जीनी का रहस्यमय जन्म Sohail Saifi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीनी का रहस्यमय जन्म

हम सब बच्चपन से ही अलादीन और उसके जीनी की रोमांचक कहानी बड़े चाव के साथ सुनते हैं किन्तु क्या आप जानते हैं की समान्य रूप से जीनों का रहन सहन किसी चिराग में नहीं होता बल्कि वह तो भव्य महलों और सुन्दर भवनों में रहते हैं जो कि अदृश्य होते है अब सोचने वाली बात है के अलादीन का जीनी एक चिराग में कैसे पहुंचा इसके पीछे एक अद्भुत रहस्यमय कहानी है जीसे मै आज आप को सुनाऊंगा लेकिन उससे पहले आप को जीनों की कुछ विशेष जानकारी देना आवशयक है


भले ही जीनो के पास अपार शक्ति और ज्ञान होता है किन्तु इसके बाद भी वो कुछ चीजों को करने में असमर्थ होते हैं जैसे कि
जीनों की आयु मनुष्य की तुलना में कई गुना अधिक होती हैं मगर उन्हें अमरता प्राप्त नहीं होती और ना ही वो किसी को अमरता का वरदान देने की क्षमता रखते हैं

यदि कोई सन्तान हीन हो तो कोई भी जीन उसे सन्तान सुख नहीं दे सकता
वो किसी भी मृत मनुष्य को पुर्न जीवित नहीं कर सकते
इस प्रकार की और भी बातें हैं जो अभी आवशयक नहीं

अरब देशों के एक प्राचीन नगर मे एक धनी और प्रसिद्ध साहुकार था वो सदेव धर्म कर्म मे लगा रहता गरीबों को दान देता संतों और ज्ञानियों का सम्मान पुर्वक अथिति सत्कार करता था

कहते हैं सिर्फ़ निकालने से बड़े से बड़ा कुआँ भी एक दिन सुख जाता है कुछ ही वर्षों में साहुकार का खानदानी धन समाप्ती के निकट आ पहुंचा जिसकी चिन्ता ने साहुकार को घेर लिया परन्तु इस पर भी वो ना रुका वो पहले के ही भाँति पूर्ण श्रद्धा से अपना दैनिक कार्य करता उसे जो मोक्ष और सन्तोष इन कार्यक्रमों को कर प्राप्त होता वो किसी अन्य से प्राप्त नहीं होता
एक दिन एक संत ने साहुकार की आओं भगत से प्रसन्न होकर उसे एक ऐसे जीन का रहस्य बताया जिसको स्वतंत्र करने पर साहुकार को अपार धन की प्राप्ति होती पर साथ में ये चेतावनी भी दी के वो जीन अपने दुष्ट कर्मो के कारण कैद है और उसे ऐसा वरदान प्राप्त है के उसके विनाश का कारण वे स्वयंम ही हो सकता है अन्य कोई उसका विनाश नही कर सकता यदि एक बार वो स्वतंत्र हो गया तो इश्वर ही जानता है वो किया करेगा
संत ने साहुकार को हर एक जानकारी और सामग्री दी जो आवशयक थी
कुछ दिनों पश्चात साहुकार अपने सेवकों को लेकर उस वीरान स्थान पर पहुंच गयें वहाँ बड़ा ही गाड़ा कोहरा था

कोहरा इतना अधिक था के पास खड़े व्यक्ति को भी देख पाना बड़ा कठिन हो गया था साहुकार के आदेश पर एक सेवक ने कुछ चन्दन की लकड़ियों को निकाला उसके पश्चात लकड़ियाँ जमा कर के चकमक पत्थर से आग निकाली और लकड़ियों को सुलगा दिया। जब चन्दन की लकड़ियों का धुआँ कोहरे मे मिला तब उसकी गन्ध वातावरण में फैल गई और उसे सूंघ कर एक एक कर ग्यारह सफेद रंग के सुन्दर हिरन वहा प्रकट हो गये जिन्होंने सारा कोहरा स्वास द्वारा अपने अन्दर खिंच लीया कोहरा छठा तब उनके सामने एक विशाल महल जो हीरे और मोतियों से जड़ित था प्रदर्शित हुआ उनके और महल के बीच में दो बाँस जितनी चोढ़ी एक पगडंडी बनी हुई थी जिसके बाएँ ओर विशाल दल-दल था और दाएँ ओर उबलता हुआ ज्वाला किसी प्रकार साहुकार अपने सेवकों के साथ उस महिम पगडंडी को पार कर महल में प्रवेश कर लेता है अब अन्दर महल में साहुकार को ग्यारह कक्ष मिलते हैं साहुकार अपने पास से एक कपड़े की गेंद निकाल कर कुछ मंत्र फूंक कर फैंक देता है ये गेंद उसी संत द्वारा साहुकार को प्राप्त हुईं थी वो गेंद लुड़क कर उन ग्यारह में से एक कक्ष के सामने रूक जातीं हैं जब साहुकार अपने सेवकों के साथ उस कक्ष में प्रवेश कर लेता है तो अपने आप उसके द्वार अदृश्य हो कर दीवार का रूप ले लेते है
अपने को फंसा जान सेवकों का साहस भय में परिवर्तित हो जाता है किन्तु साहुकार निडरता के साथ आगे बढ़ता चला जाता है और सेवक स्वामी भक्ति के कारण अपनी इच्छा के विरुद्ध जाकर साहुकार के पीछे हो लेते है

बहार से देखने में तो वो साधारण कक्ष प्रतीत होता था परन्तु अन्दर का स्थान एक अलग ही संसार का अनुभव करा रहा था नग्न आकाश था लम्बा चौड़ा दूर तक फैला बाग़
आगे चलकर उन लोगों को काफी सुन्दर और मनमोहक दृश्य दिखते हैं जो अब सेवकों का भेय दूर कर देते है परन्तु जींस प्रकार साहुकार को भय का कोई भाव ना था उसी प्रकार उसके मन से मनमोहक दृश्य का आनंद भी कोसों दूर था साहुकार का केवल एक ही लक्ष्य था जिसकी ओर वो बड़ी गम्भीरता से चले जा रहाँ था आखिर कार वो स्थान आ ही गया अभी तक के देखें गये सभी स्थानों में वो सर्वोपरि सर्वोत्तम था वहाँ पर सहस्रों सघन और सुंदर वृक्ष उचित दूरियों पर लगे थे। उनमें नाना प्रकार के सुस्वादु और आकर्षक रंगों के फल लगे हुए थे
वहाँ पर कई वृक्ष तो इतने अधिक फलों से लदे थे कि उनकी डालियाँ झुक गई थीं और उस स्थान पर चारों ओर कई प्रकार के फूल उगे हुए थे वो भी ऐसे के संसार में कोई ऐसा फूल नहीं होगा जो उस वाटिका में न हो। गुलाब, चमेली, नरगिस, बनफ्शा, चंपा, बेला, आदि नाना प्रकार के फूल वहाँ पर खिले हुए थे। उनकी सुगंध हवा में भरी हुई थी और उसके कारण मस्तिष्क को बड़ा सुख मिल रहा था। वहाँ के अधिकतर वृक्ष पर पक्षियों का वास था परन्तु वो स्वतंत्र ना थे बल्कि चंदन की लकड़ियों से बने पिंजरो में थे जिनमें तोता, मैना, बुलबुल, लाल इत्यादि भाँति-भाँति के पक्षी थे। वे अपनी मीठी बोलियों से चित्त प्रसन्न कर रहे थे। उन पिंजरों में दाने और पानी की कुल्हियाँ बहुमूल्य रत्नों की बनी थीं। वहाँ कि सुन्दरता को देख ऐसा लगता साक्षात स्वर्ग के दर्शन हो गए


परन्तु इतने आकर्षित स्थान में भी साहुकार को नाम मात्र लगाव ना था कियोकी वो स्वयम को अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित कर चुका था संसार की कोई मोह माया उसे लुभा नहीं सकती थी अब वो एक स्थान पर आ कर रूक गया वहा एक काली चट्टान का टुकड़ा पड़ा था साहुकार उस के उपर चड़ा अपने पास से एक दिव्य खंजर निकाला और आकाश की ओर फेंक दिया असामान्य रूप से वे खंजर थोड़ा नीचे आकर वही हवा में तैरने लगा अथवा लहराता और वहाँ के वृक्षों के इर्द गिर्द चक्कर लगाते हुए एक विशेष पेड़ पर जा लगा
ये सब होता देख साहुकार उत्सुकता और हर्ष से भर उठा साहुकार ने उस वृक्ष के समक्ष पहुंच कर वहाँ पर कुछ और चन्दन की लकड़ियों में आग लगवाई फिर उस वृक्ष पर जो पिंजरा था उसे उतार साहुकार ने आग में डाल दिया जब उस पिंजरें के पक्षी जल भुन गये तो उनके भीतर से बहुत ही सुन्दर फूल निकले उन फूलों को साहुकार ने उस चुनें गएँ वृक्ष पर घीसा अचानक धरती जबरदस्त ढ़ंग से हिलने लगी और वो वृक्ष धुआँ बन आकाश में एक बड़े से बादल की भाँति एकत्रित हो गया उस बादल मे बिजली की सी चमक और गर्जन होने लगी


थोड़ी देर पश्चात वो धुआँ नीचे की ओर आया और दैत्य आकार जीन में परिवर्तित हो गया जीसे देख साहुकार के सेवक भय से थर थर कांपने लगें किन्तु साहुकार निडरता से अपने मुख पर आत्मविश्वास का तेज लिए खड़ा रहा

अब जीन साहुकार से भयभीत कर देने वाले राक्षसी स्वर में बोला तुमने मुझे मुक्त कर मुझ पर उपकार किया है मै अपने पवित्र ग्रन्थों की सौगन्ध खाता हुँ तेरी कोई भी एक इच्छा को मैं पुरा करूँगा किन्तु ये जान ले अपनी माँग में तू इच्छाओं की माँग नहीं कर सकता यदि ऐसा किया तो तेरी सारी मेहनत व्यर्थ चली जाएगी और तेरे हाथ कुछ ना आयगा

ये सुन कर साहुकार सोच विचार करने लगा असल मे वो चाहता था कुछ ऐसा सोचा जाये जिससे एक ही इच्छा मे साहुकार का कल्याण और उस दुष्ट जीन का सर्वनाश हो जाएँ

थोड़ा सोच कर साहुकार बोला मुझे एक ऐसा चिराग चाहिए जिसमें तुमसे भी अधिक शक्तिशाली जीन का वास हो और वो आजीवन मेरे अधीन रहें
ये सुन वो दुष्ट जीन बड़े असमंजस में पड़ गया किन्तु वो अपने वचन से हट नही सकता था ऐसा करना अपने धर्म के विरुद्ध जाने के समान था भले ही वो दुष्कर्मी था किन्तु आधर्मी नही था
जीन बोला इसके लिए ऐसे मनुष्य की अवशक्ता है जो स्वांम की इच्छा से आत्म बलिदान दे।
ये सुन साहुकार ने अपने सेवकों से बोला जो कोइ भी स्वयम की इच्छा से बलिदान देगा तो मेरी मौजूदा सम्पूर्ण सम्पत्ति उसके परिवार को दे दि जायगी उन सेवकों में से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है
अब वो दैत्य आकार जीन उस सेवक का सिर दोनों हाथों से पकड़ उपर उठा लेता है अर्थात उस सेवक का शरीर पैरों से लेकर गर्दन तक जल कर राख हो जाता है जलते समय सेवक को असहनीय पीड़ा हो रही थी और वो दर्दनाक चित्कार करता
शरीर के जल जाने के पश्चात भी वो जीवित था अब वो जीन धीरे स्वर में कुछ मंत्र पड़ने लगा देखते ही देखते वहाँ के कुछ वृक्ष धुएँ में परिवर्तित हो कर उस सेवक का नया शरीर बनाने लगे शरीर के सम्पूर्ण होते ही एक चिराग चमत्कारी रूप से वहाँ प्रकट हुआ जिसने उस सेवक को अपने अन्दर समा लिया ये सब कुछ करने में उस दुष्ट जीन को इतनी अधिक शक्ति का उपयोग करना पड़ा के वो मरणासन्न अवस्था में घुटनों के बल आ गीरा
इसके बाद बड़े ही पीड़ित स्वर में जिन बोला जब भी तुम्हें इस जीन की आवश्यकता पड़ेगी तो इस चिराग को घिस ने पर उसे अपने समक्ष पाओगे
साहुकार ने इस बात को सुनते ही चिराग को घीसा तो उसमे से एक नीले रंग का जीनी निकला
बहार आते ही जीनी अपने कठोर स्वर में बोला
आज्ञा करें स्वामी
साहुकार दुष्ट जीन की दुर्गति अवस्था को उसे समाप्त करने का उचित अवसर जान जीनी को उस का वध करने का आदेश दे देता है
जीस पर वो निर्बल पड़ा जीन बड़े ही उंचे स्वर में हंसने लगा

उसके इस प्रकार के व्यवहार से साहुकार को आशचर्ये होता है वो जीन से बोला एसी प्राण घातक स्थिति में भी तुम क्यों कर हँस रहे हो प्रति उत्तर में जीन बोला मै संसार का सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी था मेरे सामने जीनों और फरिशतो मे से कोई ना टिक पाता उपर से स्वयम के हाथों से मृत्यु का वरदान प्राप्त था मनुष्य मेरे नज़र में कीड़े मकोड़े के समान तुच्छ था

और आज एक मनुष्य की बुद्धि के कारण मेरे हाथों से मैंने जानते हुए भी स्वयम की मृत्यु का अस्त्र बना दिया
जिससे सिद्ध होता है के वास्तव में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी है और मैं सदेव इस ज्ञान से अज्ञात रहाँ और स्वयम की अज्ञानता पर मुझे हँसी आ गई
इस प्रकार के कथन को पुरा कर उस जीन ने वीरों के समान स्वयम की मृत्यु को स्वीकार कर लिया

इसके पश्चात साहूकार ने उस जिनी से भरपूर लाभ उठाया परन्तु इतने पर भी वो सर्व सुख सम्मपं जीवन ना पा सका वो सदेव संतान सुख से वंचित रहा अपने अंतिम दिनो मैं उसने जाना मनुष्य की इच्छाओं का कोई अंत नहीं इच्छ्क़ो की लालसा कभी समाप्त नहीं होती इसलिए उसने अपनी अन्तिम इच्छा में जिनी से बोला
आज से तुम्हारा स्वामी वही होगा जिसके पास ये चिराग़ होगा और प्रतेक स्वामी के सम्पूर्ण जीवन में तुम उसकी केवल तीन इच्छाओं को पूरा करोगे इसके अतिरिक्त तुम आसमर्थ रहोगे

ये इच्छा कुछ इस प्रकार की थी जिसे पुरा कर जिन ने स्वयं के पेरों में नियमो की बेड़ियाँ डाल दी हो
इसके पश्चात साहूकार ने उसे कही दूर कि स्थान पर छुपा दिया धीरे धीरे समय ने दो सदी के भीतर लोगों के स्मृति से इस घटना को एक लोक कथा में परिवर्तित कर दिया जिसे जानते तो सभी हैं किंतु मिथ्यरूप में
कहानी यहाँ समाप्त नहीं हुई अभी तो बहोत कुछ रहेस्यमय होना बाक़ी है