रात ११ बजे के बाद ‌‌‌‌--भाग ७ Rajesh Maheshwari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रात ११ बजे के बाद ‌‌‌‌--भाग ७

उसने फायर किया मैं सावधान था और तुरंत दौडकर जीने को ओर भागा मैं तेजी से कूदता हुआ जीना पार कर रहा था तभी दूसरी गोली मेरे पास से निकल गयी मैं लान से होता हुआ घर के पिछवाडे की दीवार से दूसरी तरफ कूद गया मैं वहाँ यह देखकर अचंभित हो गया कि वहाँ पर दो गाडियों में छः सात लोग बैठे हुये थे और वे मेरा ही इंतजार कर रहे थे उनमें से एक ने कहा अरे इसे तो बेहोशी की हालत में बाहर लाया जाना था परंतु यह तो होशोहवास में हैं इतना कहकर उन लोगों ने मुझे घेरकर जबरदस्ती एक गाड़ी में बैठा दिया और मुझे चुप रहने की हिदायत दी वे सभी सशस्त्र थे और मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी उन्होने फोन से किसी से बात की उसने निर्देश दिया कि इसे बिना मालूम हुये अपने गंतव्य पर पहुँचा दो। उन्होनें मेरी आँख पर पट्टी बांधकर एक स्थान पर ले गये और वहाँ कार से मुझे उतारकर एक सुसज्जित कमरे में बैठाकर मेरी आंखों की पट्टी खोल दी। मै बहुत घबराया हुआ था और मेरी सिट्टी पिट्टी गुम थी मेरी कल्पना के विपरीत उन सभी का व्यवहार बहुत अच्छा था और मुझे उन्होने चाय नाश्ता भोजन आदि सभी सुविधायें प्रदान की थी। मैं कमरे के बाहर नही जा सकता था तथा मुझे बाहर की कोई भी जानकारी नही दी जाती थी। मुझे वहाँ क्यों लाया गया मेरे से क्या चाहते हैं और कौन उनका बास है यह दो दिन तक पता ही नही चल पाया था।

इसके बाद तीसरे दिन रिजवी और शमशेर सिंह दोनो मेरे पास आये तो मैं आश्चर्यचकित रह गया कि यह काम उनका है उनका व्यवहार भी मेरे साथ बहुत अच्छा रहा मैंने उनसे पूछा कि आप लोग क्या चाहते हैं और मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है रवि ने मुझे खत्म करने का प्रयास क्यों किया ? वे बोले कि हम तुम्हें सबकुछ बताते हैं रवि ने तुम्हारे दस्तखत के स्टेम्प पेपर पर वसीयत बना ली है कि तुम्हारी मृत्यु के उपरांत तुम्हारी सारी संपत्ति उसे मिल जाएगी इसलिये वह तुम्हें जान से मारना चाहता है उन्होने मुझें मेरे हमशक्ल से लेकर उसकी अंत्योष्टि एवं पुलिस की जाँच पड़ताल के विषय में बताया उन्होने यह भी कहा कि रवि ने डबल क्रास किया था हम दोनो तुम्हारी जान नही लेना चाहते थे। मैं पल्ल्वी के नाम की वसीयत तुम्हारे द्वारा बदले जाने से नाराज था और शमशेर सिंह रंजना के नाम की वसीयत बदले जाने से बहुत खिन्न था यह शमशेर सिंह के दिमाग की योजना थी कि तुम्हारा अपहरण करके वसीयत बदले जाने की बात भूलकर दस दस करोड़ रूपये वसूल कर लिये जाए तो हम लोगों का सारा जीवन आसानी से व्यतीत हो जाएगा इसी बीच रवि ने अपने नाम की वसीयत की जानकारी दी और हम लोगों से तुम्हे खत्म करने का अनुरोध किया इसके लिए उसने जायदाद मिलने पर पाँच पाँच करोड़ रू. देने का आश्वासन दिया।

शमशेर सिंह ने शक जाहिर करते हुये कहा कि जब पूरी जायदाद उसने अपने नाम लिख ली है तो आनंद के नही रहने पर यदि इसने अपने को धन नही दिया तो हम क्या कर लेंगें। हम दोनो ने तुम्हारी जीवनलीला खत्म करने के लिये स्पष्ट रूप से रवि को मना कर दिया। अब दोनो के उद्देश्य अलग अलग थे हमें तुमसे धन लेना था और रवि को तुम्हारी जान उसने सुझाव दिया था कि तुमको बेहोश करके पिछले दरवाजे से बाहर ले आयेगा फिर हम लोग तुम्हें अपने निर्धारित स्थान पर रखेंगे इसके बाद क्या करना चाहिये इसे सोचकर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। हम लोगों ने इसे स्वीकृति दे दी पंरतु तुम अभी कहाँ पर हो एवम हम दोनो भी यहाँ पर हैं इसकी जानकारी रवि को नही होने दी पल्लवी या मानसी को भी इन सभी बातों की कोई जानकारी नही है अब हम लोगों की अपेक्षा है कि हमारी मांग पूरी हो जाए और हम तुम्हें रिहा कर दें। हमें रवि से कुछ लेना देना नही है।

मैंने उनकी पूरी बात सुनकर कहा कि आप लोग तो मेरे जीवन की रक्षा के कवच बन गये हैं इसके लिये मैं आपको दस करोड़ से ज्यादा भी दे सकता हूँ पंरतु एक बात आप सोच लीजिये इतनी बडी रकम आप कहाँ रखेंगे और इसका उपयोग कैसे कर पायेंगे क्योंकि जैसे ही आप अपनी हैसियत के उपर कोई भी कार्यकलाप करेंगे वह सबकी नजर में आने लगेगा इसके साथ साथ रवि भी आपसे अपना बदला लेगा। मैं आपको अपने व्यापार में भागीदारी दे सकता हूँ जिससे आजीवन आपको धन प्राप्त होता रहेगा और किसी के कुछ समझ में नही आयेगा। रवि को हमसब मिलकर पुलिस के हवाले करवा देगे और जेल में सडता रहेगा। आप विचार लें आप क्या चाहते हैं ? मैं मन में समझ गया था कि इनको मैं रोज धन कमाने का एक नया फार्मूला देता जाउँगा ये अनिश्चय की स्थिति में रहेंगे, समय निकलता जायेगा और पुलिस कार्यवाही में ये सभी पकड़े जायेंगे और मेरी यह सोच एकदम सही निकली आखिर आप लोगों ने मुझे मुक्त करा ही लिया। ये लोग इतनी बड़ी रकम के लालच में इतने उलझे हुये थे कि इन्हें क्या करना चाहिये यह इनकी समझ के बाहर था और ये लोग रवि कि गिरफ्तारी की आशा में समय व्यतीत कर रहे थे।

पुलिस विभाग द्वारा अभी तक रवि को गिरफ्तार ना करने के कारण ये दोनो बहुत व्यथित थे। शमशेर सिंह ने विचार करके सोच समझ कर हमषक्ल की पत्नी को फोन किया कि आपके पति कहाँ पर हैं, किस हालत में हैं ? इसका पता करने के लिये तुरंत ही आ जाइये यह फोन आते ही वह तुरंत आनंद के गृहनगर पहुँच कर पुलिस थाने जाती है और अपने पति की फोटो दिखाकर उसके विषय में जानकारी प्राप्त करने का अनुरोध करती है।

रवि की गिरफ्तारी से शमशेर सिंह और रिजवी खुश हो जाते है और मुझे बधाई देते हुये कहते हैं कि अब तुम्हें रिहा करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अभी हम लोग यह बात कर ही रहे थे कि आपने छापा मार कर मुझे रिहा करा लिया। जाँच अधिकारी हरीश रावत आनंद को कहता है मैं कभी किसी के निजी मामलों के विषय में दखलंदाजी नही करता हूँ परंतु पल्लवी और रंजना का आपसे संबंध अब निजी ना होकर हत्या और अपहरण से जुडा हुआ हैं। इस संबंध में मुझे आपसे विस्तारपूर्वक जानकारी की अपेक्षा है। मुझे आशा है कि आप बिना कुछ भी छिपाए हुये हमें इससे अवगत करायेंगे।

आनंद इनसे अपने संबंधों को स्वीकार कर लेता है और बताता है कि रंजना शमशेर सिंह की सगी बेटी नही हैं। यह किसी धनाढ्य व्यक्ति की नाजायज संतान हैं जिसे पालन पोषण के लिये शमशेर सिंह को उसके जन्म के साथ ही दे दिया गया था। रंजना के नाम पर ही सभी सेव के बगीचे, धन दौलत एवं अन्य जायदाद है जिससे काफी आमदनी आती है। रंजना एक खुले विचारों वाली स्वछंद लडकी है जिसके मित्रता कई पुरूषों से रही है। वह बहुत ही सुंदर एवं चतुर लडकी है। अब शमशेर सिंह का उस पर कोई नियंत्रण नही है। रंजना से आनंद ने शादी के लिये इंकार करने के बाद गौरव की नसीहत पर मसूरी आना बंद कर दिया था और मैंने रवि को यहाँ बुला लिया था। पल्लवी के साथ मेरी मित्रता रंजना से दोस्ती समाप्त होने के बाद हुई थी यह कैसे कब कहाँ क्यों ? इन सभी प्रश्नो का उत्तर आपको गौरव और राकेश ने दे दिये हैं उन्हें वापिस दोहराने में कोई लाभ नही है इसमें मेरी ही गलती थी कि मैंने पल्लवी के निजी जीवन के विषय में उसके बताने की मंशा के बावजूद भी यह कहकर उसे बताने नही दिया कि मैं अतीत में विश्वास नही रखता वर्तमान में जीता हूँ, भविष्य की कल्पना करता हूँ। मैंने राकेश के समझाने पर भी कि पल्लवी का साथ छोड दो उसकी बात ना मानकर उसी से अपनी दूरी बढ़ा ली थी। गौरव ने भी मुझे समझाया था कि वसीयत का प्रलोभन तुम्हारे लिये कभी भी जान का खतरा बन सकता है। मुझे अपने मित्रों की बातों पर विश्वास रखना चाहिये था परंतु कभी कभी हम अपने हितेषियों को भूल जाते हैं।

मेरी पूरी शिक्षा दीक्षा विदेश में हुई है इसलिये मेरे मन की भावनायें इस प्रकार के संबंधों को बुरा नही मानती क्योंकि वहाँ पर यह सब एक सामान्य बात है परंतु अपने देश की सभ्यता, संस्कृति व संस्कार अलग हैं जो इसे मान्यता नही देते हैं। अब मुझे वास्वविक धरातल का अनुभव हो रहा है कि मेरी गलतियों के कारण ही आज का ये दुखद दिन आया है मैं कानून से तो रिहा हो गया हूँ परंतु अपने गलत कर्मों के फलों कैसे रिहा हो सकूँगा यह नही समझ पा रहा हूँ यह मेरे निजी जीवन के बारे में सच्चाई जानने के बाद मुझे इस बात की चिंता नही हैं कि बाहर वाले मेरे विषय में क्या सोचते हैं परंतु मुझे चिंता इस बात की है कि मेरे घर में ही अब मेरी स्थिति क्या रहेगी।

मैंने एक महिला पल्लवी की आर्थिक मदद करके उसे स्वावलंबी बनाकर सम्मान से जीने का रास्ता दिखाया। इसकी तारीफ कोई नही करेगा। मेरे निजी संबंधों को आलोचना का विषय बना दिया जाएगा। आनंद अब उस हमशक्ल के परिवार से मिलता है और उन्हें सांत्वना देता है उसके बेटे के अच्छी पढाई की जवाबदारी अपने कंधे पर लेकर उसके परिवार को बाकी खर्च हेतु आजीवन मदद का आश्वासन देता है। उसकी पत्नी रोती हुयी उसकी इस कृपा के लिये धन्यवाद देती है।

अब जाँच अधिकारी शमशेर सिंह और रिजवी से पूछताछ करता है जो उनको वही जानकारी देते हैं जो आनंद और रवि बता चुके थे। अब आनंद को उसके घर जाने दिया जाता है रवि, रिजवी और शमशेर सिंह को हिरासत में ले लिया जाता है। पल्लवी और रंजना का इसमें कोई हस्तक्षेप नही था इसलिये उन्हें पूछताछ के बाद छोड दिया जाता है। आनंद अनुरोध करता है कि रिजवी और शमशेर सिंह को वो माफ कर रहा है इसलिये उन्हें छोड दिया जाए इस पर पुलिस अधिकारी कहते हैं कि यह मामला हमारे हाथ में नही हैं यह न्यायिक प्रक्रिया है न्यायालय जैसा उचित समझेगी वैसा होगा। आप अपनी ओर से यह अपील न्यायालय से कर सकते हैं।

आनंद अपने परिवार के सदस्यों और मित्रों के साथ घर चला जाता है। नगर के सभी समाचार पत्रों में दूसरे दिन बहुत विस्तार से इस संबंध में जानकारी प्रकाशित होती है। आनंद के व्यक्तिगत संबंध अपनी पत्नी से और भी अधिक खराब हो जाते है और वो दूसरे दिन ही अपने माता पिता के पास बैंकाक चली जाती है उसके दोनो लडके भी अपनी माँ का साथ देकर पिता के विचारों से असहमति रखते हुये वापस दुबई चले जाते हैं। गौरव अपने बेटे के पास अमेरिका चला जाता है। राकेश भी आनंद का हश्र देखकर मानसी तक ही अपने संबंध सीमित कर देता है।

आनंद महसूस करता है कि उसे नवजीवन प्राप्त हुआ है। उसके मन पर इन घटनाओं का गहरा असर पड़ा था और जिससे उसके जीवन में परिवर्तन हो गया था। अब वह अपना समय अपने उद्योग एवं व्यापार की उन्नति के साथ साथ सामाजिक कार्यों एवं प्रभु स्मरण में समर्पित करने लगा था। उसकी विचारधारा में इस परिवर्तन के कारण उसके, उसकी पत्नी और बेटों के साथ संबंध मधुर होने लगते हैं। वह सादा जीवन, उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाकर जीवन जीने लगता हैं जिससे उसके जीवन में वास्तविक आनंद की प्राप्ति होने लगती है।

जीवन में गरीबी

पैदा करती है अभाव

पनपाती है अपराध

और होता है समाज का अपराधीकरण।

जीवन में अमीरी

पैदा करती है दुर्व्यसन

लिप्त करती है समाज को

जुआ, सट्टा, व्याभिचार और शराब में।

इसलिये हमारे ग्रंथ कहते हैं

धन हो इतना

कि पूरी हों हमारी आवश्यकताएं।

कभी ना हो

धन का दुरूपयोग।

जीवन हो

परोपकार और जनसेवा से परिपूर्ण।

पाप और पुण्य की तराजू में

पाप कम और पुण्य ज्यादा हों

तन में पवित्रता और

मन में मधुरता हो।

हृदय में प्रभु की भक्ति और

दर्शन की चाह हो।

धर्म-कर्म करते हुए ही

पूरी हो जीवन लीला

हमारे जाने के बाद

लोगों के दिलों में

बनी रहे हमारी मधुर याद।