संध्या होते ही दिलशाद नेल्सन के पास जाने निकली। दिलशाद के पैरों में कोई विशेष बात थी, नेल्सन से मिलने को उतावले थे वह। जीत ने उस चाल को भांप लिया, कुछ ना बोला, बस देखता रहा।
दिलशाद चली गयी।
जब वह नेल्सन के पास पहोंची, दो रोगी नेल्सन की प्रतीक्षा कर रहे थे। दिलशाद समय के बीतने की प्रतीक्षा करने लगी। नेल्सन को SMS कर के अपने आने की सूचना दे दी। नेल्सन ने शीघ्रता से दोनों को निपटा दिया। दिलशाद अंदर चली गई।
यह पहला अवसर था कि दिलशाद अकेली ही नेल्सन से मिल रही थी, उसकी हॉस्पिटल में, उसके कक्षा में। नेल्सन और दिलशाद, दोनों अकेले थे।
दिलशाद नेल्सन के सामने, टेबल की दूसरी तरफ रखी कुर्सी पर, होठों पर स्मित लिए बैठ गई। नेल्सन की आँखों ने उस स्मित का जवाब दिया। चार आँखें एक हो गई। कुछ क्षण के लिए सब रुक सा गया। दिलशाद ने पलकें झुकाई तब जाकर रुका हुआ समय बहने लगा।
“जीत नहीं आया साथ में?”
“मेरा अकेला यहाँ आना तुम्हें पसंद नहीं आया।“ दिलशाद ने नेल्सन की तरफ देखकर आंखे नचाई। नेल्सन ने उसका कोई जवाब नहीं दिया।
“तो कहो, क्या करेंगे? कब करेंगे?” नेल्सन ने काम की बात की।
“जो तुम चाहो कर सकते हो।“ दिलशाद ने अपने दोनों हाथ इस तरह उठाए जैसे वह नेल्सन को अपनी तरफ आने का आमंत्रण दे रही हो। नेल्सन ने उस संकेत को पढ़ा, कुर्सी से उठा और टेबल पार करके दिलशाद की कुर्सी के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया।
दिलशाद स्थिर सी बैठी रही। नेल्सन ने कुर्सी को पीछे से पकड़ा, उसके हाथ दिलशाद की पीठ को स्पर्श करने लगे। एक झरना सा दिलशाद के शरीर में प्रवाहित हो गया। उसे अच्छा लगा। उसने गहरी सांस ली, आँखें बंध कर दी और नेल्सन की नई क्रिया की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ क्षण व्यतीत हो गए। नेल्सन ने कुछ नहीं किया।
दिलशाद ने पीछे घूमते हुए आँखें खोली। नेल्सन के मुख से दिलशाद का मुख एक फुट से भी कम अंतर पर था। दिलशाद ने आँखें मिलाई, नेल्सन की आँखों से। फिर पलकें झुका दी। उसके होठों ने कुछ गति की जिसमें में कोई आमंत्रण था जो नेल्सन समझ गया।
नेल्सन थोड़ा झुका, दिलशाद थोड़ी ऊपर उठी। दोनों के अधर अब अत्यंत निकट थे। दिलशाद के अधरों ने वह अंतर सम्पन्न कर लिया, जा मिले नेल्सन के अधरों से। प्रगाढ़ चुंबन की आश्लेष में थे दोनों के अधर।
नेल्सन ने दिलशाद के दोनों कंधों को पकड़कर अपनी तरफ खींचा, दिलशाद खड़ी हो गई। नेल्सन आगे बढ़ा और दिलशाद की कमर पर हाथ डाल दिये। धीरे से दिलशाद को अपनी तरफ खींचने लगा।
“नहीं... नेल्सन ...।” दिलशाद छुटना नहीं चाहती थी, छुटने का व्यर्थ ही प्रयास करने लगी। नेल्सन समझ चुका था कि दिलशाद की नहीं, नहीं, में पूरी हाँ, हाँ छुपी है।
उसने अपने दोनों हाथों से दिलशाद को अपनी तरफ खींचा, इस बार दिलशाद ने झूठा सा भी विरोध नहीं किया। नेल्सन ने उसे अपने आश्लेष में ले लिया। दिलशाद ने भी अपने हाथ खोले और नेल्सन की दोनों तरफ फैला दिये। दोनों एक दुसरे के आलिंगन में थे। दिलशाद ने पूरे उन्माद से नेल्सन को कसा, नेल्सन ने भी। दोनों के बीच से हवा के बहने की संभावना भी नहीं रही।
दिलशाद, नेल्सन, आलिंगन और चुंबन। बस यही थे उस कक्ष में, उस क्षण।
नेल्सन ने अपने आलिंगन को थोड़ा और कसा। दिलशाद और समीप आ गई। नेल्सन ने फिर से कसा। इस बार कुछ टूटने की ध्वनि आई। नेल्सन को समज नहीं आया, पर दिलशाद समज गई।
“यह ध्वनि?”नेल्सन ने पुछा।
दिलशाद ने स्वयं को नेल्सन के आलिंगन से मुक्त किया। थोड़ी गभराई, थोड़ी लज्जित हुई और कुर्सी पर जा बैठी।
नेल्सन भी कुर्सी पर जा बैठा। क्या हुआ उसे समझने का प्रयास करने लगा। उसे कुछ समज नहीं आया। प्रश्न भरी द्रष्टि से दिलशाद को देखता रहा। दिलशाद कुछ नहीं बोली।
“दिलशाद, आई एम सोरी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैंने कुछ ॰..।” नेल्सन ने द्रष्टि झूका ली। उसके मुख पर अपराध भाव थे।
“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे तो तुम्हारा यह ... जो... अच्छा लगा।“ दिलशाद को कोई अपराध भाव नहीं हुआ। वह प्रसन्न थी।
“तो बात क्या है? हुआ क्या है?”
“मेरी छाती की तरफ देखो। कुछ समज आ रहा है?”
नेल्सन ने दिलशाद की भरी तथा आकर्षक छाती की तरफ देखा। उसे कुछ समज नहीं आया।
“अरे बुध्धु हो तुम बिलकुल ही। मेरी छाती का आकार बदल गया है।“
“वह कैसे?”
“तुम्हारे कसने से मेरी ब्रा टूट गई है।“
“तो?”
“तो मेरे दोनों स्तन बंधन मुक्त हो गए है। थोड़े फैल से गए हैं।“
“तो अब क्या होगा? क्या करोगी तुम? जीत को पता चल जाएगा।” नेल्सन चिंतित हो गया।
“दो उपाय है। एक, दुकान से नयी ब्रा खरीद लूँ और पहन लूँ। दूसरा, टूटी हुई ब्रा को उतार दूँ।‘
“?”
“यही कि मैं घर से बिना ब्रा ही निकली थी।“ दिलशाद ने स्मित लहराया। वह उठी, कोने में गई और टूटी ब्रा खींच निकाली। नेल्सन ने उसकी छाती को देखा। दोनों तरफ ढली हुई पहाड़ियाँ सुंदर लग रही थी। नेल्सन उसे देखता ही रहा।
दिलशाद ने उस द्रष्टि को नहीं रोका।
“डॉक्टर, धरती पर रहने वाले पुरुष पहाड़ियों पर ज्यादा देर नहीं रहते, चाहे वह पहाड़ी कितनी भी छोटी हो, कितनी भी सुंदर हो, कितनी भी आकर्षक हो, कितना भी आमंत्रित करती हो। लौट आइये।“ दिलशाद हंस पड़ी, नेल्सन भी।
कुछ इधर उधर की बातें करके दिलशाद ने जीत को फोन लगाया।
“जीत, नेल्सन तुमसे बात करना चाहते हैं।“ दिलशाद ने फोन नेल्सन को दिया। फोन देते समय भी दिलशाद नेल्सन के हाथों को स्पर्श करना नहीं चुकी।
“जीत, दो दिन बाद हम लेसर शस्त्र क्रिया कर सकते हैं। तुम बस तैयार हो जाओ, मन से।“
“किन्तु.....”
“किन्तु परंतु कुछ नहीं। इस विषय में विलंब करना उचित नहीं।“
“जैसा आप दोनों उचित समझो।“
“मैंने पूरी बात दिलशाद को समझा दी है। चिंता की कोई बात नहीं है। बस थोड़ी सी हिम्मत रखना। मैं और दिलशाद हैं न तुम्हारे साथ।“
“ठीक है।“ जीत ने फोन काट दिया।
एक गरम चुंबन और एक उन्माद से भरा आलिंगन, दोनों ने एक दूसरे को दिया और अलग हो गए। दिलशाद घर लौट गई। दुकान से नई ब्रा लेना भूल गई।