पता नहीं क्या सुलग रहा था उसके अंदर।वह खामोशी से वैन की खिड़की से बाहर देखने लगी।कुछ दूरी पर कुछ बच्चों भीड़ में शूटिंग देखने के लिए खडे नजर आए।
उन्हें निहारती मेघना को जैसे कुछ याद आया और वह परदा खींच कर सीट पर पसर गई।हर कश के साथ कुछ जला रही थी।हर बार धुंए के साथ अंदर की तपिश बाहर निकाल देती।धुएं के छल्ले बनाते उन उड़ते हुए छल्लों मे खुद को देख रही थी मेघना।सरपट दौड़ती हिरनी सी….ढलान पर उतरती अलहड़ सी मेघा….
“ओ मेघा....!तेरी माँ बुला रही है।”सुंदर ने आवाज दी।
“आती हुँ भाई...!"
हाथ में समेटे हुए कुछ बेर....मुठ्ठी कस कर भींच रखी है।
"कहाँ थी इतनी देर तक मेघुली? इतनी देर तक बाहर नहीं रहते।"माँ ने गुस्से से कहा।
"माँ देख!बेर तोड़ रही थी।"मुँह में बेर डालते हुए उसनें कहा।
"क्यों बंदरियां हो जो फुदकती रहती हो डाली पर!"आँखों को दिखा कर माँ ने कहा।
"माँ आपको कुछ नहीं पता।बेर झाड़ी पर लगते है और बंदरियां झाड़ी पर चढेगी तो गिर जायेगी।बाबा को बताऊंगी माँ को कुछ नहीं पता।"माथे पर हाथ मार कर उसने कहा।
ओह... ये धुआं!वो कहाँ गए.... मेघुली... कहाँ है.. मेघना की बेचैनी बढने लगी।एक सिगरेट और सुलगा कर पीने लगी।तभी धुंए के छल्ले मे वह दिखी।मेघना के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।वह फिर से मेघुली को देख रही थी।
शाम छाने लगी थी लेकिन मेघा बाहर किसी का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।
“माँ!...माँ।सुन ना।”
“क्या हुआ मेघुली?काम कर रही हूं ना!”माँ ने जवाब दिया।
“बाबा क्यों नहीं आये अब तक?मेरी नयी फ्राक लानी थी ना!”आँखों को चमकाते उसनें कहा।
“आ जायेंगे।बाजार गए होंगे ना।”
ट्रिन ...ट्रिन….
“बाबा आ गए….मेरी फ्राक लाये बाबा?”
“अरे मैं तो भूल गया।”मेघा को चिढाते हुए उसके पिता ने कहा।
“मैं बात नहीं करूंगी और चाचा के पास भाग जाऊंगी।”गुस्से में उसनें कहा।
“अच्छा!फिर हमारा क्या होगा?हम तो रोयेंगे ना।”,रूआंसी आवाज बना मेघा के पिता ने कहा।
“मेरी मेघुली मुझे छोड़ जायेगी..।।कैसे रहूंगा।”
“,अरे आपको लेकर जाऊंगी ना!”बाबा आपको कैसे छोड़ सकती हूं।”गले लग गई वह।
“देख तेरी फ्राक।”गुलाबी रंग की लेस वाली वह फ्राक।
मेघा झूम रही हैं उसे पहन कर….।।
हँसती खिलखिलाती….।कोने में खड़ी माँ बेटी और बाबा का लाड़ देखकर खुश हो रही है।
उसे खिलखिलाते देख मेघना मुस्कुरा दी।पास जाकर माँ के गले लग जाऊं...।।
सब धुंधला क्यों हो रहा है!कहाँ गई माँ?बाबा..।।।सब कहाँ गए।यह कैसा भंवर है?माँ....माँ ...बाबा... बाबा... कहाँ चले गए!आपकी मेघुली को अकेले डर लगता है।आओ माँ जल्दी आओ।"
उफ्फ!यह अंधेरा क्यों है... यह जंगल कैसा.... नहीं माँ मुझे छोड़कर मत जाना।देखो माँ मेरी फ्राक फट गई है... माँ!
"मेघुली... यहाँ हूँ मैं.. देख तेरे बाबा।आ जल्दी आ जा रोटी खा।
वो वहाँ है...।आँगन में चूल्हे के पास।गर्म रोटियां सेकती।
"माँ!मुझे कमरें में अकेले क्यों छोड़ा!डर गई थी मैं।कितना पुकारा दोनों को।"गुस्से में मेघा ने कहा।
"अले मेरी गुड़िया को गुस्सा भी आता है!"बनावटी शक्ल बनाते मेघा के पिता ने कहा।
"हाँ!आता है।"मेघा अभी भी गुस्सा है।
"आजा बैठ जा और बाबा को माफ कर।तू सो गई थी।अकेले क्यों छोड़ेंगे तुम्हें।"
बाबा के साथ बैठी मेघा…..एक एक कौर अपने हाथ से खिलाते उसके बाबा।
“शॉट रेडी है मैड़म।”स्पॉट ब्वॉय ने आकर कहा।
“एक और रोटी दो ना माँ!”
“मैड़म.. मैड़म..।कहाँ खोई है।शॉट रेडी है।”
“ओह.. आ..आती हूँ..अचकचा कर वह उठ गई।चारों तरफ नजर घुमाई...।।उसका चेहरा पसीने से भीग गया था।ओह..फिर से घर लौट गई थी शायद।मन ही मन वह बुदबुदाई और तेज कदमों के साथ वैनिटी वैन से बाहर निकल गई।
क्रमशः
दिव्या राकेश शर्मा।