मोती का पेड - 2 Anita salunkhe Dalvi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मोती का पेड - 2

 



तय मुताबिक सारे बच्चे सुबह सुबह घर के आंगन में जमा हो गए .अपनी सारे सामान के साथ हर एक  के पास एक बँग एक वॉटर बॅग और कुछ सामान था.रात को ही सब ने अपनी मां को बता दिया था कि वो कल खेत मै हि खेलेंगे .इस बात से खुश होकर उनकी मां ने भी उन्हें अच्छा खासा टिफिन बना कर दिया था और फिर  सब दादाजी के साथ खेत की तरफ बढ़ ने लगे. जाते वक्त ही उन्होंने दादा जि से जंगल के बारे में छोटी मोठी सारी जानकारी ले ली थी और खेत पहुंचने पर उन्होंने दादा जि से कहा कि आप अपना काम कीजिये हम यही आसपास खेलते हैं  .दादाजी ने भी इस बात के लिए कोई मनाई नहीं की .वो अपने काम पर चले गए.

फिर हमारा ये खोजी दस्ता जंगल के और बढ़ा .उनके दादाजी के खेत के आगेही  जंगल का पहला छोर शुरू हो रहा था. सारे बच्चों ने जंगल में पहला कदम रखा. सुरुवात मे तो जंगल इतना घना नहीं था पर जैसे जैसे बच्चे अंदर जाने लगे जंगलऔर घाना होता गया लंबे लंबे पेड अलग अलग अलग तरीके पेड पौधे उन्हें नजर आने लगे (जंगल का वर्णन)

  

बच्चे सारी नई चीजें देख रहे थे उन्हें पता ही नहीं था कि वो कहां जा रहे थे .लेकिन ईशान ने अपने साथ एक चौक ले रही थी जो सफेद थी .वो हर पेड़ पर निशान करते जा रहा था .

राणी ने पूछा “तुम क्या कर रहे हो?”

ईशान -(निशान लगाते हुए )“हमारे रास्ते पर निशान बनाते जा रहा हूं ताकि हमें वापसी में रास्ता आसानी से मिल जाए.”

सबने इशांत की तरफ देखा वो  मुस्कुराने लागे.

सब जंगल की तरफ जा रहे थे.सबसे आगे ईशान और राज थे बीच में रानी थी और सबसे पीछे समीर और प्रेम चल रहे थे.सब जंगल के अंदर अंदर और अंदर जा रहे थे लेकिन किसी को भी मोती का पेड नजर ही नहीं आ रहा था सुबह से चलते चलते 1 घंटा हो गया आगे दो घंटे हो गए. सब पसीने से लथपथ हो गए.

तभी प्रेम ने पूछा

“लेकिन अगर मोती का पेड़ हमें नजर भी आ गया तो हम कैसे पता चलेगा कि वो मोदी का पेड़ हैं?

इस बात राज , ईशान रुके उन्होंने पीछे मुडकर देखा और उन्होंने बड़ी सहजता से कहा “अरे बुद्धुराम अगर मोती का पेड़ है तो मोती तो लटक ही रहे होंगे ना.थोडे ना अमरूद लटक रहे होंगे. अब अपना आलास छोड़ो और चुपचाप चलो.”

इस बात पर सारे बच्चे जोर जोर से हंसने लगे .फिर वो आसपास देख देख कर चल रहे थे सारे पेडों को  छान रहे थे.



सबने कहा अब ‘थोडा आराम करते हैं’. ईशान आराम के पक्ष में नहीं था फिर भी वो मान गया .एक बड़े वृक्ष की छाया देखकर उन सब ने वहीं अपना आराम का ठिकाना बना लिया .वहीं सब ने अपना खाना खाया और फिर उन्हें याद आया कि उन्हें दोपहर से पहले इस जंगल से निकलना पड़ेगा क्योंकि दादाजी उन्हें ढूंढेने लग जाएंगे .सबने इस बात पर हामी भरी .फिर उन्होंने वहीं से वापसी का रास्ता चुन लिया.ईशान की चौक कि  तकनीक के कारण वो वापस अपने खेत तक पहुंच गए .दादाजी अपने काम में ही थे .उनका ध्यान नहीं गया .फिर बच्चों को देखकर उन्होंने कहा “चलो अब घर जाना है.” सब वापिस अपने घर के रास्ते लग गए.दुसरे दिन भी वही सब करने का बच्चों का इरादा था. उन्होंने वैसा ही किया वो फिर जंगल की तरफ गए इस बार जंगल का दुसरा हिस्सा वे चल रहे थे फिर वही हुआ फिर उन्हें मोती का पेड नहीं मिला.अब बच्चे परेशान हो गए उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कहा गलत है.

    लगबग तीसरे दिन उन्होंने अपने योजना को कुछ समय के लिए टाल दिया .

इशान- “शायद हमें थोड़ी देर रोकना चाहिए क्योंकि मुझे लगता है हम कुछ गलत कर रहे हैं वर्ना अब तक हमें वो पेड मिल जाना चाहिए था .”

राज - “सही कहते हो ईशान.”

वो ये सोच ने लगे की अब तक मोती का पेड़ क्यों नहीं मिला.  उन्होंने अब तक अबतक लगबग पुरा जंगल देख लिया था और मोती का पेड़ क्या मोती का एक भी अंश उन्हें कहीं नहीं दिखाई दिया .वो सारे के सारे गहरी सोच में डूबे थे .कि भी वहां पर दादा जी आहे उन्होंने पूछा

“बच्चे, क्या बात है पिछले तीन दिन से देख रहा, हूँ तुम लोक किसी परेशानी में हो क्या? मुझे बताओ शायद में कुछ सुझाव दे दू.”

सबने एक दूसरे की तरफ देखा कोई कुछ नहीं बोल रहा था.तभी की इशान में दादाजी से पूछा

“ये मोती का पेड़ कहा है?”

सबने भयभीत होकर ईशान की तरफ देखा. कि उसने ये क्या किया ?उसने हमारा राज दादाजी को बता दिया? दादाजी क्या कहेंगे?

दादाजीने मुस्कराते हुए कहा “बस इतनी सी बात .वो  हमारे खेत के पास ही तो है. इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात थी .पहले ही पूछ ले ते .चलो दिखाता तुम्हें.”

     सब के सब एक साथ अपनी जगह पर खड़े हो गए .सब आश्चर्य की नजर से एक दूसरे को देख रहे थे और दादाजी को भी .कितनी बड़ी बात इन्हें पता है .

इशान खुश हो गया उसने दादाजी से कहा

“जल्दी चलिए दादाजी, उसी को तो हमे इतनी दिनों से ढूंढ रहे हैं.”

    अब दादाजी के साथ मिलकर सारे बच्चे खेत की तरफ जा रहे थे .पुरे रास्ते सारे बच्चे खुश थे कि इतने दिनो से वो जिस पेड के पीछे पडे थे वो पेड आखिरकार उन्हें अब नजर आने वाला था.

   सब खेत में पहुंच गए .खेत के आखिरी छोर पर जहां जंगल शुरू होता है ,दादाजी वहां चले गए बच्चे भी उनके पीछे पीछे चले गए. वहां जाकर दादाजी एक पेड़ के पास रुक गए.बच्चे भी वहां पहुंच गए थे .

दादाजी ने कहा कि रहा ‘मोती  का पेड’.

सब खुश हो गए परंतु उस मोती के पेड के आसपास एक भी मोती नजर नहीं आ रहा था .बच्चे फिर परेशानी में फंस गए कि अरे! ये कैसा हो सकता है अगर ये मोती का पेड हैं तो इसकी उपर मोती तो होने चाहिए ही.

बच्चों ने पुरा पेड घुमलिया. आगे पिछे दाय बाय सारी जाग देख के परेशान हो गए .

इशान ने दादीजी से परेशान होकर पूछा  “

दादाजी अगर ये मोती का पेड़ है तो इसमें मोती कहाँ है?”

दादाजी अपने नौ साल के पोते के इस करुण सवाल से हस पडे .फिर वो कहने लगे की

“बेटा इस पेड पे मोती कैसे हो सकते हैं.?और मोती कोई पेड पे थोड़ी उगते है .किसने कहा तुम से ये?”

अब सब अचंबित हो गए कि इस पेड पर मोती नाही उगते बल्की मोती तो पेड पर ही नहीं उगते .मोती तो सागर मे मिलतेहै.अब सारे के सारे सोच में पड गए. अब क्या करें?

फिर भी ईशान का दिल नहीं माना उसने दादाजी से पूछा

“तो फिर इसे मोती का पेड़ क्यों कहते हैं?”

दादाजी को सवाल समझ में न आया समझ में नहीं आया उन्होंने फिर से पूछा “मतलब?”

ईशान ने दादाजी को समझते हुए कहा “दादाजी जिस पेड पे आम आते हैं हम उसको आम का पेड़ कहते हैं .जिस पेड पर अमरूद आते हैं उसे हम अमरूद का पेड़ कहते हैं .तो वैसे ही मोत के पेड़ पर मोती तो होने चाहिये ना .वो क्यों नहीं है ?तो फिर वो मोती का पेड कैसे?”

इस बात पर दादाजी बोहोत हंसे .बच्चे उनकी तरफ देखकर ये समझ गए थे कि उन्होंने कुछ ना कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ की है पर  अब तक ये पता नहीं था कि वो गडबड क्या है?

दादाजीने सारे बच्चों को एक पेड़ की छाव में बिठाया .

दादाजी -”बहुत साल पहले जब मैं तुम्हारी पापा की उमर का था तब मैं इसी खेत में काम करता था.

आज की तरह तुम्हारे पापा के जैसे किसी बड़े शहर में नौकरी नहीं करता था. मेरे पास मेरे बचपन से एक कुत्ता था वो कुत्ता हर समय मेरे ही पास रहता था .छोटे से बड़ा होने तक.

हमेशा वो मेरे ही साथ होता था. हम एक साथ खाना खाते थे .मे खेत में काम करता था और वो खेत की रखवाली करता था .

एक दिन अचानक खेत में साप घुस आया और मैं तो काम कर रहा था मुझे इस बात का पता ही नहीं चला .

लेकिन मेरा वो कुत्ता बहुत ही होशियार था उसने इस सांप पर जो मेरी तरफ बढ़ रहा था उसने हमला कर दिया .उसके साथ लड़ाई करने लगा .तभी मेरा ध्यान उन पे गया.

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी .उस साप ने मेरे सबसे प्यारे कुत्ते को काट लिया था .जब तक मैं उस साप को मारता.मेरा सबसे प्यारा कुत्ता जहर फैलाने की वजह से मर चुका था .मेरे सबसे प्यारी कुत्ते का नाम था मोती. और मैंने अपने उस सबसे प्यारे दोस्त को दफन  किया और उस पे एक पेड लगा दिया ताकि वो मेरा दोस्त हमेशा मेरे साथ रहे .उसकी बहादुरी को मैं जिंदगी भर याद रखु.(पेड़ की तरफ उंगलीकर) वो वही पेड हैं.इस वजह से शायद हर कोई यहाँ से आने जाने वाला यहां तक की मैं भी उनको मोती का पेड़ ही कहता हूँ. (गहरी सास भरकर कर)तो इसलिए ये है मेरे सबसे प्यारा कुत्ता मोती का पेड.”

सारे बच्चे मन लगाकर दादाजी की इस कहानी को सुन रहे थे और उन्हें पता चला कि उन्होंने कौनसी गड़बड़ की है वो उन्होंने जो मूर्खता कि उस पर वे  अपने आप में ही शर्मिंदा हो गए.

बच्चों के मुर्झाए चेहरे देखकर दादाजी को बड़ा बुरा लगा .

दादाजी ने आगे कहा “बच्चे इस बात में इतना बुरा मानने वाले कौन से बात है.”

इशान-(नजरे झुका कर) “दादाजी हमें लगा इस पेड पे मोती उगते हैं इसलिए हम इसकी खोज कर रहे थे.”

दादाजी -”पर तुम्हें मोती क्यों चाहिए.?”

ईशानने दादाजी को सारी सच्चाई बताई उन्हें व्हिडिओ गेम की बात भी बताई दादाजी फिर हस पडे.

फिर दादाजी ने उन्हें कहा “बच्चे किसी भी बात की गहराई से जानकारी के बिना उसकी खोज करणार कभी कधी हानिकारक हो सकता है.

.तुम सब का इस प्रकार जंगल में अकेले बिन बताये चले जाना किसी बड़े संकट को आमंत्रण हो सकता था.

(सारे बच्चेलज्जित होकर जमीन की तरफ देखने लगे ).

लेकिन मुझे तुम सब पे गर्व है कि तुम सब अकेले सुरक्षित गये और आये किंतु याद रखना अगली बार अगर ऐसा कोई धाडस करने का विचार हो तो पहले किसी को बता देना .

(दादाजी के बाद से सबकी मुद्रा प्रसन्न हो गई)

ईशान- “दादाजी हम वचन देते हैं अगली बार ऐसा नहीं होगा.”  दादाजीने सबको अपने गले से लगा लिया और फिर वो सब घर की तरफ चल पड़े.

सब निराश थे कि आप उन्हें व्हिडियो गेम नहीं मिलेगा.

दूसरे दिन सुबह दादाजीने सारे बच्चों को बुलाया और उन्हें एक बड़ा बॉक्स थमा दिया.बच्चों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या है राज आगे गया और उसने वो बॉक्स खोला तो बॉक्स में से उनका पसंदीदा व्हिडिओ गेम निकला .सारे बच्चे खुश हो गए उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा .

उन सबने दादाजी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया.

ईशान्- दादाजी से पूछा कि “दादाजी ही व्हिडिओ गेम क्यू?”

फिर दादाजीने कहा बच्चे तुम लोगों ने तीन दिन मेहनत की है और इस मेहनत का फल ये हैं लेकिन याद रखना बिना मेहनत कोई भी फल पेड पर लटकता हुआ नहीं मिलता .हर एक चीज के लिए मेहनत करनी पड़ती है .सबको दादाजी की ये बात समज आग गइ.                     समापन

  

              बाल विचार बोहोत मजेदार होते है .



                                      ( अनिता दळवी.)