Afsar ka abhinandan - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

अफसर का अभिनन्दन - 19

हिंदी -व्यंग्य में पीढ़ियों का अन्तराल

यशवंत कोठारी

काफी समय से हिंदी व्यंग्य का पाठक हूँ .अन्य भाषाओँ की रचनाएँ भी पढता रहता हूँ .उर्दू,गुजराती , मराठी ,अंग्रेजी व राजस्थानी में भी पढने के प्रयास किया है.पिछले कुछ वर्षों में हिंदी में नई पीढ़ी कमाल का लिख रहीं है.यहीं हाल अन्य भाषाओँ में भी है.टेक्नोलॉजी भी अपना कमाल दिखा रही है.तकनीक के हथियार के साथ लोग हुंकार भर रहे हैं ,पुरानों को कोई पढने की आवश्यकता नहीं समझता .पुराने लोगों ने बहुत मेहनत की,आजकल फटाफट का ज़माना है.शरद जोशी ने कुछ समय ही नौकरी की फिर फ्री लान्सिंग,परसाई जी ने भी नौकरी कम समय ही की फिर उम्र भर लिखते पढ़ते ही रहे.श्री लाल शुक्ल व रविन्द्र नाथ त्यागी आईएस थे कई लेखक उनके पास अपने निजी कामों यथा स्थानान्तरणों व किताबों की थोक खरीद,या पुरस्कारों के लिए उनसे मिलते थे,वे किसी को निराश भी नहीं करते थे.

उस पीढ़ी के लोगों को लिखने पढने की जो आज़ादी मिली वो नई पीढ़ी को उपलब्ध नहीं है. कोई यदि आज यह कहता है की मैं पूरी आज़ादी से लिख रहा हूँ तो खुद को धोखा दे रहा है.के पी. सक्स्सेना ने नौकरी भी की और जम कर लिखा भी.मैंने भी नौकरी की और व्यंग्य पढने - समझने की कोशिश की .परसाई जी घोषित मार्क्सवादी थे ,प्रगतिशील लेखक संगठन से जुड़े थे,शरद जोशी जी एक बार जनवादी संगठन से जुड़े मगर ज्यादा नहीं .अन्य कोई लेखक किसी लेखक संगठन में है या नहीं नहीं जानता. कई बार सोचता हूँ आज परसाई या शरद जोशी होते तो वर्तमान परिस्थितियों पर क्या लिखते,कैसा लिखते और क्यों लिखते ?लेकिन इन काल्पनिक प्रश्नों से क्या होना जाना है.

हरिशंकर परसाई ने हजारों पृष्ठ लिखे,सेकड़ों कालम लिखे.भाषण दिए,यूनियन बाजी की,टांग तुडवाई ,मंच सञ्चालन किये.याने की काफी काम किये.शरद जोशी ने लिखा जम कर लिखा,फिल्मों में लिखा ,धारावाहिकों के लिए लिखा मंच पर व्यंग्य पाठ किया और भी कई जगहों पर लिखा,खूब कालम लिखे और नौकरी छोड़ कर लिखे.रविन्द्रनाथ त्यागी ने कवितायेँ भी लिखी बच्चों के लिए भी लिखा,IAS की नौकरी की, निलंबित हुए .के पी ने भी खूब कालम लिखे रेलवे में नौकरी भी की .श्री लाल शुक्ल भी IAS थे फिर भी खूब लिखा . अपना राग दरबारी छपवाने के लिए सरकार की अनुमति ली .

इस पीढ़ी के काम की तुलना नई पीढ़ी से करे ,खुद करे ,पहली या दूसरी किताब आते आते व्यंग्यकार अपनी चमक खोने लगता है.सेल्फ पब्लिशिंग से सेल्फ सम्मानित होने तक का सफ़र जल्दी ही निपट जाता है.अपने पैसे से किताब छपवा ली.अपने पैसे से लोकार्पण करवाया.अपने पैसे से सम्मानित पुरस्कृत हुएं और खेल खतम .लेखन के बल पर कोई नौकरी या प्रमोशन ले लिया बस.हर उस आदमी से डरों जो काम का है ,हर उस आदमी को गरियाओं जो बुनियादी बात करता है.बुनियादी बात करने वाला बड़ा खतरनाक होता है.

एक ही प्रकार की रचनाओं की भरमार है.लिखने छपने को वो आज़ादी नहीं जो पुराणी पीढ़ी को मिली,यही मूल फर्क मुझे लगता है.अख़बार में छपना ही लक्ष्य हो गया लगता है,मैं भी यहीं करता हूँ.संपादन के नाम पर सेंसर है ,प्रभारी संपादक अपनी नौकरी बचा कर कालम छापता है.राजनेतिक व्यंग्य लगभग नहीं छप रहे हैं,विचारधारा पर लिखने के खतरे उठाना संभव नहीं.राजनीती पर जितना पहले लिखा गया सो लिखा गया.आजकल शाकाहारी व्यंग्य लिखो या फिर सत्ता के पक्ष में लिखो ,फलां के नाम को नहीं लिखा जा सकता,व्यक्तिवादी व्यंग्य न लिखा जाता है और न ही छापा जाता है.क्या आज कोई सत्ता के खिलाफ वैसा लिख सकता है,जैसा बाल मुकुंद गुप्त ,भारतेंदु या परसाई या शरद जोशी ने तात्कालिक परिस्थितियों में लिखा.

हिंदी व्यंग्य कामेडी बन कर रह गया है.आकाशवाणी के वार्ता सेल में तो और भी ख़राब हालत है.दूरदर्शन में तो कोई जगह ही नहीं है.चेनलों में हास्य ,कामेडी,और हास्यास्पद दौर -दोरा है.अख़बार में ३०० शब्दों व् लेखकों को बेलेंस करने के चक्कर में कालमों का स्तर ख़तम हो गया है.प्रतिदिन जैसा लिखने की आज़ादी ही नहीं है मित्रों.समीक्षकों आलोचकों को गरियाने का कोई मतलब नहीं है.जातिवाद ,क्षेत्रवाद ,यहाँ तक की व्हाट्स एप्प वाद का बोलबाला है.

लेकिन अभी भी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है,उम्मीद की किरणें बाकि है, रौशनी आ रही है .मित्रों हिंदी व्यंग्य का भविष्य उज्जवल है. व्यंग उपन्यासों कि तो बाढ़ ही आ गई है .थोडा लम्बा और गंभीर लिखा जाना चाहिए.यह एक भड़ास है जिसे फेस बुक पर विचारार्थ डाला गया है.टिप्पणियों का स्वागत हैं.

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यशवंत कोठारी,८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर -३०२००२

मो-९४१४४६१२०७

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