The Author Abhinav Bajpai फॉलो Current Read उदना और उदनी - 2 By Abhinav Bajpai हिंदी बाल कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books शून्य से शून्य तक - भाग 38 38=== यह सब लिखते-लिखते आशी फूट-फूटकर रोने लगी थ... यादों की अशर्फियाँ - 18.4.मेहुल सर का मस्तीभरा लेक्चर 4.मेहुल सर का मस्तीभरा लेक्चरजिसका हमे और खास करके नए स्टूड... रेसिपी केले के मफिन ... बैरी पिया.... - 54 अब तक : वाणी जी " हर किसी की जिंदगी में कोई एक इंसान ऐसा आता... ऐश्वर्या और हिमानी की मित्रता की अनोखी मिसाल मुंबई के एक समृद्ध और प्रसिद्ध राजपूत खानदान की बेटी ऐश्वर्य... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Abhinav Bajpai द्वारा हिंदी बाल कथाएँ कुल प्रकरण : 2 शेयर करे उदना और उदनी - 2 (3) 1.9k 5.4k उदना ने जब बड़कू शेर की पूंछ काट दी तब से उदना और उदनी फिर से सुखपूर्वक रहने लगे थे। बड़कू शेर अपनी पूंछ कट जाने के बाद से लज्जा के कारण ज्यादा इधर उधर नहीं निकालता था, लेकिन बड़कू शेर अपनी पूंछ कटने का बदला लेने के अवसर की प्रतीक्षा कई दिनों से कर रहा था। एक दिन जब उदनी अपने घर के लिए लकड़ी और उपले बीनने के लिए जंगल जाती है तो वहां उसे बड़कू शेर देख लेता है, और दबे पांव उदनी के पास आकर उससे अपने अपमान का बदला चुकाने को कहता है, उदनी अचानक से बड़कू शेर को देख कर डर जाती है, लेकिन फिर स्वयं को संभालती है, और बड़कू शेर से बोलती है कि ' तुम्हारी पूंछ तो उदना ने काटी थी इसमें मेरी क्या गलती, मै तो प्रतिदिन तुम्हारे लिए खिचड़ी लाती थी।" तब बड़कू शेर बोलता है कि ' उदना को मेरे बारे में तुमने क्यों बताया?' यह सुनकर उदनी बोलती है कि ' मैंने जानबूझकर उदना को तुम्हारे बारे में नहीं बताया वो तो उसने ही पूछा था कि - मै उसका खाना क्यों नहीं लाती तब मैंने सारी बात उसको बताई थी। यह सुनकर बड़कू शेर दहाड़ता है ( गुर्र र ...) और कहता है कि ' मुझे उदना के पास ले चलो वरना मै तुम्हे अभी मार डालूंगा।' उदनी जब यह सुनती है तो वह जोर - जोर से रोने का स्वांग करने लगती है और रोते हुए झूठ ही कहती है कि ' उदना तो मर गया परसो उसका श्राद्घ है, मरने से पहले उसने तुम्हारी पूंछ काट कर बहुत बड़ा पाप किया था। उसके पाप का प्रायश्चित तभी हो सकता है जब उदना के श्राद्घ में तुम भोजन ग्रहण करो ' यह सुनकर बड़कू शेर अतिप्रसन्न हो जाता है और अपनी प्रसन्नता छुपाते हुए उदनी से कहता है कि ' ठीक है - ठीक है मै श्राद्ध में भोजन अवश्य करूंगा आकर लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि भोजन का समय कब प्रारम्भ हुआ है।' यह सुनकर उदनी कहती है कि परसो तुम मेरे घर पर से जब धुआं उठता देखना तो समझ लेना कि भोजन प्रारम्भ हो गया है और हां अपने साथ अपने सभी मित्रो को भी लेते आना अब मै जा रही हूं ' यह कहकर उदनी वहां से चल देती है। घर को जाते समय रास्ते में उदनी सोचती है कि "आज तो बड़कू शेर से बच गए परन्तु परसो और अन्य दिनों में इसके चंगुल से कैसे बचा जाएगा।" वह सोचती है कि "जल्दी से घर चल कर आज हुई इस घटना की जानकारी उदना को देनी होगी। घर पहुंच कर उदनी सारे घटनाक्रम की जानकारी उदना को देती है। तब उदना और उदनी उसी रात में परसो के लिए एक योजना बनाते है। अगला दिन योजना की तैयारी करते हुए बीतता है, और वह दिन भी आ जाता हैं जब बड़कू शेर और उसके साथी उदनी के घर से धुआं उठता हुआ देखते है। और उसके घर आ धमकते है। उदना पहले है योजनानुसार एक मोटा मुंगरा लेकर अनाज रखने वाली डेहरी में छुप जाता है, बड़कू शेर उदनी से भोजन कराने के लिए जल्दी करने लगते है, तो उदनी उन्हें एक पंक्ति में बैठा कर सभी के एक एक रस्सी गले में डालकर उनको खूंटे से बांध देती है किन्तु बड़कू शेर को दो रस्सियों से बांधती है। जब बड़कू शेर और उसके मित्र इस बात का विरोध करते है तब उदनी बोलती है कि ' तुम सब भोजन करते समय आपस में झगड़ा ना करो इसलिए मैंने तुम सब को रस्सी से बांध दिया है ' तब बड़कू शेर बोलता है कि ' मुझे दो रस्सी से क्यों बांध दिया है।' इस पर उदनी बोलती है कि तुम इन सबको यहां लेकर आए हो इसलिए तुम इन सबके नेता हो इसलिए तुमको मैंने दो रस्सियों से बांधा है ' उदनी के इस कथन से सभी सहमत हो जाते है। और वे सभी भोजन की प्रतीक्षा करने लगते है। जब बहुत समय के बाद भी भोजन नहीं मिला तो बड़कू शेर और उसके मित्र भूख से व्याकुल होकर भोजन के लिए चिल्लाने लगे तब सभी को शांत करते हुए उदनी बोली ' तनिक और रुक जाओ पहले मै उदना को याद कर लेती हूं फिर तुम सभी को भोजन दूंगी ' ऐसा कहकर उदनी रोते हुए गाने लगी कि "उदना - उदना निकल आओ , धोबिया का मुंगरा लेते आओ सारे शेयरवन का एक एक मारो बड़कए का दुई चार लगाओ" असल में यह गीत उदना के लिए एक संकेत था, जैसे ही उदना यह सुनता है वह डेहरी से निकल कर सभी को मुंगरे से पीटना शुरू कर देता है। जो सभी एक रस्सी से बंधे थे वो जल्दी - जल्दी रस्सी काटकर भाग जाते है। लेकिन बड़कू शेर जिधर की रस्सी काटता उदना उधर ही उसे पीटने लगता और अंत में उदना तब तक उसे पीटता है जब तक उसके प्राण पखेरू उड़ नहीं गए इस प्रकार बड़कू शेर के मर जाने के बाद उदना उसे घसीट कर जंगल में डाल आता है। और उदना और उदनी सदैव के लिए चिंतामुक्त हो प्रसन्नतपूर्वक रहने लगते है (यह इस कहानी का अंतिम भाग था ,आशा करता हूं कि आप को पसंद आएगा। यह एक लोककथा है और मेरे द्वारा रचित नहीं है, इसे बचपन में मुझे मेरे बाबा सुनाया करते थे। यद्यपि इसे मैंने अत्यधिक सावधानीपूर्वक लिखा है जिससे कहानी कि रोचकता और सरलता बनी रहे, किन्तु फिर भी कहानी का अंत लिखते - लिखते मै अपनी बाल स्मृतियों में खो गया था, जिसके कारण कहानी में कुछ त्रुटियां हो सकती है। आप सभी से विनम्र निवेदन है कि आप इसकी समीक्षा ईमानदारी के साथ लिखिए, आप के सुझाव और शिकायतों का स्वागत है। धन्यवाद) ‹ पिछला प्रकरणउदना और उदनी - 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