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वह चेहरा - 2

वह चेहरा

(2)

उन दिनों वह दिल्ली में विदेश मंत्रालय में अनुवादक थे. अपने को पी-एच.डी. के लिए पंजीकृत करवाने में दो बार असफल हो चुके थे. यह उन दिनों की बात है जब दूसरी बार विश्वविद्यालय ने उनके शोध विषय को खारिज किया था. वह परेशान थे और यह बात मानसी को बताना चाहते थे. बताना इसलिए चाहते थे क्योंकि पिछली मुलाकात में मानसी ने पहले विषय के खारिज होने के कारणों पर गहरी रुचि प्रदर्शित की थी और उसके हर प्रश्न के उत्तर में उन्होंने एक ही बात कही थी कि विश्वविद्यालय ने विषय के खारिज होने का कोई कारण उन्हें नहीं बताया....केवल सूचना भेजी थी. मानसी उद्विग्न थी और तब उन्होंने अनुभव किया था उनके शोध से शायद उसकी भविष्य की आकांक्षाएं जुड़ी हुई थीं. लेकिन 'संभव है यह मेरी अपनी सोच हो.... वह ऐसा न सोचती हो.' उन्होंने सोचा था.' यदि शोध नहीं कर सके और प्राध्यापक नहीं बन पाए तो क्या. जो नौकरी वह कर रहे हैं.... उसका भविष्य प्राध्यापक जितना आकर्षक न सही लेकिन बुरा भी नहीं. डिप्टी डायरेक्टर तो वह बन ही जाएगें.'

'लेकिन मानसी को बताना आवयक है. पिछले एक वर्ष से कभी एक बहाने तो कभी दूसरे वह शादी टालती जा रही थी. वह दूरदर्शन में प्रोग्राम एक्ज्यूक्यूटिव थी और प्रारंभ में उसका बहाना था कि वह दिल्ली में थे और दिल्ली में उसका स्थानांतरण कठिन था क्योंकि वहां पहले से ही अतिरिक्त प्रोग्राम एक्ज्यूक्यूटिव्स बैठे हुए थे,जबकि उनका लखनऊ स्थानांतरण संभव नहीं था. मानसी के स्थानांतरण के विषय में वह कमलेश्वर जी से मिले थे. कमलेश्वर जी उन्हीं दिनों दूरदर्शन में अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर नियुक्त हुए थे. मुस्कराते हुए कमलेश्वर जी ने कहा था,''तपिश जी..... यह बड़ा काम नहीं है. शादी करो....स्थानांतरण की जिम्मेदारी मेरी.'' कमलेश्वर जी ने उनकी आंखों में देखा,फिर मुस्कराये....एक मीठी मुस्कान और बोले थे,''भाई,पता कर लो....आपकी मंगेतर की कोई दूसरी समस्या तो नहीं....''

''ऐसा नहीं लगता सर....उसे दोनों के अलग-अलग शहरों मे रहने का भय ही सता रहा लगता है.''

''उन्हें बता दो कि मैंने आश्वस्त किया है....''

कमलेश्वर जी की बात बताने के बाद मानसी ने खत में लिखा,''तपिश,आपने पहले यह क्यों नहीं बताया था... अब एक साल के लिए मैं बंध गई हूं. मैंने यहां विश्वविद्यालय में मार्निंग शिफ्ट में उर्दू सार्टीफिकेट कोर्स में प्रवेश ले लिया है. एक जमाने से मैं उर्दू सीखना चाहती रही हूं.... एक वर्ष की ही बात है.....कमलेश्वर जी तो अभी आए ही हैं.... अभी रहेगें ही..... भले ही आई.ए.एस. लॉबी उनके खिलाफ है.......तो क्या आप एक वर्ष रुक नहीं सकते ?''

''मैं तो रुका हुआ हूं ही..... लेकिन मेरे घरवाले....उनका धैर्य चुका जा रहा है .'' उन्होंने मानसी को लिखा था .

''मैंने अपने डैडी से बात की है. वह आपके डैडी को मेरी समस्या से अवगत करवा देंगे.'' मानसी ने इस पत्र में आगे लिखा,''समय निकालकर आकर मिल लें......पत्रों में बातें हो नहीं पातीं.''

''कोशिश करूंगा.'' उन्होंने उसे लिख तो दिया था लेकिन लखनऊ जाने का प्रयास नहीं किया और न ही मानसी का उसके बाद कोई पत्र आया. शोध के अपने नये विषय की तैयारी और रूपरेखा प्रस्तुत करने की चिन्ता में वह इतना डूबे कि वह उसे पुन: पत्र लिख नहीं पाए. इस बार विषय प्रस्तुत करते ही निर्णायक समिति की बैठक हुई और उनका विषय पुन: खारिज कर दिया गया. विश्वविद्यालय का पत्र थामें वह कितनी ही देर तक यह सोचते रहे थे कि उन्हें मानसी को यह सूचना देना ही चाहिए. और उन्होंने उसे अंतर्देशीय पत्र लिख दिया था.

पन्द्रह दिन के अंदर ही उत्तर आया, ''आपका मिलना आवश्यक है . जितनी जल्दी संभव हो....''

उन्होंने उसके ऑफिस के पते पर पत्र लिख दिया कि वह अमुक तिथि को अमुक ट्रेन से लखनऊ पहुंचेंगे....सुबह दस बजे उसके कार्यालय में मिलेंगे .''

''कार्यालय नहीं.....इंडियन कॉफी हाउस....ग्यारह बजे.... मेरे कार्यालय के निकट ही है....सुबह ग्यारह बजे ....मिस नहीं करेंगे .'' मानसी ने तुरंत लिख भेजा था.

****

निश्चित तिथि को ठीक ग्यारह बजे सुबह वह कॉफी हाउस में थे. पांच मिनट ही हुए थे उन्हें वहां पहुंचे कि उन्होंने एक युवक के साथ सड़क पार करते हुए मानसी को देखा. टेबल पर बैठने के लिए उन्होंने कुर्सी को हाथ लगाया ही था कि रुक गए और बाहर निकल आए. उनकी दृष्टि युवक पर टिकी हुई थी,मानसी जिससे हंसकर कुछ कह रही थी. युवक लंबा....पांच फीट आठ इंच के लगभग.....स्लिम...गोरा....एक वाक्य में... सुन्दर था .

'ऑफिस का कोई कलीग होगा.' उन्होंने सोचा,'कहीं जा रहा होगा.'

लेकिन युवक कहीं नहीं गया. मानसी के साथ रहा. मानसी ने दूर से ही उन्हें देख लिया था और उनकी ओर हाथ का इशारा कर कुछ कहा. उन्होंने मानसी के संकेत के बाद युवक को हंसते देखा था .

''सॉरी....मैं दस मिनट लेट हूं.'' उनके निकट पहुंच मानसी बोली .

वह चुप रहे. उनकी नजरें युवक पर गड़ी थीं.

''ओह ! '' मानसी ने उनके भाव पढ़ लिए, ''यह हैं मनीष तिवारी....आकाशवाणी में हैं....प्रोग्रैम....''

''एक्ज्यूक्यूटिव....'' मानसी से शेष शब्द मनीष तिवारी ने झटक लिया और उनकी ओर हाथ बढ़ा बोला, ''आपसे मिलकर प्रसन्नता हुई .''

''थैंक्स.'' मंद स्वर में वह बोले थे .

''मैं चलता हूं मानसी.....आफ्टरनून आकर केस डिस्कस कर लूंगा....नो हरी.....''

''अरे यार.....ऐसी भी क्या जल्दी है ! तपिश जी क्या सोचेगें ? एक कप कॉफी पीकर चले जाना.'' मनीष की ओर देख मुस्कराती हुई मानसी बोली, ''अरे हम लोग यहीं खड़े रहेगें या बैठेगें भी.....’'

''हां.....हां....क्यों नहीं......'' और वह अंदर की ओर मुड़ गए तो मानसी और मनीष भी उनके पीछे हो लिए थे. जिस मेज पर वह बैठने जा रहे थे.... वह अभी भी खाली थी.

बैठने के बाद उनके बीच देर तक चुप्पी पसरी रही . चुप्पी को ताड़ती हुई मानसी ने पूछा,''कॉफी लेंगें ?''

''कॉफी हाउस में बैठे हैं तो वह तो लेना ही है........इस मुलाकात को यादगार भी तो बनाना है.'' उन्हें अपनी बात अटपटी लगी,लेकिन बात जुबान से रपट चुकी थी. संभालने का प्रयत्न करते हुए उन्होंने तत्काल जोड़ा,'' मनीष जी का साथ होने से इसे यादगार मुलाकात ही कहूंगा....''

मनीष के चेहरे पर मुस्कान तिर गयी .

''हां,यह है. मनीष बहुत व्यस्त रहते हैं....कभी पकड़ में नहीं आते. आकाशवाणी की नौकरी......नाटक लिखते हैं....इनकी कई स्क्रिप्ट पर दूरदर्शन और आकाशवाणी ने नाटक तैयार किए हैं .''

''हुंह .'' उन्होंने मनीष की ओर पुन: हाथ बढ़ाया.''मेरा सौभाग्य. आप जैसे कलाकार से मुलाकात का श्रेय मानसी जी को.... इनका भी आभार .''

''मानसी कुछ अधिक ही प्रशंसा कर रही हैं सर ! बस यूं ही कुछ उल्टा-सीधा लिख लेता हूं .''

''तपिश जी......ये संकोच करते हैं.....''

''हर बड़ा कलाकार अपने बारे में बताने या बताए जाने पर संकोच प्रकट करता है. बड़प्पन की यही निशानी है.'' वह अब पूरी तरह खुल चुके थे.

''यू आर राइट तपिश जी.... मनीष जीनियस हैं,लेकिन मैं जब कहती हूं तो यह चिड़चिड़ा जाते हैं.''

उन्होंने देखा अपने को 'जीनियस' कहे जाने पर मनीष का चेहरा खिल उठा था. वह चुप रहे. कुछ देर बाद मनीष बोला,''मानसी की ज़र्रानवाजी सर.....लेकिन आप मुझे लेकर कोई गलतफहमी नहीं पालेंगे..... मुझ जैसे कलाकार-लेखक गली-कूंचों में एक खोजेंगे -- अनेक मिल जाएगें ....''

''आपने देखा इनकी विनम्रता.'' तपिश की ओर देखते हुई मानसी बोली.

वह तब भी चुप रहे.

''यार मनीष,कुछ और तारीफ तभी करूंगी .... जब कुछ पी लूंगी.'' मानसी बोली.

''बेयरे को आवाज दो.....दो चक्कर काट गया और हम लोग बातों में लगे रहे .''

''जाकर आर्डर कर आता हूं .'' मनीष जाने के लिए उठा,दो कदम बेयरे की ओर बढ़ा,फिर रुककर उनसे पूछा ,''तपिश जी कुछ और लेगें.''

''नो थैंक्स.''

****

कॉफी पीकर मनीष तिवारी चला गया.

''तपिश जी,आपको कहीं कोई दूसरा काम है ?'' मानसी ने पूछा .

वह अचकचा गए. सोचने लगे ,''इसने मुझे बुलाया और अब पूछ रही है कि.....''

कोई उत्तर दिए बिना वह मानसी की ओर देखने लगे थे.

''सॉरी ,मैंने यूं ही पूछा. कभी-कभी ऐसा होता है... लेकिन....'' आगे कुछ न बोल वह कभी बेयरे की ओर देखती और कभी गेट की ओर.

तपिश को लगा कि शायद उसने किसी और को भी बुलाया हुआ है. कुछ देर की चुप्पी के बाद उन्होंने पूछ लिया ,''किसी को आना है ?''

''नहीं....कौन आएगा? '' मानसी फिर चुप थी और लगातार गेट की ओर देखती जा रही थी. तपिश भी उधर ही देखने लगे. तभी बेयरा आ गया.

मानसी का ध्यान गेट की ओर होने का लाभ उठा तपिश ने कॉफी के पैसे बेयरे को दे दिए .

''आपने क्यों दिए ?''

''मुझे नहीं देना चाहिए था?''

''मेरा यह मतलब नहीं....''

''अगर आपको किसी की प्रतीक्षा नहीं तो हम उठें....डेढ़ घण्टा हो चुका है.... ''

''हां.....लेकिन यहां तो लोग सुबह आकर शाम तक बैठे रहते हैं....''

''हां.....आं....लेकिन हमें अभी बूढ़ा होने में बहुत वक्त है .''

मानसी मुस्करा दी. उन्होंने ध्यान दिया,उसकी मुस्कराहट में उत्साह -प्रफुल्लता नहीं थी.

उठ खड़े होते हुए उन्होंने पूछा,''आपके पास अभी और कितना वक्त है....?''

''लंच तक आपके साथ रह सकती हूं... ''

बाहर फुटपाथ पर पहुंच वह बोले ,''फिर हम क्यों न हजरतगंज में चहल-कदमी करते हुए बातें करें....''

''जी...श्योर...''

*****

दो बजे तक मानसी उनके साथ हजरतगंज में एक छोर से दूसरे छोर तक उलट-
फेर कर टहलती रही. उन्हें आश्चर्य था कि जिस उद्देश्य से उसने उन्हें तुरंत आ जाने का आग्रह किया था उस पर चर्चा करने से वह बचती रही. उन्होंने जब अपने शोध विषय के निरस्त होने की चर्चा छेड़ी... उसने केवल ,''ऐसा होता है... वह कोई मुद्दा नहीं .''

''फिर मुद्दा क्या है ?''

''मुद्दा....... कुछ है ही नहीं .''

''फिर....?''

''आपको लिखा था कि मैंने उर्दू कोर्स ज्वायन किया है.... उसे पूरा कर लेना चाहती हूं .''

''यह कोई आई.ए.एस.,पी.सी.एस. जैसी तैयारी तो नहीं.'' वह बोले. उनका स्वर कुछ ऊंचा था .

''आप इतनी उतावली क्यों दिखा रहे हैं?'' मानसी के स्वर में चिड़चिड़ाहट थी .

वह हत्प्रभ थे. कारण वह पहले ही बता चुके थे. चुप रहे.

''मैं समझती हूं... रुकना हमारे हित में है. आपको शोध के लिए पंजीकृत होने में सुविधा रहेगी.... तब तक कुछ काम भी कर डालेगें... मैं भी उर्दू में कुछ कर लेना चाहती हूं....''

''हुंह....'' सामने से आ रहे व्यक्ति से उन्होंने अपने को बचाया.

''क्या आप नहीं चाहते कि आप जैसे प्रतिभाशाली युवक का स्थान किसी डिग्री कॉलेज या विश्वविद्यालय में है.... बुरा नहीं मानेगें.... आपने बताया था कि अच्छे अंको से आपने प्रथम श्रेणी पायी थी एम.ए. में .''

''जी.''

''फिर अनुवाद में प्रतिभा का क्षरण क्यों...?''

वह निरुत्तर रहे .

''अरे दो बज रहे हैं? ढाई बजे से मेरे एक कार्य का लाइव टेलीकॉस्ट है....मैं चलूं ?''

''श्योर .'' उदासीन स्वर में वह बोले थे .

मानसी ने बॉय किया और तेजी से दूरदर्शन केन्द्र की ओर लपक गयी. वह देर तक खड़े उसे जाता देखते रहे थे. मानसी तो चली गई थी लेकिन उनके अंदर एक उद्वेलन छोड़ गयी थी....

उन्होंने रिक्शा पकड़ा और होटल लौट गए थे .

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