हिम स्पर्श - 20 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श - 20

वफ़ाई जागी, घड़ी में समय देखा। रात के तीन बज कर अड़तालीस मिनिट। वह उठ खड़ी ऊई। कक्ष से बाहर निकली।

झूले पर जीत गहरी नींद में सोया था। “जीत, स्वप्नों के नगर में हो क्या?” वफ़ाई मन ही मन बोली।

रात शीतल थी। देर रात्रि के चाँद की श्वेत चाँदनी से गगन तेजोमय था। दो तीन बादल गगन में घूम रहे थे।

ठंडी पवन वफ़ाई को स्पर्श कर गई। वफ़ाई ने थोड़ा कंपन अनुभव किया। उसने दुपट्टे को लपेटा और कक्ष के अंदर चली गई।

वफ़ाई ने जीत का लेपटोप चालू किया। जीत ने वफ़ाई के केमरे से जो भी तस्वीरें ले ली थी वह सारी तस्वीरें वफ़ाई ने पेन ड्राइव में डाल डी। लेपटॉप बंध कर दिया।

शीघ्रता से अपना सारा सामान उठाया और धीरे से कक्ष से बाहर आई। जीत अभी भी झूले पर गहरी नींद में था। वफ़ाई के अधरों पर एक विशेष स्मित आ गया। सामान लेकर वह घर से बाहर की तरफ जाने लगी।

वफ़ाई वहाँ से भाग रही थी। जीत की तरफ अंतिम द्रष्टि करते बोली,”क्षमा करें मित्र। मैंने चोरी की है और मैं तुम्हें इस मरुभूमि में अकेले छोडकर जा रही हूँ। धन्यवाद मेरी सहायता करने के लिए। तुम अच्छे हो, जीत।“

उसने केनवास के पास तूलिका के नीचे विजिटिंग कार्ड रख दिया। केनवास की तरफ एक द्रष्टि डाली। उस पर एक अधूरा चित्र था जो किसी भी द्र्श्य को अभिव्यक्त नहीं कर रहा था।

केनवास को छोड़ कर वफ़ाई घर से बाहर निकल गई। विजय और आनंद का स्मित उसके अधरों पर था।

“जीवन के एक प्रकरण को यहीं समाप्त कर रही हूँ, जो मैं कभी दूसरी बार जीना नहीं चाहुंगी।“ वह निकल पड़ी।

वफ़ाई की जीप कुछ दूरी पर थी। हाथ में सामान लिए वह जीप की तरफ भागी। भागते समय कुछ उसके हाथ से गिर गया किन्तु वह बेध्यान थी। जीप के समीप पहोंचते ही दरवाजा खोल कर सारा समान जीप में पीछे डाल दिया और अंदर घुस गई। जीप चालू करने के लिए वफ़ाई चाबी ढूँढने लगी पर वह उसे नहीं मिली। वफ़ाई ने उसे बटुआ, थेला, सामान तथा जेब में ढूंढा किन्तु उसे वह नहीं मिली।

जीप का द्वार बंध कर वफ़ाई कुछ क्षण शांत बैठी रही। आँखें बंध करके चाबी कहाँ हो सकती है उस पर विचार करने लगी।

“ठक ... ठक...”अचानक किसी ने जीप के द्वार को ठोका।

“अल्ला...ह....” वफ़ाई भय से चिखी। उसके चित्कार से मरुभूमि की शांति भंग हो गई। कुछ पंखी रोने लगे। कुछ ने पंख फड़फड़ाए और शांत हो गए। भयावह हवा बह गई। कुछ क्षणों पश्चात वफ़ाई ने साहस करके जीप से बाहर देखा। भय अभी भी वफ़ाई की आँखों में था।

वफ़ाई कुछ भी समज पाये उससे पहले जीप का द्वार बाहर से खुला और चाबी के साथ एक हाथ अंदर आ गया। वफ़ाई इतनी भयभीत थी कि उसने आँखें बंध कर ली, साँसे रोक ली और मूर्ति की भांति स्थिर हो गई।

“वफ़ाई, तुम्हारी जीप की चाबी। इसे ले लो और यहाँ से चले जाओ।“ जीत के शब्द वफ़ाई के कानों में पड़े। वफ़ाई अभी भी भयग्रस्त थी। उसने एक आँख खोलकर संदेह से जीत की तरफ देखा। वह जीत ही था।

वफ़ाई के लिए जीत का वहाँ होना भय की बात थी भी और नहीं भी। वफ़ाई ने दोनों आँखें खोल दी। जीत जीप के बाहर हाथ में चाबी लिए, मुख पर सौम्य स्मित लिए खड़ा था।

“वफ़ाई, शांत हो जाओ।“ जीत ने सस्मित कहा। वफ़ाई शांत होने लगी, भय से मुक्त होने लगी। वफ़ाई गहरी सांस लेने लगी। वह हाँफ रही थी। जीत ने पानी की एक बोतल खोल कर वफ़ाई को दी। वफ़ाई एक ही घूंट में पानी पी गई।

अनेक क्षण व्यतीत हो गए, बिना किसी क्रिया- प्रतिक्रिया के। अंतत: वफ़ाई शांत हो गई। भय ओझल हो गया, साँसे सामान्य हो गई।

जीत, वफ़ाई को निहार रहा था। वफ़ाई ने जीत को देखा। वफ़ाई के मुख पर अनेक सवाल थे। जीत उसके उत्तर देने को तैयार था किन्तु वह वफ़ाई के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करता रहा, शांति से।

उस क्षण गगन शांत था। दिशाएँ शांत थी। पवन शांत था। चंद्रमा तथा चाँदनी शांत थी। मरुभूमि शांत थी। समय का वह क्षण शांत था । जीत शांत था। वफ़ाई शांत थी। इन सभी में मौन की धुन मधुर संगीत सुना रही थी।

“वफ़ाई, एक लंबा मार्ग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। वास्तव में यह अधिक लंबा मार्ग है। समय ने अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी है। तुम्हें भी अपनी यात्रा प्रारम्भ कर देनी चाहिए। चलो यात्रा पर निकल पड़ो।“ जीत ने चाबी वफ़ाई के हाथों में रख दी और दो तीन कदम पीछे हट गया।

वफ़ाई को कुछ भी समज नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है और उसे क्या करना चाहिए। अनिर्णायक स्थिति में ही वफ़ाई ने जीत से चाबी ले ली और जीप चालू कर दी।

देर रात्रि की शांति से भरे मरुभूमि के मार्ग पर वफ़ाई की जीप चलने लगी।

जीप चलती रही, वफ़ाई रोती रही। अनायास ही आँखों से अश्रु बहने लगे। खारा पानी वफ़ाई के गालों पर बहने लगा। जीप अपने मार्ग पर बह रही थी।

जीत, आँखों से ओझल होती हुई जीप को देखता रहा। खाली मार्ग को देर तक निहारने के पश्चात उसने गगन की तरफ देखा। गगन का चंद्रमा अकेला था। सारे बादल चले गए थे। गगन खाली था।

जीत की भांति चंद्रमा भी फिर से अकेला हो गया। जीत चंद्रमा की तरफ झुका, वंदन किया और खाली गगन को स्मित देकर उसे निहारता रहा। मरुभूमि की रात्री में जीत के एकांत का एक मात्र साथी था चंद्रमा।

चंद्रमा ने भी जीत के स्मित का उत्तर स्मित से दिया। दो अकेले एक दुसरे से स्मित कर रहे थे।