अफसर का अभिनन्दन - 12 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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अफसर का अभिनन्दन - 12

आओ अफवाह उड़ायें

भारत अफवाह प्रधान देश है। अतः आज मैं अफवाहों पर चिन्तन करूंगा। सच पूछा जाए तो अफवाहें उडा़ना राष्ट्रीय कार्य है और अफवाहें हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। अफवाहों की राष्ट्रीय गंगोत्री दिल्ली के शीर्ष से उड़कर देश के गांवों, कस्बों, शहरों नदी नालों मेूं तैरती रहती है। किसी भी ताजा अफवाह के हवा में तैरते ही एक नया माहौल जनता और आम आदमी में दिखायी देने लग जाता है।

वास्तव में पूछा पाए तेा बिन अफवाह सब सून। जयपुर में त्रिपोलिया गजट शुरू से ही प्रसिद्ध रहा हैं। हर शहर के चौराहे पर पान की दुकान पर चाय की स्टाल पर आपको अफवाहों का बाजार गरम मिलेगा। जो कुछ नहीं कर सकते, वे अफवाह उड़ाकर कनकोवे काटते है। अफवाहों के लिए स्वर्णिम समय होता है चुनाव । पहले चुनाव कब होंगे, इसकी अफवाह उड़ाओं जब चुनाव तय हो जाए तो इसकी अफवाह कि कौन खड़ा होगा। जब खड़ा हो जाए तो इस बात की अफवाह की कौन जीतेगा। और जीत जाए तो इस बात की अफवाह कि कौन मंत्री बनेगा और यदि मंत्री बन जाए तो इस बात की अफवाह कि कब बर्खास्त होगा। अफवाहों का एक सुन्दर सपना जिसे हर कोई देख सकता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी कई प्रकार की अफवाहों का बाजार गरम रहा। महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य के पुत्र की हत्या के समाचार की अफवाह ने युद्ध का नक्शा ही बदल दिया।

अफवाहें राजनीति, साहित्यिक या सांस्क्रतिक हो सकती हैं। कोटिल्य तक ने अफवाहों का जिक्र किया है। सोचता हूं अफवाहों पर शास्त्रीय चिन्तन करूं। मेरे एक मित्र के अनुसार अफवाह से आप किसी की शक्ति को समाप्त कर सकते हैं, किसी को उठाकर आसमान पर बिठा सकते हैं ओार किसी को इतनी उंचाई से नीचे गिरा सकते हैं कि बेचारे की हड्डी पसली भी न मिले। ईर्ष्या, मित्रता, प्रशंसा, हानि, लाभ, अपमान अफवाह के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री होती है।

राजनीति में बजट के दिनों में अक्सर अफवाहें उड़ती है। कि फलां वस्तु महंगी होने वाली है, टैक्स बढ़ने वाले हैं, कच्चा माल गायब होने वाला है। बजट के बाद अफवाहों का असर मुख्यमंत्रियों की बर्खास्तगी से होता है। राजधानियों में मंत्रिमण्डल के पुर्नगठन की अफवाहें एक शाश्वत सत्य की तरह है, जिसे हर कोई ध्यान से सुनता है। कुछ अफवाहें, धार्मिक या साम्प्रदायिक भी हो सकती हैं, इन्हें रोकना चाहिए। मगर रोचक या शुद्ध मनोरंजन के लिए भी अफवाहें उड़ाई जाती हैं। भारतेन्दु ने अपने जमाने में काशी में ऐसे कई मनोरंजन मजाक किये और जनता ने उसका भरपुर आंनद लिया। अफवाह को बीज वृक्ष का रूप देने में अखबारों और पत्रकारों का बड़ा योगदान हैं किसी पत्रकार के कान में हल्की से फूंक मार मात्र से अफवाहों का बाजार जुलूस निकलने लग जाता है।

शेयर बाजार तो चलता ही अफवाहों के सहारे हैं कलकत्ता में भाव बढ़ गए हैं, यह सुनकर दिल्ली या बंबई के सटोरिये अपना माल निकाल देते है।, या फिर अन्य अफवाह को सुनने को बेचैन हो जाते है।

पिछले कुछ वर्षौ में अफवाहों को उड़ाने, फेलाने और लगाने का काम एक लघु उघोग के रूप में सामने आया हे। गलत सलत जानकारी या जानबूझकर गुमराह करने की एक नयी प्रव्ति का विकास ही अफवाह बाजार है। मंत्री अफसरों और सचिवालयों में घूमनें वाले सूटबूटधारी, सफारी धारी चन्दन तिलक लगाये भगवा बेशधारी तथा छुटभइए नेता अफवाहों के मीना बाजार हैं। ये लोग अपने स्वार्थ अपने खेमें अपने लिए अफवाह को औढ़ते है। बिछाते है। खातें हैं पीते है। सहेजते है। सांस्कृतिक अफवाहों का भण्डार है रेडियो दूरदर्शन तथा रवीन्द्र मंच के आसपास की जमीन। यहां पर उगने वाली अफवाहों के आधार नहीं होते, मगर बुद्धिजीवियों में अफवाहें बडी तेजी से फेलती है। फलां को दूरदर्शन पर कार्यक्रम मिल गया है और फलां रेडियो में नाटक चिपका आया है। ये बात दूसरे लेखक कलाकार के लिए अफवाह ही हैं वह इसे तभी सच मानता हैं जब ऐसी ही अफवाह वह स्वयं के बारे में उड़ा लेता हे।

वैसे साहित्यिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा अफवाह पुरस्कारों के मामले में उड़ती है। अज्ञेय को नोबल पुरस्कार मिलने की अफवाह उड़ी थी मैं ऐसे साहित्यकारों को जानता हू, जो प्रति वर्ष विभिन्न पुरस्कारों की घोषणा से पूर्व ही स्वयं अफवाह उड़वाते है कि इस बार तो पुरस्कार उन्हें ही मिलेगा, लेकिन बाद में टायं टायं फिस्स।

साहित्यकारों की अफवाहों की दुकानें आपको काफी हाउस या टी हाउसों में मिलेगी। युनिवर्सिटी भी अफवाहों के भण्डार हैं। छापों की अफवाहों से बड़ों बड़ों के होश उड़ जाते हे। परीक्षा के दिनों में पेपर आउट हो जाने की अफवाहें भी खूब उडती है। कुछ प्रकाशक मॉडल पेपर को गैस पेपर और गैस पेपर को परीक्षा पेपर साबित करके लाखों कमा लेते है।

लाटरी खुलने की अफवाहों से भी कौन परिचित नहीं है। फलां की पांच लाख की लाटरी खुली है, यह सुनकर ही पड़ौसी अपना माथा पीट लेता है। पडौस की लडकी भाग गयी है, यह अफवाह भी एक शाश्वत सत्य की तरह है, जो हर गली मोहल्ले में उडती ही रहती है।

महिलाओं द्वारा उडाई जाने वाली अफवाहों का अपना एक संसार हैं अक्सर कामकाज निपटाकर वे आपस में बतियाती हैं, तो कॉलेानी में किसका क्या और किससे चल रहा है, से शुरू होकर सरकार का तख्ता पलटने तक की जानकारी वे एक दूसरे को देती है।

मेरे वो नहीं होते तो इस कॉलोनी का क्या होता और जब आपके वे नहीं थे तो मेरे वो ने ही सब संभाला , जैसे जुमले अक्सर मोहल्लो की फिजाओं में तैरते रहते हैं । उसकी साड़ी सफेद क्यों यह अफवाह भी प्रसिद्ध है।

अफवाहों का एक और प्रमुख केन्द्र है फिल्मी दुनिया। एक से एक आला दर्जे के अफवाह स्पेशलिस्ट आपको फिल्मों में मिल जायेंगे। फलां फिल्म मैं बना रहा हूं का मतलब हैं कि वे आजकल लाइटें उपर नीचे करते है। और अच्छी स्टोरी पर कास्ट साइन कर ली है, का मतलब है अभी कहानी ढूंढ रहें है। बड़े सितारों की आपसी खींचातानी अभिनेत्रियों के तलाक, प्यार , शादी की अफवाहों का तेा कोई जवाब ही नहीं है। वकील और मजिस्ट्रेटों के अपने अफवाहों के बाजार होते हैं। अफसरों के अपने।

अफवाहों का समन्दर हैं तबादलों का सीजनं अक्सर इस सीजन में एक से एक उम्दा अफवाह आपको हर बाजार में सुनने को मिलेगी। फलां सेक्रेट्री को रेवेन्यू में भेज दिया है और फलां को सचिवालय से हटा दिया है। ये अफवाहें अक्सर उड़ती रहती है।

मंत्री, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के बदलते ही अफसरों, सम्पादकों, स्टैनों आदि के बदलने की अफवाहों से बाजार अट जाता है। लेकिन कुछ अफवाहें देश, समाज के लिए घातक भी हो सकती हैं और कुछ मात्र मनोरंजन या हास्य के लिए।

कई बार किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के देहावसान की अफवाह भी उड़ जाती है अक्सर ऐसे नाजुक मामलों को संभालना मुश्किल हो जाता है। बाबू जगजीवन राम या जय प्रकाश नारायण के बारे में ऐसी अफवाहें उड़ चुकी हैं।

सरकारी अफवाहें, गैर सरकारी अफवाहें, साहित्यिक अफवाहें, फिल्मी अफवाहें, सांस्कृतिक अफवाहें, समाज की अफवाहें , हे भगवान कितनी अफवाहें। आइए, अपन भी एक अदद अफवाह उड़ाएं।

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यशवंत कोठारी

86,लक्ष्मी नगर ब्रहमपुरी बाहर,जयपुर-302002

9414461207