चर्चित यात्राकथाएं
(11)
शवदाह
गी द मोपास्साँ
पिछले सोमवार को इट्रेटट में एक भारतीय राजा, बापूसाहब खण्डेराव घाटगे की मृत्यु हो गयी, जो बम्बई प्रेसिडेंसी के गुजरात प्रान्त-स्थित बड़ौदा रियासत के महाराजा गायकवाड़ के रिश्तेदार थे। इसके लगभग तीन हफ्ते पहले सड़कों पर करीब दस नौजवान भारतीयों का एक दल देखा गया था, जो ठिगने कद के, नाजुक, एकदम काले थे, सिलहटी रंग के सूट पहने और कपड़े की चौड़ी-ऊँची टोपियाँ लगाये हुए थे। प्रमुख पश्चिमी राष्ट्रों की सैनिक संस्थाओं का अध्ययन करने यूरोप आये थे। इस दल में तीन राजा, एक उच्च वर्ण का मित्र दुभाषिया और तीन नौकर थे।
जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई थी, वह इस मिशन के मुखिया, बयालीस वर्षीय बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ के भाई सम्पतराव काशीराव गायकवाड़ के ससुर थे। उनके दामाद उनके साथ थे। अन्य के महाराजा खाशेराव गाधव के चचेरे भाई गणपतराव शावनराव गायकवाड़, सचिव-दुभाषिया वासुदेव माधव समर्थ और उनके नौकर रामचन्द्र बाजाजी, गनू बिन पुकाराम कोकाटे, रम्भा जी बिन फौजी।
जब रुग्ण सज्जन अपने देश से रवाना हो रहे थे, तो इस बात का भरोसा हो जाने पर कि अब वह कदापि लौट न पाएँगे, दुःख से उनका हृदय भर उठा था और वह यात्रा रद्द कर देना चाहते थे, किन्तु उन्हें अपने सम्मानित सम्बन्धी बड़ौदा के महाराजा की इच्छा के आगे झुक जाना पड़ा और वह रवाना हो गये।...गर्मियों के आखिरी हफ्ते बिताने के लिए वे इट्रेटट आये और कुतूहल में भरे लोग रोज सवेरे उन्हें रोचेज ब्लांचेज बाथ्स पर नहाते हुए देखते।
पाँच या छह दिन पहले बापू साहब खण्डेराव घाटगे को मसूढ़ों में दर्द की शिकायत हुई, उसके बाद उनके गले तक सूजन फैल गयी, जो अल्सर के रूप में परिणत हो गयी। घाव सड़ गया और सोमवार को डॉक्टरों ने उनके युवक मित्र को बताया कि वह रोग-मुक्त न होंगे। इसके लगभग तुरन्त बाद ही उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गयी। और जब ऐसा लगा कि वह अभागे आदमी आखिरी साँसें ले रहे हैं, तो उनके साथियों ने उन्हें बाँहों में ले लिया, बिस्तर से उठा लिया और टाइल वाले फर्श पर लेटा दिया, ताकि ब्रह्मा के नियमों के अनुसार वह माता पृथ्वी के सम्पर्क में प्राण त्याग सकें।
उसी दिन उन्होंने अपने धर्म के अनुसार शव को जलाने के लिए मेयर मोंसिकर बोइसाये से अनुमति माँगी। मेयर हिचकिचाये, फिर निर्देश के लिए उन्होंने प्रशासकीय अधिकारी को तार भेजा और साथ ही कह दिया कि अस्वीकृति सूचक उत्तर न मिलने पर वह शवदाह के लिए अपनी स्वीकृति दे देंगे। चूँकि रात के नौ बजे तक कोई उत्तर नहीं मिला था, यह निर्णय किया गया कि जिस रोग से उक्त भारतीय की मृत्यु हुई थी, उसके संक्रामक स्वरूप को ध्यान में रखते हुए शव को उसी रात, समुद्र-तट पर, भाटा आने पर ढलवाँ चट्टान के नीचे जला दिया जाए।
उस रात कैसिनो में नृत्य था। समय के पूर्व ही आ गयी शरद की वह प्रारम्भिक रात थी और ठण्ड थी। यद्यपि समुद्र में तूफान नहीं था, तेज हवा बह रही थी। छिटपुट बादल आसमान के आर-पार छाये हुए थे। सुदूर क्षितिज से वे ऊपर उठे और जब चाँद के पास पहुँचे, सफेद हो गये। तेजी से उन्होंने चाँद को ढँक-सा लिया और वे एक-दो सेकण्ड के लिए चाँद पर छाये रहे, किन्तु वास्तव में वे उसे छिपा नहीं सके। इट्रेटट के गोलाकार, समुद्र-तट की लम्बी ढलवाँ चट्टान, जो कि ‘गेट्स’ के नाम से पुकारे जानेवाले, वृक्षों से आच्छादित दो प्रसिद्ध मार्गों पर समाप्त होती है, चाँद की कोमल चाँदनी में प्राकृतिक दृश्योंवाले इस स्थान पर दो भारी काले धब्बे बनाती हुई छायाओं में छिपी रही। दिन भर वर्षा होती रही।
कैसिनो आर्केस्ट्रा पर वाल्जेज, पोल्काज और क्वाड्रिल्स की धुनें बज रही थीं। सहसा भीड़ में खबर फैल गयी कि होटेल डेस बेन्स में अभी-अभी भारतीय राजा मर गया है और शव को जलाने के लिए अधिकारियों से अनुमति माँगी गयी है। यह चीज हमारे रीति-रिवाजों के इतनी विपरीत है कि किसी को भी इस बात पर विश्वास न हुआ, कम-से-कम किसी का भी खयाल नहीं था कि ऐसा शीघ्र होना सम्भव है। रात अधिक बीत गयी, तो लोग अपने-अपने घर चले गये।
दोपहर से ही एक बढ़ई लकड़ियाँ काट रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि इन लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में क्यों चिरवाया जा रहा है और इतना अच्छा सामान क्यों नष्ट किया जा रहा है। ये लकड़ियाँ गाड़ी पर लादी गयीं और अधिक रात बीते रास्ते में मिलने वाले राहगीरों के मन में सन्देह पैदा किये बगैर गलियों से इन्हें समुद्र तट पर ले जाया गया। समुद्र के कंकड़ोंवाले मार्ग से होती हुई गाड़ी ढलवाँ चट्टान के निचले भाग तक गयी और जब उसे खाली किया गया, तो वे तीनों भारतीय नौकर चिता तैयार करने लगे, जो उसकी चौड़ाई से ज्यादा लम्बी थी, केवल उन्होंने ही यह सारा काम किया, क्योंकि इस पवित्र कार्य में अपवित्र हाथों वाले कोई अन्य व्यक्ति उनकी मदद नहीं कर सकते थे।
जिस छोटे घर में वे ठहरे थे, उसका दरवाजा खोल दिया गया और सँकरे हाल में, जिसमें मद्धिम रोशनी थी, हमने लाश तख्ते पर रखी हुई, सफेद सिल्क में लिपटी हुई देखी। सफेद आवरण के बीच लेटा हुआ आकार स्पष्ट दिखाई देता था। भारतीय लोग उसके पैरों की तरफ खड़े थे, बिना हिले-डुले और बहुत गम्भीर, जब कि उनमें का एक व्यक्ति एक ही लय में कुछ गुनगुनाते हुए, जिन शब्दों को हम समझ नहीं सकते थे, क्रियाएँ करने लगा। वह शव के आसपास घूमा, कभी-कभी उसे स्पर्श किया, इसके बाद तीन जंजीरों से लटके एक कलश को उसने उठाया और गंगा का पवित्र जल बड़ी देर तक छिड़का।
इसके बाद उनमें से चार व्यक्तियों ने तख्ते को उठाया और उसे लेकर वे धीरे-धीरे चलने लगे। कीचड़ भरी, जनशून्य सड़कों को अँधेरे में छोड़कर चाँद अदृश्य हो गया, किन्तु रेशम इतना चमकीला था कि तख्ते पर रखा हुआ शव चमकता-सा लग रहा था। रात में आदमियों द्वारा, जिनका चमड़ा इतना काला था कि हल्के अँधेरे में उनके चेहरों और हाथों और कपड़ों के बीच किसी को कोई फर्क दिखाई नहीं दे सकता था, उठाकर ले जाये जा रहे इस शव के आकार को देखना एक प्रभावोत्पादक दृश्य था। तीनों भारतीय नौकर शव के पीछे-पीछे चल रहे थे, तभी राख के रंग का ओवरकोट पहने एक अँग्रेज की लम्बी आकृति दिखाई दी, जिसने उनकी ओर सिर और कन्धे उठाये थे। उसका व्यक्तित्व आकर्षक और विशिष्ट था। वह यूरोप में उन लोगों का मार्गदर्शक, परामर्शदाता और मित्र था।
जलवाले इस उत्तरी स्थान पर, ठण्डे, कुहरे से भरे आसमान के बीच मुझे ऐसा लगा, मानो मैं प्रतीकात्मक दृश्य देख रहा हूँ। मुझे लगा कि शवयात्रा की तरह पराजित भारतीय प्रतिमा मेरे आगे-आगे ले जायी जा रही है और राख के रंग का लबादा ओढ़े इंग्लैण्ड की विजयी प्रतिमा उसके पीछे-पीछे चली आ रही है।
अरथी उठाये हुए चारों व्यक्ति साँस लेने को एक क्षण के लिए लुढ़कते कंकड़ों पर रुके, फिर चलने लगे, अब वे बहुत धीरे-धीरे चल रहे थे और बोझ से लड़खड़ा रहे थे। अन्त में वे चिता के स्थान पर पहुँच गये, जो कि ढलवाँ चट्टान के नीचे, एक खोह में बनायी गयी थी। खोह करीब तीन सौ फुट ऊँची थी, पूरी सफेद, किन्तु रात में धुँधली-धुँधली दिखाई दे रही थी। चिता करीब तीन फुट ऊँची थी। शव को उस पर रख दिया गया और उनमें से एक भारतीय ने पूछा कि ध्रुवतारा किस दिशा में है। वह उसे दिखला दिया गया और तब मृत राजा को उनके पैर उनके देश की ओर रखते हुए लेटा दिया गया। इसके बाद शव पर बारह बोतलें पेट्रोल छिड़का गया और देवदार के तख्तों से उसे पूरी तरह ढक दिया गया। फिर घण्टे भर तक सम्बन्धी लोग और नौकर चिता पर और तख्ते रखते रहे और यह ऐसा लगने लगा, मानो बढ़इयों ने अपनी अटारियों में लकड़ियों के ढेर लगा रखे हों। फिर उस पर तेल की बीस बोतलें खाली की गयीं और सबके ऊपर लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों का बोरा रख दिया गया। कुछ ही फुट के फासले पर शव के लाये जाने के समय से ही जल रहे काँसे के स्पिरिट वाले लैम्प से लड़खड़ाती हुई रोशनी निकल रही थी।
क्षण आ गया था। सम्बन्धी लोग चिता में आग लगाने के लिए गये। लैम्प ठीक तरह नहीं जल रहा था, इसलिए उन्होंने उसमें कुछ तेल डाला और अचानक चट्टान की भारी दीवार को ऊपर से नीचे तक प्रकाशमान करती लपट निकली। एक भारतीय, जो लैम्प पर झुका हुआ था, अपने दोनों हाथ उठाकर और अपनी कुहनियों को मोड़कर खड़ा हो गया और विशाल सफेद ढलवाँ चट्टान पर एक विशाल काली छाया दिखाई दी, अपनी परम्परागत मुद्रा में बुद्ध की छाया। इसका इतना तीव्र और अनपेक्षित प्रभाव पड़ा कि मैंने अपने दिल की धड़कन की गति यों महसूस की, मानो कोई अलौकिक प्रेत मुझे सामने अस्पष्ट-सा दिखाई दिया हो। वास्तव में वह प्राचीन और पवित्र मूर्ति थी, जो पूर्व के हृदय से यूरोप के इस दूसरे छोर पर अपने बच्चे को देखने के लिए आयी थी, जो यहाँ जलाया जा रहा था।
छाया अदृश्य हो गयी। वे लैम्प के साथ गये। ऊपर रखे लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों ने आग पकड़ ली। फिर लपटें लकड़ियों में फैल गयीं और एक शक्तिशाली प्रकाश ने समुद्र-तट को, तट के चिकने पत्थरों को और रेती पर आकर समाप्त होनेवाली झागदार लहरों को प्रकाशमान बना दिया। प्रत्येक क्षण प्रकाश बढ़ता ही गया, यहाँ तक कि उसने सुदूर समुद्र में लहरों की नाचती शिखाओं तक को प्रकाशित कर दिया। समुद्र की ओर से बहनेवाली वायु प्रचण्ड रूप में प्रवाहित होने लगी, लपटों को बढ़ाने लगी, जो उठती थीं, गिरती थीं, बलखाती थीं और हजारों चिनगारियाँ फेंकती हुई उठने लगती थीं : बिजली की गति से वे ढलवाँ चट्टान पर दौड़ जाती थीं और आकाश में खो जाती थीं, जहाँ वे तारों में मिल जाती थीं और तारों की संख्या बढ़ा देती थीं। कुछ समुद्री पंछी जाग गये और टेढ़ी-मेढ़ी लम्बी उड़ानें भरते हुए, तेज रोशनी में पंख फैलाये उड़ते हुए और अन्धकार में गायब होते हुए अपनी आर्त्तभरी आवाजें निकालने लगे।
चिता बहुत जल्द ही जलती हुई विशाल अग्निपुंज बन गयी, जो लाल नहीं, पीला था, खूब चमकीला पीला, जैसे तेज हवा से सुलग उठी भट्ठी हो। एकाएक हवा के तेज झोंके से चिता हिल गयी। उसका कुछ हिस्सा डगमगाया और समुद्र की तरफ गिर गया। शव निरावरण था और अच्छी तरह दिखाई देता था, आग के बिछौने पर एक काला थीगले-सा, जो लम्बी नीली लपटों के साथ जल रहा था। जब चिता दाहिनी ओर गिर पड़ी, तो शव यों उलट गया, जैसे बिस्तर पर कोई आदमी उलट गया हो। चिता पर तुरन्त नये सिरे से लकड़ियाँ रख दी गयीं और लपटें पहले से भी ज्यादा आवाज करती हुई उठने लगीं। चिकने कंकरों पर अर्द्ध गोलाकार में बैठे हुए भारतीयों के चेहरे उदास और गम्भीर दिखाई दे रहे थे। चूँकि ठण्ड थी, हममें से शेष लोग आग के काफी नजदीक आ गये। देवदार और पेट्रोल की गन्ध के सिवा और कोई गन्ध नहीं आ रही थी।
घण्टों बीत गये और सवेरा हो आया। करीब पाँच बजे राख और अस्थियों के ढेर के सिवा कुछ भी शेष नहीं रह गया। रिश्तेदारों ने उसे बटोर लिया, कुछ भाग हवा में उड़ा दिया, कुछ हिस्सा समुद्र में बहा दिया और अस्थियों का कुछ अंश भारत वापस ले जाये जाने के लिए ताँबे के एक बरतन में रख लिया। इस प्रकार नौजवान राजा लोग और उनके नौकर बिलकुल प्रारम्भिक सामग्री से अपूर्व बुद्धिमानी और उल्लेखनीय शालीनता से अपने रिश्तेदार का शवदाह करने में सफल हुए। हर चीज उनकी धार्मिक रीतियों और नियमों के अनुसार पूरी की गयी। मृत व्यक्ति शान्ति प्राप्त कर रहा है।
अगले दिन इट्रेटट में भारी हलचल मच गयी। कुछ लोग बकवास करने लगे कि आदमी को जिन्दा जला दिया गया, अन्य लोग कहने लगे कि इस तरीके से एक अपराध को छिपाने का प्रयास किया गया है। कुछ लोग कहने लगे कि मेयर को जेल में बन्द कर दिया जाएगा। और कुछ लोग कहने लगे कि उक्त भारतीय राजा हैजे से मरा था। पुरुष लोग अचरज में भर गये और स्त्रियाँ क्षुब्ध हो उठीं। जहाँ चिता जलायी गयी थी, वहाँ दिन भर लोगों की भीड़ लगी रही और लोग वहाँ के कंकरों के बीच, जो अभी तक गरम थे, हड्डियों के टुकड़े ढूँढ़ते रहे। इतनी हड्डियाँ चुन ली गयीं कि उनसे पूरे दस अस्थि-पंजर बन सकते थे, क्योंकि आसपास रहने वाले किसान अपनी मृत भेड़ों को अकसर समुद्र में फेंक दिया करते थे। जुआड़ियों ने हड्डियों के ये विभिन्न प्रकार के टुकड़े सावधानी से अपने-अपने पर्स में रख लिये। किन्तु वास्तव में उनमें से एक के भी पास भारतीय राजा की वास्तविक हड्डी का एक भी टुकड़ा नहीं था।
उसी रात जाँच करने सरकार का एक प्रतिनिधि आया। किन्तु ऐसा लगा कि इस अजीब मामले में उसके विचार एक तर्क और बुद्धिवाले मनुष्य की भाँति ही थे। किन्तु अपनी रिपोर्ट में वह क्या कहेगा? भारतीयों ने अपने बयान में कहा कि यदि फ्रांस में उनके सम्बन्धी का शवदाह करने से उन्हें रोका गया होता, तो वे शव को किसी ऐसे अधिक स्वतन्त्र देश में ले गये होते, जहाँ वे अपने रीति-रिवाजों का पालन कर सकते।
इस प्रकार मैंने एक आदमी को एक चिता पर जलते देखा है और उसने मुझमें यह आकांक्षा उत्पन्न कर दी है कि मेरे शव को भी इसी प्रकार जलाया जाए। इस तरीके से सबकुछ फौरन समाप्त हो जाता है। प्रकृति द्वारा धीमी गति से किया जानेवाला काम इस तरीके से आदमी द्वारा जल्दी पूरा कर दिया जाता है। प्रकृति द्वारा किये जाने वाले काम के तरीके में बहुत ही बदशक्ल कफन उसे रोके रहता है, जिसमें कि सड़ने का क्रम महीनों तक चलता रहता है। शरीर मृत है और आत्मा विदा हो चुका है। अकथनीय सड़ाँध की जगह पवित्र अग्नि कुछ ही घण्टों में उसे बिखेर देती है, जोकि एक मनुष्य था। वायु वायु में मिल जाती है।
यह एक शुद्ध और स्वस्थ तरीका है। मिट्टी के नीचे उस बन्द सन्दूक में जिसमें कि शव सड़-गलकर गूदा बन जाता है, काला दुर्गन्धपूर्ण गूदा, सड़ाँध का यह तरीका घृणास्पद और अत्यन्त दुष्ट हो जाता है। कफन, जो एक कीचड़वाले गड्ढे में उतारा जाता है, दिल में दर्द पैदा कर देता है, किन्तु चिता में, जिसकी लपटें आसमान तक उठती हैं, महानता, सुन्दरता और पवित्रता का एक तत्त्व रहता है।
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