हिम स्पर्श- 60 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श- 60

60

वफ़ाई झूले के निकट एक क्षण के लिए रुकी। झूले को पूरी शक्ति से धकेला और कूदकर झूले पर चढ़ गई, खड़ी हो गई। झूला गति में आ गया, वफ़ाई भी।

वफ़ाई के दोनों हाथ पूरे खुले हुए थे, जो झूले के दोनों तरफ फैले सरिये को पकड़े हुए थे। जीत ने वफ़ाई को ऊपर से निचे तक देखा। सर पर तोलिया था जिस के अंदर उसके पूरे केश कैद थे।

पानी की कुछ बूंदें गालों पर टपक रही थी। लहराते झूले के कारण कुछ बूंदों ने विद्रोह कर दिया और गालों को छोड़ कर हवा में उड़ने लगी, हवा में घुलने लगी।

वफ़ाई की खुली आँखों में मादकता भर दी थी। वह आँखें कुछ कह रही थी, जीत उसे समजने का प्रयास करता रहा। कुछ समज आया, कुछ नहीं। उसने आँखों से आँखें मिलाई, पढ़ने लगा उन आँखों को।

वह आँखें बहुत बोलती थी। जीत भी उस से कुछ कहना चाहता था। जीत ने अपने होठों को खोलना चाहा, वफ़ाई ने उसे रोका।

“श्... श...श...।“ वफ़ाई ने होठों पर उंगली रख दी। जीत मौन हो गया। उन आँखों की बोली सुनता रहा। जीत का ध्यान होठों पर गया। वह मौन थे, स्मित कर रहे थे।

वफ़ाई की दोनों फैली भुजाएं वफ़ाई की छाती के पहाड़ों को अदभूत आकार दे रही थी। जैसे दो छोटे छोटे पर्वत उन्नत हो कर खड़े हो। वफ़ाई का कटि प्रदेश संकुचित लग रहा था अथवा था ही पतला? जीत उलझ गया।

एक अप्रतिम प्रतिमा अपना सौन्दर्य लेकर झूले पर झूल रहा थी, हवा से खेल रही थी। हवा भी तो मदभरी हो गई थी। चंचल, मदमस्त और नटखट सी हवा!

जीत वफ़ाई को देखता रहा, फिर कुछ सोचा और चलने लगा।

वफ़ाई ने उसे रोका,“श्रीमान, कहाँ चले? क्या आपको मेरा यह रूप पसंद नहीं आया?”

“यह रूप तो घातक है, पसंद तो आएगा ही। मैं तो वध होने को खड़ा हूँ किन्तु...।”

“किन्तु क्या?”

“मैं इस पलों को कैद कर रखना चाहता हूँ, सदा के लिए।“

“तो फिर भाग क्यूँ रहे हो मुझ से?”

“मैं भाग नहीं रहा हूँ, बस अंदर जाकर तुम्हारा केमेरा ले कर आता हूँ। इस पलों को उस में कैद कर लेना चाहता हूँ।“

“श्रीमान, केमरे में कुछ तसवीरों को कैद करना तो कोई कलाकारी नहीं हुई। उसमें आप का क्या चमत्कार होगा, जो होगा वह तो केमरे का ही होगा। यदि सच्चे कलाकार हो तो उसे केनवास पर उतार कर दिखाओ, तब मानूँ।“ वफ़ाई ने कहा।

वफ़ाई को लिए झूला चल रहा था।

“मेरी बिल्ली मुझे ही म्याऊँ? मेरे ही शब्दों से मुझे छलनी कर दिया।“

“नहीं तो। बस मेरी प्रत्येक मुद्राओं को ह्रदय में अंकित कर लो और उसे केनवस पर उतार कर दिखाओ। बड़े चित्रकार हो न?”

वफ़ाई खुलकर हंसने लगी। उसकी हंसी को हवा अपने साथ लेकर पूरे रेगिस्तान में घूमा लायी।

अचानक वफ़ाई ने एक हाथ से माथे का तोलिया हटा दिया। तोलिया हवा में लहेरता हुआ जमीन पर आ गिरा। जीत की द्रष्टि तोलिए का पीछा करती रही।

“श्रीमान, गिरे हुए तोलिए का सौन्दर्य अपनी जगह है किन्तु उससे भी सुंदर कुछ है।” वफ़ाई के शब्द ने जीत का ध्यान वफ़ाई की तरफ खींचा।

खुले केश।

वफ़ाई के केश पूरी तरह तोलिए की कैद से मुक्त थे, स्वतंत्र थे। लंबे केश खुलकर हवा में लहेरा रहे थे। कोई श्याम सा मेघ मुक्त आकाश में स्वैर-विहार कर रहा हो जैसे।

झूला आगे आता था तो केश पीछे की तरफ उडते थे और झूला लौटता था तो केश वफ़ाई की पीठ को लांघ कर कंधे पर बिखर जाते थे। छाती के दोनों भागों को ढँक लेते थे। बड़ा ही रोचक खेल कर रही थी हवा, इन खुले केश के साथ।

जीत की रुचि और तीव्र हो गई। वफ़ाई का लावण्य अपने यौवन पर था। उस मादक लावण्य में स्वयं को पिघला देना चाहता था, जीत। दौड़ कर उस प्रतिमा को छु लेने को, पकड़ कर अपने आलिंगन मे जकड़ लेने को एक तीव्र झंखना जीत के अंदर जन्म लेने लगी। ह्रदय उस झंखना को चाहने लगा, बुध्धी उसे रोकने लगी। इस संघर्ष में अपनी झंखना का जीत ने वध कर दिया। वह वहीं खड़ा रहा, देखता रहा।

वफ़ाई अभी भी झूले पर खड़ी थी, झूला अभी भी हवा की आज्ञा पर झूल रहा था। झूला निकट आता था, वफ़ाई भी। झूला दूर चला जाता था, वफ़ाई भी।

जीत एक एक क्षण, एक एक रोमांच, एक एक भाव-भंगिमा को आँखों के माध्यम से दिल में उतार रहा था। जीत प्रत्येक क्षण को जी रहा था, मन में उतार रहा था, जहां से वह उसे केनवास पर उतार सके।

वफ़ाई के भीगे केश से पानी की कुछ बूंदें वफ़ाई के गालों पर, कंधे पर तथा ललाट पर गिर रही थी, वफ़ाई ने अपने केश को समेटा, दो भागों में बाँट दिया। दोनों को छती पर रख दिया। पानी की बूंदें अब वफ़ाई की छाती को भिगो रही थी।

झूला चलता रहा, हवा भी। हवा में झूलती वफ़ाई, उसके लहराते काले केश, फैली हुई दो बाजू और नीला तोलिया! एक लावण्यमय द्रश्य जीत की आँखों के सामने था। उसका वह पूर्ण आनंद ले रहा था।

वफ़ाई भी प्रसन्न थी, अपने आनंद में मग्न थी। वह झूले के साथ निकट आती थी, दूर चली जाती थी। किन्तु, वफ़ाई की नजर जीत पर ही टिकी हुई थी और जीत की वफ़ाई पर।

सहसा वफ़ाई के तन पर लिपटे तोलिए की गांठ ढीली पड़ने लगी, धीरे धीरे सरकने लगी। पर वफ़ाई अनभिज्ञ थी। वह अपनी क्रीड़ाओं मे व्यस्त थी।

गांठ पूरी खुल गयी। वफ़ाई का तोलिया खुल गया। वह अर्ध अनावृत हो गई। अर्ध खुले तोलिया के नीचे आंतर वस्त्र द्रष्टि गोचर हो रहे थे। बाकी का भाग अनावृत था।

जीत ने एक विहंग द्रष्टि वफ़ाई के अर्ध खुले तन पर डाली। वह सूडोल तन था। जैसे किसी मूर्तिकार ने रची हो कोई मनमोहक मूर्ति!

एक तीव्र रेखा उसके दो स्तनो के बीच खींची हुई थी जो जीत को आकृष्ट कर रही थी, आमंत्रित कर रही थी। जीत ने फिर अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाया। बड़ी तेज गति से बाकी बचे तन पर डाल कर वफ़ाई के तन से द्रष्टि हटा ली।

द्रष्टि के टूटते सेतु को वफ़ाई ने देखा। उसे समझ में नहीं आया की जीत ने क्यूँ नजर हटा ली।

“श्रीमान, क्या हुआ?” वफ़ाई के शब्दों से जीत का ध्यान पुन: से वफ़ाई की तरफ खींच गया। जीत ने संकेत से वफ़ाई को उसके अर्ध खुले शरीर की तरफ देखने को कहा।

“ओह यह कैसे हो गया?” वफ़ाई ने गिरे हुए तोलिए को पकड़ना चाहा किन्तु वह हाथ नहीं आया। वफ़ाई ने खुले केश से छाती को ढंकने का प्रयास किया। किन्तु, झूला जो अभी भी चल रहा था वह उन केश को उड़ा ले जा रहा था, वफ़ाई के तन को ढंकने के स्थान पर अधिक खुला कर रहा था।

वफ़ाई ने व्याकुलता में अपने तन पर तोलिया बांधने के लिए दोनों हाथ झूले से हटा लिए। झूला पीछे की तरफ जा रहा था। वफ़ाई अपना संतुलन खो बैठी और आगे की तरफ गिरने लगी।

जीत ने उसे गिरते हुए देखा। वह दौड़ा और वफ़ाई को गिरने से बचा लिया। वफ़ाई जीत के आलिंगन में थी। जीत उसे संभाले खड़ा था। वफ़ाई आँखें बांध करके मन ही मन सोचने लगी

यह छोकरा मुझे कभी गिरने नहीं देगा। ना ही कभी रुलाएगा। यह छोकरा सही है। जीत के आलिंगन में कितना सुख है? यह पल रुक जाए, समय थम जाए, बस यूं ही जीत मुझे...।

मैं अर्ध नग्न हु, एक युवक के बाहुपाश में हूँ जिसे मैं जानती नहीं थी। कुछ दिवस पहले मिली भी नहीं थी। वाह रे जिंदगी। आज मैं उसके आलिंगन मेन हु, स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर रही हूँ। प्रसन्न हूँ।

जीत तेर्रे आलिंगन में ऐसे ही झूलती रहूँ, सदा के लिए। समय के यह क्षण तुम रुक जाओ, मुझे इस क्षण को जी लेने दो।

वफ़ाई सोचती रही, सपनों को बुनती रही, जीत के आलिंगन के झूले में झूलती रही।

जीत ने वफ़ाई की तरफ देखा। वह अभी भी आँखें बंध कर के निश्चिंत सी झूल रही थी, केवल झुला बदल गया था।

“अरे जी, आँखें खोलिए और अपने पैरों पर खड़े हो जाइए। आप अब सुरक्षित हो।“ जीत ने वफ़ाई को झकझोरा।

“सुरक्षित हूँ इसी लिए तो आँखें बंध कर के ...।”

“कब तक इस तरह सोये रहोगी? चलो उठो।“

वफ़ाई ने एक आँख खोली, वक्र द्रष्टि से जीत को देखा और फिर आँख बंध कर ली,” झूलने दो न थोड़ी देर तक। उस झूले से तो तुम्हारा यह हाथों का झूला...।”

जीत की सांस फूलने लगी। वह अब और समय तक वफ़ाई को अपने हाथों में झेल नहीं सकता था। हाथ काँप रहे थे। उसके हाथों से वफ़ाई सरक रही थी।

जीत ने पूरी शक्ति से वफ़ाई को झकझोरा और ऊपर की तरफ खींचा। वफ़ाई घात के साथ खड़ी हो गई, जीत से अलग हो गई। जीत गिरते गिरते बचा। कुछ कदम पीछे हट गया और भीत पकड़ कर खड़ा हो गया।

“ऐसे कोई किसी लड़की को धकेलता है? ऐसे झटकता है? कुछ पल और रहने देते मुझे तुम अपनी भुजाओं में। कितना आनंद था तुम्हारे आलिंगन में...।” वफ़ाई ने जीत की तरफ मुड़ते हुए मीठा सा गुस्सा दिखाया।

जीत वहाँ नहीं था। वफ़ाई ने इधर उधर देखा। जीत दूर था, भीत के सहारे नीचे बैठ गया था। वह तेज गति से सांस ले रहा था। उसका मुख फिकका पड गया था। शरीर चेतनाहीन लग रहा था।

वफ़ाई चौंक गई। उसके होठों पर क्षण भर पहले जो नटखट स्मित था वह अचानक ही हवाओं में विलीन हो गया। नटखट आँखें उदास हो गई।