धरना - 4 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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धरना - 4

लग भग 8 माह बाद

प्रिया... प्रिया...
प्रिया दौड़ती हुई सी आती हैं...
आ रही हूं बाबा आ रही हूं...
निखिल प्रिया को नज़र भर के देखता हैं...
कोई कमी रह गयी क्या...?
हा वही देख रहा था तुम्हारे साज श्रंगार में कुछ छूट तो नहीं गया..
हां ठीक से देख कर बताना वरना लोग यही कहेंगे देखो निखिल मल्होत्रा को बेचारी श्रंगार में कितना कोम्प्रोमाईज़ करके रहती हैं... आपको ही लोग कंजूस समझेंगे...
इतना सुन कर निखिल हाथ जोड़ लेता हैं...
जी गलती हो गई धर्म पत्नी जी... आप परिपूर्ण श्रंगार की देवी लग रही हैं... आपके श्रंगार में कोई कमी नहीं रह गई हैं... क्या हम अब चले...?
मैं तो कब से तैयार ख़डी हूं आप ही टाइम किल करने में लगे हैं... अगर आपकी ये इंप्रेश फुल बातें ख़त्म हो गई हो तो मैं कार में बैठूं...
जी बिलकुल... और निखिल जल्दी से दूसरी तरफ जा कर कार में बैठता हैं...
और गाडी स्टार्ट करके दौड़ा देता हैं...
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शहर का प्रतिष्ठित होटल ग्राउंड फ्लोर की लॉबी में फंगसन चल रहा हैं.. शहर के प्रतिष्ठित लोग भी मौजूद हैं.. ये फंगशन निखिल की कम्पनी की तरफ से किया जा रहा हैं जिसमे में निखिल को भी सम्मानित किया जाना हैं.. सम्मान की प्रक्रिया से गुज़र ने के बाद लोगों के आपस में मुलाकातों का दौर जारी था तभी वहां मौजूद सर्वेंट पर निखिल की नज़र पड़ती हैं... जो अन्य मौजूद सर्वेंटो की तरह चाय पानी कॉफी और सूप सर्व कर रहा हैं निखिल अपनी मण्डली से निकल कर उसके पास जाता...
पवन...
इतना सुनते ही पवन थोड़ा चौकता हैं..
जी...? सर आप ने कुछ कहा..?
निखिल पवन की बाह पकड़ कर उसे एक तरफ को खींचते हुए सा ले जाता हैं...
सर... क्या हुआ... मेने क्या किया...
ज्यादा बनने की कोशिश मत करो...
सही में सर... आप कौन हैं मै आपको जनता ही नहीं...
Ok.... अभी जान जाओगे... पहले ये बताओ सूरज कहा हैं...
ओह... तो आप सूरज की जानकारी चाहते हैं...?
पहले आप मेरी बाह तो छोड़िये...
निखिल उसकी बाह छोड़ देता हैं...
आप मेरा यकीन मानिये... में उनके बारे में सिर्फ इतना ही जानता हूं.. कि इस वक़्त वो अपने शहर में हैं..
आप झूठ बोल रहे हो... आपने उस वक़्त भी हम से झूठ बोला था...
एक मिनट एक मिनट सर.... माना कि वो मेरे साथ थे... पर दोस्ती के खातिर इतना तो करना ही पड़ता हैं... लेकिन मुझें जब उसकी जिंदगी की सारी बातें पता चली तो सच में सर मुझें भी उसदिन के झूठ बोलने का मलाल था लेकिन क्या करता सर... आपका फ़ोन नंबर भी मेरे फोन के साथ गुम हो गया था...
शायद तुम नहीं जानते कि वो इंसान कितना अहम् हैं..
मैं सब जान ता हूं सर वो इंसान नहीं ज़रूर कोई इंसान के भेष मे देवता हैं... जाते जाते भी वो मुझें इतना कुछ दे गया जिसके लिए में भटक रहा था...
क्या तुम्हारे पास उसका कोई फोन या पता...?
यही तो रोना हैं सर पता नहीं.... लेकिन हां वो हमेशा विजय नगर की बात किया करता था... शायद वो वही गया हो....
लेकिन विजय नगर इतना छोटा शहर थोड़े ही हैं जहां वो आसानी से मिल जाएगा...
हां याद आया सर... विजय नगर में शासकीय स्कूल हैं कोई वो वहां की बात हमेशा करता था... क्या आप भी वही के रहने वाले हैं...
नहीं यार.... हमलोग तो भोपाल से हैं... लेकिन ये विजय नगर.... और निखिल सोच में पड़ जाता हैं...
क्या सोचने लगे सर...?
यही कि वो फिर एक और एहसान कर गया...
यही..तो... सर... मुझें तो शुक्रिया तक करने का भी समय नहीं दिया.... मैं भी मिलना चाहता हूं उनसे... सर क्या हम और आप मिल कर खोजे सूरज को..
हा सोच तो मैं भी यही रहा हूं... एक से दो भले
Ok तो ठीक हैं हम कल ही विजय नगर के लिए चलते हैं... कल चलने में तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं...?
ये आप कैसी बात कर रहे हैं आप सर आप कहे तो में अभी चलने को तैयार हूं..
तो ठीक हैं हम कल ही चलते हैं....
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