मंज़िलों का दलदल - 1 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मंज़िलों का दलदल - 1

इस क़ामयाबी के दलदल से कैसे निकलोगे
जब मंज़िले -ए- ज़माना ही दलदल हो.... !
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गुंजन.... गुंजन.... अरे उठोगी या यू ही सारा दिन सोती रहोगी.... देखो ग्यारह बजने को हैं...
और मां सीला ने गुंजन का चादर उसके मुँह से हटा दिया... गुंजन दूसरी तरफ करबट लेकर लेटी रहीं...
ओफ्हो गुंजन जब से तुम कॉलेज में क्या पढ़ने लगी हो तुम्हारी आदते भी खराब हो गयी हैं... ये कोई सोने का समय हैं आधा दिन होने बाला हैं और तुम हो कि उठने का नाम नहीं लें रहीं हो...
अब बस भी करो मम्मी कितना बोलोगी...
हां... हां... मेरा बोलना ही बेकार हैं... जब तुम्हारा मन करें उठ जाना मै कुछ नहीं बोलूंगी...
और सीला बड़ बड़ाती हुई गुंजन के कमरे से बाहर निकल जाती हैं.. मां के जानें के बाद ही गुंजन उठ कर बैठ जाती हैं....
ओफ़ क्या मुसीबत हैं... सुकून से सोने भी नहीं नहीं देती...
कुछ देर गुंजन बिस्तर पर यू ही बैठी रहती हैं मानो उसके दिमांग में कुछ चल रहा हो.... उसके चेहरे पर परेशानी साफ दिखाई देती हैं...
मुझें घर नहीं आना चाहिए था... स्वेता जी ने कहा था कि कुछ दिन अंडरग्रॉउंड हो जाओ... लेकिन मै अपने घर के अलावा और कही भी तो सुरक्षित नहीं थी.... फिर किसी को क्या पता कि मै यहां की रहने बाली हूं... वैसे भी स्वेता जी कोई कम पहुंच बाली नहीं हैं...
इतना सोचते ही गुंजन बेड से उतर कर ख़डी हो गयी थी... तभी सीला फिर चिल्लाते हुए दौड़ी -दौड़ी आई.. गुंजन.... गुंजन.... जरा देख तो ये टीवी वाले तेरी सहेलियों को टीवी पर क्यों दिखा रहें हैं...
इतना सुनते ही गुंजन भाग कर टीवी वाले कमरे की तरफ दौड़ी थी... टीवी पर स्वेता और नेहा, बबली और नीता के फोटो देख वो अपना सिर पकड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी थी.... उसे इस हाल में देख सीला परेशान हो उठी थी...
क्या हुआ गुंजन.... क्या किया इन लोगों ने... और तू इतना परेशान क्यों हो रहीं हैं....
मां... ये मेरी दोस्त ज़रूर हैं पर म.... म... मैंने कुछ नहीं किया...
जब तूने कुछ नहीं किया तो तू इतना परेशान क्यों हो रहीं हैं.... और फिर इन लोगों ने ऐसा क्या किया जो इतना हल्ला मच रहा हैं...?
मम्मी अभी तुम नहीं समझोगी... म... मै.... बता नहीं सकती...
देख गुंजन मै इतना तो समझ रहीं हूं कि आज कल के नौजवान किस दिशा में जा रहें हैं... और ये मामला क्या हैं... भले मै पढ़ी लिखी नहीं हूं गवार हूं लेकिन इतना तो समझती हूं कि इन लोगों ने क्या कांड किया हैं... तूं सच -सच बता कही तूं भी तो इन के साथ शामिल थी....?
मां की बात सुन गुंजन चुप रहीं....
देख गुंजन तेरा ये चुप रहना मेरे शक को सही साबित कर रहा हैं.... अगर तू भी इस में शामिल हैं तो समझ लें आज से हम सब तेरे लिए मर गये... शहर में तुझें अच्छीं पढ़ाई के लिए भेजा था... अगर ये बात गांव बालो को पता चलेगी तो हम तो जीते जी मर जाएंगे...
गुंजन की सिसकियाँ तेज हो चुकी थी....

क्रमश - भाग -2