एक थी सीता - 7 MB (Official) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक थी सीता - 7

एक थी सीता

(विश्वकथाएँ)

(7)

अनन्त प्रेम

मार्गराइट

नैवेयर की रानी मार्गराइट का रचनाकाल सोलहवीं शताब्दी का मध्य माना गया है। अपने मित्रों के बीच कहानियाँ सुनने-सुनाने का उसे बहुत शौक था। उसके कहानी-संग्रह ‘हेप्टामेरॉन’ को ‘फ्रेंच डेकामेरॉन’ कहा जाता है।

अन्तुआ के सामन्त के जमाने की बात है। उनके घर में पॉलीन नाम की एक दासी थी। सामन्त का एक मामूली, पर बहुत बुद्धिमान कारकुन उस दासी को दिल से प्यार करता था। सभी उसके प्यार को लेकर ताज्जुब करते थे। सामन्त की बीवी सोचती थी कि पॉलीन जैसी सुन्दर दासी किसी धनी-मानी से ब्याह करके जिन्दगी बना सकती है। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि पॉलीन एक गरीब कारकुन से शादी करे। उन्होंने दोनों को हिदायत दी कि वे एक-दूसरे से बोलना-चालना बन्द कर दें। मिलना-जुलना बन्द होने पर वह उसी के खयालों में और भी डूबी रहने लगी। वे दोनों यही सोचते रहे कि वक्त बदलेगा और वे एक-दूसरे के हो जाएँगे।

पर होनी यह हुई कि तभी लड़ाई छिड़ गयी। वह नौजवान कारकुन युद्धबन्दी बना लिया गया। वहीं पर सामन्त की सेना का एक और फौजी भी बन्दी था। दोनों में खूब घुटने लगी, क्योंकि दोनों ही अपने-अपने प्यार के मारे हुए थे। वे एक-दूसरे को अपनी प्रेमकथाएँ सुनाते। यह जानते हुए भी कि वह नौजवान पॉलीन को बेहद चाहता है, उसके दोस्त ने यही कहा कि उसे अब पॉलीन को भूल जाना चाहिए।

इस पर नौजवान ने कहा कि मैं सामन्त की ओर से युद्ध में लड़ा हूँ। वापस जाकर मैं उनकी कृपा से पॉलीन को माँगूँगा। यदि वह मुझे नहीं मिली, तो मैं साधु हो जाऊँगा। दोस्त को उसकी इस बात पर भरोसा नहीं हुआ। दस महीने बाद वे दोनों छूटकर आये, तो नौजवान ने पॉलीन से विवाह की इच्छा प्रकट की। इसे सामन्त और सामन्त की बीवी ने तो माना ही नहीं, उन दोनों के माँ-बाप ने भी मंजूर नहीं किया।

और कोई चारा न देखकर और पूरी तरह निराश होकर नौजवान ने सामन्त की बीवी से प्रार्थना की कि उसे पॉलीन से बस आखिरी बार मिल लेने दिया जाए। यह प्रार्थना स्वीकार कर ली गयी। मुकर्रर वक्त पर पॉलीन उससे मिली, तो नौजवान ने कहा, “पॉलीन मेरे भाग्य में तुम्हारी निकटता पाना, प्यार पाना, नहीं बदा है। मालिक-मालकिन ने सख्त पाबन्दियाँ लगा दी हैं। वे चाहते हैं कि हम दोनों अलग-अलग जगहों पर शादी करें और ऐसों से करें, जिससे हम दोनों खुश रह सकें। पर पॉलीन! उन्हें कौन बताए कि धन ही सबकुछ नहीं होता! अब मुश्किल यह है कि मैं यहाँ रहते पाबन्दियों के कारण तुम्हें देख भी नहीं सकता। और तुम्हें देखे बगैर मैं यहाँ रह भी नहीं सकता, क्योंकि मेरे प्यार ने सबकुछ तुम्हीं से पाया है... ऐसी हालत में मैं न जी सकता हूँ, न मर सकता हूँ... बहुत सोचकर मैंने तय किया है कि मैं साधु हो जाऊँगा, ताकि मैं ईश्वर को भी उतना ही प्यार कर सकूँ, जितना कि मैंने तुम्हें किया है! तुम भी ईश्वर से मेरे लिए यही प्रार्थना करना कि मेरे मन में तुम्हें देखने, तुमसे बोलने की इच्छा की आहट तक न आए... यही लिखा है मेरे भाग्य में कि मैं तुम्हारे बगैर रहूँ... अच्छा, अलविदा...”

आखिर वह नौजवान दूसरे दिन मठ में चला गया। पादरी ने उसे धार्मिक कार्यों में लगा दिया। ईश्वर के कामों में लगे हुए भी वह पॉलीन को नहीं भुला पाया और छुप-छुपाकर ऐसे गीत लिखता रहा, जो पॉलीन के लिए होते हुए भी ईश्वरीय प्रेम में डूबे हुए थे।

एक बार सामन्त की बीवी के साथ जब पॉलीन भी गिरजे गयी, तो उसने देखा - उसका प्रेमी पादरी के पीछे पूजा का सामान लेकर खड़ा है। इस भेस में उसे देखकर पॉलीन की आँखों में आँसू उमड़ आये। आखिर वह अपने को नहीं रोक पायी। उसे अपनी ओर सिर्फ एक क्षण के लिए आकर्षित करने को वह झूठमूठ खाँसी... पर उसका प्रेमी वैसे ही जमीन में नजरें गड़ाये खड़ा रहा... हालाँकि उसका वह प्रेमी गिरजे की घण्टियों से ज्यादा उसकी खाँसी की आवाज को पहचानता था।

पूजा खत्म हुई। तब तक उसके प्रेमी का संयम टूट चुका था और उसने उचटती हुई नजर पॉलीन पर डाली थी। पॉलीन को वह नजर छेदती चली गयी। उसे लगा कि उसने धर्मसमाज के कपड़े भले ही पहन लिये हों, पर उसका हृदय अब भी उसी तरह धड़कता है। वह भीतर-ही-भीतर बुरी तरह अकुला उठी।

आखिर एक वर्ष प्रतीक्षा करने के बाद भी वह इस वियोग को नहीं सह पायी। एक दिन उसने अपनी मालकिन से कहा कि वह मठ जा रही है। उसे इजाजत मिल गयी। वह मठ में कई महीने पहले ही एक बार जाकर धर्मगुरु की इजाजत ले आयी थी कि वह ‘नन’ हो जाएगी। उसने धर्मगुरु के पास सीधे जाकर दीक्षा ले ली। जब वह गिरजे की वेदी के पास अपने प्रेमी से मिली, तो बोली, “मैंने भी मठ की यह पोशाक तभी पहन ली होती, जब तुमने ग्रहण की थी, पर तब सब लोग हम पर कलंक लगाते कि हमने धर्म की आड़ ली है। अब इतना वक्त गुजर गया है कि कोई कुछ नहीं कह पाएगा। मुझे नहीं मालूम कि मठ की इस जिन्दगी में क्या है। मुझे सिर्फ इतना पता है कि तुमने यह जीवन अंगीकार किया है। इसमें सुख है कि दुख - यह तुम जानो। जिस सर्वशक्तिमान ने हमें वहाँ प्यार दिया है, वही यहाँ का प्यार भी देगा...”

दोनों की आँखों में प्रेम के आँसू छलछला आये थे। प्रेमी नौजवान ने इतना ही कहा, “अब मैं तुम्हें देख भी पाऊँगा और तुम्हारी आवाज भी सुन पाऊँगा। और कितना अच्छा है कि हम दोनों अब एक को प्यार करेंगे - अपनी अन्तरात्मा से।”

जैसा कि माग्दलेन से ईश्वर ने कहा था - तुम्हारे सब पाप माफ हैं, क्योंकि तुमने बहुत प्यार किया है! वैसा ही प्रेमी नौजवान और पॉलीन के साथ भी हुआ।

***