अब लौट चले - 4 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अब लौट चले - 4

अब लौट चले -4

तभी बस का हॉर्न बजा तो मेरी तन्द्रता भंग हुई... लोग बस में बैठने लगे थे... और बस धीरे -धीरे रेंगने लगी थी.. मन असमंजस में हिचकोले लें रहा था जाऊ के ना जाऊ.. लेकिन ना जाऊ तो कहा जाऊ... बस ने रफ़्तार पकड़ लीं... मेरी धड़कने तेज़ होने लगी थी... मन बार -बार उचट रहा था क्या मुँह लेकर जा रहीं हू किस हक़ से जा रहीं हूं... लेकिन शरीर मनु के पास खींचा चला जा रहा था एक ज़िन्दा लाश की तरह...

वो वक़्त भी आ गया जब मै अपने पुराने घर जहाँ दुल्हन की तरह सज कर आई थी... लेकिन ये क्या जैसा 35 साल
पहले था आज भी वैसा ही है... लेकिन आस -पास के घर कोठियों में बदल गये थे... मैंने बड़े का दरवाजा खोला और अपने कदम अंदर की और बढ़ा दिये... वही पेड़... वही सबकुछ लेकिन रौनक नहीं थी सब वैसा ही मानो मेरे जानें के बाद यहां सब कुछ थम गया हों... वो झूला जिस पर रोज़ शाम यहीं बैठा करती थी लेकिन अब सब पर जंग और धूल की परते चढ़ चुकी थी.. अभिषेक का पालना जिसका कपड़ा सड़ कर आधा अधूरा लटक रहा था... ये मनु की बाइक आज भी वैसी ही खड़ी है... मेरी ज़िद थी की कर में बेठुंगी.. तभी तो मनु ने भी इसे नहीं चलाई थी... जो आज भी यही धूल में लिपटी खड़ी है... यहां की हर चीज 35 सालों की गर्मी, शर्दी और बरसात की कहानी बया कर रहीं थी... और मानो चीख -चीख कर कह रहीं थी चली जाओ यहां से... चली जाओ.
ना... ना... में अपने निर्णय से भटक रहीं हू कुछ ज्यादा ही ज़ज़्वाती हों रहीं थी.. लेकिन एक बार मनु और अभिषेक से मिलने की इस चाह को नहीं रोक सकती वरना आत्मा को सुकून नहीं मिलेगा... यहीं सोचते सोचते घर के मेने गेट के सामने पहुंच चुकी थी... मैंने संकोच करते करते बरवाजे पर दस्तक दी.. और दवाजा खुलने का इंतज़ार करने लगी... लेकिन मन ना माना तो फिर से हाँथ अपने आप ही फिर से दस्तक देने को उठा ही था कि किसी के चलने के पैरो की आवाज़ सुनाई दी...
शायद अभिषेक होगा... नहीं... मनु होगा... तभी धड़ से दरवाज़ा खुलता है.. सामने एक हट्टा कट्टा युवक जिसके चेहरे पर हलकी हलकी दाढ़ी बिलकुल जवानी का मनु... चमकता चेहरा उसने मुझे देख एक ठंडी सांस भरते हुए कहा...
अंदर आ जाइये...
और वो आगे आगे अंदर की और चल दिया और मै उसके पीछे पीछे चलने को हुई तो दहलीज पर मेरे कदम ठिठक से गये थे...
अब आ भी जाइये...
मै हिचकिचाहट के साथ अभिषेक के पीछे हों लीं... अंदर भी सब वैसा ही कुछ भी नहीं बदला वही सब कुछ बस देख कर ऐसा लग रहा था कि वर्षो से किसी ने यहां की किसी भी चीज को अभी तक हाँथ नहीं लगाया होगा...
तभी फिर मेरे कानो में आवाज़ गुंजी थी...
अब आ भी जाइए...
अंदर से घर बिलकुल अजीब सा बद हाल था... यहीं देखते देखते मै अभिषेक के पीछे पीछे जा रहीं थी अपने ही घर में अनजान मेहमान की तरह... शायद मनु अंदर ही होगा... मै यही सोचते हुए बेड रूम में पहुंच चुकी थी.....