इस दश्‍त में एक शहर था - 20 Amitabh Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इस दश्‍त में एक शहर था - 20

इस दश्‍त में एक शहर था

अमिताभ मिश्र

(20)

इन नौ भइयों की एक बहन भी थीं जिनका ब्याह कालिकाप्रसाद जी ने समय रहते कर दिया था। दामाद जो थे वो दूर छत्तीसगढ़ में उन दिनों मध्यप्रदेश ही हुआ करता था के एक कसबे में पुलिस महकमे में सब इंस्पैक्टर थे। उनका खासा रूतबा हुआ करता था इलाके में तो कम रिश्‍तेदारों में ज्यादा। शुक्ला जी शुक्ला जी कहते कहते उनकी पत्नी की जबान लडखड़ा जाती थी पर वे न सुनते तो न ही सुनते थे। दहेज के नाम पर सारी जिन्दगी कोसते रहे बीबी को। वे चाहते थे और उन्होंने मझले भैया से वादा भी ले लिया था कि उन्हें कबीट के पास वाली जमीन दे दी जाएगी। इस दरम्यान उनके तीन बेटे राजेन्द्र वीरेन्द्र और योगेन्द्र और एक बेटी शैलबाला भी हुईं। इन चार संतानों को जनम देते देते और पालते पोसते और शुकुल जी की गालियां सुनते सुनते अंततः वे इस नरक को तो छोड़ ही गईं। अब नर्मदाशंकर शुक्ला जी बिना पत्नी के नहीं न रह सकते थे सो उन्होंने दूसरा ब्याह भी रचाया औरत को तो विधवा रहना ही चाहिए पर मरद तो रंडुआ नहीं रह सकता। तो दूसरी पत्नी से भी उनकी दो लड़कियां हुईं। जो उनके साथ ही रहीं पर पहली पत्नी की संतानों को ननिहाल या कहें ममियारे पठा दिया गया। जहां सबसे बड़े यानि राजेन्द्र शुक्ला मुख्य घर में रहे यानि इन्दौर और योगेन्द्र तहसीलदार के जिम्मे रहे और सबसे छोटे इन्दौर में ही रहे कुछ दिन पर उन्हें कुछ जमा नही ंतो वे अपने बाप के पास वापस पहुचा दिय गये। जहां मजबूरी में उन्हें रखा गया। दिलचस्प यूं रहा कि तीनों भाई पढ़ अच्छे से गए और नौकरियां भी बढ़िया लग गईं तीनों की। बड़े वाले ड्रग्स इंस्पैक्टर हो गए उनसे छोटे स्कूल में मास्टर और सबसे छोटे वाले कालेज में प्राध्यापक हो गए।

नर्मदाशंकर शुक्ला जी ऊंचे पूरे कद के इंसान थे और कड़क आवाज और लंबी नाक और सीधी गरदन वाले आदमी थे। पीलियाखाल में उनका नया नामकरण हो चुका था कप्तान ने उन्हें नाम दिया था टीपू सुलतान जो इस कदर लोकप्रिय हुआ कि उनका असल नाम गुम हो गया और वे पीलियाखाल लगातार कबीट के पास वाली जमीन के चक्कर में आते रहे। मंझले भैया और कालिकाप्रसाद के आखिरी दिनों तक उन्हें उनके वादे याद दिलाते रहे। कालिकाप्रसाद से तो उन्होंने लिखवाकर भी रख लिया था। पर दिक्कत ये रही कि इन दोनों की औकात उनके करमों की वजह से कुछ थी ही नहीं। इसलिए उन्हें कबीट के पास की जमीन की आशाएं धूमिल हो रहीं थी। उन्होंने अपने दोनों बेटों को इस काम के लिए प्ररित किया। उनकी स्वर्गीय मां की याद दिलाई और कहा कि ”उनकी आत्मा उस जमीन के लिए तरस रही है। मुझे बार बार सपने में आकर उस जमीन की ओर इशारा करती है। तुम दोनों को उस जमीन के लिए अपने मामा लोगों से बात करना चाहिए।“

उन दोनों की हिम्मत किसी भी मामा से बोलने की नहीं होती थी। सबसे बड़ों से बात नहीं की जा सकती थी कभी भी वे इन लोगों के दायरे से ही बाहर रहे। गन्नू मामा तो खुद ही दुरदुराए जा चुके थे खानदान से। गणेशी मामा यानि छप्पू मामा कुछ कुछ न्यायप्रिय लगते रह। सोचा उनसे बात की जाए तो उन्होंने बड़के को कनपटी के नीचे बजा दिया और बोले। ” तुम दोनो हमारी पूज्य बहन के लड़के हो तो यही दे रहे हैं वरना तो हम तुम्हारी वो दुर्गत करते कि वो जिस शुकुल खानदान के तुम हो वहां ये सोचा जाता कि ये औलादें पैदा क्यों हुईं। और हां वो जो हमारे जीजी और तुम्हरे जो बाप हैं न उनसे बोल देना इस बार तो तुम दोनों का भेज दिया तो हमने तुम्हें एक हलका सा सबक दे दिया वरना अब वो यहां से न तो जाने के काबिल रहेंगे और न ही कहीं आने जाने के। जमीन चाहिए ससुरों को“

ये जो तीन भाई थे संपत्ति में कोई बहुत इच्छुक भी नहीं रहे। सबसे बड़े ड्रग्स इंस्पेक्टर बने और इतना पैसा कमाया कि ये जो संपत्ति थी संभवतः इसकी जरूरत उन लोगों को नहीं रही।

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