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सदगति - 2

गीतिका उससे खुशी का कारण पूछना चाहती थी।लेकिन वह कंही नाराज न हो जाये,इस डर से उसने नही पूछा था देवेन के कहने पर वह तैयार हो गसी।देवेन उसे अपने साथ एक शानदार कोठी में ले गया था।
"मेेरी.पत्नी गीतिका"।देवेंन ने कोठी के मालिक से गीतििका का परिचय कराया था।
"बैैठो"।गीीतिका.को भव्य कक्ष मेंं बैठाकर देेवेन और कोठी.काा.मालिक बाहर चले गये थे।कुछ देर बाद कोठी का मालिक अकेला लौटा था।वह आते ही बोला,"चलो"।
"कहाँँ?"गीीतिका ने पूछा था।
"बेेडरूम में"।
"बेेडरुम,"गीतिकाा आश्चर्य से बोली,"बेडरूम मेे कयों?
"बेेडरुम में क्यो जाते है।पता चल जायेगा।"कोठी का माालिक उसका हाथ पकडते हुए बोला," जानती नही बेड रूम में पति पत्नी क्या करते है?"
"लेकिन मैं तुम्हारी पत्नी नही हूँ।"
"जिंदगी भर के लिए नही लेकिन आज रात के लिए हो।"कोठी के मालिक ने उसे अपनी तरफ खींचा था
"देवेन----गीतिका ने पति को आवाज लगाई थी।
"कोई फायदा नही।वह नही आएगा।".
"क्यो नही आयेगा?"
"क्योकि वह तुम्हे मेरे पास छोड़कर चला गया है।"
"मुझे छोड़कर।"गीतिका आश्वर्य से बोली।
"हॉ",कोठी का मालिक बोला,"तुम्हे आज रात मेरे पास रहना होगा।देवेन मुझसे आज रात के लिए तुम्हारा पांच हज़ार रुपये में सौदा कर गया है।"
गीतिका कोठी के मालिक की बात सुनकर हक्की बक्की रह गई थी।कोठी का मालिक उसे बैडरूम की तरफ खींचने लगा।गीतिका उससे छूटने का प्रयास करने लगी।छीना झपटी में उसने ऐसा जोर का झटका मारा की वह फर्श पर जा गिरा।गीतिका वंहा से भाग निकली।
"आ गई"।देवेन कमरे में बैठा शराब पी रहा था।वह उसे देखते ही बोला,"सेठ ने बड़ी जल्दी छोड़ दिया।"
"उसे ऐसा सबक सिखाया हैकि भविष्य में किसी औरत की आबरू से खेलनेे की भूल नही करेेगा"।
"वह मोटा आसामी मेरा परमानेंट ग्राहक बन जाता।"
"ग्राहक,"पति की बात सुनकर गीतिका घृणा से मुँह बिड़काते हुए बोली",कागज के चंद टुकड़ो की खतिर अपनी पत्नी को बेचते हुए शर्म नही आयी"।
"इसमे बुराई क्या है,"देवेन बेशर्मी से बोला,"जो मेरे साथ करती हो,वो सेठ के साथ कर लोगी तो तुम्हरा क्या बिगड़ जाएगा?"
"शर्म नहीं आ रही ये कहते।अपनी औरत से धंधा कराना चाहते हो।डूब मरो।"
"बाप से मांग कर ला नही सकती।कमा नही सकती।ऊपर से जुबान चलाती है।"गीतिका की जली कटी बातें सुनकर देवेन आग बबूला हो गया।वह उस पर लात घूंसे बरसाने लगा।मारते मारते थक गया तब घर से बाहर निकलते हुए बोला,"मुझ से मरने की कहती है।तू मर ।"
देवेन ने उसे घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया।गीतिका ने सोचा ऐसी जिंदगी से क्या फायदा।जिसमे रोज़ जलालत,ज़ुल्म,अत्याचार सहन करने पड़े।ऐसी जिंदगी से तो मौत बढ़िया।
गीतिका चल पड़ी।रात के अंधेरे में पैदल चलकर वह शहर से बाहर लाइनों के किनारे आ पहुँची।तभी उसे इंजन की सीटी की आवाज सुनाई पड़ी।वह फुर्ती से लाइनों के बीच मे पहुँच गई।वह लाइनों के बीच मे चलने लगी।सामने से ट्रेन पटरियों पर दौड़ी चली आ रही थी।क्षण प्रतिक्षण जिंदगी और मौत के बीच का फासला कम होता चला जा रहा था।लेकिन ट्रैन उस पर से गुजरती,उससे पहले किसी ने उसे बांहो में भरकर छलांग लगा दी थी।वह उसके साथ लुढ़कती हुई दूर तक चली गसी थी।
"कौन हो तुम?"गीतिका उठते हुए बोली,"तुमने मुझे क्यो बचाया?"
"जीवन भगवान की देन है।इसे मिटाने का हक़ तुम्हे नही।"वह बोला
"तुम मर्द हो औरत का दर्द क्या जानो।"

(शेष अगले भाग में)



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