हिम स्पर्श - 76 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श - 76

76

“यह ऊंचाई अधिक होती है किसी भी मैदानी मनुष्यों के लिए। कैसा अनुभव हो रहा है यहाँ आकर?”

“क्या इस अनुभव को शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है?”

“मैं नहीं जानती।“

“तो तुम जानती क्या हो?”

“मैं जो जानती हूँ वह दिखाने जा रही हूँ तुम्हें।“

“क्या इससे भी अधिक सुंदर कोई नया अनुभव होना है? कहो क्या है वह?”

“जोगी, ऋषि और सिध्ध पुरुष ऐसे ही स्थान पर रहते हैं यह तो सुना ही होगा, जीत।”

“तो क्या हम किसी तपस्वी से मिलने जा रहे हैं?”

“नहीं, तपस्वी नहीं। तपस्विनी को मिलने जा रहे हैं।“

वफ़ाई के इन शब्दों को विक्टर के केमरे से लगे स्पीकर ने पकड़ लिया। विक्टर सतेज हो गया। वह केमेरे की तरफ भागा।

“याना, कुछ सुना तुमने?”

केमरे से वफ़ाई और जीत को देखते हुए याना बोली, “हाँ विक्टर, सात सात दिवसों से जिसकी प्रतीक्षा में हम यहाँ बैठे हैं, वह क्षण निकट लग रहा है।“

“हाँ, हमारी तपस्या अब सफल होती दिख रही है। यह तुम्हारी योजना का ही फल है।“

“वह कैसे?”

“तुम्हारे कहने पर हमने हिन्दी सीख ली। यदि हम हिन्दी नहीं सिखते तो यह शब्दों का अर्थ ही नहीं जान पाते और महीनों तक यहाँ बैठे रहने पर भी उस तपस्विनी तक जा नहीं पाते।“

“तुम्हें लगता है कि यह दोनों उस तपस्विनी से ही मिलने जा रहे हैं?”

“हाँ, बातों से यही लगता है।“

“मुझे भी लगता है कि वह लड़की, क्या नाम बता रही थी अपना?”

“वह लड़का उसे बार बार वफ़ाई के नाम से पुकारता है तो वफ़ाई ही नाम होगा और लड़के का नाम जीत लग रहा है।“

“मुझे लगता है कि यह वफ़ाई इस पहाड़ी के विषय में अच्छा ज्ञान रखती है।“

“एक मिनिट, जरा रुको। देखो वह दोनों कहीं जा रहे हैं। लगता है कि वह तपस्विनी के पास ही जा रहे हैं। हमें उसके पीछे पीछे चलना चाहिए।“

“तो चलो। पर दो बातों का ध्यान रखना। एक, केमरा सतत उन दोनों पर ही रखना। एक क्षण के लिए भी वह केमरे की द्रष्टि से दूर नहीं होने चाहिए। हमें उनकी बातें बराबर सुनते रहना होगा। दूसरा, उनको पता नहीं लगना चाहिए कि हम उनका पीछा कर रहे हैं।“

“ठीक कहा तुमने। यहाँ इतनी शांति है कि हमारे पग की ध्वनि भी उनके कानों तक जा सकती है।“

“एक और बात। यदि हमारा उनसे सामना हो गया तो हम केवल जर्मनी में ही बातें करेंगे। हिन्दी में नहीं, अंगेजी भी नहीं।“

“ठीक है।“

विक्टर और याना ने अपने अपने थेले और केमरे संभाले। वफ़ाई तथा जीत का पीछा करने लगे।

वफ़ाई और जीत अपने आनंद में मग्न थे, चलते जा रहे थे। वह प्रकृति का आनंद उठा रहे थे।

“वफ़ाई, यह अनुभव इतना अदभूत है कि...।”

“तुम बोलते अधिक हो।“ वफ़ाई ने जीत को टोक दिया, रोक दिया। वह बस चलती रही, जीत भी।

सब कुछ शांत था, पूर्णत: शांत। कोई ध्वनि नहीं। केवल पगरव। दिशाएँ शांत। पथ शांत। हवाएँ शांत। वफ़ाई शांत। जीत भी शांत।

इतनी शांति में जीत को कुछ सुनाई देने लगा। जैसे कोई जीत से बातें कर रहा हो। जीत क्षण भर के लिए रुक गया। आँखें बांध कर ली, सांस को भी रोक लिया। जीत ने उन ध्वनियों की तरफ ध्यान केन्द्रित किया।

‘पहाड़ की एक चोटी दूसरी चोटी से कुछ बात कर रही है। अथवा घाटियां आपस में बातें कर रही है। अथवा घाटी चोटी को कुछ कह रही है। अथवा चोटी घाटी से कुछ कह रही है। किन्तु यह तो किसी एक की ही ध्वनि है। क्या घाटी अथवा चोटी अकेली ही बोले जा रही है और बाकी सब श्रोता बनकर सुन रहे हैं? अथवा स्थिर से रुके झरनें, अथवा वह पंखी। कोई तो है जो कुछ कह रहा है। यदि कोई कह रहा है तो कोई सुन भी रहा होगा ना? कौन बोल रहा है और कौन सुन रहा है? कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। देखूँ तो चारों दिशाओं में...।‘

जीत ने आँखें खोल दी। सब कुछ वैसे का वैसा ही था। सब कुछ शांत, सब कुछ नीरव।

कोई बोल नहीं रहा था। कोई सुन नहीं रहा था। तो यह क्या था? कोई भ्रम था क्या?

जीत दुविधा में पड गया, वफ़ाई आगे निकाल गई। जीत चलने लगा।

वफ़ाई दुर्गम मार्ग पर चल रही थी, जीत भी। विक्टर और याना भी। वफ़ाई और जीत की प्रत्येक क्षण विक्टर और याना के केमरे में बंध होती जा रही थी।

वफ़ाई एक स्थान पर रुक गई। आगे मार्ग बंध था। जीत भी रुक गया।

“क्या हम भटक गए हैं? यहाँ तो अब कोई मार्ग है ही नहीं।” जीत ने वफ़ाई की तरफ देखा।

विक्टर ने भी याना की तरफ देखा,”क्या यह लड़की जान गई है कि हम उसके पीछे पीछे चल रहे हैं और वह जान बूझकर हमें भटका रही है।“

“हमारे साथ ऐसा अनेक बार हुआ है। यह स्थानीय लोग पर जितनी बार हमने विश्वास किया है, उन्होंने ने हमें इसी तरह भटका दिया है। वफ़ाई भी यही कर रही है।“

“किन्तु मुझे लगता है कि वफ़ाई, रुको। देखते रहो।“

याना वफ़ाई को देखने लगी। केमरे भी वफ़ाई को ही देख रहे थे।

वफ़ाई पहाड़ पर जमे हिम के एक बिन्दु पर हथौड़ी से प्रहार करने लगी। हिम अत्यंत कठोर था। वफ़ाई के प्रहार का उस पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था।

“यह क्या कर रही हो?” जीत ने पूछा।

“तुम बस देखते जाओ। हमारा लक्ष्य इस हिम के बिलकुल पीछे ही है। बस एक बार यह हिम टूट जाय।“

“यह तो अत्यंत कठोर दिख रहा है। यह ऐसे नहीं टूटेगा।“

“टूटेगा। हिम ऐसे ही टूटेगा। प्रयास करते रहना पड़ेगा।“

“ठीक है किन्तु यदि यह टूट भी जाय तो हमें क्या मिलेगा? हम आखिर कर क्या रहे हैं? जा कहाँ रहे हैं?” वफ़ाई ने कोई उत्तर नहीं दिया, बस प्रहार करती रही। अंतत: थक गई।

“मैं प्रयास करूँ?” जीत ने प्रस्ताव रखा। वफ़ाई ने जीत को हथौड़ी पकड़ा दी और एक तरफ हो गई। जीत प्रहार पर प्रहार करने लगा किन्तु कठोर हिम पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह निश्चल खड़ा था।

जीत थक गया। उसकी साँसे फूलने लगी। वह एक तरफ बैठ गया। ज़ोर से साँसे लेने लगा। वफ़ाई दौड़ी,“यह लो, ऑक्सीज़न की नली लगा लो नाक पर।“

जीत ज़ोर ज़ोर से ऑक्सीज़न को अपनी साँसों में भरने लगा। कुछ समय बितने पर वह थोड़ा स्वस्थ हुआ।

“लगता है आज हमारे भाग्य में नहीं है। यह हिम टूटने का नाम ही नहीं ले रही।“ वफ़ाई भी निराश हो गई।

“वफ़ाई, आज से पहले कभी तुमने यह स्थान पर से हिम तोडी भी है?” जीत ने संदेह प्रकट किया।

“तो क्या मैं यहाँ...?” वफ़ाई आगे कुछ बोल ना सकी। जीत भी मौन रहा।

जीत ने ऑक्सीज़न हटा दिया। सामान्य रूप से साँसे लेने लगा। कुछ क्षण दोनों को कुछ भी नहीं सुझा। समय व्यतीत होता गया। विक्टर और याना भी धैर्य धारण किए प्रतीक्षा करने लगे।

“विक्टर, हमें अब प्रकट हो जाना चाहिए। हमारे साधनों से उस हिम को हम सरलता से काट सकते हैं। क्या कहना है तुम्हारा?”

“हमें सहाय तो करनी ही चाहिए किन्तु ...।“ विक्टर ने संदेह जताया।

“जो होगा देखा जाएगा। चलो चलते हैं।“ याना जीत एवं वफ़ाई की तरफ चलने लगी। विक्टर भी। दोनों उन दोनों के सामने आ गए। जीत और वफ़ाई चौंक गए।