आई तो आई कहाँ से - 2 Dr Sudha Gupta द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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आई तो आई कहाँ से - 2

बाल उपन्यास

आई तो आई कहाँ से

(2)

  • धींगा मस्ती
  • गर्मी की छुट्टियों में माँ ने पिकनिक पर चलने का कार्यक्रम बनाया l आरुषि बोली - क्यों ना माँ, इस बार मेरे सारे दोस्तों को भी साथ ले चलते हैं, अकेले - अकेले तो मजा नहीं आएगा l सब मिलकर मस्ती कर लेंगे और कुछ प्रोग्राम भी करेंगे जैसे गीत, कहानी, चुटकुले l

    किसको ले चलोगी आरुषि ?

    प्रिंस, टीना, मीना, मनीष, आयुष, नीरज, पंकज, ऋतु, नीतू बस l

    अरे, और मीनाक्षी को ?

    नहीं मीनाक्षी को नहीं, वो तुतलाती है और मुझे उसका नाम भी अच्छा नहीं लगता l

    अरे, नाम से कुछ नहीं होता और तुतलाने पर उसका वश नहीं है l

    उसे नहीं ले चलोगी तो वह बहुत दुखी होगी, फिर क्या तुम्हें अच्छा लगेगा ?

    अच्छा ठीक है, आप कहती हैं तो उसे ले चलूगीं l

    ठीक है, तो इन सबको तुम खबर कर दो या मैं ही सबको फोन करके उनके माँ - पापा को बता देती हूँ l

    बहुत ख़ुशी - ख़ुशी आरुषि ने सबको पिकनिक पर चलने का प्रोग्राम बताया और सबकी तैयारियां शुरू हो गईं l आरुषि की माँ ने इडली - साम्भर बना लिया और बेसन के लड्डू जो आरुषि को बेहद पसंद थे l प्रिंस को रसगुल्ले पसंद थे, वह चाट का भी बड़ा चटोरा था इसलिए उसकी माँ ने गोलगप्पे और जलजीरा भी रख लिया था l आरुषि ने भी अपनी दुर्गा के लिए खिलौने रख लिए ताकि वह उन्हीं खिलौनों में मस्त रहे, उसके खेल ना बिगाड़े l प्रिंस ने नीरज, मनीष, पंकज को बता दिया था, शतरंज जरूर रख लेना, वहां खा - पीकर हम खेलेंगे l आयुष ने कहा - सुनो, लूडो, हॉकी, क्रिकेट - बेट भी रख लेना l पंकज ने हँसते हुए कहा - लड़कियां तो ये खेल खेलेंगीं नहीं और हमें बोर करेंगीं l सभी जोर - जोर से हंसने लगे l पूरी तैयारी के साथ सब लोग मिनी बस के द्वारा पास ही के सुरम्य एवं धार्मिक स्थल रूपनाथ के लिए रवाना हुए l सुरम्य स्थल शहर से करीब बीस किलोमीटर की दूरी पर है l प्रातःकाल की बेला में सूर्यादय की लालिमा से आकाश में इंद्रधनुषी आभा बिखर रही थी l आरुषि ने दुर्गा को अपनी डॉल दे दी जो आँखें झपकाती थी l वह उससे खेलने लगी l आरुषि ने माँ से कहा - वैसे हम रूपनाथ क्यों चल रहे हैं ?

    तुझे यह बात प्रोग्राम तय करने से पहिले पूछनी थी l

    प्रिंस बोला - वही तो, मैं भी सोच रहा था, चलना था तो जागृति पार्क चलते l

    माँ ने बताया - रूपनाथ भगवान शिव का नाम है और वहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है, प्राकृतिक जलप्रपात है, दूर - दूर तक हरे - भरे खेत और मैदान भी हैं l वहाँ हम धार्मिक, प्राकृतिक और पर्यावरण से जुडी जानकारी लेते हुए आनंद उठाएंगे l जागृति पार्क अगली ट्रिप में चलेंगे l पंकज ने कहा - चलो अंत्याक्षरी खेलते हैं l शर्त है, स्वयं कविता गढ़कर बोलना होगा l फिर क्या था, अंत्याक्षरी शुरू -

    समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंत्याक्षरी लेके हरि का नाम

    प्रिंस -( ‘ म ‘ से ) मेरा मन नहीं लगता है पढ़ने में, खूब नहाना है झरने में l

    आयुष - ( ‘ म ‘ से ) महाकाल उज्जयिनी में है, रूपनाथ कटनी में / गरम समोसा खाएंगे, हम इमली की चटनी में l

    जोरदार ठहाकों से पूरी बस हिलने लगी l ड्रायवर भी बिना हँसे न रह सका l

    आयुष की मम्मी बोली - इस पेटू को तो खाने - खाने की ही कविता सूझती है l

    फिर ‘ म ‘ से, अब मनीष की बारी थी l

    मनीष - (‘ म ‘ से ) माधव मदन मुरारी मोहन वनवारी गिरधारी, जब मनीष ने मारा छक्का ......., वह बगलें झाँकने लगा, अब आगे क्या बोले ?

    आरुषि ने कहा - टूटी टंगड़ी प्यारी ......

    मनीष कुछ उदास हो गया l

    ‘ र ‘ से, नीरज की बारी थी l

    नीरज - (‘ र ‘ से ) राम करे ऐसा हो जाए, क्यारी में नीरज खिल जाए / नेता कोई ऊपर जाए, कल की छुट्टी फिर मिल जाये l

    जोरदार तालियां और खिलखिलाहट गूंज उठी l

    सब बच्चों की मम्मी खिलखिलाहट में भरपूर हिस्सा ले रही थीं l पिकनिक की ख़ास बात यह थी कि किसी भी बच्चे के पापा साथ में नहीं थे l पूरा मोर्चा मम्मियों ने संभाला था इसलिए बच्चे ज्यादा आनंद उठा रहे थे l पापा से तो थोड़ा डर भी लगता है, मम्मी तो सारी शरारत झेल लेती हैं l

    ‘ य ‘ से बोलने की बारी मीनाक्षी की थी l उसकी सिट्टी - पिट्टी गुम हो रही थी l सारे बच्चे शोर करने लगे मीनाक्षी . मीनाक्षी मीनाक्षी…..

    मीनाक्षी बहुत कम बोलने वाली सीधी - साधी लड़की थी l सब जिज्ञासा से उसकी ओर देख रहे थे, मीनाक्षी क्या बोल पाएगी l तभी वह बोल उठी -

    यदि बनूँ मैं प्रधानमंत्री , तुम सबको संतली बनाऊँगी / खूब विदेशी दौला कल के, देश की शान बढ़ाऊँगी l मीनाक्षी ने इतनी अच्छी कविता बोली कि उसके तुतलाने पर किसी का ध्यान ही नहीं गया l

    आश्चर्य से सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे और तालियां बजाते हुए कहने लगे - वाह मीनाक्षी, वाह मीनाक्षी, तुमने तो छक्का मार दिया l

    मीनाक्षी धीरे से मुस्कुरा दी l

    ‘ ग ‘ से टीना की बारी थी l

    टीना - ( ‘ ग ‘ से ) गधा गीत जब गाता है, गधी पूँछ हिलाती है / चीपों - चीपों की धुन सुनकर, कोयल शरमा जाती है l

    भई वाह ! क्या कहना गधा - गधी के l

    अब ‘ ह ‘ से बोलने की बारी आरुषि की थी l

    आरुषि - ( ‘ ह ‘ से ) होली में हलवाई ने हलुवा खूब बनाया, हमने हंसकर हेमलता को हलुवा खूब खिलाया / हलुवा खाते ही फिर उसको चक्कर आए , चक्कर खाकर गिरी तो भैया, रूपनाथ दिखलाए l

    सबने बस के बाहर झाँका, आ गए ...... आ गए ......., हम रूपनाथ आ गए l

    चलो बच्चो, अपना जरुरी सामान ले लो, बाकी बस में ही रखा रहने दो l

    पंकज ने अपनी क्रिकेट किट, टीना, मीना ने रस्सी और आरुषि ने अपनी दुर्गा का हाथ पकड़ा l प्रिंस ने शतरंज और सभी मम्मियों ने पूजन - प्रसाद, खाने - पीने की सामग्री, बिछावन आदि साथ में लिया और सबने हाथ - मुंह धोकर सबसे पहले मंदिर के दर्शन करना ही ठीक समझा l प्राकृतिक गुफा में विराजे शिव जी की अनुपम छटा जहाँ झरते हुए झरने ने उस स्थान को और भी मनोरम बना दिया था l सब बच्चों ने प्राकृतिक जलप्रपात का जी भर आनंद उठाया l सभी के जिज्ञासु चेहरे पूछ रहे थे, आखिर ये झर - झर झरता हुआ, गुनगुनाता झरना आया कहाँ से जो शिव जी को लगातार जल चढ़ाता कितना मनोहारी लग रहा है ? तभी वहां मंदिर के पुजारी जी ने बताया कि ऊपर पहाड़ी पर जल का एक प्राकृतिक स्रोत है जहाँ से अविराम यह झरना सदियों से झरता हुआ शिव जी को जल चढ़ा रहा है l

    पूजन - अर्चन के उपरांत प्रसाद चढ़ाया और जोर से पंडित जी ने जयकारा लगवाया - बोलिये, रूपनाथ भगवान की जय l सभी मंदिर प्रांगण से थोड़ा दूर बिछावन बिछाकर बैठ गए l प्रसाद खाकर सभी ने अपने - अपने टिफिन से भोजन सामग्री साझा की l छप्पन भोग सज गए - इडली - साम्भर, लड्डू, बर्फी, पूड़ी - कचौड़ी, रसगुल्ले, पापड़, कुरकुरे, गोल- गप्पे अहा ! इस पिकनिक का आनंद तो भगवान रूपनाथ भी ले रहे थे l दुर्गा अपनी डॉल से खेल रही थी l आरुषि ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और एक इडली उठाकर उसे खिलाने लगी लेकिन, दुर्गा तो उठकर पंकज की थाली से रसगुल्ला खाने लगी l सभी हंस पड़े l पंकज ने गपर - गपर खाना शुरू किया l

    जल्दी करो, खाते ही रहेंगे तो खेलेंगे कब ? पंकज ने कहा l

    और क्या ? प्रिंस भी उतावली से खाने लगा l

    बच्चे तो फटाफट मुंह - हाथ धोकर जो भागे तो बस, क्रिकेट टीम अपने पूरे जोश के साथ खेल में रम गई l इधर लड़कियों में आरुषि की टीम ने मोर्चा संभाला -

    हरा समुन्दर गोपी चन्दर, बोल मेरी मछली कित्ता पानी .....

    इत्ता पानी ...... इत्ता पानी ......

    एक दूसरे का हाथ पकड़ कर लड़कियां गोला बनाकर घूमने लगीं -

    घोर घोर रानी, इत्ता इत्ता पानी .....

    और फिर रस्सी कूद ....... रस्सी के दोनों सिरे को एक - एक लड़की थामकर घुमाने लगी l दूसरी लड़की उस रस्सी के बीच - बीच कूदने लगी - एक, दो, तीन, चार .... करीब पचास बार l टीना मीना एक साथ कूदीं फिर वे रस्सी में फँस गईं l

    आरुषि चिल्लाई - हो ... ..... आउट l अब मेरी बारी है l

    मीनाक्षी ने कहा - मैं भी तुम्हारे साथ खेलूंगी, कूदूंगी l मैं पढ़ने में जरूर कमजोर हूँ लेकिन रस्सी कूदने में बहुत तेज l मैं तुम्हारे साथ पूरे सौ बार कूदूंगी l

    पक्का ?

    हाँ, पक्का

    टीना मीना, तुम गिनती गिनो, देखना, हम लोग पूरा सौ करेंगे l तुम लोग तो पचास में ही फुस्स हो गईं l

    टीना मीना चिढ़कर बोलीं - ज्यादा घमंड अच्छा नहीं l

    हाँ, हम घमंड से नहीं, विश्वास से बोल रहे हैं l

    और गिनती शुरू - एक, दो, तीन, चार ..... और पूरे सौ l

    आरुषि और मीनाक्षी की सांस तेज - तेज चलने लगी l दोनों धम्म से बैठ गईं l आरुषि ने मीनाक्षी से हाथ मिलाया l अब मीनाक्षी उसे अच्छी लगने लगी थी l

    दुर्गा अपनी गुड़िया को थामे ध्यान से देख रही थी l आरुषि ने प्यार करते हुए कहा - तू भी कूदेगी, तेरी गुड़िया भी कूदेगी l

    सारी मम्मियां अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करते हुए बच्चों की निगरानी कर रही थीं, कोई जलप्रपात में अकेले ना जाए, कोई झगड़ा - झांसा ना करे l

    क्रिकेट मैच समाप्त हुआ तो कबड्डी शुरू हो गई l दोनों टीमें सतर्क ......

    दाम देने वाली टीम का एक - एक खिलाडी प्रतियोगी टीम के पास जाता, यह कहते हुए -

    खेल कबड्डी ताल - ताल, मर गए बिहारीलाल

    जिनकी मूंछें लाल लाल, लाल लाल लाल लाल ......

    सांस नहीं टूटना चाहिए और सीमा रेखा को छूकर अपने पाले में आना चाहिए l

    कबड्डी का खेल खत्म हुआ l

    सूरज के रथ का घोडा भी थक चुका था, बच्चों की तरह l सभी मम्मियों ने बच्चों को इकठ्ठा करना शुरू किया - चलो चलें, अब खेतों की ओर चलते हुए हम अपनी बस तक चलेंगे, फिर अपने घर की ओर रवाना होंगे l

    प्रिंस ने कहा - ‘ का कड़ी कदम कड़ी ‘ पा ‘ कड़ी मध्ये, का कड़ी कदम कड़ी ‘ नी ‘ कड़ी मध्ये

    आरुषि ने कहा - हाँ, मुझे भी, मुझे भी l

    सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे

    प्रिंस ने कहा - अरे भाई,पानी यानि प्यास लगी है

    सभी ने पानी पिया, मुंह धोया और हरे - भरे खेतों की मेड़ों पर चल पड़े l गेहूं, चना, मटर के लहलहाते खेत सरसराती हवा के साथ झूम रहे थे l खेतों के बीचों - बीच खड़ा था बिजूका जिसे बच्चों ने पहली बार देखा था l पंकज जोर से हंसा, अरे मम्मी, यह क्या है ? इसके पेट में तो मटका बंधा हुआ है और सिर पर भी मटका, उसके ऊपर टोपी l वह सभी को आवाज लगाने लगा -

    आओ प्रिंस, मनीष, नीरज, टीना, मीना देखो, देखो यह जोकर, इसकी आँखें देखो, मूंछें तो देखो और यह लाठी भी लिए है l सभी ताली बजा - बजाकर हंसने लगे l आरुषि की माँ ने बताया - यह बिजूका है, बिजूका l

    बिजूका मतलब ?

    खेतों में जब फसल पक जाती है तो पंछी फसल को नष्ट करने लगते हैं l बिजूका के डर से पंछी दाना नहीं चुग पाते, वे समझते हैं कि कोई आदमी लाठी लेकर खड़ा है l

    अच्छा, पंछियों को बुद्धू बनाता है यह बिजूका l

    इसी बीच किसान वहां आ पहुंचा l आरुषि की मम्मी ने किसान का बच्चों से परिचय करवाया l बच्चो, ये खेत, यह लहराती फसल सब किसान चाचा की ही मेहनत का फल है l इनके ही कारण हमें गेहूं, धान, फल, सब्जियां खाने को मिलती हैं l बच्चों को किसान चाचा ने गेहूं, मटर, चना की फल्लियाँ दिखाईं - ये देखो, यह गेहूं की बाली है इसके अंदर गेहूं होता है l कुछ हरे चने, मटर की फल्लियाँ तोड़कर किसान चाचा ने बच्चों को खिलाईं l आरुषि ने कहा - माँ हम लोगों ने तो खेत पहली बार देखे हैं l अपने यहाँ तो गेहूं आता ही नहीं, आटा ही आता है l खेत में लगे गेहूं कितने सुन्दर दिखते हैं l तभी हवा के झोंकों में गेहूं की बालें खनखना उठीं l इसके बाद किसान ने कहा - देखो बच्चो, ये नहर है, इसी नहर के पानी से खेतों की सिंचाई होती है l

    अरे वाह, खेतों में फव्वारे ! टीना, मीना आओ, देखो ये बड़े मजेदार लग रहे हैं l कैसे घूम - घूमकर, झूम - झूमकर खेतों की सिंचाई कर रहे हैं l यह सब देखकर खिलखिलाहट के फव्वारे बच्चों ने ऐसे छोड़े कि सारी फसल खिलखिलाने लगी l किसान चाचा ने कहा - ये देखो ट्रेक्टर, इसी से खेतों की जुताई हो जाती है l

    अरे, और बैलों से खेत की जुताई नहीं होती क्या ?

    होती है, किन्तु अब मशीनों से शीघ्रता से काम हो जाता है l

    ये देखो, ये हैं मेरे हीरा - मोती ( उसने अपने बैलों की जोड़ी दिखलाते हुए बताया जो उसकी घास - फूस की मढ़ैया के पास बंधे हुए हरी - हरी घास चर रहे थे ) l

    अरे, और यह ?

    यह बैलगाड़ी है जो यही बैल चलाते हैं l

    हमें भी बैठना है बैलगाड़ी में, किसान चाचा बिठाइये न बैलगाड़ी में l

    किसान चाचा भी बच्चों से कम न थे l

    चलो हीरा - मोती l

    किसान चाचा ने बैलों की पीठ थपथपाई और बैलगाड़ी में बैल जोत दिए l सारे लोग बैलगाड़ी में बैठ गए l बैल भी मस्ती में झूमने लगे, उनके गले की घंटियां बजने लगीं l किसान चाचा ने हीरा - मोती से कहा - आज इन मेहमानों को जमकर घुमाओ l वह गीत गाने लगे -

    हुइया तता तता ....... दूर है अमरइयां ........ चले अइयो, दूर है अमरइयां ....

    ओई अमरइयां में केरा फरे हैं, मैं खाहौं लरकइयाँ .....

    चले अइयो, दूर है अमरइयां ....

    बैलगाड़ी जहाँ मिनी बस खड़ी थी, वहां तक सब लोगों को ले आई l

    वाह ! मजा आ गया !

    सब लोग उतर कर बस में अपना सामान रखने लगे l बच्चों ने हीरा - मोती और किसान चाचा को धन्यवाद दिया, भगवान रूपनाथ को प्रणाम किया l मम्मी लोगों ने सारा सामान और बच्चों का निरीक्षण किया और बस रवाना हो गई l दुर्गा अभी - अभी सोकर उठी थी, वह आरुषि की गोद में जाकर बैठ गई l बच्चों की चुहल कहाँ ख़त्म होने वाली थी, वे शरारत कर रहे थे l हालाँकि सब थके हुए थे l प्रिंस ने कहा - अरे यार, शतरंज तो खेल ही न पाये

    हाँ सो तो है, लेकिन मजा आ गया आज की पिकनिक में l

    तभी पीछे से आवाज आई -

    काना बाती कुर्र, चिड़िया उड़ गई फुर्र

    सबने मुड़कर देखा तो मनीष बिजूका बनकर खड़ा था l उसने अपने सिर पर गत्ते का एक डिब्बा लटकाया हुआ था जिसमें दो आँखें और नाक का छेद बना हुआ था, पेट में ना मालूम कितना बिछावन घुसाये हुए था और एक हाथ में लाठी लिए हुए गा रहा था -

    काना बाती कुर्र, चिड़िया उड़ गई फुर्र

    उसे देखकर एक साथ सारे बच्चे जोर से हँस पड़े l हंसी - ठिठोली के बीच सूरज जाने कब क्षितिज में छुप गया, पता ही न चला और अब बस कटनी पहुँच चुकी थी l सब उतरकर अपने - अपने घर अपनी माँ के साथ जाने लगे l सबके पापा भी लेने आ गए थे l सब लोग बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे l

    ***