मेरे लफ्ज़ मेरी कहानी - 1 Monika kakodia द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मेरे लफ्ज़ मेरी कहानी - 1

1. लिखती हूँ ज़िन्दगी के सच सारे
उठा कर कलम
लिखती हूँ ज़िन्दगी के सच सारे
अफ़सानों से कोई सरोकार नहीं
फलसफों से नही कोई लेना देना
कलम में दर्द की स्याही भरी
जज़्बातों ने लफ़्ज़ों का काबा पहना
उकेरे है फिर कोरे पन्नों पर
इस तरह नज़्म लिखे गए सारे
लिखती हूँ ज़िन्दगी के सच सारे

गरीब की भूख लिखती हूँ
किसान की प्यास लिखती हूँ
मन्दिर की आरती
मस्ज़िद की अज़ान लिखती हूँ
लिख देती हूँ, महसूस होते हैं
जो भी ग़म सारे
लिखती हूँ ज़िन्दगी के सच सारे

बचपन की शरारत,किस्से जवानी के
बुजुर्गो के तजुर्बे लिखती हूँ
लैला मजनूं, हीर राँझा के
इश्क़ के चर्चे लिखती हूँ
लिखती हूँ जब तन्हां होती हूँ
और कभी तो खुशियां भी लिख लेती हूँ
वक़्त जो भी दिखता है
हर्फ़ दर हर्फ़ पिरो लेती हूँ
वो गिन गिन कर रंग सारे
लिखती हूँ ज़िन्दगी के सच सारे









2. शिकारी जीस्त

शिकारी जीस्त से
कौन बच पाया
या हमें बचना नहीं आया

यूँही गिर पड़ते हैं हर कदम
एक उम्र गुज़री
और हमें चलना नहीं आया

लोग कहते हैं जमाना बदल गया
गुज़रे इश्क़ पर अटके रहें
अजी हमें बदलना नहीं आया

गुज़र गए जमाने वफ़ा के कसमों के
ठहरे रहे यहीं हम तो
"जाना" हमें गुज़रना नहीं आया




3. सफ़ीना

हवा के साथ
बहना आ गया है
मुझे अब जीना आ गया है...

उडेल दो मुझपर
जितना भी दिल में भरा है
मुझे अब ज़हर पीना आ गया है...

पीठ पीछे नहीं
तुम दिल पर वार करना
मुझे अब ज़ख्म सीना आ गया है...

तूफानों कहो
क्या इरादें हैं अब
समंदर में मेरा सफ़ीना आ गया है...





4. यूँ देखते हो तुम

लगा कर लाल बिंदियाँ को
मैं तेरे सामने आयी
तो जैसे पलकें
तेरी
जपकना भूल जाती हैं
तेरा एक टक यूँ
देखना मुझको
और फिर देखते रहना
मुझे मग़रूर करता है
की इस जहाँ में तेरे लिए
एक खास मैं ही हूँ
तेरी उलझी ज़िंदगानी की
आस मैं ही हूँ
तेरा यूँ देखना मुझको
मेरी जान लेता है
अजी तुम देखते हो यूँ की
जैसे तेरी हर परेशानी का
एक हल मैं ही हूँ
तेरा आज मैं
रोशन
कल भी मैं ही हूँ
ये फ़िक्र तक नहीं की
देखते हुए जो कोई देख ले तुमको
और जानता हो हुनर
वो आँखे पढ़ने का
ना सारे राज खुल जाएं
ना हम बदनाम बन जाएं
तेरा यूँ देखना मुझको
कहीं मसला ना बन जाये
यूँ देखते हो तुम.....!










5. तू कौन है....
तू कौन है
क्या नाम तेरा
तुझे क्या चाहिए
और किस से भला
क्यों वीरानों में फिरता है
क्यों सुनसानो को चुनता है
इतना कुछ है पास तेरे
इतना सब है तेरा
किस बात की है फिर
खोज तुझे
किस चीज को तलाशता है
हैं हाथ तो तेरे भरे हुए
फिर
दिल क्यों खाली लगता है
तू कौन है
क्या नाम तेरा
तू उस बस्ती का रहने वाला
जहाँ हर पहर रोशन दिए हैं
फिर बोल हुआ क्या
जो आँखे तेरी रात सी काली
क्यों किसी ठंडी रात के जैसा
खुदमे सिमटा बैठा है
तू कौन है
क्या नाम तेरा.......



















6. मुझे क्या समझता है....

मैं कहती हूँ कुछ
और ये कुछ समझता है
जमाना मुझे जाने क्या समझता है

खुब पहचानती हूँ
दो मुँह वाले इन लोगों को
ख़ुदको दोस्त कहके मुझे नादाँ समझता है

मुझको मिटाता है
अपना कद बढ़ाने को
मेरा साथी ख़ुद को बड़ा आला समझता है










7. एक शख़्स मेरे दिल का हिस्सा....

इक शख़्स
मेरे दिल का हिस्सा
शायद पूरा या आधा पौना
निचोड़ डालो रुह को
इश्क़ दिखा महज़ रिस्ता
लहू लहू कतरा कतरा
नाम उसी का बाबस्ता
एक शख़्स
लगा टकटकी चाँद पर
तारे गिनने का काम रहा
हो दूर तलक खाली सूना
रास्ता आशिक़ का आम रहा
एक शख़्स
बोझिल सांझ सवेरे में
और फिर चाँद उगे
मेरे दिल की खिड़की से
देर तलक झांक रहा
दे कर बारिश के तोहफ़े
हाल चाल अब पूछ रहा
पूछ रहा गुज़रा क़िस्सा
वो शख़्स
मेरे दिल का हिस्सा....




















8. सुनो जाना

सुनो जाना
ज़रा रुको तो
की आज मौसम बदल रहा है
इस सर्द हवाओं में
मुझे तुम्हारी जरूरत है
ये रास्ते जो बहुत दिनों से
तुम्हारा हाथ थामे हुए
तुम्हारे क़दमो से आशिना थे
ये रास्ते भी आज
थके हुए हैं
जिस मोड़ से
तुम मूड गए थे
सुनो जाना....!
ज़रा सा रुक कर
एक बार पलट कर देखना
किसी की धड़कनों का शोर सुनना
किसी की आँखों में इंतेज़ार तकना
सुनो जाना...!
सुनो तुम लौट के आना
की ये सफर
तन्हा नही कटता
मेरी यादों को संग लेकर
भले ही लौट जाना तुम
फिर कभी दिल अगर चाहे
और बस यादें काफ़ी न हों
तो यूँ करना
मुझे आवाज़ तुम देना
तुम्हारा हाथ थाम लूँ अगर
तो मुझे डर नहीं लगता
राहें जैसी भी हो
मंज़िल जो भी चाहे
बस साथ चलना तुम
सुनो जाना.....!








9. ख़ामोशी
मेरी हर ख़ामोशी को
वो ख़ामोशी से सुनता है
जो तस्वीर उसको भाए
वो रंग वो उनमें भरता है
दबे पांव
चुप चाप
चला आता है
दिल की गलियों में ज़ानिब
और फिर देर तलक
आफ़त मचाता फिरता है
बहुत तीरगी
बुसउत छाया है
जीस्त में मेरे
हुनरमंद है वो
हाथ मे मशाल लिए चलता है
मेरे हर्फ़ दर हर्फ़
मेरी हर शय
एहसानमंद 'जाना'
जो तहरीर दिल पर छाए
उन अल्फ़ाज़ों को चुनता है
मैं पाश पाश
तार तार
बिखरी जब जब
वो ख़ुदा सा
मुझे अपनी अमान में रख लेता है


















10. तेरी बदमाशियां
तेरी बदमाशियों
तेरी शैतानियों
तेरी उन नटखट बातों
से परेशां होकर
जब भी मै रहूँ कुछ खफ़ा
तुम बस यूँ ही
प्यार से
मनाया करना
छिड़ जाऊँ जब
तिफ़्ल सी हरक़तों से तेरी
ज़रा सा और सताया करना
कहूँ जब दूर रहो
जाओ ना हटो भी
यूँ परेशान ना करो
जकड़ कर बाहों में फिर तुम
मुझको गुदगुदा देना
थक हार कर
कभी रो दूँ अगर
तो यूँ करना
रख कर लबों पर लब
मुझको हँसा देना
मैं इतरा के कह दूं जब
जाओ माफ़ किया 'जाना'
मेरे माथे को चूम कर
सीने से लगा लेना

















11. तुमसे कुछ सवाल पुछूँ

कभी कभी फ़ुर्सत के पलों में
तेरी यादों से बातें करते
सोचती हूँ
तुमसे कुछ सवाल पुछूँ
तुमसे तुम्हारा हाल पुछूँ
मैं थी तो चुटकी में निकल जाती थी जो
क्या अब भी वो रातें छोटी लगती हैं
या काटे नही कटती
तुम्हें याद है रात भर के जागे जब
सुबहों को सोते थे
फिर सुरज सर पर आने पर
कैसे सकपका के उठते थे
क्या सुबह अब भी
तेरे शहर की
वैसे ही देरी से होती है
तेरी इन सुबहों और रातों का
सारा हाल पुछूँ
सोचती हूँ तुमसे कुछ सवाल पुछूँ
बेवज़ह मेरी फ़िक्र करने की आदत
खाना खाया, कितना खाया
दवाई ली, तबीयत कैसी है
तुम ठीक तो हो ना
उफ्फ
इतने सारे सवालों की आदत
मेरा नाम लिख लिख कर क्या अब भी रोते हो
अब भी तकिये को बाहों में भरके सोते हो
उन आँसुओ, सुबकियों का हिसाब पुछूँ
सोचती हूँ तुमसे कुछ सवाल पुछूँ













12. ख़्वाब
कल रात
मेरे ख़्वाब में दबे पांव
वो चला आया
ना जानें कितने
सवालात लिए
अपने तन्हा दिल के
पिन्हा जज़्बात लिए
वो उलझा है
परेशां है
वो सारी उलझने
सारी परेशानियां लिए
ख़ामोश लब थे उसके
ना नम पलकें ही
झपकती थी
बस किसी आस से
मुझे देखता था
वो बिगड़े हालात लिए
यूँ लगता था
बहुत रातें गुज़री
और सोया नहीं था वो
वो किस तरह से
जिंदा है
ये बात तक कहता नहीं था वो
जाने किस कोने में
दफ़न वो सारी बात लिए
जानें कितने सवालात लिए
















13. नादाँ दिल

कौन जाने तेरी राहें किधर
मेरी किधर जाएं
ख़ुदा करे कि कोई मोड़ आये
और हम मिल जाएं
एक दौर गुज़रा
तन्हाईयाँ है
कबसे लबों पर दबी हुई
खामोशियाँ हैं
कभी तो यूँ हो कि महफिलें हो
दो चार तेरी मेरी भी
बात हो जाये
रौनकें कैसी
अदाएं कैसी
इन आँखों मे अब शोखियाँ कैसी
कभी यूँ हो
की तू छुए
और हम फिर से संवर जाएं
दूरियां ये
कभी तो ख़त्म हो
कोई तो हो बहना हो
तू कहीं आस पास
से गुज़रे
और
ये नादाँ दिल बहल जाए



















14. हाल-ए-दिल

ना पा सके उसको
ना भुला सके उसको
मजबूरियां अपनी भी
ना बता सके उसको

किस दौर से गुज़रे हैं
मीलों तन्हाई है
एक चुप सी ख़ामोशी
बस दूर तलक छाई है
उसी मोड़ पर ठहरे हैं
जहाँ से मुड़ गया था वो
हम अब भी पत्थर हैं
ना बता सके उसको

कैसा मुकद्दर है
कैसा नसीब अपना
इन हाथो की लकीरों में
जाने लिखा है क्या
प्यासी रही आंखें
प्यासी रही बाहें
भर कर बाहों में हाल-ए-दिल
ना बता सके उसको


15.तुम ही रहते हो.....
मेरे दिल में चार-सू
बस तुम ही रहते हो
मैं बेपरवाह बहुत
तुम ही ख़्याल रखते हो
मेरी साँसों में बसते हो
मेरी धड़कन में रहते हो
आँखों में काजल से
मेरी पलकों पे सजते हो
मैं रोती हूँ तो
मेरे अश्क़ों में बहते हो
मैं हँसती हूँ तो
मेरे लबों पर खिलते हो
मैं जगती हूँ तो
रहते हो ख़्यालों में मेरे
सोती हूँ तो मुझे
ख़्वाबों में मिलते हो
मेरी झुकी पलकों की
हया में,
शर्म में
और उठी पलकों की
अदा में रहते हो
महफ़िल में संग रहते हो
साये से
जब होती हूँ तन्हां
तो मेरे पहलू में रहते हो













16. चले जाओ....
तुम्हें गर जाना ही हैं
तो सुनो शौक से
चले जाओ
हाँ मगर
जाने से पहले
थोड़ा एहसान कर जाना
मुझे भी अपनी तरह
बेपरवाह
कर जाना
सीखा देना
मुझे भी
सलीक़ा भूल जाने का
तरीका दूर जाने का
बता देना
हुनर रूठ जाने का
सब्र दिल जलाने का
उसके बाद
सिखाना
किस तरह
अनदेखी करते हैं
मुँह फेर लेते हैं
ना मिलने के
किस तरह
बहाने करते हैं
सुनो तुम बेशक़
चले जाना
मगर बता देना
कहाँ से सीखा
फ़न बेवफ़ाई का
शौक दिल तोड़ देने का
और फिर बच निकलने का
बेहतर ही है शायद
तुम चले जाओ








17. अज़ब सी ज़िन्दगी....
एक अज़ब सी ज़िन्दगी बख्श दी तुमने
ना खुलके दर्द उठता है
ना मुझको चैन मिलता है

ये किस मोड़ पर आ गयी ज़िंदगी मेरी
ना अंख से अश्क़ गिरता है
ना आँशु रोके रुकता है

किसको बताएं हाले दिल कैसा है
ना लब से लफ्ज़ उभरता है
ना दर्द छपाए छिपता है

ये कैसा नसीब मेरा 'जाना'
ना वो मेरा ही बनता है
ना वो दामन छटकता है






18. तेरा हाथ थामे हुए...

ना कोई शर्त ही रखी
ना अंज़ाम ही सोचा
चलते रहे इश्क़ ए राहगुज़र पर
तेरा हाथ थामे हुए

कहीं फूल तो कहीं कांटे मिले
कहीं पतझड़ तो कहीं सावन मिले
हर डगर पर बेख़ौफ़ चलते रहे
तेरा हाथ थामे हुए

तू साथ है बस इतना ही काफी
बाकि इस जहाँ से ले लेंगे माफी
कल जो भी हो,बेफ़िक्र चलते रहे
तेरा हाथ थामे हुए






19 मेरी हर बात समझ ले...
ए ख़ुदा
वो मेरे ज़ज़्बात समझ ले
किस हालात में हूँ मैं
मेरे हालात समझ ले
मेरी बातों की खामोशी
और
ख़ामोशी के अल्फ़ाज़
खुश करने का तरीका
फिर
मेरी नाराज़गी
का आगाज़
समझ ले
बिन कहे
वो मेरी हर
बात समझ ले
क्यों हैं फ़ासले
किस वज़ह से दूरियाँ
क्यों आएं हैं फ़ासले
मेरी सारी
मजबूरियां
मेरे परेशान
सवालात
और सारे जवाब
समझ ले



20. रात ढलने दो ज़रा...
बात ये आज
तोड़ी सी तो
बढ़ने दो ज़रा
चांदनी रात खूबसूरत
ढलने दो ज़रा

किस तरह से
आता है ख़ुमार धीरे धीरे
किस तरह छाती है मदहोशी
नशा इश्क़ का
मुझपर भी
चढ़ने दो ज़रा
बात ये थोड़ी सी तो
बढ़ने दो ज़रा

कह देते हैं आज
जो भी कहना है
आज कुछ एक
हदों से भी
गुज़रना है
पर्दा हया का
हटने दो ज़रा
बात ये थोड़ी सी तो
बढ़ने दो ज़रा












21. मुझे आवाज़ दे देना...
कभी तन्हा रातें
तुमको सताएं तो
कभी उदासी से तेरा
दिल भर आये तो
कभी सारी परेशानियां मिलकर
तुमको
डराएं तो
तेरा मन हो कोई बात करने का
और
कोई सुनना ना चाहे तो
तेरे सब दोस्त हमदम
तुझसे रुठ जाएं तो
कभी आँखों मे आँसूं हों
मगर तुम रो ना पाओ तो...
अपनी आँखों को बंद करना
दिल पर हाथ रख लेना
तुम डरना नहीं ज़रा भी
मुझे आवाज़ दे देना
दबे से लफ़्ज़ों में
मेरा नाम ले लेना
मेरे काँधे पर सर रख कर
सुकूँ की नींद सो 'जाना'
और हां तुम जब भी चाहो
ज़रा भी अहं ना करना
मेरे पहलू में आ जाना


















22. आईना...
आईना
देखना छोड़ दिया मैंने
बस इसी डर से
कहीं सच दिखाई न दें जाएं
हम अपनी नज़रों से न गिर जाएं
कितना काला है झूठ का काजल
इन रुदाली आँखों मे
गहरी कितनी है
लबों पर लगी सुर्ख़
फ़रेब की लाली
लटों में उलझे हैं
फलसफ़ी किस्से कितने
पेशानी की ये बिंदिया
तेरे सीने में कील सी चुभोती हुई
ये चूड़ियो की खनक
पायल की छनक
मेरे गुनाहों को गिनाती हुई
ये रूप दिखावा,
हुस्न छलावा मेरा
डरती हूँ वो गुनाह दिखाई न दें जाएं
हम अपनी नज़रों से न गिर जाएं
कहीं सच दिखाई न दे जाएं....





















23.हौसले बढ़ते गए..

देखा तेरी ओर तो
हौसले बढ़ते गए

ठोकरें लगती गयी
और हम सम्भलते गए

घेर लेते जब भी काले अंधेरे मुझे
तेरे नूर से सारे तमर घटते गए

आज नंगे पाँव हम चल पड़े हैं राह पर
हौसले दिल में तो रास्ते बनते गए

बादल गमों के छाए थे ज़िंदगानी पर
इस आफ़ताब से सारे बादल छटते गए

चोटें लगतीं हैं, इसमे तो बड़ी बात नहीं
मरहमे इश्क़ से दर्द तमाम मिटते गए



24. मेरे पिया तू ही बता....
मेरे पिया तू ही बता
तुझे कहूँ अब मैं क्या....!!
तुझे मैं सच कहूँ
या कहूँ वहम
तुझे ख़ुदा कहूँ
या उसका करम
तू ही बता तू मेरा क्या
तू है बुरा या है भला
मेरे पिया तू ही बता
तुझे कहूँ अब मैं क्या....!!
तुझे अपना कहूँ, कोई सपना कहूँ
ग़ज़ल कहूँ, या कोई नगमा कहूँ
तुझे ख़्वाहिश कहूँ या दुआ कहूँ
तुझे ख़ुदा कहूँ या सज़दा कहूँ
तू ही बता तू मेरा क्या
तेरा है तू, या बस मेरा
मेरे पिया तू ही बता
तुझे कहूँ अब मैं क्या....!!
तुझे शब कहूँ या खून सहर
तुझे अमृत कहूँ, या कहूँ ज़हर
तुझे मंज़िल कहूँ या कहूँ हर डगर
तुझे सागर कहूँ, की कहूँ लहर
तू ही बता तू मेरा क्या
तू गम या तू है दवा
मेरे पिया तू ही बता
तुझे कहूँ अब मैं क्या....!!














25. उम्मीद है...

गहरा कोहरा चारों तरफ
पर उम्मीद है
दूर कहीं बर्फ़ पिघलती होगी

लबों पर चिपकी उदासियाँ कबसे
पर उम्मीद है
इक खुशी चुपके से हँसती होगी

रंग सारे फिज़ा से उड़ गए
पर उम्मीद है
ज़िन्दगी नए रंग भी भरती होगी

खामोशियाँ चुपचाप हैं बहुत
पर उम्मीद है
ग़ज़ल कोई इश्क़ की बजती होगी





26.नमीं मेरी आँखों की....
कभी तो गौर फ़रमा कर
मेरी खामोशियाँ सुन लो
इनमें हैं बेताबियाँ कितनी
नमी मेरी आँखों की
कभी महसूस तो कर लो
इनमें हैं बेचैनियाँ कितनी
ख़ुदको मशरूफ़ रखती हूँ
तेरी याद ना आये
तेरे बारे में ना सोचूँ
वो ख़्याल तक ना सताए
तरसते इन ख़्यालों में भी
वीरानियाँ कितनी
तुझसे खफ़ा नहीं मगर
इतनी शिकायत है
तू मेरे पास क्यों नहीं
तू मेरे साथ क्यों नहीं
तुझसे रूठने में भी
नाकामियां कितनी
तुम ये ना समझना
मैं तन्हां पड़ गयी हूँ
हर वक़्त मेरे चारसू
बहुत भीड़ होती है
हाँ मगर इस बहुत शोर में
देखो हैं तन्हाईयाँ कितनी... बेचैनियाँ कितनी...

27. कुछ ख़्वाब लिए बैठी हूँ
इन दो नींद से बोझिल
आँखों मे
कुछ ख़्वाब लिए बैठी हूँ
इन टिम टिम
चाँद सितारों से
कुछ दिल की कहने बैठी हूँ
यकीं ना आये तो देखो
इक सुकूँ बरसता बादल से
कल जाने कैसा मौसम हो
दामन फैलाये बैठी हूँ
ये चाँद भी मुझसे अटखेली करता है
छिप कर बादल की ओट से
चुपके से आवाज़ देता है
पलटती हूँ जैसे ही दीदार को
वो नटखट
फिर से चादर ओढ़ लेता है
वो आएगा लौट के
फिर आवाज़ देगा
आस लिए बैठी हूँ
चाँद में बूढी नानी
हाथ में उसके चरखी थी
बचपन के किस्से, अफ़साने
दिल से लगाये बैठी हूँ