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किरदार - 2

तब मैं नही जानता था और ये कह भी नही सकता था कि ये साल मेरी जिंदगी बदलने वाला होगा । इस साल में ऐसा कुछ होगा जो मेरी आगे की पूरी जिंदगी बदल देगा ।

धीरे धीरे वक्त बीत रहा था । सुबह ट्यूशन जाना ये हमारी हररोज की दिनचर्या हो गई थी । धीरे धीरे मैं क्लास के बाकी लोगो को जानने लगा था । जैसे कि निल , प्रशांत , चिराग (चिरकुट) और आखिर में प्रियल । आप सोच रहे है कि लड़की मगर नही प्रियल एक लड़का है जिसे हम सब स्वामी कहकर बुलाते है क्योंकि वो हररोज तिलक करके आता है । ये सब आज भी मेरी जिंदगी के काफी अहेम किरदार है । वैसे मैने जब स्वामी को पहली बार देखा था तो मैंने सोचा भी नही था कि वो इतना शरारती होगा । यकीन मानिए आप भी नही बता सकते । उसका किरदार बाकियो से कुछ अलग था और आज भी है ।
उस दिन शायद एकाउंट की क्लास थी । सर पढ़ाकर चले गए थे और हम सब लिख रहे थे । उस वक्त आईपीएल चल रहा था । हम उसी के बारे में बहस करने में लगे थे । तभी क्लास में एक मोटा सा दिखने वाला एक शख्स अंदर आया । फुटबॉल की गेंद जैसा उसका चेहरा था लेकिन गोल नही थोड़ा लम्बा । उसका कद काफी छोटा था और उसका पेट जैसे ऊपर से लगाया गया हो ऐसे बाहर की ओर था । मतलब वो कुछ ज्यादा ही मोटा था । जैसे ही वो अंदर आया सब ज्यादा शोर करने लगे । मै समझ गया कि सब इसे जानते है इसलिए ये भी अस्सिस्टेंट होना चाहिए और मैं सही था । सब उसे ' गेबा ' के उपनाम से बुला रहे थे शायद उसके शरीर को देखकर । वैसे उसका असली नाम निकुंज जोशी था और यकीन मानिए वो एक स्कूल में संस्कृत का विषय पढ़ाता था । पहली बार सुनकर यकीन कर पाना मुश्किल था ।

हम सब लिखने में लगे थे और वो हमारी अटेंडेंस ले रहे था । इस बीच राजू ने स्वामी को बताया कि मैं जेके का भाई हूँ । जो कि यहाँ स्टेट विषय पढ़ाता था । काफी आसान नही होता जब आपके रिश्तेदार टीचर का काम करते हो और आप वही पढ़ाई करने जाते हो । आप वो सब नही कर सकते जो आप अक्सर दूसरे क्लास में करते है मेरा मतलब परेशान करना , अलग - अलग आवाज निकालना और बहोत कुछ । यहाँ आप सब ये करने की सोच भी नही सकते अगर आपने सोचा भी तो सबसे पहले आपके घर ये बात पहुँच ने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है । स्वामी को पता चला तो उसे लगा राजू मजाक कर रहा है वो यकीन नही कर पा रहा था । इसलिए उसने मुझे पूछा ,

" क्या सच मे तुम जेके के भाई हो ? "

मैने जवाब में कहाँ -" हाँ मग़र चचेरा । " मुझे लगा शायद उसे हाँ सुनकर खुशी हुई । नही दिल से नही । उसे पहली बार मुझे देखकर लगा होगा कि मैं बहोत मासूम और साधारण सा दिखता हूँ इसलिए वो मेरी टाँग खिंचेगा । लेकिन वो भी अभी मुझे नही जानता था । वो बार बार क्लास में सब को बता रहा था कि में सर का भाई हूँ । सब चुप हो जाओ वरना ये उसे बता देगा कि हम उसके बारे में क्या बात कर रहे थे । शायद उसे मजा आ रहा था । लेकिन मैंने भी तब उसे कुछ नही कहाँ क्योकि अभी पूरा साल बाकी था और वो मेरे किस्से अभी जाननेवाला था अभी । तभी मैं बिट्टू के साथ आईपीएल को लेकर बहस करने में लगा था । यहाँ हमारे साथ और एक किरदार जुड़ता है बिट्टू याने की प्रिन्स ढोला । दिखने में एकदम साधारण सा छोटा कद काठी का और एक दम दुबला पतला । लेकिन उसका स्वभाव उसके इस कद काठी से बिल्कुल विपरीत था । मतलब की कोई भी उससे लड़ाई नही कर सकता और अगर किसी ने की तो उससे शायद सात आठ लोगो से लड़ाई करनी पड़ेगी । आप समझ ही गए होंगे । खैर मै उससे बहस कर रहा था तभी वो अस्सिस्टेंट मेरा नाम बोला और मेरा ध्यान बहस में लगा था । फिर राजू ने मुझे कहाँ तेरा नाम बोला तो मैने हड़बड़ी मै प्रेजेन्ट बोल दिया । तभी वो अस्सिस्टेंट गुस्से से लाल हो गया । और मुझे डाँटते हुए बोला ,

" हमे यहाँ तुम सब के लिए नोकर बना के नही रखा । ध्यान कहाँ है तुम्हारा ? आगे सभी ध्यान में रखो अगर एक बार मे प्रेजेन्ट नही बोले तो वो आपकी गलती होगी और फिर तुम्हारे घर पे शिकायत जाए तो मुझे मत बोलना ।"

वैसे ऐसी धमकियों से हम डरने वाले भी नही थे क्योंकि हम जहाँ के स्टूडेंट्स थे वहाँ ऐसी धमकियां शायद प्राइमरी के बच्चों को दी जाती होगी । और मैं हैरान था क्योंकि वो डाँट सबको लगा रहा था लेकिन सब कुछ मेरे सामने देखकर बोल रहा था । और उसी वक्त स्वामी ने भी पूरे क्लास में सुनाई दे उतनी तेज आवाज में कहाँ ,

" तुम जानते नही ये कौन है इसीलिए इसे डाँट रहे हो ये जेके का भाई है । "

मुझे लगा उसे इस वक्त ये बोलने की कोई जरूरत नही थी और स्वामी भी इतनी तेज आवाज़ में बोला था कि मुझे लगा अब अगली बारी उसकी थी । तभी वो अस्सिस्टेंट बोला ,

" मुझे कोई फर्क नही पड़ता यहाँ कौन किसका भाई है मुझे जो करने को बोला गया है मै बस वही कर रहा हूँ । और तू क्यों चीख रहा है सब कुछ लिख लिया क्या ? चल मुझे दिखा , ला इधर ला तेरी बुक और एक भी शब्द अगर बाकी निकला तो ऑफिस में जा और उन्हें बता तू यहाँ क्या कर रहा है । "

स्वामी ने बुक देने से इंकार करते हुए कहाँ ,

"लिख तो रहा हूँ और कितनी तेजी से लिखूं , ये मेरे हाथ है कोई मशीन नही । और अगर बुक चाहिए तो यही खड़े रहो और जब तक मैं लिख नही लेता तब तक इंतजार करो । "

उसने फिर से उसकी टाँग खीचते हुए कहाँ । बस कुछ कुछ इसी प्रकार ये दिन कट रहे थे । यहाँ से ये जिंदगी कोई ओर ही मोड़ लेने जा रही थी । मुझे वैसे पढ़ाई का कोई ज्यादा शोख नही रहा लेकिन स्कूल मुझे हमेशा से पसंद था । क्योंकि मुझे लगता था कि मैं यहाँ पर आजाद था बिल्कुल उस पंछी की तरह जो बिना कोई ख़ौफ़ के ऊंचे आसमां में बड़ी शान से उड़ता है । सभी घर के लिए तरसते है लेकिन बचपन से ही घर मुझे किसी कैद की तरह लगता था । शायद ये इसलिए था क्योंकि वहाँ मेरे माँ - बाप नही थे । खैर जो भी हो मतलब की मैं ठीक से नही बता सकता कि मैं ऐसा क्यों महसूस करता था औऱ शायद वो होते तो भी मैं यही महसूस करता ....ओह हो ...मैंने कहाँ ना मेरे लिए ये काफी उलजन भरा है और शायद जिंदगी भी रही है । ट्यूशन धीरे धीरे रेग्युलर हो रहा था सब कुछ बढ़िया चल रहा था । धीरे धीरे सभी क्लासे शुरू हो गई थी । जैसे जैसे वक्त बीत रहा था मैं समझ रहा था कि सब शुरू शुरू में अच्छा लगता है लेकिन बाद में आपकी जिंदगी पिछले ग्यारह सालो की तरह ही हो जाती है जो आपने पढ़ाई में बिताए है । खैर शायद यही स्कूल होता है और इसीलिए स्कूल हमेशा सब को याद रहती है कोई भी इसे भूल नही पाता । वैसे ट्यूशन में दो टीचर मेरे सबसे पसंदीदा थे । इनमे से एक के पास में पिछले साल ही स्कूल में पढ़ चुका था । वो हमारे इकोनॉमिक्स का विषय पढाते थे । और आज भी में दावे से कह सकता हूँ कि जैसा वो पढाते थे वैसा शायद कोई भी नही पढ़ा सकता । उनका पढ़ाने का तरीका बाकियो से बिल्कुल अलग था । मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरा उनसे सामना हुआ था । वो ग्यारवी कक्षा का पहला दिन तो नही था लेकिन वो थोड़े हफ़्तों बाद हमे पढाने आये थे उससे पहले एक दुसरी टीचर हमे पढ़ाती थी । मुझे ठीक से याद है वो लंच ब्रेक के ठीक पहले की क्लास थी । हम सब गप्पे लड़ाने में व्यस्त थे । इतने में थोड़ी रफ्तार से क्लास में दाखिल हुए । वो दिखने में मोटे कद काठी के थे और उनकी गर्दन तो जैसे थी ही नही । उनकी आवाज एक दम भारी अगर आप पहली बार सुन रहे है तो आप को थोड़ा डरना चाहिए । लाल और सफेद पट्टो वाली टीशर्ट और ब्लू जीन्स मुझे आज भी अच्छे से याद है । वो दिखने में काफी सख्त इंसान लग रहे थे । वो स्टेज पर चढ़े और फिर उन्होंने पहले ये चेक किया कि अगले टीचर ने कहाँ तक पढ़ाया है । फिर उन्होंने अपनी भारी आवाज में बोलना शुरू किया ,

" सब से पहले मेरी क्लास के कुछ नियम है मुझे लगता है आपको पहले जान लेने चाहिए ताकि अगर बाद में आप मेरे हाथ में आ गए तो आप कोई बहाना न बना सके । अगर कभी क्लास शुरू होने के पांच मिनट भी बाद न आऊँ तो एक चापलूस और अच्छे स्टूडेंट का दिखावा करते हुए मुझे स्टाफरूम में ढूंढने कोई नही आएगा । क्योकि मुझे पहले से पता है कि आप सब कितने पानी मे है । जब मेरी मर्जी होगी तभी मैं क्लास में आऊंगा और जब मेरी मर्जी होगी तभी पढ़ाऊंगा । खेर वो तो आप धीरे धीरे समझ ही जायेंगे । "

सब लोग उन्हें एकदम खामोशी से सुन रहे थे । बीच बीच मे उनकी बातों पर ठहाके भी लगा रहे थे । किसीमें भी शायद और कुछ करने की हिम्मत नही थी ।
फिर उन्होंने आगे कहाँ ,

" जब भी मैं बोर्ड पर पढ़ा रहा हूँ तब सबका ध्यान सिर्फ यही होना चाहिए । मेरी इस क्लास में सब कुछ होगा । मैं बाकियो की तरह नही हूँ लेकिन इसका मतलब ये नही की आप कुछ भी करेंगे । अगर कोई मेरे हत्थे चढ़ गया तो समजो वो गया फिर चाहे आप कोई भी हो और कितनी ही बड़ी गैंग की पहचान ही क्यों न रखते हो । आप को कुछ भी करना हो तो मैं नीचे खड़ा मिलूँगा । लेकिन कुछ करने से पहले मेरे बारे में भी किसीसे पूछ लेना तुम्हारी उम्र जितनी है उतने सालो से मैं इस मंच पर खड़ा हूँ । और किसको कैसे हेंडल करना है वो मुझे अच्छे से पता है । तो अब सभी का ध्यान बोर्ड पर । "

हाँ बेशक ये किसी धमकी की तरह लगता है लेकिन हमारे लिए शायद यही भाषा सही थी क्योंकि हम जहाँ के स्टूडेंट थे वहाँ इसीकी जरूरत होती है । जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ेगी आप खुद ही समझ जाएँगे । फिर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया । उनकी कुछ कुछ चीजें तो बिल्कुल हैरान करने वाली थी । वो बिना पीछे मुड़े ही चेतावनी देते थे उसको जो बाते कर रहा होता था । वो भी कौन सी बेंच और कहाँ बैठा है इसके साथ । एक बार वो पढ़ाना शुरू करते थे तो जैसे उसमे बिल्कुल खो जाते थे फिर उन्हें किसी भी तरह की दखलंदाजी पसंद नही थी । और उनका एक खास पैटर्न था पढाने का । जब भी उनका मूड होता था पढ़ाने का तो वो क्लास बदलते ही सीधे पहुँच जाते थे । हम अगले क्लास की किताबें भी रखे उससे पहले । फिर बिस - पच्चीस मिनट लगातार पढाते थे और आखिर के दस मिनट में से पांच मिनट जो कुछ बोर्ड पर लिखा हो उसे याद करना होता था और बाकी के पांच मिनट में वो किसीसे भी पूछ लेते और बिना वहाँ देखे मुंहजबानी उसे सारे जवाब देने होते थे । उनकी क्लास में एक अच्छी चीज थी कि आपको लिखना कुछ नही होता था । लेकिन बुरा भी यही था क्योंकि वो सब आपको घर जा के लिखना होता था । और जब भी वो बुक चेक करें तो पूरी क्लास उनके डंडे खाती थी मैने तो शायद हर बार खाये है । उन्होंने पढाके हमें याद करने को कहाँ और फिर टहलने लगे । पांच मिनट बाद उन्होंने सब से पूछना शुरू किया । और कोई भी सही सही जवाब नही दे पा रहा था । फिर वो सबको जोर से डाँट रहे थे वो भी गलियों के साथ । मैने अपनी घड़ी की और देखा एक मिनट से भी कम वक्त बचा था ब्रेक में और इसीलिए मैंने अपनी किताबे बेग में रख दी । ठीक उसी वक्त उन्होंने मेरी ओर इशारा करते हुए कहाँ ,

" तुम ब्लू टीशर्ट आज जो कुछ पढ़ाया उसमे से जो कुछ याद हो वो बोल दो । "

जैसे ही उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया मै तो हैरान रह गया । मुझे होश ही नही था और जो कुछ मुझे याद था मैं वो भी भूल गया । मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ और मुझे अपने होश में आने में थोड़ा वक्त लगा और फिर मैंने जवाब देना शुरू किया । लेकिन मुझे पता था मैं जोड़ तोड़कर बोल रहा हूँ और तभी ब्रेक की घंटी सुनाई दी । मुझे एक वक्त के लिए लगा मैं बच गया लेकिन वो शायद ऐसा नही सोच रहे थे वो लगातार मेरे सामने देख रहे थे और फिर उन्होंने जवाब सही करने में मेरी मदद की । लेकिन मुझे ज्यादा डराते हुए मेरे पास आये और मेरे कंधे पर हाथ रखके बोले ,

" बेटे , मैं शक्ल देखकर बता सकता हूँ कौन कितने पानी मैं है , तुम होशियार हो तो होशियार बने रहना । बाकियो के साथ मत चड जाना । ध्यान रखो इतना भी मुश्किल नही है और अब से मेरी नजर है तुम पर । "

इतना कह कर वो चले गए और फिर मेरी जान में जान आयी । उस वक्त मैं बड़ी ही अजीब कशमकश में था । थोड़ा डरा हुआ लेकिन मुझे अच्छा महसूस हो रहा था । मैं कह सकता हूँ उस इंसान ने मेरा दिल जीत लिया था । सिर्फ इसीलिए नही की उन्होंने थोड़ी बहोत मेरी तारीफ की बल्कि इसीलिये की एक कठोर इंसान के पीछे छुपा नेकदिल इंसान को मैंने पहचान लिया था । तो एक तो ये जनाब है जो मेरी स्टूडेंट लाइफ में मेरे सबसे पसंदीदा रहे है । इनके अलावा दूसरे थे हमारे ट्यूशन मे अंग्रेजी का विषय पढाते थे उनका नाम प्रवीण वघासीया । हालांकि सब उनको उनके छोटे कद की वजह से ' पौवा ' या तो ' पाउच ' कहकर बुलाते थे और ये बात उनको अच्छे से पता थी । कभी कभार वो खुदको भी इसी नाम से बुलाते थे और अगर उनके सामने आप उन्हें इसी नाम से बुलाये तो वो बुरा भी नही मानते थे हालांकि ये उनके मिजाज पर निर्भर करता था । वैसे उनको मैं पर्सनली नही जानता था और नही वो मुझे । लेकिन उनकी बाते , उनका अंदाज , उनकी हसमुख शैली , उनके जोक्स करने की आदतों के बारे में मैंने मेरे बड़े भाई बहनों से काफी बार सुन रखा था । तो ये थे मेरे दो सबसे पसंदीदा टीचर । एकदूसरे से बिल्कुल विपरीत स्वभाव , कद काठी और मिजाज के ।

मैंने खुद को जिंदगी में हमेशा तन्हा ही समजा है । इसीलिए ये सभी और आगे जो आनेवाले है वो सब उन लोगो मे शामिल है जिसे मैं हमेशा अपने परिवार के तौर पर देखना चाहता था । जिंदगी तो बस यूँही कट रही थी और हम सब भी शायद इसे ही जिंदगी जीना कहते है । हम कभी लम्हो का आनंद नही लेते । मेरे अनुसार सिर्फ कुछ लम्हो में ही जिंदगी जी जा सकती है मगर हम हमेशा उन्हें अक्सर गवाँ देते है और पैसों से खुशियाँ तौलने में सारी जिंदगी खर्च कर देते है ।

इन दिनों मैं थोड़ा मायूस रहता था और क्यो न होऊँ आखिर हमारे ट्यूशन में दस बारह दिनों का वेकेशन शुरू हो रहा था । इसका मतलब अगले दस बारह दिनों तक आपका वक्त सिर्फ मोबाइल की स्क्रीन पे या तो फिर टीवी के सामने बीत ने वाला था । वैसे मेरे पास काफी किताबे भी थी जिन्हें में कई कई बार पढ़ चुका था और वापस मुझे यही करना था । एक अच्छी खबर भी थी कि अब स्कूल और ट्यूशन दोनों साथ शुरू होंगे । जिंदगी थोड़ी ज्यादा व्यस्त हो जाएगी और मैं भी । फिर जैसे तैसे ये दिन कट रहे थे और स्कूल शुरू होने का दिन नजदीक आ रहा था । हम सब ने मिलकर घर पे और ट्यूशन में जूठ बोल रखा था के स्कूल थोड़े दिन बाद शुरू हो रहा है क्योकि ट्यूशन में सुबह सुबह पढ़ने का मजा कुछ और ही होता है बरश्ते अगर आप वाकहि पढ़ाई कर रहे हो । लेकिन ये बात हम सिर्फ कुछ ही स्टूडेंट को बता पाए थे । इसलिए बाकी के स्टूडेंट्स अच्छे बच्चे की तरह स्कूल पहोच गए थे । जब हम ट्यूशन पहोचे तो हम आधी क्लास से भी कम की संख्या में बैठे थे और बाद में जो दाट पड़ी माँ कसम मजा आ गया । क्योंकि एसपी सर जब डांटते है तो वो डाँट कम मजाक ज्यादा लगता था ।

मैं सुबह लगभग 6:30 बजे के आसपास तैयार होकर सोसाइटी के गेट पे पहोच गया । मैंने देखा एनपी वहाँ पहले से मौजूद था । उसने हमेशा की तरह मुझे च्विंगम दी और फिर हमने बात शुरू की । उसने मेरी ओर देखते हुए कहाँ ,

" आज तो पहला दिन है और सुनने में आया है कि जो पुराना स्टाफ था वो आधे से ज्यादा तो बदल गया है । सब छोड़कर चले गए परेशान होकर ।"

उसने हँसते हुए कहाँ । मैं भी जवाब में हँस दिया । फिर मैंने कहाँ , " नही यार , ये पुराना स्टाफ कहाँ था ! ये तो ग्यारवी में दिवाली के बाद ही तो आया था अब वो भी चला गया तो जरा सोच अब जो आये होंगे वो हमें कैसे संभाल पाएंगे ।"

ठीक उसी वक्त बद्री भी आ गया । लेकिन साहबज़ादे तो कभी जल्दी आएंगे नही । मैं हमेशा उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ जब वो सिर्फ एक बार हमसे पहले आकर हमारे होश उड़ा दे लेकिन मुझे नही लगता वो दिन आएगा । दूर से उसे आता देख हम चलने लगे क्योकि पहले से ही हमें देर हो गयी थी और उससे बहस करने से भी कोई फायदा नही था क्योंकि हमें उसके बहाने पहले से मालूम थे । और इस रास्ते पर हमें कई ओर लोग भी जॉइन करने वाले थे । सबसे पहले मेरा चचेरा भाई जो कि मेरी ही क्लास में था । वो मेरा भाई होने से पहले मेरा दोस्त रहा है । ये बंदा ऐसा है जो आध्यात्मिक में बहोत ही यकीन करता है । मतलब आपको ध्यान , योग और मोक्ष की बाते सवेरे सवेरे सुननी पड़ेगी । लेकिन इसमें भी कोई ज्यादा दिक्कत नही थी क्योंकि राजू ने फालतू चीजे बोलने में पीएचडी कर रखी है । आपकी छोटी से छोटी बात को भी वो दो तीन घन्टे बड़े आराम से खींच सकता है ।इसलिए आप उससे बहस करने में न सोचें वोही आपके लिए बेहतर है । वैसे मैं हमेशा उसकी बहस को टक्कर देता आया हूँ मतलब मैं भी कुछ कुछ उसीकी तरह हूँ । वो भी मुझ से ज्यादा बहस नही करता था क्योंकि उसके सभी कांड मैं काफी अच्छे से जानता था । इसलिए अकसर हम दोनों साथ मिलकर बाकियो के साथ बहस करने मे लगे रहते थे ।

हम ने स्कूल के बड़े से मैदान में कदम रखा । हमारी स्कूल याने की M.N.J.Patel secondary and higher secondary school हमारे इलाके की शायद सबसे बदनाम स्कूल । क्योकि यहाँ आप पढ़ाई के अलावा सब कुछ कर सकते है । लेकिन यही वो स्कूल रहा है जिसने हमें ढेर सारी यादें दी है । जो शायद पढ़ाई नही दे सकती थी । आज भी जब हम सब दोस्त मिलते है और इन दिनों का जिक्र करते है तो आँख से आँसू निकल आये उतना हस्ते है । पहला दिन याने की आप अंदाजा लगा सकते है कि सबसे पहले मैदान में प्रिंसीपल पा लंबा और बोरिंग सा भाषण होगा । जिसमें आपको चेतावनी दी जाती है कि इस साल आपको कैसे पढ़ाई करनी है और यही वो साल है जो आपकी जिंदगी या तो बनाएगा या फिर बिगड़ेगा । हर बार यही घिसा पिटा भाषण सुनने के हम अब आदी हो चुके थे । अगले साल के अंत मे स्कूल ने एक बड़ा सा विस्फोट कर दिया था और वो ये था कि वो सारे होशियार स्टूडेंट्स की एक अलग क्लास बना रहे थे । दूसरी क्लास में मध्यम स्टूडेंट्स और तीसरी क्लास में ऐसे लोग जो सिर्फ एन्जॉय करने आते है । उन्होंने शायद ये सोचा होगा कि सिर्फ एक ही क्लास पर ध्यान देना पड़ेगा । मग़र उन्होंने एक गलती कर दी उन्होंने मुझे , मेरा भाई और राजू को होशियार की क्लास में डाल दिया । इसका मतलब ये भी नही की ये गलती से हुआ था । सच तो ये था कि हमने ही उन्हें मजबूर किया था क्योंकि हम सब शरारत के साथ साथ पढ़ाई में भी काफी अच्छे थे । आखिर फिर भी ये तो गलती ही थी और ये बात उन्हें वक्त बीतने पर पता चलने वाली थी । हम तीनों अपनी नई क्लास में दाखिल हुए और हमने देखा कि सब पीछे बैठे हुए है इसलिए हमें मजबूरन पहली बेंच पर बैठना पड़ा । हम अब हमारे क्लास टीचर का इंतजार कर रहे थे और हमे लग रहा था कि वो हर्षद प्रजापति होंगे । जिसका जिक्र मैंने अभी अपने पसंदीदा टीचर में किया । लेकिन जो आया उन्हें देखकर हमें 440 wt का बड़ा जटका लगा । क्योकि जो इंसान हमारे सामने आकर हमारे क्लास टीचर के रूप में खड़ा था उसे तो हम इस साल एस्पेक्ट ही नही कर रहे थे । हमे लगा था अच्छा हुआ ये चुड़ैल गई । लेकिन जब आपकी किस्मत खराब हो तो आप कुछ नही कर सकते । ये पहला दिन ही हमे मनहूस लगा क्योकि उसने हमे खबर दी कि हर्षद सर स्कूल छोड़ चुके है इसलिए आपके इकोनॉमिक्स का विषय भी नए टीचर पढ़ाएंगे ।

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