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मौलिक शेर - 3

ये बिछड़ना भी किस काम का रहा
ना हम काम के रहे ना तुम काम के रहे... !
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जब से वो अनजान क्या हुए
हम तो बेजान से हो गये... !
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चलो ये भी इलज़ाम मान लेते हैं
वे बफा तुम नहीं हम थे....!
पर गलत ये भी तो नहीं
मिरि हर वफ़ा से ख़फ़ा भी तो तुम थे.. !!
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रोज़ मर्रा ज़र्रा ज़र्रा हम जीते रहे... !
तिरि यादो का गम हम पीते रहे.. !!
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ज़रूरी नहीं मुस्कुराने वाला ख़ुशी से ही मुस्कुराये.. !
हो सकता हैं जिंदगी के गम इन मुस्कुराहटों में छिपाए... !!
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मुस्कुराहटें तो वो मिरि रोज़ ले जाते हैं.. !
और इश्क़ में मायुषगी का दाग़ हम पर लगाते हैं.. !!
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चमचों की औकात बढ़ी हैं.. !
कामदारो की खाट ख़डी हैं... !!
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वो जो हैं जिंदगी मुफलिसी में गुज़ार लेते हैं... !
जिंदगी की हर चाह को ख्वाबों में सवार लेते हैं... !!
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बात सिर्फ इतनी सी हैं कि मैं किसी को रुला नहीं सकता
और बात इतनी पेचीदा हैं कोई हमें हंसा नहीं सकता
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इश्क़ ए गम की नुमाइश में अब ना दम हैं... !
जितना दिखाओ उतने ही गम ही गम हैं.... !!
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सुलझे लोग कभी उलझते नहीं
उलझें लोग कभी सुलझते नहीं
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इश्क़ में एक ही दस्तूर देखा हैं
सच्चे इश्क़ को दूर दूर देखा हैं
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गुजर जाना मेरी गली से तुम होले से
गर आहट हुई तो तन्हाई मिरि बिखर जायेगी... !
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ये जो ओहदे हुए हैं
बगैर सौदों के कहा हुए हैं
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रूठ कर जाने वाले बहुत कुछ ले जाते हैं
पर छोड़ कर कुछ नहीं जाते.... !
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इस महफ़िल में दाग़ ए चादर ओढ़ के मिल
यहां वेदागदारो की कदर नहीं हैं.... !
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हम हो लिए इश्क़ ए आगोश के, वफादार होने को
वो वफाई भी ना मिली हमें इश्क़ में तलबगार होने को
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मिरि मासूमियत का तुम भी इम्तिहान लेले ना... !
गर हो जाऊ मैं गुस्ताख़ तो इंतकाम भी लेले ना... !!
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ज़िगर ए दिली दास्तान मिरि लम्बी हो चली हैं... !
इंज़ार मिरा करके वो किसी और की हो चली हैं.. !!
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झील सी आंखो में क्या उतरे हम अब तक गोते लगा रहे हैं... !
वो हमें डूबता छोड़ के अब औरों को तैरा रहे हैं... !!
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अगड़म बगड़म सब पकड़ लेना... !
बस मिरे दिल को छोड़ देना... !!
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मिरे इश्क़ से जुदा होने का जो तिरा जूनून हैं.. !
खुद से खुदा तक होने का ये मिरा जूनून हैं... !!
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चमचों की बातें तो चल रही हैं
कामदारो की बातें खल रही हैं
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किसी की उम्मीद भी नाउम्मीद हो रही हैं... !
किसी की ईद भी तन्हाइयों में हो रही हैं... !!
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सोचता हूं, साहिले दरमियां ये दुरी क्यूं हैं... !
हर रिश्ते को निभाने में मज़बूरी क्यूं हैं... !!
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गर दर्द को ना सोचू अगर
तो लोग मुझें बेदर्द कहेंगे... !
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तिरि बेदर्दी का मुझें कोई शिकवा नहीं हैं.. !
यहां तो बेदर्दो ने तो कमाल कर रखा हैं.. !!
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क्यों लिख ने लगे हो मिरे अल्फाज़ो का मतलब
क्या मिरे अल्फाज़ो में इश्क़ नज़र आने लगा हैं.. !
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तुम मुझें पढ़ ज़रूर लेना
मैं तिरि हीं किताब का इक पन्ना हूं... !
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मार्मिक मायूशी को ओढ़ रखा हैं... !
फिर भी लोगों ने नाता तोड़ रखा हैं... !
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तेरी गली में अब अनजान रहता हूं... !
औरों की गली में पहचान रहता हूं... !!
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ये जो दो रास्तों का मेल हैं.. !
ये इश्क़ की मुलाकातों का खेल हैं... !
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कुछ लोगों के वास्ते उजागर हुआ हुं मैं.. !
लेकिन सागर नहीं दरिया हुआ हूं मैं... !!
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वो मिरे चाहने वालों का मज़मा हैं.. !
ये मिरि खामोसी का उनको सदमा हैं.. !!
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अब ना वो मंज़र होगा और ना हाँथो में किसी के खंज़र होगा... !
होगा सन्नाटा चारो और, आसमा में काला बबंडर होगा
जब इस ज़मी का वजूद बंज़र होगा.. !!

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