Ekk taka teri chakri ve mahiya - 4 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 4 - अंतिम भाग

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया...

  • जयश्री रॉय
  • (4)
  • उसे उस गैर मुल्क में इस हालत में छोड़ कर आते हुये उन सब का दिल भर आया था। आते हुये बंदूक उन्हें जाने किन नजरों से देख रहा था। बुदबुदा कर किसी तरह कहा था- यारो! मैंनू छोड कर जांदे हो! वेख लईं, मैं नी बचणा!कश्मीरा ने किसी तरह डरते हुये एजेन्टों से पूछा था- इसे कुछ हो गया तो? एक एजेंट ने लापरवाही से कहा था, मर गया तो किसी खाई में लाश फेंक देंगे। कभी किसी को नहीं मिलेगी। बच गया तो दूसरे दल के साथ आ जाएगा। सुन कर सब सकते में आ गए थे। उस समय एक ट्रक में उन्हें मवेशियों के साथ ठूँसा जा रहा था। उसी तरह उन्हें आगे के कई दिनों की लंबी यात्रा करनी थी।

    जी 219 हाइ वे पकड़ कर वे जिंजियांग से बार्डर टाउन काशगर पहुंचे थे। फिर आईशा बीबी इलाके से होते हुये कजाकिस्तान। आईशा बीबी और चोंग काफ्का के बीच की सड़क सीधी है और कई बार लगता था एकदम आसमान से जा कर मिली है। इन कुछ दिनों में उन लोगों ने इतने तरह के लोग देखे थे, इतनी बोलियाँ सुनी थी और इतने तरह और स्वाद के खाना खाये थे कि उंगली पर गिनना मुश्किल। मोंटी कहता- लै! मैंनू लगदा सी दुनिया जालंधर तू शुरू हो कर भटिंडा ते खत्म हो जांदी है! ये तो इतनी बडडी है! गुरमीत हैरानी से पूछता- मगर जालंधर से ले कर भटिंडा तक ही क्यों? तो जवाब परमीत ने दिया था- क्योंकि जालंधर इसके बाप का घर और भटिंडा इसके मामू का। सुन कर गुरमीत इतनी तकलीफ में भी हंस कर लोट गया था। उसके लोटने से खांचे में भरी मुर्गियाँ एक साथ शोर मचाने लगी थी। फिर एक दलाल ने गाड़ी रुकवा सामने की सीट से उतर कर उसे कई लातें मारी थी- बहुत हंसी आ रही है? पकड़ेगी कजाकिस्तान की पुलिस तो मार डंडे के पैंट गीली हो जाएगी!

    इसके बाद कितने देश, कैसी-कैसी सरहदें और कितनी सारी मुश्किलें! उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, अजरबैजान… इनके आगे पूरबी यूरोप- जॉर्जिया, टर्की, रशिया का कुछ हिस्सा। अजरबैजान से जार्जिया जाते हुये बीच में लगोदेखी जगह की खूबसूरती ने सफर की थकान कम कर दी थी। मोंटी ने कहा था, मेरे लिए दुनिया यही खत्म होती है यार! तुम सब चलो, मैं यही बस लूँगा।

    सुन कर जाने क्यों कश्मीरा को याद आया था, सीबो का माहिया गाना-

    जे उठ चल्लियों चाकरी, चाकरी वे माहिया,

    सान्नू वी लै चल्लीं नाल वे,

    ...इक्क ट्का तेरी चाकरी, चाकरी वे माहिया,

    लख्ख टके दा मेरा सूत वे...

    जिस सूत को सादा समझा था, वो सचमुच बहुत कीमती निकली, यूं जान उलझ कर रह गई उस में... कश्मीरा आजकल गिरह-गिरह वही सुलझाने की कोशिश में रहता है मगर और-और उलझता जाता है। बहुत महीन, बहुत गझीन है कुछ! आँखों से नहीं दिखता मगर रूह तक को बांध लेता है, कुछ ऐसे...

    आते वक्त सिबो से मिलने की हिम्मत जुटा नहीं पाया था। जानता था, वो खड़ी रही होगी सूरज डूबने तक कनाल के किनारे। अक्सर वहीं मिलते थे दोनों। जबतक सूरज का लाल गोला उनकी परछाइयाँ समेट कर पश्चिम में डूब नहीं जाता था। फिर वे एक जिस्म हो जाते थे, बिना परछाइयों वाला... पिछली बार सिबों ने अपना रिश्ता चलने की बात बताई तो वह गुस्से में उठ आया था- ठीक तो है सिबों! तू अपने माँ-बाप की इकलौती है, तेरे लिए अच्छा ही चाहेंगे तेरे घर वाले। और मैं ठहरा अनपढ़ जाट, मवेशियों की देख-भाल करने वाला...”सुन तो! कहाँ चला...” सिबों उसके पीछे-पीछे दूर तक आई थी- “तू जानता है, मुझे तेरे सिवा...” “जानता हूँ!” कश्मीरा ने बीच में ही उसकी बात काट दी थी- “मगर इस दुनिया को तो चाहिए! अब लौटूँगा तो तेरे काबिल बन कर वरना...” उसकी बात सुन सिबो रोने लगी थी मगर वह रूका नहीं था। घर आ कर सीधे सरपंच से अपनी जमीन की बात की थी और रुपये ले कर एजेंट के पास पास पहुंचा था- मुझे जैसे भी हो बार्डर पार करवा दो पाजी! इसके कुछ दिन बाद वह मुंह अंधेरे नेपाल की ओर निकल गया था, जग्गा, सतनाम के साथ!

    आज शायद उनका सफर अपने अंजाम तक पहुंचे। वे 450 किलोमीटर लंबे फ़्रांस, जर्मनी के बार्डर पर खड़े हैं, शायद स्चेंगेन schengen गाँव के आसपास कहीं। जाने कितने युद्ध और संधियों के बीच इस बार्डर की रेखाएँ बनी, बिगड़ीं और मीटीं! अब जो सामने है वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद तय हुआ। घने पेड़ों के बीच से झाँकते खेत-खलिहान, सड़कें और लाल टाइल्स वाले घर... सब कुछ कहानियों में सुने परियों के देश-सा! उतना ही सुंदर, साफ-सुथरे। जैसे ट्रे पर सहे हों! सफ़ेद धूप में चमचमाते हुये! सब मंत्रमुग्ध-से देखते रह गए थे।

    एजेंट ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में बताया था, उन्हें अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ेगा। सुबह होने से पहले तीन बजे के करीब उन्हें बार्डर पार करना होगा। यहाँ सुरक्षा प्रबंध बहुत चाक-चौबन्ध होता है। मगर उन्हें खतरा मोल लेना ही पड़ेगा। और कोई चारा नहीं। बेहद सावधान रहने की जरूरत है। बार्डर के दूसरी तरफ उन्हें दो टर्की एजेंट ट्रक से किसी गाँव के बाहर तक छोड़ आएंगे। उसके बाद उनकी ज़िम्मेदारी खत्म।

    कश्मीरा, जग्गा और सतनाम को लेने बर्लिन से जितेंदर आने वाला है। उसके जीजाजी के होटल ‘महाराजा’ में उन्हें ब्लैक में फिलहाल नौकरी करनी पड़ेगी। हर तरह के काम। खाने, रहने का तो बंदोबस्त हो जाएगा मगर अभी कोई तनख्वाह नहीं। आगे की आगे देखी जाएगी।

    कश्मीरा अपने दल के साथ सारा दिन लंबी, सूखी घास के लहराते दरिया में डूब कर भविष्य के सुनहरे सपने देखता है। आज खाना नहीं, पानी नही, कोई बात नहीं! वो खुश है, बहुत खुश है। उसके सपने पूरे होने जा रहे। अब गाँव वाले उसे निकम्मा नहीं कहेंगे, बीबी को उस पर नाज होगा। और सिबो...? वो आँखें मूँदे सिबो का खुशी से झिलमिल करता चेहरा देखता है। सिबो बस साल भर मेरा इंतजार कर लेना। फिर बस हम होंगे और हमारी दुनिया। ये डर, पहरे- कुछ नहीं! घर लौटते वक्त वह सिबो के लिए ढेर-से तोहफे ले जाएगा। कपड़े जैसे मेमें पहनती हैं। मन ही मन वह खरीददारी करता है- धूप का चश्मा, टोपी, छ्तरी...

    यहाँ का आसमान कितना नीला है! कांच-सा चमचमाता! धूप एकदम सफ़ेद। हवा हल्की और सूखी। जिस्म पर रेशम के फूलों-सी फिरती! हर तरफ जंगल का ताजा कच्चा हरा रंग और उसके बीच बादामी, भूरे और लाल-कत्थई रंगों के आकाश छूते पेड़। देखते हुये कश्मीरा जाने कब सो गया था- एक गहरी सुकून वाली नींद! आश्वस्ति और आराम मिलते ही नींद आँखों में टूट कर आई थी। नीले-हरे चमकदार तितली और रंग-बिरंगे फूलो की अनगिन क्यारियों वाली नींद! वो नींद जिस में सपने भी दबे पाँव आते हैं… कितने दिनों बाद तो सचमुच सोया था कश्मीरा, अपनी मंजिल से कुछ कदमों की दूरी पर, मीठी नींद के सरहाने पर सर रख कर बेखबर!

    जाने रात का क्या बजा था जब सतनाम ने उसे हल्के से हिलाते हुये उठाया था- कश्मीरा उठ! अब चलना होगा... कश्मीरा ने आँख मलते हुये देखा था, चारों तरफ अंधेरा है। मगर झुरमुटों के पार चमकता हुआ आकाश। कहीं चाँद होगा, पश्चिम की ओर दूर तक उतरा हुआ। जाने वह कितनी देर सोता रहा। उठते ही दूर जर्मनी के गाँव की रोशनियां दिखी थी। पीले सितारों की कतार, रोशनी की जलती-बुझती मिनारें, बिल बोर्ड्स...

    अब उसने धीरे-धीरे तेज होती हवा को महसूस किया था। एजेंट ने फुसफुसा कर कहा था, कभी भी बारिश शुरू हो सकती है, हमें चलना होगा। उसके दल के सोलह लोगों ने दबे पाँव ढलान की ओर उतरना शुरू कर दिया था। कश्मीरा सब से पीछे था। घुटने के जख्म की वजह से जल्दी चलने में उसे परेशानी हो रही थी। एजेंट बार-बार जल्दी चलने की ताकीद कर रहा था। लगभग 50 मिनट सावधानी से चलते हुये वे पहाड़ी के नीचे उतर आए थे। सामने एक छोटा-सा पहाड़ी नाला बह रहा था। बादलों के पीछे छिपते चाँद की हल्की चाँदनी में नाले का पानी रह-रह कर चमक रहा था। एजेंट ने दबी आवाज में कहा था, नाले के उस तरफ जर्मनी है। यहाँ की फेंस कई जगह से चौड़ी है। उन्हें नाला पार कर फेंस के उस तरफ जाना होगा। उन सब ने चुपचाप सहमति में सर हिलाया था और नाले में उतर पड़े थे। नाले में पानी गहरा नहीं, मगर धार तेज थी। ठंड भी। उनके उतरते ही अचानक बारिश शुरू हो गई थी। पहले हल्की फिर तेज। फिसलन भरे पत्थरों की वजह से कश्मीरा को आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही थी। सतनाम बार-बार उसके लिए रुक रहा था। एजेंट इशारे से जल्दी चलने के लिए कह रहा था। इस बीच बारिश काफी तेज हो गई थी। थोड़ी ही देर में पूरा माहौल बदल गया था। उन्हें देखने में भी तकलीफ हो रही थी मगर टॉर्च एहतियातन नहीं जला रहे थे।

    और फिर लंगड़ा कर चलते हुये कश्मीरा फिसल कर तेज छ्पाके के साथ पत्थरों पर गिरा था। इसके साथ ही अंधेरे में कई टॉर्च की तेज रोशनी एक साथ जल उठी थी। कुत्ते भी भौंकने लगे थे। कहीं पास ही। एकदम से बारिश में स्तब्ध भीगता जंगल भारी बूटों की धमक से भर गया था। जंगल के स्याह दीवार के पार से दो चॉपर तेज रोशनी फेंकता हुआ किसी जादू की तश्तरी की तरह निकाल आया था।

    सब कुछ इस आकस्मिकता से घटा था कि सब कुछ देर के लिए भौंचक-से रह गए थे और फिर हाँका पड़े जंगल के जानवरों की तरह इधर-उधर भागने लगे थे। कश्मीरा गले तक पानी में डूबा एक ही जगह अवश खड़ा रह गया था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, आसपास क्या घट रहा है। डर और ठंड की अधिकता में वह थर-थर काँप रहा था। सतनाम एक-दो बार उसे उठाने की कोशिश कर अंधेरे में जाने किस तरफ भाग खड़ा हुआ था। कुत्ते भौंकते हुये बहुत करीब आ गए थे। मेगा फोन से लगातार कुछ घोषणा की जा रही थी। कश्मीरा ने चमकती बिजली की रोशनी में तीन-चार परछाइयों को फेंस के उस तरफ कूदते हुये देखा था। देखते ही पूरी ताकत लगा कर उसने पानी से निकल कर फेंस की तरफ भागने की कोशिश की थी और इसके साथ ही एक गोली सनसनाती हुई आ कर उसके गले में लगी थी। वह बिना कोई आवाज किए त्योरा कर गिरा था। पानी में एक तेज छ्पाके की आवाज भौंकते हुये कुत्तों की आवाज में दब गई थी। ऊपर चकराते चॉपर की तेज रोशनी के वृत्त में फ़्रांस के बार्डर सेक्यूरिटी अफसरों ने हिंसक उल्लास और घृणा से देखा था- एक बीस-बाईस साल का लड़का रक्त के लाल कुंड में डूबा पड़ा अपनी खुली हुई विस्फारित आँखों से बार्डर की ओर देख रहा है। उसके आसपास चश्मा, टोपी, छतरी के साथ कुछ सपने बिखरे पड़े हैं... ये किसी ने नहीं देखा!

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    12.08.2017

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