मेरे दिल का हाल अन्तिम भाग Shaihla Ansari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरे दिल का हाल अन्तिम भाग

ज़ईम कुछ कहे बिना वहां से चला गया और वो दोनों एक दूसरे का मुंह देखते रह गए।
.............  . .........................................
अगले कुछ दिन मायरा इंतज़ार करती रही कि ज़ईम   उसे डाटेेेगा लेकिन उसने कुछ नही कहा हाँ अलबत्ता मायरा ने उसकी आँखों मे ज़रूर कुछ पढ़ा था।वो कहते है ना औरत किसी भी मर्द की आँँखों को बखूबी पढ़ सकती है।।

"क्या हुआ मायराा... इतनी उदास क्यों हो"

"कुछ नही अंकल,,,,,,,,,,बस ज़रा घर की याद आ रही है" 

"तो कुछ दिनों के लिए घर हो आओ बेटा" 

"1 महीने बाद पेपर है,,,, तारीख भी आ चुकी है अब कुछ दिनों के लिए घर जा कर क्या करूंगी,,, पेपर दे दूं फिर आराम से घर जाऊंगी" मायरा ने बुक समेटते हुए कहा।

"ये शायान को मसूरी भी अभी जाना था" 

"तो क्या हुआ बाबा,,,, ये उसके घूमने के दिन है" ज़ईम ने लाउंज में आते हुए कहा। 

"उसे अपने पेपरों की तैयारी करनी चाहिए थी,,,, पर निकल गए जनाब घूमने" एजाज ने कहा। 

"शायान लापरवाह जरूर है पर नालायक नहीं है"     ज़ईम ने एक नजर मायरा पर डाली। 

मायरा ज़ईम को ही देख रही थी।  ज़ईम से नजरें मिलते ही उसने नजरें हटा ली। 

"ये उसके मस्ती के दिन है बाबा,,,, फिर तो काम में ही लग जाना है" 

"क्या बात है तुम शाायान की बड़ी तारीफ कर रहे हो" एजाज ने ज़ईम से कहा। 

"वो मेरा एकलौता भाई है उसकी तारीफ नहीं करूंगा तो किसकी करूंगा"  ज़ईम की बात पर ज़ईम के साथ वह दोनों भी हस दिए।
........................................................
"अच्छा अंकल मैं चलती हूं" मायरा ने नाश्ता करके अपना बैग उठाते हुए कहा। 

"तुम अकेली जाओगी"

"हां अंकल अब तो दिल्ली के सब रास्ते याद हो गए हैं" 

"नहीं तुम अकेली नहीं जाओगे,,,, ज़ईम  तुम्हें छोड़ देगा,,,, तुम ऑफिस जा रहे हो तो मायरा को उसके कॉलेज तक छोड़ देना" एजाज ने नाश्ता करते हुए ज़ईम से कहा। 

"नहीं अंकल मैं चली जाऊंगी यहीं पास में तो है मेरा कॉलेज" मायरा ने जल्दी से कहा वो ज़ईम के साथ जाना नहीं चाहती थी। 

"नहीं बेटा मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दे सकता" 

 ज़ईम  बिना कुछ कहे मायरा पर एक नजर डाल कर बाहर की तरफ निकल गया। 

"जाओ बेटा"

"जी अंकल"  मायरा बस इतना ही कह सकी। 

 ज़ईम कार स्टार्ट किए मायरा का इंतजार कर रहा था। 

मायरा कार के पीछे का दरवाजा खोल कर बैठने ही वाली थी कि उसे ज़ईम की आवाज सुनाई दी। 

"मैं आपका ड्राइवर नहीं हूं आगे आकर बैठे" 

मायरा चुपचाप आगे की सीट पर बैठ गई। 

सारा रास्ता खामोशी से गुजरा ।

"तुम्हारा कॉलेज कब खत्म होता है" मायरा कॉलेज गेट पर कार से उतर रही थी तो ज़ईम ने मायरा से पूछा। 

"1:15 बजे" मायरा ने कार का आधा दरवाजा खोलें ज़ईम की तरफ देखे बिना कहा। 

"मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा" ज़ईम की बात पर मायरा ने एक नजर ज़ईम पर डाली और दरवाजा बंद करके कॉलेज गेट की तरफ बढ़ गई। 

मायरा को इंतजार करते हुए 20 मिनट हो चुके थे लेकिन ज़ईम अभी तक ज़ईम नहीं आया था "मैं क्यों उसका इंतजार करूं मैं अकेले भी हूं जा सकती हूं ना तो फिर मैं क्यों उसका एहसान लूं"  मायरा अपने आप से बात करती चल पड़ी। वो कुछ कदम हीं चली थी कि एक कार उसके आगे आकर रुकी और ज़ईम ने मायरा को देखकर कार का दरवाजा खोल दिया। 
........................................ . .   . .. ...........
"मुझे तुमसे कुछ बात करनी है" ज़ईम ने कार की स्पीड कम कर दी। मायरा 2 दिन से ज़ईम के साथ ही कॉलेज जा रही थी। 

" आप प्लीज कार की स्पीड तेज कीजिए मैं कॉलेज के लिए लेट हो जाऊंगी" उसका मतलब साफ था वो बात नहीं करना चाहती। 

" ज़ईम भी समझ गया था और उसने भी गुस्से में कार की स्पीड बढ़ा दी। 
.............................................  .
मायरा कॉफी का मग लेकर लोन में चली आई।चमकीली और गरम धूप जिस्म को बड़ी अच्छी लग रही थी। रात भर किताबों में सिर खपाने की वजह से मायरा की सुबह देर से आंख खुली। मायरा ना जाने कहां खोई हुई थी कि उसे अपने सामने जमीन पर धूप में एक साया दिखाई दिया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो ज़ईम खड़ा था।

"मायरा मुझे तुमसे,,,,,, ज़ईम अपनी पूरी बात भी नहीं कर पाया था और मायरा ज़ईम को देखकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।

"तुम मुझे इस तरह से इग्नोर क्यों कर रही हो रही" ज़ईम मायरा के पीछे उसके कमरे तक चला आया था।

मायरा ने कोई जवाब नहीं दिया। वो बस ज़ईम को देखे जा रही थी।

"मुझे तुमसे कुछ कहना है" 

"मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी,,,, आप जाइए यहां से" 

"तुम्हें मेरी बात सुननी पड़ेगी" 

"आप मुझे मजबूर नहीं कर सकते अपनी बात सुनने के लिए" 

"कर सकता हूं,,,,, जरूर कर सकता हूं" ज़ईम नेे मायरा की कलाई पकड़ते हुए कहा। 

"मेरा हाथ छोड़े" मायरा ने ज़ईम को गुस्से से देखा। 

ज़ईम पर मायरा के गुस्से का कोई असर नहीं हुआ। वो बस मायरा की कलाई पकड़े उसे ही देखे जा रहा था। 

"बस एक बार मेरी बात सुन लो" ज़ईम ने मायरा की कलाई छोड़ते हुए कहा। 

और मायरा मुंह फेर कर खड़ी हो गई। 

"मैं जानता हूं मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मायरा,,,,,, ज़ईम कुछ देर के लिए रुका,,,, कॉलेज के फौरन बाद मै बाबा के साथ बिजनेस में लग गया मेरी लाइफ घर से ऑफिस और ऑफिस से घर बस यहीं तक सिमट कर रह गई थी,,,, प्यार मोहब्बत क्या होता है मैैंने कभी ये जानने कि जरूरत महसूस नहीं की,,,  या ये कहो कि मैंने प्यार को जिंदगी के लिए जरूरी नहीं समझा" ज़ईम ने अपनी बात कहते हुए मायरा की तरफ देखा। वो अब भी ऐसे ही रुख फेरे खड़ी थी "फिर बाबा ने बताया कि उन्होंने मेरा रिश्ता तुम्हारे साथ तय कर दिया है मैं इस सब के लिए तैयार नहीं था मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं,,,,, मैं शादी नहीं करना चाहता था और इस जल्दबाजी में मैंने वो सब कह कर रिश्ते से इंकार कर दिया यकीन मानो मेरा मकसद किसी का दिल दुखाने का नहीं था" ज़ईम ने मायरा के सामने आते हुए कहा। मायरा की आंखें जमीन पर थी "और एक सच ये भी है कि मैं तुमसे बहुत मोहब्बत करता हूं"

मायरा ने एकदम ज़ईम को देखा। 

"ये सब कब हुआ कैसे हुआ मैं नहीं जानता,,,, मैं बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बहुत मोहब्बत करता हूं मायरा,,,,,, बहुत चाहता हूं तुम्हें"

मायरा ज़ईम की बात पर हंसी और जोर से हंसती चली गई। 

"ज़ईम साहब,,,,, मैं आज भी वही जाहिल गवार गांव की लड़की हूं और आप मुझ जाहिल गवार से मोहब्बत कर बैठे ये तो आप की शान के खिलाफ है" मायरा ने ज़ईम की आंखों में देखकर कहा। 

"आई एम सॉरी मायरा आई एम वेरी सॉरी"

"बस,,,,,, मायराा ने हाथ उठाकर ज़ईम को बोलने से रोका "जाइए ज़ईम साहब  किसी ऐसी लड़की से मोहब्बत कीजिए जो आपके लेवल की हो" 

ज़ईम बस मायरा को देखकर रह गया था।
...........................................
ज़ईम ने कई बार मायरा से बात करने की कोशिश की लेकिन वो उसकी कोई बात सुनना नहीं चाहती थी। इसलिए उसने शायान की मदद ली। 

"मायरा से कहो बस एक बार वो मेरी बात सुन ले फिर मैं उसे कभी परेशान नहीं करूंगा" 

"मैं बात करता हूं आपी से" शायान ने ज़ईम को पहले कभी इतना परेशान नहीं देखा था। 
............................... .  ........
"मायरा मैं तुम्हारी जिंदगी में कभी दखल नहीं दूंगा कभी तुमसे ये भी नहीं कहूंगा कि मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं हां अलबत्ता मैं तुमसे सारी जिंदगी ऐसे ही मोहब्बत करता रहूंगा" 

मायरा सिर झुकाए ज़ईम की बातें सुन रही थी। वो शायान के कहने पर ज़ईम की बात सुनने आ गई थी। 

"मायरा बस तुम मुझे मेरी एक बात का जवाब दे दो" ज़ईम कुछ देर के लिए रुका था "तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं"

 दोनों के बीच कुछ देर खामोशी रही। 

"मायरा प्लीज,,,,,  बस एक बार मेरी बात का जवाब दे दो,,,,, अगर तुम्हारा ना मे जवाब हुआ तो मैं अभी इसी वक्त तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा" 

मायरा कुछ नहीं बोली बस उसकी आंखों से आंसू बह निकले थे। अपने आंसू छुपाने के लिए वो रुख मोड़ कर खड़ी हो गई थी लेकिन ज़ईम ने उसके आंसू देख लिए थे और उसे उसका जवाब भी मिल गया था। 

ज़ईम ने मायरा को कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया। "अगर दर्द की वजह मैं हूं तो दवा भी मैं ही बनूंगा" ज़ईम ने अपनी उंगलियों से मायरा की आंखों से आंसू साफ किए।

"एक बार तो कह दो कि तुम मुझसे प्यार करती हो,,,, मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं" मायरा कुछ संभली तो ज़ईम ने कहा। 

"करती हूं,,,,, बहुत करती हूं" 

ज़ईम मायरा के इकरार पर मुस्कुरा दिया "वैसे तुम बड़ी छुपी रुस्तम निकली,,,,, बड़ा बेवकूफ बनाया मुझे शायान के साथ मिलकर"

"वो,,,, वो,, वो तो बस ऐसे ही" मायरा को कुछ याद आने पर उसकी ज़बान हकलाई। 

"शायान की तो मैंने अच्छे से क्लास ली थी और अब तुम्हारी लेता हूं" ज़ईम ने मायरा के करीब आते हुए कहा। 

"क्या करेंगे आप" मायरा उछलकर पीछे हुई थी। 

"अभी जाकर बाबा से हमारी शादी की बात करता हूू"   मायरा को ऐसे उछलते देख ज़ईम हंसा।

"अभी नहीं,,,,, पहले मेरे पेपर हो जाने दो उसके बाद मैं गांव चली जाऊं,,,,,, तब बात करना" मायरा ने जल्दी से कहा। 

"ऐसा क्यों" ज़ईम ने अपने दोनों हाथ सीने पर बांधे।

"बस ऐसे ही" 

"ओके,,,,, शादी की बात पेपरों के बाद" और दोनों मुस्कुरा दिए। 
....... .......................................
मायरा के पेपर बहुत अच्छे से हुए। वो सब से मिलकर गांव के लिए निकल गई। चलते वक्त ज़ईम ने उससे कहा था वो एक-दो दिन में बाबा के साथ गांव आएगा और 2 दिन बाद ज़ईम, एजाज और शायान के साथ गांव में मौजूद था। सायमा अपने भाई और भतीजो को देखकर बहुत खुश हुई। एजाज ने एक बार फिर अहमद से मायरा को मांगा था ये कहकर कि इस बार ज़ईम की भी ऐसी ही मर्जी है लेकिन अहमद ने ये बात कहकर बात खत्म कर दी कि माायरा और अली का रिश्ता तय हो चुका है और हफ्ते भर बाद उन दोनों की मंगनी है। मायरा और ज़ईम पर ये बात बम की तरह गिरी थी।

"मैं खुद अहमद अंकल से बात करूंगा"

"जल्दबाजी में ऐसा कोई काम मत करना भाई जो आपी के लिए परेशानी का सबब बने" शायान ने ज़ईम को रोका। "पॉप्स ने बताया ना कि उन्होंने अहमद अंकल से बात की थी उन्होंने अहमद अंकल को ये तक बता दिया कि आप और आपी एक-दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन फिर भी अंकल ने मना कर दिया" शायान की बात सुनकर ज़ईम की रहीं सही उम्मीद भी खत्म हो गई। 

"भाई अब बहुत देर हो चुकी है" शायान ने ज़ईम को देखा।

मायरा ने कुछ नहीं कहा था। उसने बस चुपचाप अपने बाबा के फैसले पर सिर झुका दिया था लेकिन उसका दिल बहुत रो रहा था। उसके ख्वाब ऐसे टूटेंगे उसने सोचा नहीं था। 

ज़ईम अली के साथ उसकी मंगनी की तैयारी में लग गया "तुम रहने दो यार तुम काम करो अच्छा नहीं लगता" 

"मेरे यार की मंंगनी है तो सब काम की जिम्मेदारी भी मेरी है" ज़ईम ने अली के कंधे पर हाथ रखा। अली और ज़ईम मे बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी। 

अली ने ज़ईम को गले लगा लिया। 
............................................
"सुनो जी क्या ये सब ठीक हो रहा है" सायमा ने अनवर से कहा। 

"क्या सब बेगम,,,,,, जरा खुल कर बोलो" 

"कल अली और मायरा की मंगनी है,,,, क्या ये मंगनी होनी सही है,,,,,हम सबको पता है ज़ईम और मायरा एक दूसरे से,,,,,, सायमा कुछ कहते कहते रुक गई।

"देखो बेगम,,,,,, भाई जान ने एजाज को मना कर दिया है और भाई जान का कहना भी बिल्कुल सही है,,,, वो दोनों नादान नासमझ है,,,,, अब तुम खुद ही देख लो पहले तो ज़ईम ने इस रिश्ते से इंकार कर दिया और अब वो मायरा से शादी करना चाहता है और अगर दोनों की शादी हो गई तो हो सकता है ज़ईम आगे जाकर ये कह दे कि उसकी मायरा से शादी करना गलती थी,,,,, तो ये ही सही बात है कि जो रिश्ता एक बार खत्म हो गया तो हो गया" 

"आपकी बात सही है लेकिन क्या मायरा शादी के बाद ज़ईम को भूल पाएगी" 

अली अपनी अम्मी की बात सुनकर दरवाजे में ही रुक गया।

"अब इस बात को यहीं खत्म करो और अली को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए" अनवर ने अपना चश्मा साफ करते हुए कहा। 

"किस बारे में अब्बा" अली कमरे में चला आया "और आप ये ज़ईम और मायरा के बारे में क्या कह रहे थे" 

"कुछ नहीं बेटा हम तो बस ऐसे ही बात कर रहे थे" 

"अब्बा प्लीज,,,, मुझे बताइए कि क्या बात है" 

अनवर की जुबानी सारी बात सुनकर अली ने मंगनी से इन्कार कर दिया। 

"ये तुम क्या कह रहे हो अली" अनवर ने बेटे को देखा।

"मायरा और ज़ईम एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं तो मैं उन दोनों के बीच में कैसे आ सकता हूं" 

"लेकिन तुम भी तो मायरा को पसंद करते हो" सायमा ने कहा।

"अम्मी,,,,,,,मैं मायरा को पसंद करता हूं लेकिन ज़ईम मायरा से मोहब्बत करता है" 

"पसंद में और मोहब्बत में क्या फर्क है अली" 

"बहुत फर्क है,,,,,,,,, अम्मी पसंद वक्त के साथ बदल जाती है लेकिन मोहब्बत नहीं" 

सायमा बेटे को देखकर रह गई। 

"वो सब तो ठीक है अली लेकिन तुम अपने ताया जान को कैसे समझाओगे" 

और फिर वो हो गया जो बहुत मुश्किल लग रहा था। मायरा अली को एहसानमंदी की नजरों से देख रही थी। अभी मायरा की अम्मी ने मायरा और ज़ईम को एक दूसरे के नाम की अंगूठी पहनाई थी। 

"मंगनी मुबारक हो तुम दोनों को" अली ने मायरा और ज़ईम से कहा। 

"थैंक्स यार" ज़ईम अली को देख कर मुस्कुराया। 

"यार दोस्तों में थैंक्स नहीं चलता" 

"तुमने तो मुझे कुछ नहीं बताया लेकिन मैं तुम्हारे दिल का हाल जान गया था"  अली ने मायरा से कहा। 

अली की बात पर वो दोनों मुस्कुरा दिए।।।।।

             
                                          समाप्त