अणु और मनु - भाग-2 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अणु और मनु - भाग-2

बाहर धूप तेज थी लेकिन फिर भी हवा में हल्की नमी कि वजह से न तो ठण्ड महसूस हो रही थी और न ही गर्मी का एहसास हो रहा था | वैशाली और सिम्मी को कॉलेज के गेट के पास ही एक घने पेड़ के नीचे खड़ा देख गौरव रीना और कुणाल भी उसी ओर चल देते हैं | चलते हुए कुणाल गौरव को देख कर बोला “भाई इसका ड्रामा तो खत्म ही नहीं होता है | रोज कोई न कोई रोना या नया ड्रामा लेकर बैठ जाती है” | कुणाल की बात सुन कर गौरव मुस्कुराते हुए धीरे से बोला “भाई कभी-कभी कुछ ड्रामे सच्चे भी तो होते हैं या फिर हो जाते हैं” | कुणाल यह सुन कर सिर इस प्रकार से झटकता है जैसे वह कहना चाहता हो कि होते होंगे सच्चे पर इसके नहीं |

रीना सिम्मी के पास पहुँच कर उसे घूरते हुए बोली “इतना गुस्सा दिखाने की क्या जरूरत थी” |

सिम्मी रीना की बात सुन कर आग बबूला होते हुए बोली “तुम लोगों को क्या पता है, मैं जानती हूँ इसीलिए बोल रही हूँ | मैं बेवकूफ़ नहीं हूँ” |

कुणाल चुटकी लेते हुए बोला “रीना तुम भी ना, बेवकूफ़ को कभी बेवकूफ़ नहीं समझना चाहिए, क्यों सिम्मी सही बात है ना........” |

इससे पहले कि सिम्मी कुणाल पर बरस पड़ती, वैशाली बीच-बचाव करते हुए बोली “कुणाल तुम तो चुप ही रहो, कुछ तो वक्त की नजाकत समझा करो” |

कुणाल “जब यह कुछ बताएगी तभी तो पता लगेगा कि यह कहना क्या चाहती है | ऐसे रोने-धोने या चीख़-चिल्लाहट से क्या समझ में आएगा” |

वैशाली सिम्मी को देखते हुए बोलती है “हाँ! यह बात तो कुणाल सही कह रहा है | तुम कुछ बताओगी तभी तो हम लोगों को कुछ समझ में आएगा” |

गौरव सिम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला “बोलो तुम कहना क्या चाहती हो | ऐसा तुमने क्या देखा जोकि इन्हें नहीं दिख रहा है”|

सिम्मी कुछ शांत होते हुए भर्राई हुयी आवाज में बोली “अभी कुछ दिन पहले मैं मोहित के साथ उसके कमरे पर गई थी.......” |

कुणाल बीच में ही बात काटते हुए बोला “हाँ ! हाँ ! बोलो वहाँ क्या-क्या हुआ..” |

गौरव कुणाल को चुप रहने का इशारा करते हुए बोला “फ़िर....” |

सिम्मी, कुणाल को गुस्से से लाल हुई आँखों से गुर्रेते हुए बोली “कभी तो शर्म कर लिया करो | तुम लोगों को सिवाय गलत सोचने के कुछ और भी आता है........” |

गौरव बीच में बोल पड़ता है “उसकी बात को छोड़ो, बोलो क्या देखा तुमने वहाँ” |

“पिछले महीने एक दिन हमने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था बस इसी सिलसिले में मैं उसके घर गई थी | वह मुझे बिठा कर जब टॉयलेट में गया तो मेरी नज़र उसके कमरे में बिखरे हुए समान पर पड़ी | उसका पूरा कमरा अस्तव्यस्त था | कमरे में से अजीब सी गंध आ रही थी | अचानक मेरी नजर उसकी स्टडी टेबल पर पड़ी | वहाँ मुझे कई प्लास्टिक के छोटे-छोटे पैकेट दिखे जिनमें सफेद रंग का पाउडर सा कुछ भरा था | उनके साथ ही मुझे दवाइयों के पत्ते भी उसकी टेबल पर रखे दिखाई दिए | इससे पहले कि मैं उठ कर उन्हें देख पाती कि वह टॉयलेट से बाहर आ गया था |

जब मैंने उससे पूछा कि यह दवाइयाँ कैसी हैं तो वह सकपकाते हुए बोला कि मेरी माँ को दमे की बिमारी है | यह सब दवाइयाँ उनके लिए ही हैं | यह कह कर उसने वहाँ से सारी दवाइयाँ समेटीं और साथ ही रखी अलमारी में बंद कर दीं | मुझे उसकी यह हरकत बहुत ही अजीब लगी | उसके अटक कर बोलने से मुझे कुछ शक-सा हुआ तो मैंने जब दुबारा पूछा कि बीमारी तुम्हारी माँ को है तो फिर दवाइयों के पत्ते तुम्हारी टेबल पर क्या कर रहे हैं | यह सुन कर उसे गुस्सा आ गया और वह लगभग चिल्ला कर बोला कि मैं यहाँ कपड़े बदलने आया हूँ न कि तुम्हारे बेफ़जूल प्रश्नों के ज़वाब देने | हमें फ़िल्म देखने जाना था, इसलिए मैं उसका मूड ख़राब नहीं करना चाहती थी | जब वह अपनी क़मीज उतार कर दूसरी कमीज पहन रहा था तो मैंने उसकी बाई कोहनी के पास तीन चार निशान भी देखे थे जैसे कि वह ड्रग्स के इंजेक्शन भी लेता हो ..........” |

वह अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि दूर से मोहित को तेज क़दमों से आते देख सिम्मी चुप कर जाती है| मोहित पास आ कर बोला “अरे यार तुम लोग बाहर क्या कर रहे हो, मैंने कहा तो था कि अभी गया और अभी आया | देखा आ गया ना” | फिर सिम्मी को आँसू पोंछते देख कर मुस्कुराते हुए बोला “कुछ लड़कियाँ सुंदर होती हैं लेकिन वो और भी सुन्दर तब लगती हैं जब वह रो रही होती हैं | ऐसी सुन्दरता देख कर कई बार दिल तो करता है कि उन्हें एक दो थप्पड़ और मारे जाएँ ताकि और देर तक उनकी सुन्दरता का दीदार हो सके | खैर, तुम्हें किसने मारा जानेमन, नाम तो बताओ अभी उस साले के हाथ चूमता हूँ | इसी बहाने इस रोते हुए सुन्दर चेहरे का दीदार तो हो पाया......” |

वक्त की नज़ाकत को समझते हुए रीना बीच में ही बोल पड़ती है “हुआ कुछ नहीं, बस उसकी आँख में कुछ चला गया था” |

मोहित हँसते हुए बोला “काश ! ऐसा रोज हो” |

सिम्मी आँखें पोंछते हुए बोली “हां, तुम्हें क्या फर्क पड़ता है” |

मोहित मुस्कुराते हुए बोला “तुम भी कई बार बेवजाह सेंटी हो जाती हो | आ तो गया”, फिर सब की तरफ देखते हुए बोला “भाई इतना सन्नाटा क्यों है, क्या हुआ....”|

रीना बीच में ही बोल पड़ती है “चलो चलते हैं” | उसकी बात सुन कर सब सिर झुकाए धीरे-धीरे चलते हुए कॉलेज से बाहर पार्किंग की तरफ चल देते हैं |

*

पार्किंग के पास पहुँच कर मोहित सिम्मी से बोला “आज कहीं घूमने चलें” | सिम्मी कुछ बोल पाती इस से पहले ही कुणाल बोला उठा “भाई कह तू सही रहा है | वैसे आज मौसम भी सीटियाँ बजा रहा है | क्यों न आज इस मौसम और जल्दी हुई छुट्टी का लुत्फ़ उठाया जाए” ? वैशाली सिम्मी के पास पहुँच उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली “हाँ बात में तो दम है” | गौरव और रीना के आते ही मोहित बोला “दोस्तों कैसे रहेगा यदि आज हम मुरथल चलें, बहुत दिन हो गए हैं वहाँ के परांठे खाए हुए” | फिर वह घड़ी को देखते हुए बोला “यार अभी तो 12 भी नहीं बजे हैं | काफी टाइम है | बोलो, क्या कहते हो” |

सब मोहित को हैरानी से देखते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता है | ऐसा लग रहा था जैसे सब मन ही मन दूसरे के बोलने का इन्तेजार कर रहे हों | सब को चुप देख मोहित मुस्कुराते हुए बोलता है “बोलो...... अबे सालो सांप सूंघ गया क्या” ?

वैशाली कुणाल को देखते हुए बोली “शाम पांच-छह बजे तक तो मुझे कोई मुश्किल नहीं है | बस देख लो, तब तक तो आ जाएंगे न | इससे देर हुई तो फिर घर वालों को छत्तीस तरह की कहानियाँ सुनानी पड़ेंगी........”|

कुणाल सिम्मी और मोहित को देखते हुए बोला “अगर अभी निकलते हैं तो फिर शाम छः बजे से तो पहले हर हालत में वापिस आ ही जाएंगे बशर्ते कि रास्ते में कहीं बेवजह का ट्रैफिक जाम न मिले” | वैशाली और सिम्मी कुणाल की बात सुन कर आश्वस्त होते हुए मोहित को इशारा करती हैं कि ‘हमें तो कोई मुश्किल नहीं हैं’, फिर मोहित को इशारा कर कहती हैं कि ‘रीना और गौरव से भी तो पूछो’ |

मोहित “गौरव तू क्या कहता है”?

गौरव सबकी तरफ देखते हुए बोला “देखो, मेरे हिसाब से शाम के सात तो बज ही सकते हैं | इसलिए सबको अपने घर पर बता कर जाना चाहिए | और फिर हम दिल्ली से बाहर भी तो जा रहे हैं | चाहे वह थोड़ी दूर ही सही, बाकी तुम्हारी मर्जी | मैं तो अपने अम्मी-अप्पा को बिना बताए जा ही नहीं सकता........”| बीच में ही कुणाल बात काटते हुए बोला “यदि उन्होंने मना कर दिया तो......” |

गौरव हँसते हुए बोला “तो क्या, नहीं जाऊँगा” |

मोहित और रीना को छोड़ बाकी सब एक स्वर में बोल उठते हैं “यार ये क्या बात हुई, कभी-कभी तो ऐसा मौका आता है जहाँ सब एक साथ जाने को राजी होते हैं” |

मोहित सबको इशारा करते हुए कहता है “देखो यार, अगर मेरे भी माँ-बाप गौरव के माँ-बाप जैसे होते तो शायद मैं भी वही करता जो गौरव कर रहा है | अगर उन्होंने मना कर दिया तो हम भी नहीं जाएंगे | किसी को कोई शक” |

वैशाली जमीन पर पैर मारते हुए बोली “अबे यार ये क्या बात हुई” |

कुणाल वैशाली की बात सुन कर अपनी सहमति देते हुए बोला “पहली बात कि बापू या माँ से पूछने का सवाल ही नहीं पैदा होता” | फिर कंधे झटकते हुए बोला “मान लो कि पापा से पूछने की हिम्मत भी कर लूँ तो सबसे पहले वहाँ से सवाल आएगा ‘कॉलेज पढ़ने जाते हो कि मौज मस्ती करने’ | फिर दूसरा सवाल आएगा ‘जानते जो आज कल पेट्रोल कितना महंगा है | तुम्हारी मौज-मस्ती के लिए टंकी फुल करवा कर नहीं देता’ | उसके बाद आख़िरी सवाल ‘कौन-कौन जा रहा है’ | आप इन सवालों के जवाब कुछ भी दे दो, कितनी भी मिन्नते कर लो, कुछ भी यानी कुछ भी कह दो, वहाँ से फ़ैसला एक ही आएगा ‘बोला न...... नहीं, सीधे घर आओ | पता नहीं किन से दोस्ती कर रखी है | किसी के माँ बाप कुछ कहते ही नहीं हैं”|

वैशाली और सिम्मी कुणाल की बात सुन कर ‘हाँ’ में सिर हिलाते हुए बोले “रीना तू क्या कहती है, तेरे माँ-बाप हाँ कर देंगे” |

रीना झिझकते हुए बोली “पापा से तो पूछने का सवाल ही पैदा नहीं होता | हाँ, अगर मैं मम्मी से पूछूँगी तो वह एक ही सवाल पूछेंगी कि कौन-कौन जा रहा है | अगर जाने वालों में गौरव का नाम हुआ तो मम्मी न नहीं कर पाएंगी लेकिन साथ में ये भी कहेंगी कि अपने पापा को मत बताना कि तुमने मुझ से पूछा था” |

“अरे वाह ! मतलब तुमने अपने घर गौरव के बारे में सब कुछ बता रखा है”, कह कर मुस्कुराते हुए सिम्मी बोली |

“नहीं ऐसा कुछ नहीं है | मेरी मम्मी गौरव के पापा को जानती हैं | अक्षित अंकल एक बार मम्मी के ऑफिस में लेक्चर देने आये थे वहीं अंकल से बात करते हुए माँ को मालूम हुआ कि हम दोनों एक ही क्लास और कॉलेज में पढ़ते हैं” |

“ओह हो ! बात काफी आगे बढ़ चुकी है”, दबी आवाज से सिम्मी बोली |

गौरव जो अभी तक चुप खड़ा था | मोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए इशारे से बोला “अप्पा से बात करके आया”, कह कर वह उन सबसे दूर जाकर अप्पा से बात करने के लिए पेंट की जेब से फ़ोन निकालता है |

गौरव को फ़ोन पर बात करते देख वैशाली रीना से बोली “तुम्हें क्या लगता है उसके अम्मी-अप्पा हाँ कर देंगे” |

“शायद ‘हाँ’ कर देंगे” | वह दोनों अभी बात ही कर रहे थे कि कुणाल बोल पड़ा “मुझे तो नहीं लगता | भाई, मैं तो सोच भी नहीं सकता अपने माँ-बाप से बात करने की” |

रीना हँसते हुए बोली “यही तो फर्क है” |

कुणाल गम्भीर भाव से बोला “यार कॉलेज में आकर भाषण देना और उसे घर और बच्चों पर लागू करना दोनों में बहुत फर्क होता है | हमारे माँ-बाप भी दूसरों को बहुत भाषण देते हैं लेकिन जब अपने पर आती है तो फिर वह वही टिपिकल माँ-बाप बन जाते हैं” |

“उनके घर में ऐसा नहीं है, अक्षित अंकल ऐसे नहीं हैं | वह जो बोलते हैं वह सबसे पहले अपने पर लागू करते हैं | हाँ ! गौरव की माँ टिपिकल माँ जरूर हैं लेकिन यदि उन्हें गौरव कहे कि मैनें अप्पा से पूछ लिया है तो फिर वह कुछ नहीं कहती हैं | उनका घर एक आदर्श घर है जोकि आज के माहौल से बिलकुल अलग है | हम ऐसे घर की कल्पना भी नहीं कर.....”, रीना, गौरव को आते देख चुप कर जाती है |

गौरव को आते देख सब गौरव की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखते हैं | गौरव मुस्कुराते हुए बोला “क्या हुआ, चलना नहीं है क्या” | सब खुश होते हुए बोले “हाँ कर दी क्या” ?

“हाँ”, गौरव मुस्कुराते हुए बोला |

कुणाल अच्भित होते हुए बोला “कमाल है | मैं तो सोच भी नहीं सकता कि इतनी आसानी से कोई माँ-बाप राजी भी हो सकते हैं “ |

“मेरे अप्पा ऐसे ही हैं | बस उन्होंने एक बात कही कि अगर उधर जा ही रहे हो तो दादा-दादी से जरूर मिल कर आना | अगर तुम्हारे दोस्त राजी हों तो कुछ समय अपने दादा-दादी के साथ जरूर बिताना | उन्हें भी अच्छा लगेगा और तुम्हारे दोस्तों के लिए भी अच्छा रहेगा”|

कुणाल गुस्से से बोला “यार अब ये दादा-दादी कहाँ से आ गए” |

वैशाली बोली “तभी मैं कहूँ कि इसके अप्पा ने इतनी आसानी से हाँ कैसे बोल दिया | असल में तो वह अपने माँ-बाप का हाल-चाल जानना चाहते थे” | यह सुन कर सब ने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया | गौरव ने रीना की ओर देखा तो वह नजरें झुकाए चुप-चाप खड़ी मुस्कुरा रही थी |

सिम्मी रीना को देखते हुए बोली “क्यों तू हमारी बात से इतेफ़ाक नहीं रखती क्या”?

रीना मुस्कुराते हुए बोली “अब इसका सही उत्तर तो गौरव ही दे सकता है” |

गौरव होंठ दबाते हुए बोला “चलो गाड़ी में बैठो | मैं तुम्हें सब बताता हूँ | कुणाल तुम अपनी बाइक पर चलो रास्ते में मेट्रो पार्किंग में लगा देना” | सब गौरव के साथ उसकी गाड़ी में बैठ जाते हैं | रीना गौरव के साथ आगे बैठ जाती है | सिम्मी और मोहित पीछे और वैशाली बीच में बैठ जाती है |

*

मेट्रो पार्किंग के पास गौरव अपनी कार अभी खड़ी ही करता है कि कुणाल पीछे से आकर कार का दरवाज़ा खोल कर बैठते हुए बोला “यार थोड़ा तेज चलाना, ताकि हम ज्यादा से ज्यादा डेढ़ घंटे में वहाँ पहुँच जाएँ” |

पीछे से सिम्मी सीट पर जोर से हाथ मारते हुए बोली “अरे यार अभी तो इसके दादा-दादी से भी तो मिलना है” |

“गौरव तुम अपने अप्पा को बोल देना कि हमें देर हो गई थी इसलिए मिल नहीं पाए”, वैशाली गौरव की सीट पर हाथ रखते हुए बोली |

गौरव गंभीर भाव से बोला “नहीं मैं अप्पा से झूठ नहीं बोल सकता” |

“ये क्या बात हुई | तुम हमारे लिए इतना भी नहीं कर सकते”,वैशाली झुंझलाते हुए बोली | वैशाली की बात सुन रीना को छोड़ सब एक दूसरे को देख कर ‘हाँ’ में सिर हिलाते हैं|

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “अरे यार तुम लोग गलत समझ रहे हो | वह मेरे असली दादा-दादी नहीं हैं | असल में तो वह बुजुर्ग पति-पत्नी हमारे कुछ भी नहीं लगते हैं” |

“बस तो फिर ठीक है | हम नहीं जा रहे उनके पास”, कुणाल वैशाली को देखते हुए बोला | वैशाली हाथ के इशारे से कुणाल की बात में सहमति जताती है |

गौरव गाड़ी का गियर बदलते हुए बोला “भाई लोगो परेशान क्यों हो रहे हो | दादा-दादी की चाय की दूकान रास्ते में मुरथल से कुछ पहले ही है” |

मोहित यह सुन हँसते हुए बोला “भाई मैं तो चाय पीता ही नहीं हूँ फिर वहाँ रुकने का क्या फ़ायदा” |

रीना के चेहरे से लग रहा था कि वह सबसे सहमत नहीं है | मोहित की बात सुन वह अपने आप को रोक न सकी और बोली “वहाँ चाय पीने और दादा-दादी से मिलने में हर्ज ही क्या है | तुम लोग भी बिना बात के छोटी सी बात का बतंगड़ बनाये जा रहे हो”|

कुणाल दांत भींचते हुए बोला “रीना जी आप गौरव की हाँ में हाँ नहीं मिलायेंगी तो और कौन मिलाएगा” |

मोहित पीछे से बोला “भाई अगर इसके अप्पा ने मुरथल जाने के लिए इतनी छोटी-सी शर्त रखी है तो मानने में हर्ज ही क्या है | लेकिन भाई दस-पन्द्रह मिन्ट से ज्यादा वहाँ नहीं रुकेंगे | अगर हमारी ये शर्त तुझे मंजूर है तो बोल क्या बोलता है” | यह बात सुन सब एक स्वर में बोले “हाँ ये बात ठीक है” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “पंचो की राय सिर माथे पर” | यह सुन सब हँस देते हैं |

*

गाड़ी दिल्ली के कोलाहल से जैसे ही बाहर निकलती है तो चारों तरफ़ फैली हरियाली देख कर सब मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं | गाड़ी सड़क पर सरपट भागे जा रही थी |पीछे बैठे मोहित और सिम्मी कुछ दबी आवाज में बात कर रहे थे | वैशाली और कुणाल सड़क पर पीछे भागते पेड़ों को देख रहे थे और रीना कभी सामने सड़क पर तो कभी गौरव को देख रही थी | और गौरव सबसे अलग शांत भाव से गाड़ी चलाने में मस्त था | रीना को छोड़ सब मस्त बैठे थे | रीना के मन में यह उथलपुथल चल रही थी कि आखिर वह बुजुर्ग दम्पत्ति कौन हैं | जब रीना से नहीं रहा गया तो वह बोल ही पड़ी “गौरव तुमने बताया नहीं कि वह तुम्हारे दादा-दादी कैसे बने” ?

गौरव जैसे इस प्रश्न का ही इन्तजार कर रहा था | वह मुस्कुराते हुए बोला “एक बार अप्पा ने शिमला जाते हुए अचानक गाड़ी वहाँ रोकी और बोले ‘आओ हम लोग यहाँ चाय पीते हैं’ | यह सुन कर अम्मी गुस्से से बोलीं ‘आज क्या हो गया है तुम्हें | हम यहाँ चाय पियेंगे | इस जगह पर’, कह कर अम्मी ने छोटी सी चाय की दूकान में बैठे बुजुर्ग दम्पत्ति की ओर इशारा किया | अप्पा अम्मी को देख मुस्कुराते हुए बोले ‘जी हम आज यहाँ ही चाय पियेंगे’| अप्पा की बात सुन कोई कुछ नहीं बोला | सब चुपचाप गाड़ी से उतर कर दूकान की ओर चल दिये” |

वैशाली हैरान होते हुए बोली “कोई कुछ नहीं बोला | तुम्हारी अम्मी भी नहीं”?

“नहीं कोई कुछ भी नहीं बोला | वैसे भी मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ कि अम्मी चाहे कितना भी गुस्सा हों लेकिन अगर अप्पा ने एक बार बोल दिया कि हाँ यह काम ही करना है तो अम्मी बिना कुछ सोचे-समझे अप्पा की बात मान जाती हैं” |

“तुम्हारी अम्मी का दिल नहीं भी है तो भी वो मान जाती हैं”, सिम्मी हैरान होते हुए बोली |

गौरव सिम्मी के प्रश्न का उत्तर देता इस से पहले ही कुणाल बोला “क्या कभी तुम्हारी अम्मी ने न नहीं बोली और बोली तो तुम्हारे अप्पा ने क्या किया” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम लोग सोच रहे हो | अम्मी अप्पा की बात की गहराई को तोल कर ही ‘हाँ’ या ‘न’ करती हैं | और सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी उन्होंने ‘न’ बोली है तो अप्पा ने उनके फ़ैसले का सम्मान किया है | यही कारण है कि उनका कभी ‘हाँ’ या ‘न’ को लेकर झगड़ा नहीं हुआ है” |

वैशाली हँसते हुए बोली “कमाल है | हमारे परिवार में अगर ऐसी कोई बात हो जाए तो समझो उस ट्रिप की ऐसी की तैसी होना निश्चित है | यहाँ तक की घर आने के बाद भी कई दिन तक लड़ाई चलती रहेगी कि तुमने मुझे बोला कैसे | तुम्हारा तो अपना कोई स्टैंडर्ड है नहीं | कहीं भी किसी के भी हाथ का कुछ भी खा-पी लेते हो | कभी तो मेरे स्टैंडर्ड का ख्याल रखा करो | बस माँ ने ये बोला नहीं कि समझिए थर्ड वर्ल्ड वार शुरू | कमाल है, तुम्हारा परिवार इस धरती का नहीं लगता है | और किस मिटटी के बने हैं तुम्हारे माँ-बाप......” ?

रीना बीच में ही बोल पड़ती है “अब चुप भी कर जा | गौरव को बोलने तो दे फिर अपने कमेंट्स दे देना” |

वैशाली रीना को देखते हुए मुस्कुरा कर बोली “मैंने बोला तो ठीक ही था पर धुँआ-सा क्यों उठ रहा है” |

कुणाल मुस्कुराते हुए बोला “हाँ यार बदबू तो मुझे भी आ रही है” |

वैशाली कुणाल को चुप करने का इशारा करते हुए बोली “जी गौरव जी आप बोलें”|

गौरव मुस्कुरा कर रीना की ओर देखते हुए बोला “जहाँ तक वहाँ चाय पीने का सवाल था तो हमें भी आप लोगों की तरह ही अप्पा की बात बहुत अजीब लग रही थी | लेकिन अप्पा का वहाँ चाय पीने को कहने का राज तब खुला जब हमने वहाँ चाय पी....”|

“यार तुमने तो पकाना शुरू कर दिया | बात बता यार”, पीछे बैठी सिम्मी बोली |

“चुप कर नहीं तो फिर कहीं आग लग जाएगी | एक घंटा भी तो बिताना है”, कह कर मुस्कुराते हुए कुणाल और वैशाली ने एक दूसरे के हथेली पर हथेली दे मारी |

रीना बिना उनकी बात सुने बोली “क्या राज था” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “क्या फ़ायदा जब इन लोगों को इस में कोई इंटरेस्ट ही नहीं....”|

पीछे से मोहित जोर से बोला “इन दोनों को छोड़ यार, तू बता कि राज क्या था”|

मोहित की बात सुन कुणाल और वैशाली भी एक साथ बोले “बोल भाई, हम तो बस वैसे ही किसी को सुलगाने के चक्कर में बोल रहे थे” |

गौरव रीना को देखते हुए बोला “जब हम अंदर पहुँचे तो उस दम्पत्ति ने हमारा ऐसे स्वागत किया जैसे वह हमें सदियों से जानते हैं | कुछ ही देर की बातचीत में हमें वह किसी रिश्तेदार से कम न लग रहे थे | बातचीत के दौरान ही हमें पता लगा कि अप्पा एक-दो बार पहले भी यहाँ आ चुके हैं | उनसे बातचीत कर अम्मी भी काफी प्रभावित हुईं और जिस तरीके से वह बार-बार अप्पा को देख रही थीं | ऐसा लगता था जैसे वह अपने व्यवहार से शर्मिंदा हैं कि क्यों उन्होंने अप्पा की बात एक ही बार में नहीं मानी | और इससे भी बड़ी बात ...”|

कुणाल बीच में ही बात काटते हुए बोला “अब इससे बड़ी क्या बात थी” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “भाई बोलने देगा तभी तो..... खैर वह गरीब और बदहाल दिखने वाले बुजुर्ग दम्पत्ति असल में भारत सरकार से रिटायर्ड ऑफिसर थे और बहुत अच्छी पेंशन पाते थे” | यह सुन सब एक साथ बोल उठे “क्या”?

“जी, यही तो ख़ास बात थी | उन्होंने अपनी जो कहानी सुनाई उसे सुन हम सब की आँखें नम हो आईं | वह दोनों अच्छे पढ़े-लिखे थे और दोनों ही भारत सरकार में अच्छे पदों पर कार्य कर चुके थे | उनकी जिन्दगी में अगर कोई कमी थी तो वह थी सन्तान सुख | शादी के लगभग पन्द्रह साल बाद जब उन्हें सन्तान सुख की प्राप्ति हुई तो उनके पैर जमीन पर ही न पड़ते थे | बेटा भी ऐसा कि लाखों में एक | पढ़ने-लिखने, बोलने-चालने और सुन्दरता सब में अव्वल | उन दोनों ने अपने जीवन में हर किसी की सहायता की थी | हर किसी की मुसीबत में वह सबसे पहले खड़े हुए थे | वह दोनों हर किसी को शिक्षा दिया करते थे कि देखो हमने मानवता की सेवा की तो ईश्वर ने भी हमें उस समय सन्तान सुख दिया जब हम उम्मीद खो चुके थे | उनके सुखी जीवन ने अभी रफ़्तार ही पकड़ी थी कि एक दिन उनके बेटे ने कहा कि वह फ़ौज में जाना चाहता है | यह सुन दोनों पति-पत्नी के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई | क्योंकि वह हर किसी को मानवता की शिक्षा दिया करते थे इसीलिए वह चाह कर भी अपने इकलौते बेटे को देश की सेवा करने से रोक न सके | और किस्मत का खेल देखो कि अभी उनका बेटा ट्रेनिंग ले फ़ौज में भर्ती ही हुआ था कि कारगिल युद्ध शुरू हो गया | जब उन्होंने सुना कि उनके बेटे को देश की रक्षा व सुरक्षा के लिए बुलावा आया है तो उन्होंने उसे हँसते-हँसते विदा किया | उन्हें क्या मालूम था कि वह विदाई उनके बेटे की अंतिम विदाई साबित होगी | उनका इकलौता बेटा कारगिल युद्ध में शहीद हो गया |

वह दोनों कई महीनों तक इस सदमें से बाहर न आ सके | लेकिन हिम्मती दम्पत्ति ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि अगर आप में देश सेवा या मानवता की सेवा की सोच है तो आपको कोई भी दुःख कोई भी घटना रोक नहीं सकती | वह दोनों फिर से नौकरी करने लगे और पहले की तरह लोगों की भलाई के काम में जुट गए | उनके बेटे का सपना था कि वह फ़ौज से रिटायर हो कर दिल्ली चंडीगढ़ राजमार्ग पर एक रेस्टोरेंट बनाएगा | वह उस रेस्टोरेंट में गरीब और बेसहारा लोगों और उनके बच्चों को शिक्षा और रोजगार देगा | और जब वह दम्पत्ति रिटायर हुए तो अपने बेटे का सपना पूरा करने के लिए दिल्ली से अपना सब-कुछ बेच कर यहाँ छोटी-सी चाय की दूकान खोल कर फिर से मानवता की सेवा में लग गए | फ्री में चाय और समोसे खिला कर वह दोनों हर आने-जाने वाले में अपना बेटा ढूंढते हैं........” |

सब एक साथ बोले “ओह ! ये तो बहुत बुरा हुआ उनके साथ” | कोई और कुछ बोलता इस से पहले ही रीना बोल उठी “लेकिन वह फ्री में ये सब क्यों करते हैं” ?

गौरव गाड़ी चलाते हुए ही बोला “उन्हें करने कौन देता था | पहले उन्होंने यहाँ एक बोर्ड लगा रखा था कि यहाँ आइये और मुफ्त चाय-समोसे खाइए | इस कारण उनकी अपने आस-पास के ढाबे वालों से काफी तना-तनी रहा करती थी | मेरे अप्पा के कहने पर ही उन्होंने यहाँ बोर्ड लगवाया ‘भोजन हमारी पसंद का और दाम आपकी पसंद का’ | उस दिन के बाद से काफ़ी लोग यहाँ आते हैं लेकिन जो भी एक बार आता है वह हर बार आता है और हर अपने को बताता है | वह किसी से कुछ नहीं माँगते, जो भी जितने भी दे जाता है ले लेते हैं | बाकी तुम लोगों को वहाँ जा कर ही समझ आएगा”, कह कर गौरव चुप कर जाता है |

गौरव की बात सुन सब अपनी-अपनी सोच में डूब जाते हैं | गौरव दादा-दादी की यादों में खो कर मस्ती से गाड़ी चलाने लगता है | कुछ देर चुप बैठने के बाद कुणाल और वैशाली धीमी आवाज में बात करने लगते हैं | मोहित और सिम्मी सबसे पीछे बैठे गौरव की बात सुन शांत भाव से अपनी-अपनी सोच में डूबे अभी भी खिड़की से बाहर देख रहे थे | रीना आँख बंद कर अपनी सीट पर पसर जाती है |

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