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दोस्ती है या प्यार - 1

दोस्तो चलो आज आप को एक नए प्यार की कहानी सुनाते हैं।
इस कहानी के मुख्य दो पात्र है एक मै प्रिंस (परिवर्तित नाम) और एक वो सुषमा (परिवर्तित नाम) मै 12 वीं कक्षा में प्रवेश किया प्राइवेट से और उसी के साथ एक गैराज मोटरसाइकिल बनाने का काम शुरू किया अपनी पढ़ाई और गैराज दोनों चला रहा था। मेरे गैराज के बगल में मेरे दूर के रिश्तेदार घर था उनकी एक लड़की थी जिसका (परिवर्तित नाम) सुषमा है, मेरा गैराज उन्हीं के मकान में था और रिश्तेदार भी थे तो आना जाना लगा रहता था।
धीरे धीरे शुषमा के घर में सबसे अच्छा संबंध हो गया, और सुषमा से भी क्यों की मेरा स्वभाव ही ऐसा है कि हर किसी को जल्द ही दोस्त बना लेता हूं। मैं गैराज के पीछे रहता था तो खुद से खाना बनाता था तो सबसे हेल मेल होने के कारण कभी खाना बनाने में लेट हो गया तो बुला कर खाना खिला देते थे।
धीरे धीरे दो तीन महीने बाद ऐसा हुआ कि एक परिवार जैसे रहने लगे। कभी उन्हें मेरी जरूरत हो तो बुला लेते थे बाजार से सामान लेने के लिए कहीं घूमने जाने के लिए। क्यों की शुसमा के पिता जी नहीं है दो भाई हैं जो बाहर नैकरी करते हैं। धीरे धीरे हम दोनों एक अच्छे दोस्त बन गए।
हम दोनों बाजार साथ में जाते थे हर शाम को वहां पर होटल में नाश्ता करते थोड़ा बाजार में घूमते और वापस घर आ जाते थे, मैं उसे अपना अच्छा दोस्त मानता था लेकिन कभी कभी मुझे लगता था कि वो मुझे चाहने लगी है। लेकिन ना मुझमें बोलने की हिम्मत थी और ना वो बोल पा रही थी, ऐसा करीब पांच महीने तक चलता रहा।
एक दिन घर में सुषमा थी और मम्मी थी उसकी, उसके मम्मी को कहीं जाना था तो मुझे बुलाया और बोली आज तुम यहीं रहना घर में सुषमा अकेली है मैं शाम को घर आउगी ।
आज मेरे मन में आया कि अच्छा अवसर है बोल देता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूं, और सायद उसके मन में भी था। लेकिन मेरे मन में एक विचार आया कि इसके मम्मी को मुझ पर भरोसा बहुत ज्यादा है, तभी तो अपनी जवान बेटी को मेरे साथ अकेला घर में छोड़ कर चली गई ये सोच कर मेरे दिल से प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन उसकी हरतों से लग रहा था कि वो चाहती है कि मैं उसे बोलू आज की मै तुमसे प्यार करता हूं।
लेकिन मै ने सोच लिया कि दोस्ती तक ही अच्छा है प्यार नहीं, पूरा दिन निकल गया रात को दस बज गए तब उसकी मम्मी आई और हम तीनो ने मिलकर खाना खाया और रात ज्यदा थी तो उसी के घर में सो गया।
एक दिन की बात है सुबह सुबह ही मुझे सुषमा बोली आज मुझे कहीं घूमाने ले कर चलो मैं बोला समय मिलेगा तो चलूंगा और मैं अपने गैराज में काम करने लगा समय निकल गया शाम हो गई, वो थोड़ा रूठी थी तो मैं उसके पसंद के समोसे ले कर आया तो थोड़ा खुश हुई, और बोली अभी बाजार चलना है सर्दी का मौसम था मैंने कहा सर्दी है सुबह चलेंगे तो वो बोली नहीं अभी चलना है। मैं मोटरसाइकिल निकाला और बैठाया चल दिया बाजार में घूमते रहे कुछ बोली ही नहीं जब काफी समय हो गया तो मै बोला क्या हुआ क्या लेना है तो वो बोली अब चलो नया वाला बांध देखना है मुझे, मैंने कहा रात को कोहरा छाया है ऐसे में क्या दिखेगा वो बोली नहीं मुझे तो अभी देखना है।
लेकर गया उसने मेरा हाथ पकड़ कर पूरे बांध का चक्कर लगाया उसके मन में था कि आज तो बोलेगा लेकिन मैं उसे लेकर वापस घर आ गया और कुछ भी नहीं बोल पाया। ऐसे ही हम दोनों कई बार घूमने गए एक साथ काफी समय बिताया लेकिन ना मै अपने प्यार के बारे में बता पाया और ना वो। मेरे ना बताने का कारण शायद मेरे अंदर का डर था, जो बार बार मुझसे कहता था कि बता कर कहीं तू उसे खो ना दे।
आगे की कहानी"दोस्ती है या प्यार भाग-2" में देखे

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