हिम स्पर्श - 15 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श - 15

जीत के मोबाइल की घंटी बजना खास और विरल घटना होती थी। घंटी सुनकर उसे विस्मया हुआ। उसने फोन उठाया।

“जीत, आपको इस समय फोन करने पर क्षमा चाहूँगा। किन्तु यह अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है।“ जीत ने कैप्टन सिंघ की आवाज सुनी।

“जय हिन्द, कैप्टन सिंघ। कहिए क्या बात है?”जीत सावध हो गया।

“काल रात एक युवती सेना के क्षेत्र में पाई गई। उसके पास एक जीप है जिसका पंजीकरण जम्मू कश्मीर से है। हमें संदेह है कि वह सिमा पार से आई कोई गुप्तचर है। पूछताछ पर उसने आपका नाम दिया। क्या आप उसे जानते हो?”

“क्या वह वफ़ाई है?” जीत ने पूछा।

“हाँ, वह ऐसा ही कह रही है। किन्तु उसके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। वफ़ाई का कहना है कि कल संध्या वह आपके साथ थी। क्या यह सत्य है?”

“हाँ, कैप्टन सा’ब। वह दो घंटे से अधिक समय तक मेरे साथ थी।“

“वह कह रही है कि उसके पास सारे पहचान पत्र थे किन्तु वह सब आपके घर भूल आई है। तो क्या वह सभी आपके घर पर है? यदि ऐसा है तो इस बात की पुष्टि करें।“

“मुझे देखना पड़ेगा।“ फोन कान पर ही रखते हुए जीत इधर उधर देखता रहा। उसे एक लाल बटुआ मिला जो जीत का नहीं था। जीत ने उसे खोला,”सा’ब, मुझे एक बटुआ मिला है जो स्त्रीयां ...”

“क्या वह लाल है?”

“हाँ, वह लाल है।“

“उसे देखकर कहो कि उसमें वफ़ाई के पहचान पत्र हैं?”कैप्टन सिंघ ने आदेश दिया।

जीत ने कहा,“सा’ब, वफ़ाई के कुछ पहचान पत्र हैं इस में।“

“जीत। उन सभी की तस्वीर निकालकर हमें भेज दो। अति शीघ्र।“

फोन कट गया। जीत ने कैप्टन सिंघ के आदेश का पालन किया।

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जीत अपनी चित्रकारी में व्यस्त था। केनवास पर एक सुंदर द्रश्य का जन्म हो रहा था। चित्र में नदी के ऊपर से एक पंखी उड रहा था जिसके पंख नदी के पानी को स्पर्श करते थे। पानी में पंखी का प्रतिबिंब पड रहा था। उसकी पंख लाल और नीली थी। किंतु पानी में पड रहे प्रतिबिंब में पंखों का रंग भिन्न दिखाई दे रहा था क्यूँ कि उसमें गगन का रंग भी घुल गया था।

पंखी के पंख, उसका प्रतिबिंब और गगन के रंग का मिश्रण केनवास पर एक सुंदर द्रश्य को जन्म दे रहे थे। किन्तु जीत अभी भी पंखी के प्रतिबिंब के रंगों से संतुष्ट नहीं था। वह उसे बार बार बदल रहा था।

जीत ने रंग भरना छोड़ दिया, तूलिका को एक तरफ रख कर केनवास को देखता रहा। उसके मन में सेंकड़ों विचार तीव्र गति से आने लगे। किन्तु वह किसी से भी संतुष्ट नहीं था। वह एक ही ध्यान से चित्र को देखता रहा, जैसे कोई ऋषि समाधिमय हो। वहाँ की ध्वनि भी उस की समाधि अवस्था को भंग नहीं कर पाई।

उसके आँगन में दो जीप आ चुकी थी किन्तु उसका ध्यान नहीं गया।

वफ़ाई की जीप से कैप्टन सिंघ और सेना की जीप से वफ़ाई उतरे। दोनों सीधे जीत की तरफ बढ़े। जीत एक अपूर्ण चित्र के सामने खड़ा था। वह समाधि अवस्था में था।

कैप्टन ने कुछ क्षण प्रतीक्षा की किन्तु जीत ध्यान की अवस्था में ही रहा। कैप्टन जीत के समीप गए और उसके कंधे पर हाथ रख दिया।

जीत की गहन समाधि भंग हुई। उसने कैप्टन को देखा, वफ़ाई को भी।

“जीत, मैं वफ़ाई को यहाँ छोड़ जाता हूँ। हमारी सतर्क द्रष्टि वफ़ाई पर सतत रहेगी। यदि कुछ भी संदेहपूर्ण पाया गया तो उसे कैद कर लिया जाएगा। अब यह आपका दायित्व होगा कि वफ़ाई की गतिविधियों को आप देखते रहेंगे और संदेह की किसी भी स्थिति में आप हमें सूचित करेंगे।“कैप्टन ने आदेश दिया।

जीत ने वफ़ाई की तरफ देखा। वफ़ाई ने स्मित किया, पलकें झुकाई, फिर उठाई। वफ़ाई की आँखें जीत को कुछ कह रही थी। जीत ने उसे पढ़ा, वफ़ाई को स्मित दिया और कैप्टन को कहा,”सा’ब आप निश्चिंत रहें। मैं वफ़ाई की गतिविधियों पर सतर्क द्रष्टि रखूँगा और आप के आदेशानुसार ही काम करूंगा।“

“मेरी शुभकामना, जीत। मैं अपेक्षा रखता हूँ कि सब कुछ ठीकठाक रहेगा।“ कैप्टन ने वफ़ाई और जीत की तरफ एक द्रष्टि डाली और चल दिये। दोनों ने कैप्टन सिंघ को सलाम किया। मरुभूमि के रस्तों पर कैप्टन की जीप ओझल हो गई।

जीत एवं वफ़ाई के मन में एक दूसरे के लिए कई प्रश्न थे। दोनों एक दूसरे को जानने के लिए उत्सुक थे। दोनों एक दूसरे को अपने विषय में कहने को उत्सुक थे। दोनों के मुख पर प्रश्नों के आवरण थे जो दोनों हटाना चाहते थे। किन्तु दोनों मौन खड़े थे। दोनों इसी मौन धारण किए लंबे समय तक खड़े रहे, दोनों में से कोई नहीं जानता था कि कैसे प्रारम्भ किया जाय, कहाँ से प्रारम्भ किया जाय? कल संध्या समय के मिलन की छाया दोनों के मन में अभी भी थी।