अधूरा प्रेम - भाग - 3 Suresh Maurya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अधूरा प्रेम - भाग - 3

फिर अंगध्वज और चन्द्रकिरण दोनो ने शादी कर लिये अग्नि के सामने सात फेरे लिये इन दोनो ने शादी तो कर लिए लेकिन दोस्तों जिसके किस्म्मत में जो लिखा होता है उसके साथ वही होता है , आज 500 साल बाद मिले थे लेकिन शायद भाग्य को कुछ और मंजूर था ! ऐसे ही कुछ इनके साथ भी हुआ । शादी होने के बाद ये दोनो बगीचे में घूमने गये । तो उन्हे एक आवाज सुनाई पडा ,टें ,टें , टें , उन्होंने नजर घूमाया तो क्या देखते हैं कि एक तोता झाडी में फंसा हुआ चीख रहा है । अंगध्वज ने उसे बहार निकाला और पास के झरने से पानी पिलाया ,अब तुम ठीक हो ?
तोता - बहुत बहुत धन्यवाद दोस्त , मैं बिलकुल ठीक हूँ।
चंद्रकिरण - अरे येे तो बोलता भी है , कितनी प्यारी आवाज है !
अंगध्वज - अब तुम आजाद हो जाओ अपनेे परिवार के पास जाओ ।
तोता - हमारा कोई परिवार नही है , हम इस जंगल मे अकेलेे भटकता हूँ
अंगध्वज - कोई बात नहीं तुुुम हमारे साथ रह सकतेे हो ।तुमने हमें अपना दोस्त कहा है तो आखिर एक दोस्त, दोस्त के साथ रहनेे में जो मजा है अकेलेे जीने मेेंं कहाँ।
वैसे भी हमारी प्यारी चंद्रकिरण को आपके साथ मनोरंजन करने में बहुत अच्छा लगेगा। "है ना चंद्रकिरण"
(अच्छा ये बताओ क्या मनोरंजन कर सकते हो हो हमसब के लिए ? चंद्रकिरण ने तोते से पूछा । यह सुनकर तोते ने चंद्रकिरण से कहा)
शेर- आप तो जन्नत के अप्सराओं,
से भी कयामत लगती हो .।
झुकी पलकें उदास चेहरे मे,
और भी प्यारी लगती हो.।
( अरे वाह ये तो सचमुच अद्भुत तोता है सच में तुम बहुत कमाल के हो नाम क्या है तुम्हारा ....??)
तोता_ मत पूछो मेरा नाम ,
हम तो दीवाने हैं ।
कहाँ जा रहे थे , कहाँ आ गये ,
ये हम भी ना जाने ।
( यह कहकर तोता उड गया । तू तो बडा शायर है रे ठहर तुझे मैंं बताती हूँँ , और चंद्रकिरण ने तोते का पीछा किया)
इधर अंगध्वज एक पेड़ के नीचे बैठ गया , तभी उसके पास एक मुसाफिर आया । उसके कंधे पर एक बडा सा झोला था , वह भी अंगध्वज के पास बैठ गया ।
अंगध्वज_ बहुत थके हुुुए लग रहे हो कहीं दूूूर से आये हो क्या ?
मुसाफिर_ सत्य कहा भाई तुमनें मैं बहुत दूूूर से आया हूँ और पता नहीं कहाँ कहाँ जाना है ।
अंगध्वज_ मंजिल का पता नही ऐसा कौन सा काम है ?
मुसाफिर_ मेरे पास राजकुुमारियोंं की तस्वीर है मैंं सभी राजकुमारों को येे फोटो दिखाता हूूँ और इनके विवाह का रिश्ता करवाता हूँ ताकि इनका विवाह हो जाये ।आपको तस्वीर दिखाएं क्या ।
अंगध्वज_ नहीं नहीं मुझे जरूरत नही है , मैैं विवाहत हूँँ मेरी चंद्रकिरण लाखों में एक है मैं अपनी प्यारी से बहुत प्रेम करता हूँ।
तभी अचानक एक हवा का झोंका आया और झोले से एक तस्वीर उडकर अंगध्वज के ऊपर जा गिरा । अंगध्वज तस्वीर को देना चाहा कि उनकी नजर तस्वीर के चित्र पर पडी जो एक अति खूबसूरत कन्याअपनी हुस्न के ऊपर गुरूर किए हुए इस तरह से मुसकरा रही थी जिसे देखकर अंगध्वज चन्द्रकिरण को भूल के उसके इश्क में तुरंत गिरफ्तार हो गये ।अंगध्वज मुसाफिर से पूछने लगे कि मित्र यह कामदेव के समान अपने हुस्न से चन्द्रमा को लज्जित कर देने वाली ये कहाँ की राजकुमारी है । तब मुसाफिर कहने लगा _
दक्षिण दिशा में राजा की ये दुलारी
नाम अवन्तिका रूपनगर की है ये कुमारी
है कुवंर जी इस राजकुमारी अवन्तिका में ना जाने ऐसा क्या है कि इसकी कुंडली किसी कुमार से मिलती ही नहीं । जो भी राजकुमार जाते हैं लौट आते हैं ।पता नही इसका जीवन साथी कौन बनेगा ।अच्छा मेरे दोस्त अब मैं चलता हूँ मुझे अपनी मंजिल तय करनी है, यह कहकर मुसाफिर चला गया । लेकिन अंगध्वज ने चन्द्रकिरण को इस तरह से भूला कि उसे यह भी नहीं मालूम कि अभी कुछ समय पहले मेरा विवाह हुआ है । अब वह अवन्तिका को पाने के लिए रूप नगर कि तरफ तुरंत रवाना हो गया
नमस्कार दोस्तों फिर मिलेंगे अगले भाग मे
??? Suresh maurya .