हिम स्पर्श 26 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श 26

जीत तथा दिलशाद मुंबई लौट आए। डॉ॰ नेल्सन ने पूरी तरह से जीत को जांचा, कई टेस्ट भी हुए।

“बर्फीले पहाड़ों पर आप की छुट्टियाँ कैसी रही? बड़ा आनंद आया होगा न? कुछ मुझे भी तो बताओ कि पहाड़ों पर हिम कैसा लगता है? मैं कभी गया नहीं उन पहाड़ों पर।”नेल्सन ने बात का दौर सांधा। नेल्सन के होठों पर मीठा सा स्मित था। वह स्मित मोहक भी था। उसमें कोई जादू अवश्य था, जो रोगी की पीड़ा हर लेता था।

दिलशाद और जीत उस स्मित के सम्मोहन में पड गए। कुछ क्षण के लिए पीड़ा भूल गए, बर्फीली पहाड़ियों में, पहाड़ों की घाटियों में व्यतीत क्षणों में खो गए।

दोनों उन क्षणों का अनुभव डॉ॰ नेल्सन को बताते चले गए। नेल्सन उसे पूरी तन्मयता से सुनते रहे। होठों वाला स्मित अब नेल्सन की आँखों में भी था। वह आँखों में आँखें डाले, होठों पर और आँखों पर स्मित लिए, अनिमेष द्रष्टि से दोनों की बातें सुनता रहा। दिलशाद और जीत उनके मोहक प्रवाह में पिघलते हिम के झरने की तरह बहते गए।

कुछ 17 मिनिट के बाद दिलशाद और जीत रुके,”एक बार जरूर से आप भी उस स्थल का आनंद उठाने के लिए हिम से भरे पहाड़ों पर जाइए।“ जीत ने बात समाप्त करते हुए कहा।

“और अकेले मत जाइएगा।“ दिलशाद ने सुझाया।

“मैं एक बात मान सकता हूँ दूसरी नहीं।“ नेल्सन ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा।

“अर्थात?” दोनों एक साथ बोल पडे।

“मैं पहाड़ियों पर जाऊंगा जरूर, पर किसी को साथ नहीं ले जा सकता।“

“क्यूँ?”

“मैंने अभी विवाह ही नहीं किया।“ नेल्सन ने बड़ा ठहाका लगाया। दिलशाद और जीत भी साथ हो लिए।

“तो प्रथम विवाह कर लो, तब जाना।“ दिलशाद ने कहा।

“तब तक तो मैं वृध्ध हो जाऊंगा और मेरे पैरों में पहाड़ चढ़ने की क्षमता ही नहीं रह पाएगी।“ नेल्सन के होठों पर वही मोहक स्मित था।

“चलो हम पहाड़ों की हिम को पहाड़ों पर ही छोड़ देते हैं और जो हिम हम साथ लेकर आए हैं उसकी बात करते हैं।“ नेल्सन ने बातों के तार जोड़ दिये। दिलशाद और जीत मौन हो गए।

“हिम का पहाड़ जहां अदभूत आनंद देता है वहीं एक छोटा सा टुकड़ा पीड़ा भी दे रहा है। वास्तव में पीड़ा हिम के टूकडे से नहीं है परंतु उस पर जमी मिट्टी की परत से है, जो उसे पिघलने नहीं देती है। जिसे हम मिट्टी समझ रहे है वह केवल मिट्टी ही नहीं है, उसमे कुछ खनिज तत्व भी शामिल है। जो उस मिट्टी को अधिक कठोर बना रहे है।

दूसरी बात, हिम का वह टुकड़ा सांस की नली में घुस जाने के बाद जो फंस गया था वह धीरे धीरे खिसक भी रहा है। कभी भी फेफड़े तक जा सकता है, फेफड़े के अंदर घुस सकता है। यदि वह फेफड़े में घुस गया तो फेफड़े की दीवार को क्षति हो सकती है। फेफड़ा फट भी सकता है। जो चिंता का विषय है। मेडिकल जगत में यह अपने आप में अनूठा और प्रथम किस्सा है। विश्व के बड़े से बड़े डॉक्टरों को मैंने आप का यह केस भेजा है, और वह सब इस पर कार्य कर रहे हैं। शीघ्र ही कोई उपचार मिल जाएगा।“ डॉक्टर नेल्सन ने लंबी गहरी सांस ली और अपनी कुर्सी पर बैठ गए।

जीत और दिलशाद कुछ क्षण मौन ही रहे। समय बितता चल गया।

“तब तक क्या?” दिलशाद ने मौन तोड़ा।

“आप चिंता ना करें।“ नेल्सन के होठों पर वही मोहक स्मित था,” मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि मैं हिम के उस टुकड़े को फेफड़े तक जाने से रोके रखूँ। जब तक वह फेफड़े से दूर है तब तक कोई चिंता नहीं है।“

“यदि वह फेफड़े तक पहोंच गया तो?” दिलशाद ने चिंतित नजरों से नेल्सन की आँखों में आँखें डालकर पूछा। नेल्सन की आँखें खुछ बोल रही थी, दिलशाद को कुछ कह रही थी। दिलशाद उसे पढ़ना चाहती थी, किन्तु पूरी तरह से पढ़ नहीं पा रही थी। कोई संकेत, कोई आमंत्रण था उन आँखों में, जो दिलशाद की आँखों के मार्ग से ह्रदय तक चला गया। वह उन संकेतों को सुलझाने में उलझ गई। स्थिर द्रष्टि से दिलशाद बस देखती रही, नेल्सन की आँखें। मौन बैठे जीत का वहाँ होना वह भूल गयी।

“इस टुकड़े को नली में रखना भी खतरे से खाली नहीं। हो सकता है वह सांस को पूरी तरह ही रोक ले।“ नेल्सन के शब्दों ने दिलशाद को जगाया।

“हाँ, तो तो...?” दिलशाद के शब्द दिशाहिन थे।

“डॉ॰ नेल्सन, कुल मिलाकर स्थिति क्या बन रही है?” जीत ने मौन तोडा।

“अभी तो कोई गंभीर चिंता की बात नहीं है। रिपोर्ट्स, दवा, इंजेक्शन आदि से ट्रीटमेंट चलता रहेगा। जहां तक संभव हो सके ऑपरेशन टालते रहेंगे, क्यूँ कि वह सुरक्षित नहीं है।“ नेल्सन ने जीत को आश्वस्त किया।

जीत और दिलशाद ने सब फाइलें, रिपोर्ट्स आदि समेटा और बाहर निकल आए।