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शांतनु - १७

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

सत्रह

शांतनु का ध्यान अनुश्री की ब्रेसियर से चिपके हुए कुर्ते से दिख रहे, किसी भी पुरुष के स्वप्न में आनेवाले वक्षस्थल पर गया| अनुश्री मेन्यु कार्ड देखने में व्यस्त थी और शांतनु को उसके गुलाबी कुर्ते के पीछे छिपा उसका सफ़ेद अंत:वस्त्र स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था| अनुश्री को इस हालत में देख कर कोई भी पुरुष पागल हो सकता था, शांतनु को तो यह सब अचानक ही भेंट में मिल गया था| शांतनु का ध्यान अब वहां चिपक गया था और उसके आसपास क्या हो रहा है उससे वो बेपरवाह हो चुका था|

शांतनु अब उस उन्नत वक्षों की रचना को ध्यान से देखने लगा| शांतनु के पूरे शरीर में कुछ अजीब सी हरकत होने लगी| शांतनु जब यह सब निरिक्षण कर रहा था तभी उसका ध्यान अनुश्री की सफ़ेद ब्रेसियर में से आधे छिपे हुए उसके श्वेत वक्षों को अलग करती तीक्ष्ण घाटी पर गया और वहीँ स्थिर हो गया| अनुश्री की हर साँस के साथ उस घाटी के आकार में परिवर्तन हो रहा था| शांतनु का रोमरोम खड़ा हो गया था, अपने दिल पर वो अजीब सा भार महसूस कर रहा था, उसका गला सूख रहा था|

ऐसा बिलकुल ही नहीं था की यह शांतनु का प्रथम ‘स्तन दर्शन’ था| वैसे तो यह एक पौरुष सभर अनुभूति ही थी| शांतनु को भी किसी सुंदर स्त्री को देख कर किसी भी पुरुष को जिस तरह का शारीरिक आकर्षण का अनुभव होता है वैसा कई बार हो चुका था, पर आज की बात अलग थी| यह तो अनुश्री थी जिसे उसे एक दिन अपना बनाना था, पर फ़िलहाल वो दोनों, कम से कम अनुश्री की द्रष्टि से तो दोस्त ही थे... मगर शांतनु इस बात को भूल रहा था|

“मुझे तो कुछ पता नहीं चल रहा शांतु... तू ही बोलना यार... क्या मंगवाना है?” अनुश्रीने अचानक ही मेन्यु कार्ड बंद कर अनुश्री की ही ‘दुनिया’ में खो चुके शांतनु से पूछा|

पर शांतनु तो वहां था ही नहीं! वो तो कुदरत ने अनुश्री को दी हुई बेमिसाल भेंट, उसके वक्ष स्थलों की गहरी वादी में घूम रहा था और कुदरत की उस अद्भुत रचना को निरख रहा था... उसका आनंद ले रहा था|

“बोल ना शांतु? क्या मंगवाएं? बहुत सारी आइटम्स हैं... यहाँ तो सब मिल रहा है... पंजाबी, चाइनीज़, साउथ इंडियन... बोल ना शांतु? शांतनु? शांतनु? आर यु देयर? अनुश्री अपनी जगह से ज़रा झुकी और शांतनु की आँखों के नज़दीक चुटकी बजाई...

शांतनु अभी भी वहीँ खोया हुआ था, शायद उसे वहीँ रहना था... सदा के लिए...

“अरे ओ?? मिस्टर शांतनु!!” अब अनुश्री ने दो तिन चुटकियाँ और बजाई और फ़िर भी शांतनु का ध्यानभंग न हुआ तो वो ज़रा ज़ोर से बोली|

“हम्म...क..कक...क्या? क्या हुआ?” अचानक ही जैसे की कोई सुंदर सा स्वप्न टूटा हो उस तरह शांतनु अनुश्री की ओर देख कर बोल पड़ा|

“कहाँ खो गए हो जनाब? कब से बुला रही हूँ? मैंने कहा की यहाँ सब कुछ मिलता है, मैं कन्फ्यूज्ड हूँ...मेरी मदद कर ना यार|” हंसते हुए अनुश्री ने कहा|

“आपको जो भी पसंद हो... आपकी पसंद, मेरी पसंद!” शांतनु उस नशे से बाहर आने की कोशिश कर रहा था|

“नो, दिस इज़ चीटिंग, नोट फेयर, मेरी कुछ तो मदद कर?” अनुश्री ने अपना मुंह बिगाड़ते हुए कहा|

“अम्म्म... लास्ट संडे मैं और पप्पा पंजाबी लंच के लिए गए थे तो चाइनीज़ या फ़िर साऊथ इंडियन दोनों में से कोई भी चलेगा|” थोडा विराम ले कर शांतनु ने अपने विचारों को इकठ्ठा किया और कहा|

अब शायद वो होश में आ गया था|

“नाओ, धेट्स माय शांतु!... तो फ़िर साउथ इंडियन ही ऑर्डर करते हैं| मैं तो मसाला डोसा लूंगी|” अनुश्री ने कहा|

“मुझे मिक्स्ड उतप्पा चलेगा|” शांतनु ने जवाब दिया|

“ओके, फ़िर तुम ही ऑर्डर दे दो|” अनुश्रीने शांतनु से कहा|

शांतनु ने फ्लोर मेनेजर को बुला कर ऑर्डर दे दिया| ऑर्डर देने के बाद शांतनु को फ़िर से उसके तन और मन में कुछ कुछ होने की अनुभूति होने लगी|

अब शांतनु थोड़ी थोड़ी देर में अनुश्री के स्तन प्रदेश को उसकी नज़रें चुरा कर निहार लेता था| सामान्यत: शांतनु जो अनुश्री के साथ बात करने के लिए मरता था आज अचानक से चुप हो गया और जो शांतनु अनुश्री का चेहरा भी छुप छुप कर देखता था आज उसकी नजरें अनुश्री के वक्ष स्थलों के बीच एक दम स्थिर हो गई हो, जैसे की अनुश्री को उसकी इस हरकत का पता चलने पर भी बिलकुल ही बुरा नहीं लगेगा|

पर अब परिस्थिति ऐसी हो चली थी की अब अगर शांतनु का यह पागलपन ज़्यादा लंबा चला तो शायद अनुश्री उसकी यह चोरी पकड़ भी सकती थी|

शांतनु को ख़ुद को फ़िलहाल ऐसी इच्छा हो रही थी की उसे कोई डिस्टर्ब ना करे, पर ऐसे तो उसकी इच्छा पूरी होना असंभव था| अनुश्री भी अपनी आदत अनुसार चुप बैठ नहीं सकती थी, वो कोई न कोई मुद्दा उठा कर शांतनु को अपने साथ बात करने को मजबूर कर देती थी|

अनुश्री के हर शब्द को सुनने को हरदम तत्पर शांतनु को फ़िलहाल अनुश्री की बातें परेशान कर रही थी| उसे तो आज चुप रह कर अनुश्री के आज तक किसीने खोजा नहीं था उस खज़ाने को देखते रहने का मन हो रहा था| शांतनु के अनुश्री के प्रति अदम्य प्रेम पर आज वासना हावी हो रही थी|

पर शांतनु जिसका नाम... वो भी इस हकीकत से अवगत था उसने कैसे भी कर के अपने दिलोदिमाग पर नियंत्रण किया और अनुश्री की बातों में मन लगा दिया| उसे भी पता था की अगर अब उसने अपनी भावनाओं पर क़ाबू नहीं किया तो अनुश्री को सब पता चल जाता और उसे उस बात का बहुत बुरा लगा होता| और चार-पांच महीनों से मेहनत से खड़ी की दोस्ती की इमारत सिर्फ़ दो मिनट में तहसनहस हो जाती और उसी दोस्ती के आधार पर वो अनुश्री को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता था वो आधार भी टूट जाता|

ऑर्डर सर्व होते ही दोनों ने बातें कर के खाना खाया| खाना का कर दोनों ने शांतनु के घर तक साथ साथ रह कर ही अपने अपने वाहन चलाये और शांतनु के घर के पास एक चौराहे पर दोनों ने एक दूसरे को ‘बाय’ कह कर विदाई ली|

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घर आ कर फ्रैश हो कर शांतनु टीवी पर मैच देखने में व्यस्त हुआ और ज्वलंतभाई अपनी दोपहर की नींद लेने अपने कमरे में चले गए|

जैसे ही ज्वलंतभाई अपने कमरे में गए, शांतनु को फ़िर से अनुश्री का शारीरिक सौंदर्य अपनी नज़रों के सामने दिखने लगा| उसे वही विचार फ़िर से आने लगे जो उसे रेस्तरां में लंच लेने से पहेले आ रहे थे| शांतनु की नज़रें भले ही टीवी पर थी पर उसका ध्यान कहीं और था|

पर अब शांतनु को एक अजीब सी बैचेनी ने घेर लिया| अब उसको अनुश्री के सुंदर शरीर के सब से सुंदरतम हिस्से को ऐसे चोरी से देखने की वजह से अपराध भाव हो रहा था| वो मैच तो क्या अपनी जगह पर ठीक से बैठ भी नहीं पा रहा था| बार बार किचन में जा कर पानी पी कर वापस आ कर मैच में मन लगाने की कोशिश कर रहा था, पर परिणाम शून्य|

फ़िर उसने सोचा शायद थोड़ी देर सोने से उसका दिमाग शांत हो जाएगा, तो वो अपने कमरे में गया और बिस्तर पर सो गया| पर जैसे ही उसने अपनी ऑंखें बंद की तो फ़िर से उस अपराध भाव ने उसे घेर लिया| वो फ़िर से उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे में आ कर सोफ़े पर बैठ गया| वहीँ ज्वलंतभाई भी अपनी नींद खत्म कर किचन में चाय बनाने चले गए|

“आप चाय पियोगे ना शांतनु?” ज्वलंतभाई ने किचन में गैस ओन करते ही कहा|

“हाँ पप्पा|” शांतनु खड़ा हो कर अपने चेहरे को अपने पिता से छुपाने अपनी कमरे की ओर जा ही रहा था की उसने सोचा की वो कब तक अपने पिता से छुपेगा, वो आज रात तक जब तक मैच चलेगा उसके सामने ही बैठे रहेंगे और शांतनु का चेहरा ही ऐसा था की ज्वलंतभाई उसे हर बार आसानी से पढ़ लेते थे|

तो अब वो क्या करे? क्या अनुश्री को फ़िर से कॉल कर के कहीं बुला ले ताकी उससे बात कर के उसका ध्यान कहीं और भटके? और उसको देख कर ही उसका यह अपराध भाव शांत हो? या फ़िर अक्षय से मिले और दोनों कहीं डिनर पर जाएँ? पर अगर ऐसा कहा तो ज्वलंतभाई क्या सोचेंगे? आज सुबह लंच भी साथ नहीं किया और अब डिनर भी बाहर?

शांतनु के मन में एक युद्ध सी परिस्थिति आकार ले चुकी थी|

“ये लीजिये गरमागरम चाय, शांतनु महाराज!” ज्वलंतभाई ने टेबल पर चाय के दो कप रखते हुए कहा|

शांतनु अपने युद्ध में ही मशगूल था, जैसे की वहां वो था पर फ़िर भी वहां नहीं था!!

“मिस्टर एस. जे बुच, आपकी चाय, समझे कुछ?” ज्वलंतभाई ने शांतनु के कंधे को हिलाया|

“हं? हाँ... थोड़ी ठंडी होने दीजिये प्लीज़ पप्पा...” आज दिन में दूसरी बार शांतनु इस तरह पकड़ा गया था|

अचानक शांतनु को आइडिया आया की अगर वो बाहर नहीं जा सकता तो वो अक्षय को तो अपने घर बुला ही सकता था ना? और अगर वो मान जाएँ तो अपनी मस्तीभरी बातों से शांतनु का ध्यान किसी और दिशा में मोड़ सकता था| शांतनु को अपना ख़ुद का आइडिया पसंद आ गया|

“एक मिनट पप्पा, मुझे अक्षु को एक अर्जन्ट कॉल करना है, मैं अभी आया|” कह कर शांतनु सोफ़े से खड़ा हुआ|

“ज़रूर बेटा, मेरी याद देना उस बदमाश को|” शांतनु को ज्वलंतभाई ने हंस कर कहा|

“श्योर!” शांतनु ज्वलंतभाई से अपना चेहरा छुपा कर भागा|

अपने कमरे में पहुचंते ही शांतनु ने अक्षय को कॉल किया|

“कहिये बड़ेभाई, कैसी रही लंच डेट?” कॉल रिसीव करते ही अक्षय ने पूछा|

“अरे डेट कहाँ वो तो वैसे ही...” शांतनु ने अपने मूड के हिसाब से शुष्क सा जवाब दिया|

“हां भाई हां, आप अभी तक कहाँ अनुभाभी के प्यार में ओफ़िशियली पड़े हैं?” अक्षय ने शांतनु की टांग खींचते हुए कहा|

“हाँ, वो भी सही है|” शांतनु ने फ़िर से वैसा ही शुष्क जवाब दिया जैसे पहले दिया था|

“क्या हुआ बड़ेभाई? लंच में कुछ प्रॉब्लम हुआ था क्या? भाभी के साथ लड़ाई?” अक्षय को शांतनु की आवाज़ से ही पता चल गया की शांतनु नोर्मल नहीं है|

“अरे नहीं नहीं, सब अच्छा रहा, अच्छा ये बता, तू अभी घर आ सकता है?” शांतनु से अब कोई और बात नहीं हो पा रही थी इस लिए वो सीधा पॉइंट पर आया|

“अभी?” अक्षय को भी शांतनु का बर्ताव थोड़ा अजीब सा लग रहा था|

“हाँ, अभी और हो सके तो जल्दी|” शांतनु ने कहा|

“पर... अभी तो मैं और सिरु मूवी देखने जा रहे हैं... भाई आप ठीक हो ना? क्या हुआ? प्लीज़ बताइये, आपकी आवाज़ से मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा| अक्षय की आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी|

“नो नो नो... मैं ठीक हूँ, तुम अपना प्रोग्राम चैंज मत करो, सिरु के साथ मूवी देखने जाओ, मज़े करो| वो तो मैं तुम्हें अचानक से मिस करने लगा था यार इस लिए...” शांतनु ने जानबूझकर अपनी आवाज़ ठीक की वरना अक्षय सिरु के साथ अपना प्रोग्राम केन्सल कर उधर दौड़ कर आ जाता|

“ओ मेरे भाई? आर यु ओल राईट? जिस को मिस करना चाहिये उसे मिस करिये ना? मुझे मिस कर के खामखा क्यों अपने आप को तकलीफ दे रहे हो|” अक्षय हँसते हुए बोला, शांतनु को अभी ऐसी ही ‘अक्षय ब्रांड’ मस्ती की ज़रूरत थी|

“उसे तो में हरदम मिस करता हूँ, पर बैठे बैठे बोर हो रहा था सोचा तेरी बकवास ही सुन लूं?” शांतनु ने झूठी हंसी के साथ जवाब दिया|”

“बकवास? हाँ भाई अब किसी की मीठी आवाज़ की आपको इतनी आदत हो गई है बड़ेभाई की अब आपको मेरी बातें बकवास ही लगेगी|” अक्षय को अब जा कर शांति हुई की उसका दोस्त ठीक है|

“आई वास जस्ट जोकिंग|” शांतनु ने कहा|

“नो ब्रदर, सीरियसली, आप को अगर मेरी कंपनी की ज़रूरत है तो मैं आ जाता हूँ... प्लीज़ शरमाइयेगा नहीं| सिरु को तो मैं संभाल लूँगा| अक्षय ने ऑफर दिया|

“नो अक्षय, तुम एन्जॉय करो, और कल ऑफ़िस में तो मिलनेवाले हैं ना? तब बात करते हैं|” अक्षय को अब उसकी ज़्यादा फ़िक्र न हो उसका ख्याल रखते हुए शांतनु ने कहा|

“ठीक है बॉस... तो कल मिलते हैं, बाय|” अक्षय ने कहा|

“बाय एन्ड एन्जॉय, और सीरतदिप को मेरी याद देना|” शांतनु ने कहा|

“श्योर ब्रो!” कह कर अक्षय ने कॉल काट दिया|

अब क्या? शांतनु ने जब तक अक्षय से बात की उसका ध्यान किसी और चीज़ में लगा रहा पर जैसे ही अक्षय ने कॉल कट किया, शांतनु फ़िर से उसी दुनिया की तरफ चलने लगा जो उसको अपने अपराध भाव की याद दिला रही थी|

जैसे तैसे शांतनु ने मैच देख कर शाम बिताई और डिनर भी किया| रात को अपने पसंदीदा गानों की चैनल्स देखने का व्यर्थ प्रयास भी किया| ज्वलंतभाई भी उसे ‘गुड नाईट’ बोल कर अपने कमरे में चला गया|

शांतनु को शायद पहलीबार अपने पसंदीदा गाने देखने, सुनने का भी दिल नहीं हो रहा था| वो बार बार चैनल्स चेंज कर रहा था|

तभी अनुश्री का गुड नाईट मैसेज वोट्स अप पर आ गया और उसमें अनुश्री की तस्वीर देख कर शांतनु को और भी गिल्ट महसूस होने लगी| आख़िरकार साढ़े ग्यारह बजे शांतनु ने सोचा की अब सोने के आलावा उसके पास और कोई रास्ता बचा नहीं है और वो अपने कमरे की ओर बढ़ा|

शांतनु ने अपने मोबाईल फ़ोन के पर्सनल फ़ोल्डर में अनुश्री की हर तस्वीर को देख कर सोने का नित्यक्रम भी फ़ॉलो न करने का निर्णय लिया, क्यूंकि वो उसे आज उससे हो गई उस बड़ी भूल को याद दिला देते|

शांतनु ने लगभग एक घन्टे तक बिस्तर पर करवटें बदलने के अलावा और कुछ नहीं किया और फ़िर उसे जैसे तैसे नींद आ गई|

अनुश्री के ‘गुड मोर्निंग’ मैसेज के टोन ने ही शांतनु को जगाया| जागते ही शांतनु अपने सुबह के नित्यक्रम में लग गया और नहा धो कर नाश्ता कर ऑफ़िस चला गया| अब उसे लग रहा था की सब ठीक हो गया है|

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लंच तक शांतनु ने ऑफ़िस में रोज़ की तरह दिल लगा कर काम भी किया| पर जैसे ही वो हररोज़ की तरह लंच करने अनुश्री से रेस्तरां के बहार मिला और अनुश्री को देखते ही शांतनु फ़िर से अपराध भाव में घिरने लगा| आज लंच करते समय शांतनु अनुश्री की आँखों में अपनी आँख भी मिला नहीं सका| पर शायद अपनी बातों में व्यस्त अनुश्री का ध्यान इस बात पर नहीं गया|

लंच कर के ऑफ़िस पहुँचते ही शांतनु ने अपना कम्प्यूटर ओन किया पर अब वो बेचैन हो रहा था| उसके मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे...

“यार, अनु तो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त समझती है और तू उसके बारे में इतना गंदा सोच रहा है?”

“चल, वो तुझे अपना दोस्त समझती है पर तू तो उसे सच्चा प्यार करता है ना? तो प्यार के साथ वासना को तुमने कैसे मिक्स किया शांतनु? शेइम ओन यु|”

“और लड़कियाँ तो ठीक है पर अनु? उसके लिए तुमने इतना घटिया सोचा?”

“तुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया है शांतनु, और तुझे इस बारे में भगवान से माफ़ी मांगनी ही चाहिये, चल खड़ा हो और भगवान से माफ़ी मांग ले...और अपने शिवा को वचन दे की जब तक अनु से तुम्हारी शादी नहीं होती तू उसके बारे में ऐसा कभी नहीं सोचेगा| उठ शांतनु, खड़ा हो जा... जा”

“बड़ेभाई, चलिए कॉल पर जाना है ना? आई एम् रेडी|” अचानक अक्षय की आवाज़ ने शांतनु का ध्यानभंग किया|

“क्या? हमम..हां...ना... कल जाएँ?” शांतनु हक्का बक्का हो कर बोल रहा था|

“व्होट? बिग ब्रो? आप और कॉल पर जाने के लिए मना कर रहे हो?” अक्षय को आश्चर्य हुआ|

अक्षय को आश्चर्य होना सहज था, क्यूंकि आज तक शांतनु ने कभी भी सेल्स कॉल पर जाने से इनकार नहीं किया था| उल्टा जब अक्षय कभी सेल्स कॉल स्किप करना चाहता था तो शांतनु उसका हाथ पकड़ कर, उसे खींच कर बाइक पर बिठा देता था|

“हां, यार आज मूड नहीं है|” शांतनु बैठे बैठे ही बोला, उसकी आवाज़ भारी थी|

“क्या हुआ भाई? आपकी तबियत तो ठीक है ना?” अक्षय ने चिंता जताई|

“हां यार मज़ा नहीं आ रहा, मैं घर जाना चाहता हूँ|”

“हां क्यों नहीं, चलिए मैं आपको घर छोड़ देता हूँ|” अक्षय ने कहा|

“नो..मैं ख़ुद चला जाऊँगा|” शांतनु ज़रा ज़ोर से बोल दिया|

शांतनु को मंदिर अकेले जाना था और अगर अक्षय उसके साथ आया तो वो मंदिर नहीं जा सकता था| और तबियत का बहाना भी उस पर भारी पड़ सकता था क्यूंकि इस हालत में ज्वलंतभाई भी उसे घर से बाहर निकलने नहीं देने वाले थे| इस लिए अभी शांतनु को अकेले ही जाना था|

“ठीक है ठीक है भैया, आप अकेले ही जाइये और घर पहुँचते ही मुझे मैसेज दे दीजिये ताकी मैं आपकी फ़िक्र न करूँ|” अक्षय ने कहा|

“और सुन, पप्पा और अनुश्री को मैं कुछ भी नहीं कहूँगा, वो दोनों खामखा मेरी फ़िक्र करेंगे| लगता है बिना रुके महीनों से काम करने के कारण थोड़ी थकान है, एक दिन आराम करूंगा तो ठीक हो जाऊँगा|” शांतनु ने अक्षय से वचन लिया|

“डन! कॉल पर जा रहे हैं ऐसा बॉस को बोल कर हम दोनों यहाँ से साथ में निकलते हैं| फ़िर आप घर जाइए मैं अगर सिरु फ्री हो तो मूवी ले कर जाता हूँ|” अक्षय आँख मारते हुए बोला|

“तू नहीं सुधरेगा| चल चलते हैं|” इतने मानसिक तनाव के बावजूद अक्षय की मस्तीभरी बात ने शांतनु के चेहरे पर मुस्कान ला दी|

शांतनु और अक्षय दोनों अपने अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े| शांतनु ने निकलने से पहले अनुश्री को मैसेज कर दिया की वो सेल्स कॉल पर निकल रहा है और फ़िर सीधा घर जाएगा तो आज बाकी दिन वो उसे नहीं मिलेगा|

शांतनु भरी दोपहर में अपने घर के पास वाले शिव मंदिर के पास रुका, अपनी बाइक उधर ही पार्क कर दी और मंदिर की सीढ़िया चड़ने लगा|

क्रमशः

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