chajje chajje ka pyaar (last part) books and stories free download online pdf in Hindi

छज्जे छज्जे का प्यार - (लास्ट पार्ट)


में बैठा सोचता रहा के मैंने इज़हार कर के गलती तो नही कर दी? या फिर जज़्बातों में आकर कुछ ज़्यादा ही बोल दिया, हालांकि हम दोनों के बीच जैसा ताल्लुक़ था उस से साफ था कि वो भी प्यार करती है।

हिसाब किताब में ही अगला दिन हो गया,शाम को वो फिर से छज्जे पर थी, मैंने उस से इशारो में पूछा क्या मेरी बात का बुरा लगा? उसने न में जवाब दे दिया।


और कहा दरअसल आपकी आधी बातें मेरे समझ मे ही नही आयी, पर सुन कर बहुत अच्छा लगा,
सारा की बाते सुन कर मुझे हँसी भी आई और खुशी भी हुई मैंने उसे कहा मुझे तुमसे मिलना है, कही दूर अकेले में, थोड़ी न नुकुर के बाद वो राज़ी हो गयी,

और उसने कहा छुट्टी में स्कूल पर आजाना, खेर अगले दो दिन बाद में अपनी ग्लैमर बाइक से उसके स्कूल पहुँच गया।
स्कूल पर पहुँच कर में उसका इन्तेज़ार करने लगा,

मुझे लगता था के उसे में आसानी से ढूंढ कर बाइक पर बिठा कर ले जाऊंगा, पर जैसे ही छुट्टी हुई सेकड़ो की तादाद में लड़कियां स्कूल के गेट से इस तरह निकल रही थी जैसे दड़बे में कई दिन से बंद मुर्गियां निकलती है, एक तो उनकी तादाद इतनी ज्यादा दूसरा उनकी कचर मचर की आवज़े, दो मिनट में ही दिमाग खराब हो गया, वो तो शुक्र था के सारा ने मुझे पहचान लिया और मेरे पास आकर कहने लगी, क्या बात जनाब बड़ा लड़कियों को घूरा जा रहा है,

मैंने घबरा कर कहा नही तो, में तो आपको ही ढूंढ रहा था, जल्दी से बाइक पर बैठिये ज़्यादा वक़्त नही है आपके पास, उसने हां में गर्दन हिलाई और बाइक पर बैठ गयी, में स्कूल से थोड़ी दूर उसे एक रेस्तरॉ में ले गया, वहाँ हमने कुछ वक्त साथ बिताया,कुछ मोहब्बत की बातें की, फिर वापसी का सफर शुरू करा।

वापसी में न जाने कब हमे मोहल्ले के ही एक लड़के रज़ि ने देख लिया,इतने वो कुछ रियेक्ट कर पाता में बाइक लेकर उसकी आँखों से गायब हो चुका था।।

शाम को रज़ि मेरे घर आया आवाज़ देकर मुझे बुलाया ,मैंने उसे देख कर सलाम करा,और आने की वजह पूछी,उसने कहा बाइक बहुत तेज़ चलाता है तू क्या बात, मैंने कहाँ हाँ वो तो है,आज के बाद भी तुम्हे कोई शक है क्या इस बात पर, वो कहने लगा ठीक है तो एक रेस हो जाये, इसपर मैने मना कर दिया के में रेस नही लगाता,उसने कहा डरता क्यों है ? एक रेस लगा ले, अगर तू जीत गया तो तुझे ओर तेरे दस दोस्तो को गुलशन ए करीम में पेट भर कर मुर्ग मुसल्लम की दावत,और में जीत गया तो तू सारा से कभी बात नही करेगा, मैंने सोचा यार जीत गया तो मुर्गा तो तय्यार ही है, और हार भी गया तो ये कोनसा मेरी जीभ पकड़ लेगा सारा से बात करते वक्त, खेर अगले दिन की रेस मेने तय कर दी, 10 किलोमीटर की रेस तय हुई, जिसमें उसे मैंने 5 मिनट के फासले से हरा दिया।

रात को हम सब दोस्त उसे लेकर गुलशने करीम में मुर्ग मुसल्लम उड़ा आये।

खेर रज़ि हमे मुर्ग खिला कर हमसे खार खाया हुआ बैठा था, उसने हम दोनों(सारा ओर मेरे) के घर के बीच वाले घर मे रहने वाले लड़के(आबिद) को पूरी बात बता दी कि उसने मुझे ओर सारा को बाइक पर घूमते देखा, आबिद भी सारा के पीछे काफी वक्त से पड़ा हुआ था,एक अनार और इतने सारे बीमार, अब आबिद भी और ज़्यादा दुश्मन हो गया।

खेर अब में फूंक फूंक कर कदम रखने लगा, एक दिन छत पर हम दोनों भाई पतंग उड़ा रहै थे, रेहान की पतंग आबिद ने सादी पर से काट दी, जिसपर रेहान गुस्सा हो गया और मुझसे बोला भाई आप इसकी काट दो,मेने आबिद की पतंग काट दी, आबिद ने फिर पतंग पार की मैने फिर काट दी, उसके बाद रेहान आबिद से बोला क्या हुआ चाचा की पतंग तो बड़ी जल्दी काट दी अपने बाप की नही काटी जा रही तुझसे ? इसपर आबिद ने गाली गलौज शुरू कर दी, इधर से रेहान भी शुरू हो गया, मैंने रेहान को समझाया के ये हमे उकसाना ही चाहता है, इसके मुंह मत लग, पर रेहान का गुस्सा भी सातवे आसमान पर था, लड़ाई इतनी बड़ी के आस पास सब अपनी छतों पर जमा हो गए,सारा हिबा उसकी अम्मी भी छतों पर आ गई,आबिद ने उनको देख कर बात पलट दी, बोला तू मुझसे इसलिए लड़ रहा है ताकि में तेरे ओर सारा के चलने वाले चक्कर के बारे में किसी को न बताऊ, और ये भी न बताऊ किसी को के तुम दोनों बाइक पर घूमते फिरते हो,सारा की अम्मी मुझे घूर कर देखने लगीं, मेरा बस नही चल रहा था ज़मीन खोद कर कही गायब हो जाऊं, जैसे तैसे लड़ाई वाली बात खत्म हुई, लेकिन लड़ाई खत्म होते ही अगले घण्टे सारा की अम्मी हमारे घर थी, वेसे वो काफी सुलझी हुई औरत थी,उन्होंने चुप चाप आकर अम्मी को सारी बात बताई, और कहा अगर आपके लड़के को ज़्यादा ही पसंद है तो आप रिश्ता लगा कर शादी कर लें, मेरे घर वालो को कैसे मनाना है वो मेरी ज़िम्मेदारी है,और अगर आप शादी करना नही चाहती तो अपने लड़के को यही रोक लें।

ताकि हमारी इज़्ज़त बरकरार रहै ओर उसपर कोई आंच न आये।

अम्मी ने उनकी बाते सुनी और समझी, फिर अम्मी ने कहा अभी तो ये बी एस सी में है,इसे कमाई शुरू करने में कम से कम 5 साल लगेंगे,अगर आप 5 साल तक रुक जाए तो में रिश्ता लगाने को तय्यार हूं, इस पर सारा की अम्मी ने कहा हमारे यहाँ 12थ तक शादी कर देते है, हद है में बस एक साल रुक सकती हूं ,और हमारे दोनों दामाद अच्छा कमाते हैं तो में ये भी नही चाहती कि मेरा तीसरा दामाद कुछ न कमाता हो।

ये टौंट अम्मी को थोड़ा बुरा लगा और उन्होंने कहा तो जो अच्छा कमाता हो उसे ही बना ले आप तीसरा दामाद,खेर यहाँ आकर रिश्ते की बात खत्म हुई।।

अम्मी ने मुझे सख्त हिदायत दी कि में सारा से दूर रहू,और अपनी पढ़ाई पर फोकस करू,

उधर सारा की अम्मी ने सारा पर तमाम पाबंदिया लगा दी,उसका छज्जे पर आना भी बंद कर दिया,स्कूल भी खुद छोड़ने जाती खुद लेने आती, इस तरह उन्होंने दोनों का एक दूसरे को देखना तक बंद करा दिया,चार महीने बाद सारा की अम्मी फिर घर आई ,इस बार उनके हाथ मे सारा की शादी का कार्ड था, 14 फरवरी को उन्होंने सारा की शादी तय कर दी थी।

जब अम्मी ने मुझे बताया के गली वाले सैफी साहब की बेटी की चौदाह फरवरी को शादी है तो ये खबर मुझपर देसी साखता बम बनकर गिरी क्योंके सैफी साहब की बेटी को अपना जीवन साथी बनाने का इरादा करने के साथ साथ दिल ही दिल मे उसके साथ कबकी मंगनी भी कर चुका था, और सैफी साहब को मन ही मन मे अपने ससुर के ओहद्दे पर सरफ़राज़ कर चुका था और इस वैलेंटाइं डे पर किसी न किसी तरह अपनी मोहब्बत से मुलाक़ात का पक्का इरादा भी कर बैठा था, मेरे सपनों का ताजमहल बुरी तरह टूट चुका था।।

13 फरवरी के दिन सुबह सुबह दादी ने वालिद साहब को कहा के सैफी साहब के पास जाकर उनसे पूछे हमारे लायक़ जो खिदमत हो बताइए दादी ने मुझे भी कहा के लड़के तू भी जा साथ और टेंट वगैराह का कोई काम अपने जिम्मे ले ले, साथ ही ये कहकर कलेजा जला दिया के मुहल्ले की बच्ची है बहनों की तरह है जा मेरे बच्चे बाप के साथ।

में ये सोच के साथ चल दिया के शायद शाहरुख खान की तरह में भी कामकाज के बहाने अपनी दुल्हन ले उडू।

सैफी साहब के घर पहुंचे गुफ्तगू के बाद वालिद साहब ने टेंट वगैराह के लिए मेरी खिदमात पेश कर दी जिसे सैफई साहब ने ये कहकर क़ुबूल कर ली के मुहल्ले के बच्चे है मेरी बेटी उनकी बहनों की तरह है ये काम नही करेंगे तो और कौन करेगा।।

मेरी मोहब्बत को बहन क़रार देकर पहले दादी और अब सैफी साहब ने हमला किया।

जिसे ना सिर्फ मुर्दाना दिल से बर्दाश्त किया बल्के चहरे पर मुस्कुराहट लाकर उनसे ये भी कहा के जी हमारा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है।

दिल दुखा था रोने की कोशिश की तो रोना ना आया बल्के रोने की कोशिश में सर दुखने लगा,

आखिरकार वह दिन भी आ पहुंचा जिस दिन मेरी मोहब्बत ने किसी और का हो जाना था और में सुबह से ही टेंट वगैराह के काम मे लगा ये सोच रहा था के आज चौदाह फरवरी को सारे नोजवान अपनी जानू मानु शोनु मोनू के साथ पिज़ा उड़ाते है वाह रे किस्मत में कुर्सियां लगवा रहा हूँ।

दोपहर को काम निपटा कर घर आया न खाया न पिया रूम में जाकर लेट गया और उसका निकाह किसी तरह तुड़वाने की तरकीबें सोचता रहा।

शाम को सब घर वाले तैयार होकर चले गए में भी उसपर तैयार होने लगा के क्या पता ऐन निकाह के वक्त किसी बात पर बारात वापस चली जाए तो में कमाल सआदत मंदी से सैफी साहब को दिल के दौरे से बचाते हुए खुद को उनकी लड़कीं के लिए पेश कर दू।

इसी उम्मीद में शादी हॉल पहुंच गया।
कुछ वक्त गुज़रा बारात भी आ गयी,उन लोगो का मोहल्ले के लड़कों ने आदर सत्कार किया, और उन्हें खाने के हॉल की तरफ ले जाया गया,क्योंकि अब खाना चलना था, ये सोच कर में वहाँ से बाहर की तरफ निकला, में जा ही रहा था कि इतने में सैफी साहब किसी ओलम्पिक के खिलाड़ी की तरह उड़ते हुए मेरे पास आए और एक और सितम ढाया के दूल्हा के वालिद भाई वगैराह की मेज़पर खाना मैने पहुंचाना है ।

आज जब मुझे किसी वीरान सुनसान जगह बैठकर दुखी गाने सुनने चाहिए थे। में सुबह से कुर्सियां लगवा रहा था।

और अब अपनी ही सारा के सुसराल वालों को खाना भी ठूंसा रहा था!?

सारा के सुसराल वाले या तो बाबा आदम के ज़माने से भूखे थे। या फिर उनके पेट मे कीड़े थे, खाए ही जा रहे थे,,

इधर मेरी भूख जोरो पर थी,उधर सारा का सुसर कोफ्तों पर बुरी तरह टूट पड़ा था।

छटी बार डिश पकड़ा रहा था के सारा के सुसरे की गिरफ्त ढीली पड़ी तो सारा सालन मुझपर गिर गया।

गुस्सा तो बहुत आया पर खामोशी के अलावा कर भी क्या सकता था, जब सारे सुसराली खा मर चुके और में अपने लिए खाना लेने गया तो खाना खत्म हो चुका था।

इधर में खाने की जुगाड़ में लगा था,मोहब्बत अपनी जगह पापी पेट अपनी जगह, उधर निकाह का शोर बुलंद होने लगा।।

खाने की प्लेट छोड़ मैं मैन हाल की तरफ भागा,निकाह हो चुका था,अब रुखसती की तैयारी हो रही थी।।

जब सारा सहेलियों के साथ रोते हुए दुल्हन के कमरे से निकली तो उसे देख कर मेरी भूख के साथ अरमान भी मर चुके थे,लेकिन फिर भी में पत्थर बना उसे खड़ा देखता रहा।।

दुल्हन गाड़ी में बैठी तो गाड़ी स्टार्ट न हुई, सैफी साहब ने एक दो लड़कों से कहा धक्का लगाओ साथ ही मुझपर नज़र पड़ी और हाथ के इशारे से बुलाया।

मुझे लगा सैफी साहब मुझे लड़को से ज़ोर लगाने के लिए कहने को कह रहे है, मैने साथ खड़े दुल्हन के कज़िन को कहा चलो धक्का लगाओ उसने कहा के मेरी टांग पर फोड़ा निकला हुआ है में धक्का नही लगा सकता।

अब में अपने दिल का फोड़ा किसे दिखाता सो गुस्से व जलाल में धक्का लगवाने लगा।।के अचानक दूल्हे के भाई ने मुट्ठी भर नगदी कार की छत पर फेंक के लुटा दि। जिसमे से एक सिक्का आकर सीधा मेरी आंख में लगा।।


अब गुस्सा झंझलाहट के साथ दर्द भी हो रहा था।

में सामान समेट कर घर आया तो अम्मी ने आंखे देखते ही कहा तू रो रहा है क्या ? मैने कहा नही अम्मी वो आंख में सिक्का लग गया इसलिए लाल हो रही है।। अम्मी ने कहा और दूसरी में क्या लगा ?


में चुपचाप मुँह धोकर आया अम्मी से खाना मांगा और अपने खाना ना मिलने की वजह सुनाई।
अम्मी ने खाना लाकर प्यार से सिर पर हाथ फेर कर समझाया। सारा नही तो क्या हुआ कोई इस से भी अच्छी लिखी है तुम्हारे नसीब में। मैने गर्दन जी मे हिलाई ओर खाने में लग गया।। खाना खाकर थका हारा सोने चला गया,, लेटते हुए आज के दिन के बारे में सोचने लगा के क्या वैलेंटाइंन का दिन था। जिसमे महबूबा की शादी की कुर्सियां सेट की।

उसके सुसराल वालों को खाना खिलाया| खुद के बजाए कपड़ो को सालन खिलाया। महबूबा की गाड़ी को धक्का लगाकर रुखसत भी किया।

ये सब न करना पड़ता अगर उम्र थोड़ी ज़्यादा होती और कमाई अच्छी होती तो।।अक्सर प्रेम कहानियां बेरोज़गारी पर आकर ही दम तोड़ जाती है।।

- जुनैद चौधरी

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