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शांतनु - १३

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

तेरह

“भाई शांतनु, हमने तो सफ़ेद झंडी दिखा दी...युध्द विराम!! आइए अनुश्री मैं आप को हमारे रसोईघर से मिलवाता हूँ...” कह कर ज्वलंतभाई खड़े हुए|

“कौन कौन सी सब्जियाँ है?” रसोई में घुसते ही अनुश्री बोली|

“फ़िलहाल तो सिर्फ़ भिंडी और आलू ही है, पर हमारे शांतनुभाई को भिंडी ज़रा भी पसंद नहीं है|” ज्वलंतभाई हंसते हुए बोले|

उनकी बात सुन कर अनुश्री ज्वलंतभाई के पीछे खड़े शांतनु की ओर देख कर हंस पड़ी|

“आज उन्हें भिंडी पसंद आएगी, आई बेट! अंकल आप प्याज़ और लहसुन तो खाते हैं ना?” अनुश्री ने पूछा|

“अरे बिलकुल खाता हूँ, प्याज़ वो रहे आलू की टोकरी में एक छोटी सी छाबड़ी है उसमे| आलू की टोकरी की ओर इशारा करते हुए ज्वलंतभाईने कहा|

“और दाल और आटा?” अनुश्री ने अपनी बड़ी बड़ी आँखों से पूरी रसोई को स्कैन करते हुए पूछा|

“अरे! अनु अब इतनी धमाल भी नहीं करनी, आप सिर्फ़ दाल, सब्ज़ी और चावल ही बनाइए|” शांतनु के स्वर में और उसके चहेरे पर चिंता थी, ऐसा सोच रहा था इतना सब करने से अनुश्री को तकलीफ़ होगी|

“मेरे काम में कोई दखलंदाजी करे वो मुझे बिलकुल ही पसंद नहीं है, समझे मिस्टर जूनियर बुच?” अनुश्री शांतनु की तरफ़ हंस कर बोली|

“ये जूनियर बुच मुझे जूनियर बुश जैसा सुनाई दिया|” आटे और दाल के डिब्बे दिखाते हुए ज्वलंतभाई बोले और तीनो हंसने लगे|

“चलिये, अब आप दोनों बहार जायेंगे? तभी तो मैं डिस्टर्ब हुए बगैर कुकिंग कर पाउंगी?” अनुश्री ने अधिकार जताते हुए स्वर में कहा, जो शांतनु को एकदम भा गया|

“क्यूँ नहीं बेटा| देखो तड़के के लिए ज़रूरी मसाले इस डिब्बे में है और गरम मसाला और अन्य मसाले फ्रीज़र में रखे हैं, अगर कुछ ढूंढने में मदद चाहिये तो मुझे बुला लेना|” कह कर ज्वलंतभाई रसोईघर के बाहर निकलने लगे|

“ओके... अभी साड़े सात हुए हैं और मुझे पता है की नोर्मल दिनों में आप और शांतनु साड़े आठ बजे डिनर करते हैं, तो ठीक साड़े आठ बजे डिनर टेबल पर सर्व हो जायेगा|” अनुश्री के चहेरे पर आत्मविश्वास से छलकती हुई मुस्कान थी|

शांतनु अनुश्री के इस नये रूप को देख कर आश्चर्यचकित हो गया था| अब तक उसने अनुश्री के सरल स्वभाव को ही देखा था पर आज पहलीबार वो उसे इतना हक़ जताते हुए देख रहा था| आज तक उसे शांत और मेच्योर अनुश्री के बारे में ही पता था पर आज उसका नटखट स्वरूप उसने पहलीबार देखा था और उसे यह सब पसंद भी आ रहा था|

शांतनु और ज्वलंतभाई रसोई से बहार आ कर लिविंग रूम में बैठे| दोनों अलग अलग सोफ़े के किनारे बैठे थे पर एकदम करीब थे|

“धरित्री के जाने के बाद पहलीबार कोई स्त्री हमारी रसोई में खाना पका रही रही है|” ज्वलंतभाई की आंखे नम हुई... शांतनु ने प्यार से उनका हाथ दबाया|

फ़िर दोनों किसी पुरानी क्रिकेट मैच देखने में बिज़ी हो गये और अचानक ही शांतनु को अक्षय की याद आ गई| इतनी ज़बरदस्त बारिश में वो और उसके पिताजी वडोदरा गये हुए थे और उनकी क्या हालत हुई होगी उसके बारे में तो उसने अभी तक सोचा ही नहीं था| और फ़िर उसको अनुश्री उसके घर में है वो बात से भी अक्षय को अवगत करवाना था, इसलिए उसने अपना सैलफोन उठाया और अपने कमरे की गैलेरी में चला गया|

“अबे तू कहाँ है? ठीक तो हो ना? पूरा दिन बीत गया और तुमने एक बार भी कोल नहीं किया? तू और पापा सेफ़ हो ना?” अक्षय के कोल रिसीव करते ही शांतनु ने सवालों की झड़ी लगा दी|

“हां बड़े भैया, हम दोनों ठीक है| काम तो सुबह ही खत्म हो गया था, पर दोपहर को जैसे ही खाना खाने बैठे की बारिश बहुत ज़ोरों से होने लगी और उधर अहमदाबाद में भी ज़बरदस्त बारिश है ऐसा मम्मी का कोल आया इसीलिये हम दोनों इधर बुआ के घर ही रुक गये| आप अपनी सुनाइए आप और अंकल दोनों ठीक तो हो ना?” अक्षय ने डिटेल में जवाब दिया|

शांतनुने पुरे दिन का विवरण अक्षय को दिया और इस वक्त अनुश्री उसी के घर पर है वो बात भी उसे कही|

“क्या बात है बड़े भैया? आपकी तो निकल पड़ी! भाभी? और वो भी हमारे घर पर? और डायरेक्ट रसोईघर में? क्या बात है बोस!” अक्षय की आवाज़ से उसकी ख़ुशी साफ़ झलक रही थी पर शांतनु यहाँ उससे सौ किलोमीटर दूर बैठे बैठे भी उसके चेहरे के हावभाव पढ़ सकता था|

“हाँ यार, और तुझे पता है? आज मैंने उसका एक अलग ही रूप देखा अक्षु...आई रियली लाइक हर!” शांतनु ने अपने दिल की बात कह दी|

“दादा, लाइक में से लव पर कब आयेंगे? करीब तीन या चार महीने से आप दोनों अच्छे दोस्त हो एंड आई एम् श्योर की अनुभाभी को भी अगर आप पसंद नही होंगे तो अच्छे तो लगते ही होंगे, तो कर दीजिये आज रात अपने प्यार का इज़हार|” अक्षय ने शांतनु को सलाह दी|

“मरवाएगा क्या? नहीं आज नहीं फ़िर कभी|” शांतनु तो ऐसे गभरा रहा था की जैसे अक्षय उसके सामने खड़ा हो और उसको अनुश्री को प्रपोज़ करने का फ़ोर्स कर रहा हो|

“आज नहीं तो कब यार?” अक्षय की आवाज़ में निराशा थी|

“आज नहीं पर फ़िर कभी, अच्छा सा मौका देख कर| और मेरे मित्र अक्षय जी आप मुझे सलाह दे रहे हैं पर आपका क्या? आप भी सीरतदीप को तीन या चार महीने से ही जानते हो और आप दोनों भी साथ साथ घूम फिर रहे हैं उसका क्या? आप शुरुआत कीजिये, फ़िर मेरी बारी|” शांतनु ने पासा फेंका|

“ओक्के! तो ज़बरदस्त बारिश के इस ऐतिहासिक दिन पर जब भाभी हमारे घर में रसोई बना रही है तब मैं अक्षय वेलजीभाई परमार यह घोषणा करता हूँ की आनेवाले रविवार को मैं मिस सीरतदीप पाल कौर बाजवा को हमारे रेग्युलर मीटिंग प्लेस यानी की प्रल्हाद नगर गार्डन के पास वाले मैक डी पर बुला कर उनके समक्ष अपने प्यार का इज़हार करूंगा| अब मिस्टर शांतनु ज्वलंतराय बुच आप अपना प्रोमिस भी कीजिये की आप कब मिस अनुश्री महेता को प्रपोज़ करनेवाले हो?” अक्षय अपनी स्टाइल में बोला|

अब जवाब देने की और ऐसा ही प्रोमिस देने की बारी शांतनु की थी|

“कल ऑफ़िस में आ, बाद में बात करते हैं|” शांतनु ने फ़िर से बात टालने की कोशिश की|

“आ गये न लाइन पे? बड़े भाई पर आज मैं आपको छोड़ने वाला नहीं हूँ| आज तो आपको मुझे प्रोमिस करना ही होगा की आप अनुभाभी को कब और कहाँ प्रपोज़ करनेवाले हो? कभी तो करोगे ना? और आज के बाद तो आप एक दुसरे को और भी नज़दीक से जानोगे और अपने रिश्ते की एक और ऊंचाई सर करेंगे| आप को वो सिर्फ़ अच्छे लगते हैं ऐसा नहीं है आप दिलोजान से उन्हें चाहते हैं यह हकीकत है, फ़िर डर काहेका? एक बार कह दीजिये भाई?” अक्षयने विनती की|

“पर ऐसा करने से वो दोस्ती भी छोड़ देगी तो?” शांतनु ने अपना डर प्रगट किया|

“दोस्ती छोड़ देंगी पर आपका प्यार तो साथ में ले कर जायेगी ना? दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो भूत की तरह घूम रहे हैं| ये ऐसे लोग हैं भैया जिन्हों ने अपने दिल की बात अपने सनम से करने में या तो देरी की या फ़िर उसे कभी कहा ही नहीं और फ़िर पूरी ज़िन्दगी पछताते रहे| क्या आप को भी वैसे ही उन भूतों की तरह घूमना है? और सोचिये अगर अनुभाभी ने हाँ कह दी तो? बी पोज़िटिव भाई|” लगता था अक्षय आज शांतनु को छोड़ने वाला नहीं था|

“तेरी बात तो सही हैं| एकबार दिल का बोज तो हल्का हो ही जायेगा और ज़्यादा से ज़्यादा ना ही कहेगी ना?” शांतनु बोला|

“बी पोज़िटिव, इस वाक्य को आपने सेल्स में आत्मसात कर लिया है भाई, और उसी कारण आप हमारी कंपनी को हर महीने लाखों का फ़ायदा करवा सकते हो तो ख़ुद को क्यों नहीं? वो हाँ ही कहेंगी, देखना| और आप जैसे लड़के को मना करने के लिये उनके पास कोई सॉलिड कारण भी तो होना चाहिये ना?” अक्षय ने अब शांतनु को कोर्नर कर लिया था|

“ठीक है, तू कल आ जा, फ़िर डिसाइड कर लेते हैं|” शांतनु को अभी भी समय चाहिए था|

“कल नहीं आज और इसी वक्त... तारीख, दिन और समय...भले ही आज आपके फ़ोन की बैटरी खत्म हो जाये पर मैं ये जाने बगैर की आप अनुभाभी को कब प्रपोज़ करनेवाले हो कोल कट नहीं करूंगा|” अक्षय ने शांतनु को पूरी तरह कंट्रोल में ले लिया था और अब शांतनु के पास बचने के लिये शायद कोई रास्ता बचा नहीं था|

“ठीक है, तो इस रविवार मैं भी अनु को ‘डिनर चीम’ मैं ले जाऊँगा और...” शांतनु से आगे बोला नहीं गया|

“धेट्स लाइक अ गूड बॉय| ओल ध बेस्ट अभी से...और कल जब मिलेंगे तो पूरा प्लान तैयार कर लेंगे|” अक्षय ने खुश हो कर कहा|

“श्योर|” शांतनु ने जवाब दिया|

“पर अब इस प्रोग्राम में कोई भी चेंज नहीं चलेगा... फ़िर कभी या अगले रविवार...मुझे अब ऐसे बहाने नहीं सुनने|” अक्षय ने शांतनु को बाँधने की कोशिश की|

“हां यार कोई भी बहाना नहीं| और मैं भी किसी डिसीजन पर आना चाहता हूँ और आज खाना खाने के बाद मैं अनुश्री को हो सके उतना इम्प्रेस करने की कोशिश करूंगा ताकी रविवार को थोड़ी आसानी हो जाये|” शांतनु ने अक्षय को वचन देते हुए कहा|

“ये हुई ना बात? चलो बुआ खाना खाने के लिये बुला रही है, कल मिलते हैं| आप भाभी के हाथ की रसोई खाइए और कहियेगा की कैसी थी... पर एस एम एस करना कोल मत करना, ओके?” अक्षय ने शांतनु को सलाह देते हुए कहा|

“ओके बोस्स...एज़ यु से...बाय एंड टेक केयर|” शांतनु ने हंस कर कहा और कोल कट किया|

पूरी बात खत्म होते होते आठ पच्चीस हो चूकी थी और अब शांतनु को चटपटी हो रही थी की आख़िरकार अनुश्री ने क्या बनाया होगा? वो लिविंग रूम में आया और हाथ के इशारे से ज्वलंतभाई से अपडेट पूछी, पर उन्हों ने अपना सर हिला कर उन्हें कुछ पता नहीं ऐसा कह दिया|

शांतनु को रसोई से धमाकेदार सुगंध तो ज़रूर आ रही थी और तभी अनुश्री रसोई में से बहार आयी| उसके हाथ में दो बाउल थे उनको उसने डाइनिंग टेबल पर रखा| शांतनु टिकटिकी लगा कर उसे देख रहा था और तभी ज्वलंतभाईने उसके कंधे को थपथपाते हुए उसे अनुश्री को मदद करने का इशारा किया| शांतनु अनुश्री को मदद करने के लिये आगे बढ़ा|

“आई वील मैनेज शांतनु, आप सिर्फ़ पानी का जग और ग्लासिज़ ले लीजिये प्लीज़|” अनुश्री को पता चल गया इस लिये उसने शांतनु को रोका और दूसरी चीज़े लाने के लिये वो फ़िर से किचन में चली गयी|

शांतनु ने भी किचन में रखे फ्रिज़ में से ठंडे पानी के दो जग लिये और उसे डाइनिंग टेबल पर रखा और फ़िर फ्रिज़ के उपर रखे स्टेंड में से पानी के तीन ग्लास लिये और उन्हें भी डाइनिंग टेबल पर रख दिये|

“सो जेंटलमैन, जैसे की मैंने प्रोमिस किया था साड़े आठ बजे खाना तैयार है| मैं ज़रा मुंह हाथ धो कर फ्रेश हो कर आती हूँ ठीक है?” अनुश्री ने अपनी लट कान के पीछे रखते हुए अपनी पावरहाउस मुस्कुरा दे कर कहा और उसे देख कर शांतनु फ़िर से पगलाया...

“श्योर मिस..आप के फ्रेश होने के बाद ही हम तीनों खाना खायेंगे|” ज्वलंतभाई ने कहा|

अनुश्री शांतनु के कमरे के बाथरूम में गई और वोश बेजिन में अपना हाथ और मुंह धो कर वहीँ रखे नैपकिन से उन्हें पोंछा और वापस आयी| अब तीनो टेबल से लगी हुई कुर्सियों पर बैठे| अनुश्री ने दो थाली और दो कटोरी ले कर ज्वलंतभाई और शांतनु के सामने रखे और फ़िर अपने सामने|

“अरे अनुश्री हम ले लेंगे, आप क्यूँ तकलीफ ले रही हो?” ज्वलंतभाई ने अनुश्री को रोकते हुए कहा|

“देखिये अंकल, आज के डिनर के डिनर की इन्चार्ज मैं हु इस लिये आप दोनों को सिर्फ़ मैं जो कहूँ वो ही करना है|” अनुश्री वैसे तो हँसते हुए बोल रही थी पर उसकी आवाज़ में हुक्म का सूर था|”

“हमें कितना खाना है वो भी आप ही डिसाइड करेंगी या फ़िर हमे हमारी भूख अनुसार ही खाना होगा?” शांतनु ने कमेन्ट किया|

“वेल, अगर खाना अच्छा न लगे तो भूख अनुसार पर मुझे बुरा न लगे उस हिसाब से|” इस बार अनुश्री खिलखिलाते हुए हंस दी और शांतनु उसे देख कर फ़िर से....

“आलू भिंडी की सब्ज़ी? शांतनुभाई आप पर मुसीबत है आई..” एक बाउल का ढक्कन खोलते ही ज्वलंतभाई बोले|

“मुसीबत तो अब जाने को आई अंकल, क्यूंकि मैंने भिंडी अलग तरीके से है बनाई|” अनुश्री ने ज्वलंतभाई के प्रास में प्रास मिलाया और ज्वलंतभाई हंस पड़े|

“नो प्रास प्लीज़.. पहले मुझे चखने तो दीजिये की सब्ज़ी कैसी बनी है?” अपनी टांग खिंचाई से थोडा परेशान पर अपने चहेरे पर मुस्कान कायम रख कर शांतनु ने कहा|

फ़िर अनुश्री ने दाल पराठे और ककड़ी और प्याज़ के मिक्स सेलड भी परोसे| खाने की खुशबु तो बेहद अच्छी थी और सालों बाद शांतनु और ज्वलंतभाई अपने ही घरमे प्रोफेशनल रसोई बनानेवाले की नहीं परंतु घर की ही किसी व्यक्ति के द्वारा बनाई हुई रसोई खानेवाले थे| अनुश्री ने भी बाद में सारी चीज़ें अपनी थाली में परोसी|

“तो शुरू करें?” ज्वलंतभाई ने पूछा?

“हाँ अंकल, मुझे ज़ोरों की भूख लगी है|” अनुश्री ने जवाब दिया और शांतनु ने भी हां में अपना सर हिलाया|

तीनों ने खाना खाना शुरू किया|

“वाह...वाह...वाह... अनुश्री अद्भूत| सच कहूँ तो सालों बाद मैंने इतना अच्छा खाना खाया है, एट लिस्ट इस घर में|” ज्वलंतभाईने अनुश्री की रसोई की तारीफ़ तो की पर उसके साथ उनके दिल की बात भी उनके होंठो पर आ गयी|

“अनु, भिंडी आलू की सब्ज़ी सच में माइंड ब्लोइंग है|” शांतनु ने अपना अंगूठा ऊँचा कर कहा|

“आप दोनों मुझे अच्छा लगे इस लिये तो ऐसा नहीं कह रहे ना?” अनुश्री ने दोनों बाप बेटे से स्पष्टीकरण माँगा|

“अरे ना ना ऐसा नहीं है| मैं तो सच्ची तारीफ़ कर रहा हूँ, बाकी भिंडी विरोधियों का मुझे पता नहीं|” ज्वलंतभाईने अनुश्री की ओर हंस कर कहा|

“क्या यार पप्पा... मुझे सब्ज़ी सच में अच्छी लगी और दाल फ्राय तो जबरदस्त है|” शांतनु ने अपने पर लगे आरोपों का खंडन करने के लिये ज़रा ज़ोर लगा कर कहा|

“दाल फ़्राय ज़बरदस्त है उसका मतलब तो ये हुआ ना अंकल की भिंडी की सब्ज़ी उतनी ज़बरदस्त नहीं है|” अब अनुश्री भी शांतनु की टांग पूरी तरह खींचने के मूड में आ गयी थी और उसे चिढ़ा रही थी|

“यु आर एक दम राईट अनुश्री|” ज्वलंतभाईने अपने पास बैठी अनुश्री को ताली देने के लिये अपना हाथ आगे किया और अनुश्री ने तुंरत ही अपने बायें हाथ से उन्हें ताली दे दी|

इस बार शांतनु ज़रा भी चिड़ा नहीं| वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था, बल्के उसको इस बात की ख़ुशी हो रही थी की अनुश्री और ज्वलंतभाई का ट्यूनिंग सेट हो गया था और खासकर अनुश्री भी दोपहर की गुमसुम हालत में से पूरी तरह बाहर निकल आयी थी और खुश नज़र आ रही थी|

तीनों ने ऐसे ही हंसते हुए और बातें करते हुए डिनर समाप्त किया| सुबह कामवाली बाई जो बिल्डिंग के करीब ही रहती है वो बरतन कल आ कर साफ़ कर देगी ऐसा कह कर ज्वलंतभाईने अनुश्री को और काम करने से रोका|

इस दौरान बारिश का ज़ोर काफ़ी कम हो चूका था और अब तो वो बंद भी होने लगी थी| खाना खाने के बात अनुश्री शांतनु के कमरे की गेलेरी में गई और पहले अपने घर और फ़िर सीरतदीप को कोल कर उन्हें वो ठीक है ऐसा मैसेज दे दिया|

इस तरफ़ शांतनु ने अक्षय को “खाना टनाटन था|” ऐसा एस एम एस किया और अक्षय ने भी सामने से “मज़े करो बड़े भैया” का जवाब भी दिया|

ज्वलंतभाई और शांतनु टीवी पर न्यूज़ चेनल्स देखने लगे| अनुश्री भी अपनी बातें खत्म कर लिविंग रूम में आयी और टेबल पर पड़े मेगेज़िन्स में से एक उठाया और उसे पढने लगी| शांतनु अब न्यूज़ कम और अनुश्री को ज़्यादा देख रहा था और जब जब अनुश्री मेगेज़ीन पढ़ते समय अपनी लट को अपने कान के पीछे सरकाती थी शांतनु के दिल की धडकने और भी तेज़ हो जाती थी| करीब एक घंटा तीनो ने एक दूसरे से कम ही बात की और जैसे ही साड़े दस बजे की ज्वलंतभाई अपनी जगह से खड़े हुए...

“अनुश्री मेरे सोने का समय हो गया है| आप और शांतनु टीवी देखिये या फ़िर बातें करिये, मैं रिटायर हो रहा हूँ| आप शांतनु के कमरे में सो जाना| शांतनु मेरे साथ या फ़िर यहीं सो जायेगा| सुबह आप को जब भी ठीक लगे उठ जाइएगा, शांतनु आप को घर छोड़ आएगा| थेंक गॉड ऐसा लग रहा है की बारिश भी अब जल्द ही बंद हो जायेगी|” ज्वलंतभाई सोफ़े से उठ कर तुरंत ही बोले|

“श्योर अंकल, मैं लगभग साड़े छ बजे का ही अलार्म रखूंगी और फ़िर मुंह हाथ धो कर आपके हाथ की चाय पी कर घर चली जाउंगी, गूड नाईट!” अनुश्री ने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

“गूड नाईट पप्पा|” शांतनु ने ज्वलंतभाई की ओर देख कर कहा|

“गुड नाईट शांतनु|” कह कर ज्वलंतभाई अपने कमरे में चले गये|

ज्वलंतभाई के अपने कमरे में चले जाने के बाद शांतनु और अनुश्री एक दूसरे की ओर देख कर यंत्रवत मुस्कुराये| शांतनु अब अपने फेवरिट पुराने गानों वाली चेनल्स देखने लगा... दो तीन मिनट बाद....

क्रमशः

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