रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग: इंसान को वश में करने की एक भयावह तकनीक Yashraj Bais द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग: इंसान को वश में करने की एक भयावह तकनीक

परिचय: क्या कभी आपने सोचा है, की किंचित ऐसी कितनी बातें होगी तो केवल और केवल आप जानते है। मनुष्य के दिमाग़ में ऐसे सहस्त्रों रहस्य होते हैं, जिन्हें वह अपने अंतः मानस में सहेज कर रखता हैं, कभी किसी को भी नहीं बताता हैं, और न ही संप्रेषित करता है।मगर अगर आपको कह दिया जाए की एक ऐसी अदभुत तकनीक का आविष्कार हो चुका है, जो कहीं दूर-दराज के स्थान से केवल आपके दिमाग़ में चल रही तरंगों को आधार बनाकर यह पता लगा लेंगी की आपके दिमाग़ में क्या चल रहा है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

मेरे प्रिय पाठकों ऐसी ही एक चमत्कारिक मगर भयावह तकनीक का आविष्कार विज्ञान की पैनी नज़रों से अछूता नहीं रहा हैं, जी हाँ इस तकनीक का नाम है रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग तकनीक, जिसके मार्फ़त कोई भी व्यक्ति ऐसे दुर्लभ उपकरणों एवं तकनीकों का उपयोग करकर, जिसकी सामान्यतः मनुष्य कभी परिकल्पना भी नहीं कर सकता हैं, किसी एकांत या दूर -दराज के स्थान पर बैठ कर किसी दूसरे व्यक्ति के दिमाग़ को पढ़ सकता है, और न सिर्फ़ पढ़ सकता बल्कि उसके दिमाग़ को पूर्णतः संचालित कर सकता हैं।इस तकनीक से मनुष्य के किसी भी अंग को क़ाबू में किया जा सकता हैं, यहाँ तक की उसे अपनी सुविधा अनुसार उपयोग भी किया जा सकता है।वर्तमान समय में इसका उपयोग अमेरिका, यूके, स्पेन, स्वीडन, जर्मनी एवं फ़्रान्स की सुरक्षा एवं ख़ुफ़िया ऐजेंसियों के द्वारा किया जा रहा है। अब आपके मन में यह सवाल उत्पन्न हो रहा होगा की दूर बैठे कोई व्यक्ति बग़ैर किसी सम्पर्क के किसी के दिमाग़ को कैसे पढ़ सकता है, या कैसे क़ाबू कर सकता हैं ? तो ऐसा कुछ दुर्लभ प्रकार की सेटिलाइट के माध्यम से सम्भव है, मुख्यतः जैसे हम आज की दिनांक में क्लाउड स्टॉरेज एवं इस प्रकार की अन्य तकनीकों में माध्यम से जैसे कहीं से भी अपने एक उपकरण में अनुरक्षित सूचना किसी अन्य उपकरण से प्राप्त कर सकते हैं, वैसे ही इन सेटिलाइटों के माध्यम से उक्त मनुष्य के दिमाग़ की एक प्रकार से मैपिंग कर ली जाती हैं, अर्थात् उसके सम्पूर्ण विचार अब उसके नहीं हैं, दूसरा मनुष्य उसके सम्पूर्ण दिमाग़ को क़ाबू कर उसे मनमाने तरीक़े से संचालित कर सकता हैं।यह तकनीक की गंभीरता एवं नाजुकता को जो पाठक समझ रहें होंगे वह इस बात का अनुमान भली-भाँति लगा सकते हैं, की अगर इस तकनीक का उपयोग किसी ग़लत कार्य के लिए किया जाने लगे या उक्त तकनीक किसी ग़लत हाथों में आ जाए तो इससे मानव जनजाति का कितना विनाश हो सकता हैं, यह सोच कर ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है।

क्या हैं रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग: आरएमएन पृथक रूप से किसी दूर-दराज के स्थान से कार्य करता है, यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें सुपर-कम्प्यूटर एवं कुछ दुर्लभ प्रकार की सेटिलाइट्स का उपयोग कर मानव- मस्तिष्क की मैपिंग कर ली जाती हैं, और ग़ौरतलब हैं कि उस व्यक्ति को पता भी नहीं चलता हैं। इस तकनीक से व्यक्ति के अंतः-मानस में प्रवेश कर उसे पूरी तरह से संचालित किया जा सकता हैं, एवं उसके मन में चल रहे आपराधिक ख़याल एवं ख़ुराफ़ाती सोच का पता भी पलक झपकते ही लगाया जा सकता हैं। विज्ञानिकों द्वारा किए गए कई प्रकार के शोधों में यह तथ्य सामने आया हैं की मानव के दिमाग़ की सोचने की गति पाँच-हज़ार बिट्स प्रति सेकंड की हैं, जो कि सुपर कम्प्यूटर एवं सेटिलाइट्स के मुक़ाबले काफ़ी क्षण-भंगुर हैं, जिसे आधुनिक तकनीक के माध्यम से बहुत ही सरलता से प्राप्त किया जा सकता हैं। मानव मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की जीव-विद्युत गूंज तरंगों की एक दुर्लभ प्रणाली हैं, जिसके माध्यम से मनुष्य अपने सोचने एवं समझने के कार्य को सफलतापूर्ण ढंग से निष्पादित करता हैं। रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग हेतु सेटिलाइट एवं सुपर -कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता हैं एवं दूसरे व्यक्ति के मन में हम जैसे चाहे संदेशों का बीजारोपण कर सकते हैं, एवं उससे अपने अनुसार कार्य करवा सकते हैं।

इस तकनीक का आविष्कार प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार लग-भग पचास वर्षों पूर्व हुआ था। विज्ञानिकों के अनुसार अगले कुछ वर्षों में ऐसी माइक्रो-चिप विकसित हो जाएँगी जिसे मानव के मस्तिष्क में रोपित करकर उसे पूर्ण रूप से संचालित किया जा सकेगा। यहाँ तक कि उसे स्वप्न भी वहीं आएँगे जो की उपकरण चाहेगा, उसकी भावनाएँ, उसके सम्पूर्ण अंग एवं पूर्ण मानव एक शूद्र से उपकरण के अधीन होगा। मनुष्य वहीं करेगा जो उपकरण चाहेगा, जैसे एक मालिक अपने सेवक को आज्ञा दे कर अपने कार्य निष्पादित करवाता हैं, उसी प्रकार मनुष्यों के मालिक किंचित कुछ छोटे-मोटे उपकरण हो जाएँगे। अभी तात्कालिक समय में विश्व भर में सैकड़ों सेटिलाइट एवं सुपर -कम्प्यूटर सहस्त्रों मनुष्यों के मन की मैपिंग कर रहे हैं,एवं लाखों मनुष्यों की पूर्व में ही कर भी चुके है, इन उपकरणों की मैपिंग करने की वर्तमान में गति लग-भग बीस बिलियन बिट्स प्रति सेकंड है, जिसे मुख्य रूप से अमेरिका, जापान, इज़राइल एवं कई यूरोपी राष्ट्रों के ख़ुफ़िया विभागों द्वारा उपयोग किया जा रहा हैं।

क्या करता हैं रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग: यह तकनीक से दूर बैठा व्यक्ति आपके दिमाग़ में चल रहें विचारों को शब्दों में परिवर्तित कर दूसरे व्यक्ति को बता सकता हैं, यहाँ तक कि दूर बैठा व्यक्ति उक्त उपकरण से माध्यम से उस दूसरे व्यक्ति को मनचाहा संदेश भेज किसी भी कार्य को करने हेतु उत्प्रेरित कर सकता हैं, मगर इन सब में सबसे गम्भीर बात यह हैं की आपको पता भी नहीं चलेगा की यह सब आप ख़ुद नहीं कर रहे हैं, बल्कि कोई और करवा रहा हैं। अगर उक्त तकनीक का उपयोग किसी ग़लत या अनैतिक कृत्य हेतु किया जावे, तो समाज की नज़रों एवं क़ानून के मुताबिक़ इसमें आप ही ज़िम्मेदार होंगे।

आरएमएन आपके दिमाग़ की कोर्टेक्स जो कि आपके दिमाग़ में सोचने-समझने की एक ग्रंथि होती है, को उपमार्गित कर उसकी विद्युत मैपिंग कर लेता हैं, इससे अब आप दूसरे लोगों से जो भी वार्ता करेंगे उसे बहुत ही सरलता के साथ सुना जा सकता हैं। इसमें सबसे गम्भीर एवं चिंताजनक तथ्य यह हैं की यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी शारीरिक सम्पर्क के सम्पन्न कर ली जा सकती है, एवं कर ली जाती हैं। इस तकनीक के माध्यम से मनुष्य के दिमाग़ में चित्र, चल-चित्र एवं किसी भी प्रकार के विचार सम्प्रेषित किए जा सकते हैं, एवं उस बेचारे व्यक्ति को यह पता ही नहीं होगा की यह सब प्राकृतिक नहीं है, अपितु कृत्रिम रूप से उससे करवाया जा रहा हैं। इस सब में मनुष्य का दिमाग़ एक तरह से कम्प्यूटर से लिंक हो जाता हैं, या यूँ कहें की कर दिया जाता हैं। इस तकनीक के माध्यम से उस मनुष्य के मन में कोई भी विशिष्ट आदेश प्रविष्ट किया जा सकता हैं, उसके किसी भी अंग या शरीर के भाग को कष्ट पहुँचाया जा सकता हैं, उसके नींद के स्वरूप पर निगरानी रख उसे भी क़ाबू किया जा सकता हैं, एवं अंत में उसकी सारी भावनाओं को की नियंत्रित किया जा सकता हैं।

क्या समस्याएँ हो सकती है: रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग तकनीक का उपयोग अगर मुख्यतः ग़लत एवं अनैतिक कृत्यों हेतु किया जाने लगे, तो इससे मानव जन-जाती के होने वाले विनाश के पैमाने का अनुमान लगा पाना भी बेहद कठिन होगा। विश्व भर की मानव अधिकारों की रक्षा एजेन्सीयों द्वारा एवं कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा भी इस तकनीक की कड़े शब्दों में निंदा की गई हैं, क्यूँकि उनके अनुसार यह तकनीक से मनुष्य के मूलभूत मानव अधिकारों का न सिर्फ़ उल्लंघन होता हैं, मगर उनका निजता का अधिकार एवं अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे मौलिक अधिकारों का भी सकल स्तर पर हनन होता हैं। इस तकनीक को प्रतिबंधित करने हेतु भारत समेत कई राष्ट्रों में राष्ट्र-व्यापी आंदोलन तक हो चुके हैं।

भारत के कुछ वरिष्ठ तकनीकी विशेषशज्ञों द्वारा इस तकनीक की सबसे मुख्य समस्या यह बताई गई हैं, की जिस तकनीक से मानव मस्तिष्क की विद्युत मैपिंग की जाती हैं, एवं जिस माइक्रो-चिप को मनुष्य के दिमाग़ में रोपित करने की बात हो रही हैं, जिससे उक्त मनुष्य पर क़ाबू पाया जा सकता हैं, उससे निकलने वाली किरणें मोबाइल फ़ोन एवं माइक्रोवेव ओवेन से निकलने वाली तरंगों से भी कई गुना ज़्यादा घातक हैं, मानव स्वास्थ्य पर इसका काफ़ी प्रतिकूल असर पड़ता हैं, जिससे कैन्सर एवं लियूकेमिया जैसी जानलेवा बीमारी तक होने की सम्भावना भी कई गुना बढ़ जाती हैं।

क्या कहता हैं भारत का क़ानून- भारत में भी इस तकनीक को प्रतिबंधित करने हेतु आवाज़ें उठने लगी हैं। कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा सोशल मीडिया पर इस हेतु एक प्रकार का ई -आंदोलन किया जा रहा हैं, जो कि उचित भी हैं, मगर क्या कभी अपने विचार किया की भारत का क़ानून इस संदर्भ में क्या कहता हैं? तो आपके सादर संज्ञान एवं ज्ञान हेतु बता दूँ, की इस संदर्भ में हमारे किसी भी अधिनियम में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं, सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के भी प्रावधान जैसे धारा 72-ए, धारा 69 इस संदर्भ में नहीं अधिरोपित कीए जा सकती हैं। हमारे भारत के सविधान में अवश्य अनुच्छेद 19(1) अभिव्यक् ति की आज़ादी एवं अनुच्छेद 21 दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार हैं, जिसके आलोक में हाल ही में माननीय सप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश दिया गया हैं, अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार होगा, जिसे बग़ैर परिवादी की परस्पर सहमति के अतिक्रमित नहीं किया जा सकेगा। इस प्रावधान से हम इसे भारत में लागू होने एवं इसके उपयोग करने से सक्षम रूप से रोकने में सफल होंगे मगर अगर यह अन्य राष्ट्रों द्वारा भारतीयों पर उपयोग किया जाएगा तो हम क्या कर पाएँगे? इस हेतु हमारी सरकार को विचार कर आवश्यक कदम ज़रूर उठाने चाहिए।

निष्कर्ष: रिमोट न्यूरल मोनिटेरिंग एक बेहद की भयावह एवं ख़तरनाक तकनीक है, इसका उपयोग अगर ग़लत कृत्यों हेतु किया जाने लगे तो यह समूल मानव जाती के विनाश होने का एकमात्र कारण बन सकती हैं, सभ्य समाज में ऐसी तकनीकों की कोई आवश्यकता नहीं हैं, इसे त्वरित रूप से प्रतिबंधित करना चाहिए, ऐसा करना न सिर्फ़ समाज के हित में होगा अपितु न्यायसंगत भी होगा। इसी के साथ-साथ हमारी वर्तमान सरकार को अपनी कुंठित सोच से बाहर आकर इस संदर्भ में कड़े कदम सु-निश्चित करने होंगे, अन्यथा वह समय दूर नहीं हैं जब आपको चारों ओर केवल क्रूर एवं अमानवीय तकनीकों का जंजाल दिखायी देगा एवं सम्पूर्ण मानव जन-जाती उसके अधीन विवश नज़र आएगी।