सिर्फ जिस्म नहीं मैं - 2 Divya Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सिर्फ जिस्म नहीं मैं - 2


फोन को डिसकनेक्ट कर वह आरती के बगल में बैठ जाता है।माथे पर पसीने की बूंद उभर आती है।
टेंशन में आरती के हाथ पर दबाव डालने लगता है।दर्द से आरती कराह उठती है और विवेक को बोलती है.."विवेक!ऐसे हाथ क्यों दबा रहे हो क्या हुआ तुम्हें?"
"वो.. फोन!"वह जवाब देता है।
" फोन!...फोन क्या विवेक?"
"अभी फोन आया था उसका।"
"किसका फोन!क्या बोल रहे हो ठीक से बताओ।"
"विशू का।"विवेक ने अटकते हुए कहा।
"विशू!विवेक दिमाग खराब है क्या।क्या अनापशनाप बोल रहे हो।"
"मैं सच कह रहा हूं विश्वास करो।"
"कूल डाउन विवेक।बहुत समय से यह सब झेल रहे हो आप ऐसा भ्रम हो जाता है रिलैक्स।"आरती उसे समझाते हुए कहती है।
"तुम्हें विश्वास नहीं ना ..देखो अभी दिखाता हूँ..देखो अभी दोबारा उसी नंबर पर फोन करता हूँ।"वह मोबाइल ऑन करता है...
"अरे नंबर कहाँ गया... वो नंबर!"
"क्या हुआ अब?"
"वह नंबर गायब है मोबाइल से।"परेशान हो कर वह कहता है।
"वहम होगा तुम्हें।चलो शैली को देखते है।जीजू कमरें में ले गए उसे।"
अनमना सा विवेक उसके पीछे चल पड़ता है।बेड पर शैली पति का हाथ पकडे बैठी थी।रोने से आँखों में सूजन साफ दिख रही थीं।उसके चेहरे को देखकर डॉक्टर विवेक के दुखी हो जाता है।कहीं न कहीं शैली से एक जुड़ाव हो गया था कोई तो वजह थी।
"आरती!"शैली आरती को देखकर बोलती है।
अब उसके चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था।
"हाँ शैली!"आरती उसके निकट जाकर उसकी हथेली अपने हाथों में ले लेती है।
"कुछ नहीं बचा मेरे जीवन में आरती।सब बर्बाद हो गया।"वह आरती के हाथ को सीने से लगाकर फफक पड़ती है।
"शैली शांत हो जाओ।बस और नहीं।जीजू को देखो उनकी हालत देखो तुम।तुम्हें हिम्मत करनी होगी।"आरती ने शैली के सिर को सीने से लगा लिया।
"पर अब जीना नहीं चाहती ....मेरा बेटा।"
"शैली.. ऐसा मत कहो।"
पूरे कमरे में बस शैली के सुबकने की आवाज सुनाई देती रहती है।आरती उसके सिर को ऐसे ही सीने से लगाए खड़ी रहती है।इतने दिनों का दर्द आज आँसुओं में बह रहा था।तभी डॉक्टर मेहता रूम में आते है....
"शैली.... कैसी हो?"वह शैली को पूछते हैं।
शैली खामोश रहती है।
"जवाब तो दो।सिर दर्द तो नहीं?"
वह न में सिर हिला देती है।
"सुबह शैली को अपने घर ले जा सकते हो आप विवेक।पर दो दिन बाद शैली मेरे साथ एक खास जगह जायेगी।शायद इसकी खोई खुशियां वहीं मिल जाए।"डॉक्टर मेहता कहते है।
शैली डॉक्टर मेहता की बात का सिर हिला कर जवाब दे देती है।
सुबह घर के गेट पर कमला खड़ी मिलती है।शैली और विवेक को साथ देखकर उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ जाते है।
"कैसी हो कमला?"शैली बुझी आवाज में उसे पूछती है।
"मेमसाब!इतने दिनों बाद आज ठीक हूँ वरना...।"आँखों के आँसू को पल्लू से साफ कर वह बोलती है।
"मैं जूस बनाती हूँ..जल्दी से।" अंदर जाते हुए वह बोलती है।
"पर विशू के लिए ऑरेंज जू......शैली की बात अधूरी रह जाती है।
वह चुपचाप विवेक के साथ अंदर आ जाती है।
घर के हर कोने में विशू था।उसकी तस्वीर के पास जा वह तस्वीर हाथ में लेकर देखती रहती है।
उधर डॉक्टर विवेक को कुछ अधूरापन लगने लगता है उसे बार बार शैली का चेहरा नजर आता रहता है।
"विवेक हॉस्पिटल आ रहे हो ना?आरती पूछती है।
"नहीं तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही।आज मैनेज कर लो प्लीज!"
"क्या हुआ विवेक?अब परेशान मत हो।सब ठीक है शैली ठीक है अब।"
"पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है जैसे विशू आस पास ही है।"वह आरती को बोलता है।
"खुद को संभालो आप।खुद डॉक्टर है आप खुद समझते हो कि यह सब बस एक वहम है।शैली के साथ इतना समय बिताया है तभी उसके दुख के साथ जुड गए हो।"
"शायद ऐसा ही है।ठीक है मैं भी आता हूँ।"
विशू के कमरे में सब कुछ वैसे ही था जैसे पहले अगर कोई नहीं था तो बस विशू नहीं था।शैली उसकी चीजों को निकाल कर देखती रहती है।
बेटे की शरारतों को याद कर वह एलबम निकाल कर बैठ जाती है।
"क्या देख रही हो माँ!"
"विशू!"आश्चर्य से वह अपने सामने बैठे विशू को देखती है।
"तू...तू..कहाँ चला जाता है?सब कह रहे है तू मुझे छोडकर चला गया... तू सबके सामने आता क्यों नहीं क्यों सताता है मुझे।"
"मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जा सकता माँ!सब झूठ बोल रहे है।मैं हमेशा आपके पास रहूंगा।"शैली के गले लगकर उसनें कहा।
"खट!"एक तेज आवाज होती है।शैली एकदम चौंक कर आवाज की ओर देखती है तो विशू का क्रिकेट बैट जमीन पर गिरा दिखता है।
"देख..तेरा बैट गिर गया ठीक से रखता क्यों नहीं!"वह पलटती है तो विशू फिर नहीं दिखता।

"चला गया ना!अभी बोल रहा था नहीं जाऊंगा... क्यों मेरे दिल को तड़पा रहा है।"उसकी तस्वीर को देखकर वह कहती है।
शैली को ऐसे खुद से बातें कर कमला विवेक को बुला लाती है।विवेक के मन में फिर डर आने लगता है और वह शैली के सामने जाकर खडा हो जाता है।
"शैली... प्लीज आज अपने हाथ से एक कप कॉफी बना दो।"
"हाँ...ठीक है बनाती हूँ।"वह यंत्रवत सी उठकर रसोई में चली जाती है।विवेक यह देखकर राहत की साँस लेता है कि शैली सामान्य है।
दो दिन बाद डॉक्टर मेहता के कहेनुसार वह निश्चित जगह पर पहूंच जाते है।वह.एक आश्रम जैसा लग रहा था और बच्चे खेल रहे थे।सामने से डॉक्टर मेहता को आता देख विवेक आगे बढकर पूछता है.."यहाँ क्यों बुलाया भाई साब?"
"दोनों पहले अंदर आओ।"दोनों को लेकर वह.एक बडे़ हाल में आते है।उस हाल में बहुत सारे बच्चे थे।शैली उन्हें देखकर मुस्कुराने लगती है।
वह बच्चों के पास.जाकर उनमें शामिल हो जाती है।उसके चेहरे पर एक ताजगी दिखने लगती है यह देखकर वह दोनों खुश हो जाते है।
अभी कुछ समय बीता ही था कि उनके कानों में गिटार की आवाज सुनाई देने लगती है।शैली आवाज की दिशा में चल पड़ती है।खिड़की के नजदीक पीठ फेरे कोई गिटार बजा रहा था।शैली तेज कदमों से उस ओर बढती है और वह दोनों भी उसके पीछे हो लेते है।
वहां एक दस बारह साल का लड़का गिटार बजा रहा था।
"भैया.. ये बच्चा.. ये..बिल्कुल विशू की तरह गिटार बजा रहा है।विवेक सुनो ..देखो तुम।"शैली उत्सुकता से बोलती है।वह लड़का उन्हें देखकर सहम जाता है।
डॉक्टर मेहता पास खड़े आश्रम के कर्मचारी को बुलाते हैं और पूछते हैं।
"यह बच्चा कौन है?"
"अभी छ:महीने पहले ही आश्रम में आया है।एक एक्सिडेंट में माता पिता दोनों की मौत हो गई पर यह बच गया।जब से आया है तब से गुमसुम ही है।"
"क्या हम इसे अपना सकते है विवेक?क्या घर ले जा सकते है इसे!"शैली जल्दी जल्दी बोलने लगती है।
विवेक डॉक्टर मेहता की तरफ देखता है और वह सहमति के लिए इशारा कर देते है।
"ठीक है शैली.. पर गोद लेने के लिए पेपर बनवाने पडेंगे ना!अभी घर चलते हैं और जल्द ही हमारे बेटे को हम ले जायेंगे।
"ठीक है.. ठीक.. है।"उस बच्चे को वह गले लगा लेती है और बोलती है"जल्दी ले जाऊंगी अपने घर... जल्दी।"बच्चा अनमना होकर दूर हो जाता है।
"क्या हुआ मुझे माँ बनाओगे ना!"
"वह शैली को देखता है और एक ओर चल देता है थोडी दूर जाकर वापस लौट कर उसके गले लग जाता है और रोने लगता है।शैली उसकी पीठ सहलाने लगती है।दोनों को ऐसा देख सबकी आँखें नम हो जाती है।
"शैली चलो ...तभी तो पेपर्स तैयार होंगे और जल्दी तुम्हारा बेटा तुम्हें मिलेगा।
वह वापस लौट आते है एक उम्मीद एक खुशी अपने साथ लिए।विवेक हाथ में पकड़ी छड़ी एक ओर उछाल देते है।
क्रमशः

दिव्या राकेश शर्मा।