हारा हुआ आदमी - 4 Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी - 4

निशा गुस्से मे जो मन मे आया बकने लगी।
निशा की बातें सुनकर देवेेन की गर्दन शर्म से नीचे झुक गई।जुुुुबान तालूू से चिपककर रह गई।निशा कीबातों का जवाब देेेने के लिए, उसका मुंहनहीं खुुुला।
निशा का गोरा चेहरा गुस्से मे तमतमाए तवे सा सु,र्ख लाल हो गया। गूस्ससे मे उसकी सॉसे तेज चलने लगी। उसकी ऑखो से चिंगारी निकलने लगी।बोलते बोलते अचानक वह चुुुप हो गई।देवेन अपराधी बना उसके सामने खडा था।कुुुक्ष क्षण की चुुप्पी के बाद वह फिर बोोली,
"मै तुम जैसे चरित्रहीन औऱ गिरे हुए आदमी के साथ एक पल भी नही रहना चाहती।मेरी आवाज सुनकर पडोसी आये।उससे पहले मेरी नजरों से दूर चले जाओ।आज तो आ गये हो।लेकिन भविष्य मे यहाँ आने की जुर्रत मत करना।समझ लेना निशा तुम्हारे लिए मर.गई।
शादी के बाद देवेन औऱ निशा केवल दो साल ही साथ रहे थे।इन दो सालों मे वह निशा के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हो चुका था।निशा के हावभाव देखकर, वह समझ गया कि निशा अभी उस बात को भूली नहीं है।उसके दिल परलगी चोट के घाव अभी हरे है।इसलिए अभी उसे समझाना मुमकिन नहीं।गुस्से मे निशा बिफरी शेरनी सी लग रही थी।ऐसे मे वह कुछ भी कर सकती थी।
देवेन कुछ औऱ ही सोचकर आया था।उसका ख्याल था।इतने दिन गुजरने के बाद वह उस घटना को भूल चुकी होगी।लेकिन जैसा उसने सोचा था,निशा को उसके विपरीत पाया था।
इस समय उसे समझाना अंसभव था।इसलिए वापस लौटने के सिवाय उसके पास कोई उपाय नही था।
वापस लौटने से पहले, उसने एक नजर निशा पर डाली थी।उसकी ऑखों से शोले निकल रहे थे।
देवेन,निशा से ऑखे मिलाने का साहस नहीं जुटा पाया।तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल आया।
देवेन ने कॉलोनी से बाहर आकर चारो तरफ देखा।लेकिन सडक पर कोई रिक्शा या ऑटो नजर नहीं आया था।तब वह पैदल ही स्टेशन की तरफ चल पडा।
बैक मे अफसर बनने से पहले, देवेन एम आर था।जब वह एम आर था, तब बस्ती भी कई बार आया था।इसलिए इस शहर से वह अच्छी तरह वाकिफ था।शहर का कोई हिस्सा ऐसा न था,जहां वह न गया हो।
पर आज देवेन को,जाना पहचाना, देखा शहर, न जाने कयो,अनजाना,अनदेखा सा लग रहा था।कुछ दूर पैदल चलने के बाद उसे एक ऑटो खडा नजर आया ।वह उसके पास जाकर बोला,"स्टेशन चलोगे?"
"बैठो साहब।"
देवेन ऑटो मे बैठ गया।सुबह कोहरा घना था।अब कुछ हल्का हो गया था, लेकिन इतना नही कि सडक बिल्कुल साफ नजर आये।इसलिए ऑटो चालक ऑटो को धीरे धीरे चला रहा था।
वह सेमिनार मे भाग लेने के लिए दिल्ली से कानपुर आया था।वह एक होटल मे ठहरा था।सुबह जब अखबार पढ रहा था।तब उसकी नजर अखबार मे छपे फोटो पर पडी थी।फोटो देखते ही पहचान गया था।फोटो किसी और का नहीं निशा क था।निशा जो एक दिन बिना बताये उसे छोड़कर चली गई थी।
निशा के फोटो के साथ उसे मिले पुरस्कार का समाचार छपा था।उस समाचार से उसे निशा के बारे मे पता चला था।निशा बस्ती मे कॉलेज मे लेकचरार थी।निशा का पता चलते ही वह उससें मिलने को बेचैन हो उठा।वह सेमिनार को बीच मे ही छोडकर बस्ती चला आया था।रेल मे पूरे रास्ते वह निशा के बारे मे ही सोचता रहा था।