था कि मेरी संजीव भटनागर से बात हुई थी | वह इस एरिया का सहायक पुलिस कमिश्नर है | मैंने उसे जब तेरे बारे में बताया तो वह बोला कि तुझे पहले से ही जानता है | फिर क्या था मैंने उसे पूरी बात सुना दी जो भी तूने मुझे बताई थी | वह कह रहा था कि उसे ख़ुशी होगी कि मैंने उनकी मदद की जिनको मैं अपना गुरु मानता हूँ | दहशतगर्द को पकड़ कर जनसेवा भी हो जाएगी और पुलिस का नाम भी” |
“भाई मैं सोनू को कह ही रहा था कि कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा | लेकिन बस एक ही अफ़सोस है कि एहसान एक साले ........” |
सोमेश हँसते हुए बीच में ही बोला “बस मैं समझ गया कि आगे तूने क्या बोलना है | अब जल्दी चल | मैं गाड़ी ले कर आगे-आगे चलता हूँ तू मेरे पीछे आते रहना”, कह कर सोमेश अपनी गाड़ी की ओर बढ़ जाता है |
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अक्षित और सोमेश सहायक पुलिस कमिश्नर के कमरे में जैसे ही घुसते हैं | संजीव भटनागर उठ कर उन दोनों का बहुत गर्म जोशी से स्वागत करता है | वह बार-बार अक्षित को बैठने का आग्रह करता है | जब अक्षित और सोमेश बैठते हैं उसके बाद ही संजीव भटनागर बैठता है | सोमेश संजीव भटनागर का परिचय कराते हुए बोला “अक्षित, तुम्हें हैरानी होगी कि संजीव जी आपको बहुत अच्छी तरह से जानते हैं | यह भी उसी कॉलेज से पढ़े हैं जिस से तुम पढ़े हो | एक बार जब तुम अपने ही कॉलेज में भाषण देने आए थे तो वह भाषण सुन कर ये बहुत प्रभावित हुए और तब से ही ये तुम्हें youtube पर फॉलो कर रहे हैं | तुम्हारे जितने भी भाषण youtube पर उपलब्ध हैं इन्होने सारे सुने हुए हैं” |
“अच्छा जी, आप मेरे विचारों से इतने प्रभावित हैं | सुन कर अच्छा लगा और उससे भी अच्छा यह लगा कि आप पुलिस में होते हुए भी मुझे youtube पर फॉलो करते हैं” |
“सर आपसे आज की युवा पीढ़ी काफी प्रभावित है और आपके प्रेरक भाषण सुन कर ही मैं ध्यान और लग्न की वजह से आईपीएस पास कर सका | मैं आपका सदा आभारी रहूँगा” |
“यह तो सब आपकी अपनी मेहनत का फल है” |
“सर ! मेहनत अपनी जगह है और दिशा और प्रोत्साहन दूसरी जगह | बिना दिशा के मेहनत कोई रंग नहीं ला सकती है | खैर, मुझे सोमेश अंकल ने सब कुछ बता दिया है | मुझे आप पर पूरा विश्वास है | कृपया कर आप मुझे सविस्तार बता दें और मैं इस पर आज से ही कार्यवाही शुरू कर दूंगा | इसके लिए मुझे कमिश्नर साहिब से बात करनी होगी और रणनीति बनानी होगी | अगर जरूरत पड़ी तो आपको कमिश्नर साहिब या SIT के बड़े ऑफिसर से मिलवाना होगा | अभी हमारे पास दो दिन है | कुछ न कुछ हल तो अवश्य ही निकल आएगा” |
“बस मेरा आप से यही निवेदन है कि हमें उन लोगों को जिन्दा पकड़ना है और यह बात जितने कम लोगों तक पहुँचे उतना ही अच्छा है” |
“सर उसके लिए आप निश्चिन्त रहें” |
“ठीक है मैं आपको सारा वृत्तांत सुनाता हूँ | मेरा बेटा...........”, सुना कर अक्षित कुछ देर के लिए चुप कर जाता है | फिर कुछ सोचते हुए बोला “इस पूरे वृत्तांत में यही समझ आता है कि वह दोनों लड़के ही सुसाइड बॉम्बर हैं | लेकिन बाहर जाने वाले व्यक्ति का क्या रोल है समझ नहीं आया” | कुछ देर सब चुप रहते हैं | जैसे सब अंदाजा लगा रहे हों कि आखिर सच क्या है|
चुप्पी को तोड़ते हुए संजीव बोले “सर यह है तो बहुत ही अजीब और अविश्वसनीय लेकिन यदि आप कह रहे हैं तो शक का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता | इसका मतलब पहले तो हमें आने वालों की लिस्ट में से उन लोगों को ढूंडना होगा जोकि किसी धर्म या राजनीति से सम्बन्धित हैं | और फिर मेरी समझ से हमें सब कुछ वैसे ही होने देना चाहिए जैसा आपने सुनाया है | बाकी हमें जो कुछ भी करना है वह आख़िरी वक्त पर ही करना होगा |चलिए देखते हैं” | संजीव भटनागर से हाथ मिलाकर अक्षित और सोमेश कमरे से बाहर आ जाते हैं |
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“सोनू तुम बिना बात के क्यों अपनी जिन्दगी दांव पर लगा रही हो | यह प्यार नहीं पागलपन है” | गाड़ी से उतरते हुए अक्षित बोला|
“आप चुप रहिए | हम साथ-साथ हैं और साथ-साथ रहेंगे | मेरे रहते कुछ नहीं होगा” |
“हाँ, यह बात तो तुमने बिलकुल सही कही है | तुम्हारे रहते कुछ नहीं होगा” |
“मानते हो न कि मैं भी कुछ हूँ” |
“बिलकुल, जब मैं इतनी बड़ी मुसीबत साथ में ले कर चल सकता हूँ तो इससे बड़ी और क्या होगी” |
“मुझे लग ही रहा था कि तुम जरूर कुछ न कुछ बोलोगे | लोग पता नहीं तुम्हें क्या समझते हैं | कोई मेरे से आ कर पूछे कि असल में तुम क्या हो” | सोनिया हॉल के पास पहुँच कर बोली “यहाँ तो सब कुछ सामन्य लग रहा है | कोई ख़ास पुलिस भी नहीं है | तुम तो कह रहे थे कि बहुत अच्छा इन्तजाम कर दिया गया है” |
अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “सामान्य ही तो लगना चाहिए | तुम अंदर चलो मेरा काम था बताना बाकी सब आने वाला समय ही बताएगा” |
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सादी वर्दी में पुलिस का अच्छा खासा इन्तजाम था | जैसा गौरव ने देखा था ठीक वैसा ही हुआ | भाषण के आखिरी क्षणों में ही दो लड़के हॉल में घुसे और एक आदमी जोकि बार-बार पीछे मुड़ कर देख रहा था उन दोनों लड़कों को हॉल में घुसते देख अपनी सीट पर से उठ कर हाल से बाहर निकल गया | वह उठने वाला व्यक्ति जैसे ही बाहर निकल कर पार्किंग की तरफ गया | सादी वर्दी में खड़े पुलिसकर्मीयों ने झट से अंदर आ कर दरवाजे के पास ही खड़े उन दोनों लड़कों को धर-दबोचा | पार्किंग के पास खड़े पुलिसकर्मीयों ने उस बाहर आने वाले व्यक्ति को गाड़ी में बैठने से पहले ही पकड़ लिया | पुलिस वालों की इस हरकत पर आखिरी पंक्ति में बैठे कुछ लोगों को शक तो हुआ लेकिन कोई कुछ नहीं बोला | हॉल में बैठे अन्य किसी को पुलिस की इस हरकत का एहसास तक नहीं हुआ | उस दिन वह प्रोग्राम जैसे शुरू हुआ वैसे ही शन्तिपूर्वक खत्म हुआ |
रात को टीवी न्यूज में यह खबर जरूर सुनने को मिली कि दिल्ली पुलिस की मुस्तैदी से तीन आतंकवादी रंगे हाथों पकड़ लिए गये | दो आतंकवादियों को उस समय पकड़ा गया जब वह अपने जिस्म पर बम लगा कर दिल्ली के लोधी रोड स्थित एक सभागार में भाषण के दौरान इस घटना को अंजाम देने पहुंचे थे | तीसरा आतंकवादी जोकि उनका सहायक था उसे सभागार की पार्किंग से पकड़ा गया है | उनकी इस हरकत में किसका हाथ था अभी पुलिस पता कर रही है |
खबरें सुनते हुए सोनिया बार-बार अक्षित को देख रही थी | उसका दिल तो हो रहा था कि वह यहीं सबके बीच में अक्षित को चूम ले लेकिन बच्चों और सोमेश व उसकी पत्नी मीतू के सामने वह मन मार कर रह जाती है | अक्षित और सोमेश यह देख कर एक दूसरे को धन्यवाद दे रहे थे | जबकि इस घटना का असली पात्र गौरव हैरान हो यह सब देख रहा था |
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