कला- हीन कला केंद्र यशवंत कोठारी
हर शहर में कला केन्द्र होते हैं ,कलाकार होते हैं और कहीं कहीं कला भी होती है.रविन्द्र मंच,जवाहर कला केंद्र ,भारत भवन,मंडी हाउस ,आर्ट गेलेरियां आदि ऐसे ही स्थान है जहाँ पर कला के कद्रदान विचरते रहते हैं.सरकार ने संस्कृति की रक्षा के लिए एक पूरा महकमा बना दिया है जो कला संकृति की रक्षा के लिए कला कारों को हड़काता रहता है .चलो जल्दी करो मंत्रीजी के आने का समय हो गया है और तुम यहाँ क्या कर रहे हो जाओ कोस्टुम पहनो. सीधे खड़े रहो, सी एम् सर को प्रणाम करो, सचिव को जुहार करो.निदेशक को पावाधोक करो. चलो जलदी करो. अकादमियों के अध्यक्षों का क्या आचार डालना है?अध्यक्ष बनाओगे तो वो भी अपना हिस्सा मांगेगा इससे तो विभाग ही ठीक है.हम सब कर लेंगे.तुम बस चुपचाप तमाशा देखो ,बीस प्रतिशत काट कर सबको चेक मिल जायगा, लेखाकार को इसी काम के लिए छुट्टी के दिन भी बुलाया है,बेचारा सब काम छोड़ कर आया है.उसे एक छुट्टी दे देंगे.और एक सी सी एल .बेचारा कैसे अच्छे से बिल बनता है ऑडिट कुछ सूंघ नहीं पाती.
हाँ आ प लोग नाटक ,नोटंकी ,संगीत,लोक कला का रियाज़ अच्छे से करो ,सबको चाय नाश्ता मिलेगा .पी ए जरा देखना भाई सब मुझे ही करना –देखना पड़ता है, और ये मीडिया वाले कितना भी खिलाओ पिलाओ फिर भी सब नुगरे होजाते हैं ,पता नहीं भगवन ने यह नस्ल क्यों बनायी?
वैसे सरकारें संस्कृति के लफड़े में नहीं पड़तीं थी ,वो तो सडक,रेल ,रक्षा,विदेश मामलों में ही व्यस्त रहती हैं,मगर इधर कुछ अफसरों ने सोचा और सही सोचा की कला ,में भी भ्रष्टाचार का पूरा स्कोप है मंत्री ने भी सोचा ,फिर क्या था छोटे अफसरों की तो निकल पड़ी ,वे संस्कृति कला,लोक कला,संगीत,पेंटिंग आदि के पीछे पड गए.हर राज्य में मेले ठेले समारोहों के आयोजन प्रयोजन होने की ख़बरें आने लगी. केंद्र अनुदान दे रहा है,राज्य सरकार ले रही हैं अफसरों की बीबियों ,प्रेमिकाओं ,सालियों ने कला के धंधे में प्रवेश ले लिया है.कोई नाटक हो तो लाओ यार.दस लाख का अनुदान दिलवा दूंगी ,कोई संगीत समारोह कर डालो.उपर से मॉल खींचना है .जोधपुर, बीकानेर मेवाड़ ,बा गड़ प्रदेश,बुरुंदा,हवेली संगीत ,कुछ भी बचना नहीं चाहिए .सब को समेट लो.शास्त्रीय संगीत भी चलेगा.पार्क में करवा देंगे.यार जरा देखो कोई स्टैंडिंग कामेडियन मिल जाये तो ,महिला भी चलेगी चेहरा मोहरा जरा ठीक ठाक हो ,जो हम दे ले ले और रसीद पर चिड़िया बैठा दे बाकि में सब देख लुंगी,कल ही योरोप से स्कोच मंगवाई है,फार्म हाउस पर पार्टी दी है इस संस्कृति के लिए.पचास लाख तो ले पडूँगी.गुलाबो मिल जाए तो बुक कर लो.नाम की काफी है.कोई मरणासन्न कलाकार हो तो भी पकड़ लाओ,सम्मान दिलवा देंगे.एक साफा,एक मोनुमेंट,एक शाल और क्या चाहिए कलाकार को ?कार्यक्रम में भी तो पैसा लगता है.बजट निपटाना है भाई.चलो जलदी करो.
और कुछ नहीं हो तो कोई चर्चा,गोष्टी ,सेमिनार,वर्कशॉप ही डाल लो यार.अपनी जान पहचान पि एम् ओ तक है .जवाहर कला केंद्र हो या भारत भवन या मंडीहाउस सब बजट को ठिकाने लगाने में लगे हैं.जिसके हाथ जितना आ जाये. पेंटिग के वर्क शाप में बड़ी बरकत है पता ही नहीं चलता कितना मॉल आया ,खाने के बिल जरा ध्यान से बनाना यार ,ठेका महा निदेशक की पड़ोसन का है.शिल्प ग्राम इस बार शानदार होना चाहिए भाई.सांस्कृतिक केन्द्रों पर तो बहार छाई हुयी है.क्या कहने ,मार्च से पहले सब निपटाना है.अपना उत्सव निपटे तो हिरोइन का कत्थक या भारत नाट्यम करावे ,एक करोड़ मांग रही है लेकिन सचिव ने साठ लाख में राजी कर लिया सीधे चालीस लाख की बचत अफसर हो तो ऐसा,लेकिन भाई साहब अफसर सीधा ही दस प्रतिशत जीम गया ,बस यही तो प्रॉब्लम है तुम मिडील क्लास की .प्रोग्राम क्या धांसू हुआ,मीडिया कवरेज देखा सब लल्लन टॉप.अफसर की बिबि की नाटक की किताब कैसी शानदार छपी और विमोचन खुद मंत्रीजी ने किया ,लेकिन यार कोई कह रहा था किताब उसने नहीं लिखी अरे यार उसके नाम से छपी है तो उस महिला ने ही लिखी है ये लेखक –पत्रकार तो ऐसे ही कपडे फाड़ते रहते है ,उसको भुगतान दे दिया था एकाध इनाम भी दे दिला देंगे ,चेनल वाले दो दिन तक दिखाते रहे.और वो लोक कला का पोस्टर ब्रोशर विदेश में छपा ,मगर आनंद आ गया ..देवियों और सज्जंनो!सरकार लोक कला को एक आभुषण की तरह पहनना चाहती है अब तो कला का भगवान ही मालिक है .आदिवासी कला ,देशी कला सब का उद्धार होगा .अफसर छोड़ेंगे नहीं किसी को.
बड़ी राजधानी से चलकर कला संस्कृति के नागराज, नाग ,नागिनें ,दीमकें ,इल्लियाँ,गिद्ध ,भेड़िये छोटी राजधानियों में उतर रहे हैं ,वे लोककला ,मोलेला की टेराकोटा ,भीलवाडा की फड कला ,लोक गीतों को समेट कर चील गाड़ी में बैठ कर विदेश उड़ जायेंगे ,बैलगाड़ी वाले देखते रह जायेंगे . ००००००
यशवंत कोठारी ८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर ,जयपुर -३०२०००२ मो-९४१४४६१२०७